राजनीति असीमित संभावनाओं की दुनिया- महाराष्ट्र में बेहद अहम घटना

महाराष्ट्र में  दूसरे विकल्प का मतलब क्या है? दूसरे विकल्पों के रूप में एनसीपी और कांग्रेस ही हो सकती हैं। तो क्या शिवसेना  बीजेपी को छोड़ कांग्रेस-एनसीपी से समर्थन माँग सकती है या उनके साथ जा सकती है? राजनीति के बारे में कहा जाता है कि ‘यह असीमित संभावनाओं की दुनिया है’ और यह भी कि ‘राजनीति में अनजान लोग भी हमबिस्तर होते हैं।’ 

 महाराष्ट्र में तेज़ी से बदलते घटनाक्रम के बीच एक बेहद अहम घटना हुई है। शिवसेना नेता संजय राउत ने एनसीपी नेता शरद पवार से मुलाक़ात की है।  ऐसा नहीं है कि राउत यकायक पवार से मिलने चले गए हैं। इसके पहले बीजेपी और शिवसेना के बीच कई दौर की बैठक हो चुकी है और दोनों ने एक दूसरे को सार्वजनिक रूप से आँखें दिखाई हैं। 

यह मुलाक़ात राज्य ही नहीं, पूरे देश की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण इसलिए है कि दोनों राजनीतिक रूप से एक दूसरे के विरोधी हैं। शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिल कर राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा तो एनसीपी कांग्रेस के साथ थी।   राउत का शरद पवार से मिलना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसके पहले उन्होंने बीजेपी को चेतावनी देते हुए कहा था कि वह हमें ‘किसी दूसरे विकल्प पर विचार करने के लिए मजबूर न करे।’ 

बीजेपी और शिवसेना के बीच मुख्य मंत्री पद की दावेदारी को लेकर ठनी हुई है। शिवसेना की माँग है कि बीजेपी उसके साथ मुख्य मंत्री पद बराबर समय यानी ढाई-ढाई साल के लिए साझा करे, यानी ढाई साल के लिए शिवसेना का आदमी मुख्य मंत्री तो दूसरे ढाई साल के लिए बीजेपी का।

शिवसेना का कहना है कि चुनाव के पहले ही दोनों दलों के बीच 50-50 की हिस्सेदारी का फ़ॉर्मूला तय हुआ था और उसे इसके तहत आधे समय के लिए मुख्य मंत्री पद मिलना ही चाहिए। बीजेपी का कहना है कि वह मुख्य मंत्री पद किसी सूरत में शिवसेना को नहीं देगी। मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ज़ोर देकर कहा है कि वही पूरे 5 साल के लिए मुख्य मंत्री होंगे। 

गुरुवार को शिवसेना विधायक दल की बैठक में एकनाथ शिंदे को नेता चुने जाने से कई सवाल खड़े हुए, लेकिन ऐसा लगने लगा मानो शिवसेना ने मुख्य मंत्री पद पर जिद छोड़ दी है। इसकी वजह यह कि वह पहले आदित्य ठाकरे को मुख्य मंत्री बनाना चाहती थी। 

लेकिन शिवसेना का कहना है कि विधायक दल के नेता और मुख्य मंत्री पद में कोई संबंध नहीं है। शिवसेना ने यह भी कहा है कि बीजेपी के साथ गठबंधन में मुख्य मंत्री पद के कार्यकाल के बंटवारे का सवाल अभी भी मजबूती से कायम है। उल्लेखनीय है कि साल 2014 में भी जब बीजेपी और शिवसेना में गठबंधन को लेकर इसी तरह की रार चल रही थी तब भी शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को विधानसभा में विरोधी पक्ष के नेता के रूप में चुना था। शिंदे कुछ दिन तक उस पद पर बने भी रहे और जब दोनों पार्टियों में गठबंधन का पेच सुलझ गया तो शिंदे को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। 

उस समय बीजेपी ने बिना बहुमत के विधानसभा के पटल पर विश्वास प्रस्ताव रखा था और उसे एनसीपी का समर्थन हासिल है, यह घोषणा करते हुए शोर-शराबे के बीच बहुमत सिद्ध करने की घोषणा करा ली थी। तो क्या शिवसेना इस बार बीजेपी की ऐसी ही किसी चाल से बचने के लिए इस तरह की रणनीति अख्तियार नहीं कर रही है। 

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