मायावती के प्रति मुसलमानों का समर्थन बढा

#बीजेपी धुल गई   #जाटवों ने सोच लिया है कि वह बीजेपी को हराने वाले #

www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportgal & Print Media) CS JOSHI- EDITOR

मायावती के प्रति मुसलमानों का समर्थन बढ़ता जा रहा है इस बार बीजेपी साफ है। बीजेपी धुल गई नोट के बदलाव में।’ यूपी की 18 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है जिसमें 85 फीसदी पसमंदा जाति के हैं और इनमें से ज्यादातर अब मायावती के खेमे में आ रहे हैं. दलित और मुसलमान मिलकर यूपी की 20 करोड़ की जनसंख्या का चालीस फीसदी हिस्सा हैं. शायद इस बार मायावती को इसका फायदा मिल सके. राजनीति में टिके रहने के लिए यही उनकी रणनीति है. जाटवों ने सोच लिया है कि वह बीजेपी को हराने वाले हैं क्योंकि यह पार्टी दलित विरोधी है

यूपी और बिहार की सियासी इतिहास पर नजर डालें तो पता चलेगा कि राजनीतिक इतिहास यहीं से बनते हैं. सियासत में जो दिखता है वह बिल्कुल नहीं होता, ये अक्सर सियासी गलियों में आप सुनते रहे होंगे, फिलहाल यूपी के विधानसभा चुनाव में भी वही हो रहा है. हर जगह सूबे के सीएम अखिलेश यादव ‘विजयी मुस्कान’ लेकर घूम रहे हैं, आखिरकार परिवार और पार्टी दोनों पर फतह हासिल किये हैं. इतना ही नहीं राहुल गांधी के साथ पिक्चर परफेक्ट पोज के साथ केंद्र को संदेश देने वाली सियासत दिखा रहे हैं.

सपा ने दो सीटों को छोड़कर रायबरेली और अमेठी की सभी सीटें कांग्रेस को दीं. सिर्फ अमेठी और उंचाहार सीटें छोड़ीं. रायबरेली में सपा ने 6 में से पांच सीटें जीती थीं. एक ऊंचाहार को छोड़कर बाकी कांग्रेस को दीं. अमेठी में सपा ने चार में दो सीटें जीती थीं, एक अमेठी को छोड़कर बाकी कांग्रेस को दीं. अब आप सोचिए जब अमेठी से निर्दल के रूप में कांग्रेस के संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह खुद लड़ रही है तो एक तरह वो कांग्रेस की अघोषित उम्मीदवार ही हैं और अखिलेश समर्थित सपा का काडर गायत्री प्रजापति के बजाए अमिता को चुनेगा. सपा के टिकट पर गायत्री प्रजापति चुनाव मैदान में हैं. गायत्री मुख्यमंत्री के बजाए पिता मुलायम सिंह की पसंद हैं. जब गठबंधन के दौरान सभी कांग्रेस को मजबूर बता रहे थे उस वक्त भी प्रियंका ने अपने मजबूत इरादों से अपनी हर वह बात मनवा ली जो वह चाहती थीं. 105 सीटें झटक लीं जबकि मुलायम और शिवपाल अप्रत्यक्ष रूप से कह रहे हैं कि 45 से 50 सीट से अधिक की कांग्रेस की हैसियत नहीं थी. अखिलेश कांग्रेस के ‘ट्रैप’ में फंस चुके हैं. खैर.. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकर अमेठी और रायबरेली की सभी सीटों के लिए प्रियंका गांधी क्यों अड़ी थीं? जनवरी मध्य में प्रशांत किशोर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यदि अमेठी और रायबरेली की सभी सीटों पर हम अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगें तो 2019 में अमेठी राहुल गांधी के ‘हाथ’ से निकल सकता है. स्मृति ईरानी को केंद्र सरकार के हर मंत्रालय से वहां समर्थन मिल रहा है ताकि राहुल गांधी को या तो अमेठी में बांध दो या उन्हें हराकर पूरे देश में संदेश दिया जा सके. बस इसी वजह से प्रियंका गांधी अड़ी हुई थीं. आज आखिरकार सपा से अपने खाते में टिकट झटक लीं.

पूरे देश की नजर यूपी के विधानसभा चुनाव पर है. क्योंकि सभी को पता है दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी होकर ही जाता है. उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों का किसी भी अन्‍य पार्टी से ज्‍यादा इंतजार कांग्रेस को है. मैं सियासी समीकरण के बजाए कुछ तथ्यों पर बात करूंगा. 1989 से यूपी की सत्ता से बाहर कांग्रेस ने जातिगत और धार्मिक मोर्चे पर भी अपना मतदाता खो दिया है. सोचिए जिस प्रदेश से 80 सांसद और राज्‍यसभा के 31 सांसद आते हों वहां से कांग्रेस कैसे इस स्तर तक रसातल में पहुंच गई? इसके लिए आपको 1989 से 1996 के यूपी के सियासी उठापटक पर गौर करना होगा. इस पर गहन जानकारी फिर कभी. मोटा मोटी ये जानिए कि मुलायम जब चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह को पटकनी दे रहे थे तो उस वक्त कांग्रेस के दिग्गज नेता एनडी तिवारी ने ही रास्ता तैयार किया. मुलायम ने मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली. एनडी तिवारी जिसे अखाड़े का पहलवान समझे और हल्के में आंका उसने कारसेवकों पर गोली चलवा कर सियासी धोबिया पछाड़ ऐसा मारा कि कांग्रेस बुरी तरह चित हो गई. बीएसपी के साथ गठबंधन करके मुलायम ने एक बार फिर कांग्रेस के जड़ में मठ्ठा डाल दिया. फिर गेस्ट हाउस कांड होता है. कांग्रेस को रास्ता मिला लेकिन नरसिम्हा राव ने मायावती के साथ गठबंधन करने में कुछ ज्यादा ही दरियादिली दिखा दी जिसका असर हुआ कि कांग्रेस का वोट बैंक मुसलमान जो पहले ही सपा ने छीन लिया फिर बचे दलितों को मायावती ने झटक लिया. जब कांग्रेस कमजोर होती गई तो ब्राह्मण भी छिटक लिये. प्रियंका गांधी और मुलायम सिंह यादव दोनों ही इस बात को बखूबी समझ रहे हैं लेकिन अखिलेश इस मामले में ‘सियासी बबुआ’ बन गये हैं. मुलायम को पता है कि बीजेपी के मजबूत होने से सपा को नुकसान नहीं है लेकिन कांग्रेस मजबूत होगी तो संकट सिर्फ सपा के लिए है.
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अब आंकड़ों की जुबानी कुछ तथ्य देखिए. यूपी की 80 में से 71 सीटें बीजेपी की उल्लेखनीय उपलब्धि थीं लेकिन उत्तर प्रदेश में भी 15 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस सबसे आगे रही थी. अब कांग्रेस की रणनीति समझिए क्या है? कांग्रेस अपनी 105 सीटों में 43 से 46 सुरक्षित सीटों पर लड़ेगी. कांग्रेस के रणनीतिकार अखिलेश को यह समझाने में सफल हो गये हैं कि दलित सपा के बजाए हमारे साथ ज्यादा सहज हैं और यहां हमें सवर्ण वोटर पसंद करेंगे. इसलिए हमारी जीतने की संभावना अधिक है. अखिलेश इसी ट्रैप में आ गये है. अब कांग्रेस इन्हीं सुरक्षित सीटों पर सबसे ज्यादा फोकस कर रही है. यहां वह मुसलमान, दलित और सवर्ण को एक बार फिर अपने सिंबल की पहचान करा रही है. अपने पाले में खिंचने की कोशिश कर रही है. जो नरसिम्हा राव ने मायावती को 1996 में रास्ता दिया वही गलती अखिलेश कांग्रेस को रास्ता देकर कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के रणनीतिकार करीब 100 ऐसे मुस्लिम संगठनों को अपने पाले में कोशिश करने में जुटे हैं. जो जमीन पर आम गरीब मुसलमानों के बीच काम करते हैं. वह बड़े मुस्लिम चेहरों के बजाए इन संगठनों के जरिए सुरक्षित सीटों पर और कांग्रेस जहां से चुनाव लड़ रही है उन सीटों पर अपने लिए समर्थन मांग रहे हैं. कांग्रेस के अपने आंतरिक सर्वे में इन्हीं सुरक्षित सीटों पर सबसे अधिक सफलता के चांस दिख रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के रणनीतिकार कतई नहीं चाहते हैं कि अखिलेश बेहद मजबूती से उभरें. इसकी दो वजह है. पहली वजह यह है कि जब परिवार की लड़ाई चरम पर थी उस वक्त भी कांग्रेस अखिलेश के साथ थी और अखिलेश ने 138 सीट देने का वादा किया था. साइकिल चुनाव चिन्ह मिलते ही पलट गये. काफी खिंचतान के बाद 105 सीटें मिलीं. बस इसीलिए कांग्रेस की रणनीति खुद को ज्यादा से ज्यादा मजबूत करके 2019 में लोकसभा की 35 सीटों को सपा से झटकने की है. यदि लोकसभा के दौरान सपा नहीं मानेगी तब मुसलमानों के बीच कांग्रेस के मजबूत होने का संदेश विधानसभा में गया ही रहेगा. मुसलमान केंद्र में कांग्रेस का समर्थन कर देंगे. यह कांग्रेस के रणनीतिकार उम्मीद कर रहे हैं. 2019 की लड़ाई की बिसात यूपी में अभी बिछ रही है.
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का पहला चरण पूर्ण होने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने दूसरे चरण के लिए अपनी रणनीति बदल दी है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जो भाजपा को पहले चरण के बाद रणनीति बदलनी पड़ी है?यह सवाल पश्चिम उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भाजपा के रणनीति बदलने का खुलासा रविवार को लखनऊ में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बयान से हुआ। शाह ने कहा कि भाजपा का मुकाबला पहले और दूसरे चरण में बहुजन समाज पार्टी से है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया पहले चरण में हम 90 सीटें जीत रहे हैं।
रविवार को शाह द्वारा दिया गया यह बयान कि हमारा मुकाबला बसपा से है रणनीतिक है। दरअसल पहले चरण से भाजपा ने कुछ सीख ली है। पहले चरण मतदान में दो बाते एकदम स्पष्ट हो गईं कि मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में हुआ है। दूसरा यह कि जाट प्रभावित सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल मुख्य मुकाबले में रहा। इन दोनों ही स्थितियों में भाजपा को नुकसान है। जाटों का रालोद की तरफ जाना भाजपा के लिए नुकसानदेह है, जबकि मुसलमानों का सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर झुकाव भी भाजपा को सीधी टक्कर दे रहा है। पहले चरण में 11 फरवरी को जिन 73 सीटों पर मतदान हुआ है वहां कुछ सीटों पर बसपा मुसलमानों के वोट अपनी ओर आकर्षित कर पायी है।
अब दूसरे चरण के जिन 67 विधान सभा क्षेत्रों में 15 फरवरी को मतदान होना है। उन क्षेत्रों की स्थिति भी कमोबेश पहले चरण की सीटों जैसी ही है। यहां भी मुसलमानों की संख्या बहुतायत में है। कुछ सीटें तो ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतों की संख्या हिन्दुओं से ज्यादा है। साथ ही दूसरे चरण की सीटों पर भी जाट मतों की पर्याप्त संख्या है। इस चरण मे जाट निर्णायक तो नहीं हैं किन्तु चुनाव परिणामों को प्रभावित करने में उनकी अहम भूमिका है। इसलिए भाजपा की नई रणनीति यह है कि मुख्य मुकाबले में सपा-बसपा के बजाय बसपा को दर्शाया जाए। ताकि मुसलमानों का ध्रुवीकरण न हो और वे सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा के बीच बंट जाएं। यह स्थिति भाजपा के लिए मुफीद होगी। यदि इस चरण में भी मुसलमानों का रुझान गठबंधन की ओर रहा तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।इसीलिए पार्टी की पुरजोर कोशिश है कि जोभी संभव हो कुछ मत बसपा की ओर जाएं। भाजपा की नई रणनीति से यह भी स्पष्ट हो गया है कि उसकी लक्ष्य अब सपा-कांग्रेस गठबंधन को रोकना है।
हालांकि मुसलमानों के सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में ध्रुवीकरण के लिए भी भाजपा के रणनीतिकार ही जिम्मेदार हैं। इन्होंने पश्चिम में हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करने के लिए कैराना को मुद्दा बनाया। साथ ही योगी आदित्यनाथ की कई सभाएं कराईं। योगी के आक्रामक तेवरों से हिन्दू जो पहले से ही भाजपा के पक्ष में थे। उनमें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा। हां इतना जरूर हुआ कि जो कुछ मुसलमान मतदाता बसपा को मतदान करने का मन बना रहे थे। वह सपा-कांग्रेस के पक्ष में लामबंद हो गए। उधर मायावती भी खुद को मुसलमानों का रहनुमा साबित करके उन्हें अपने पक्ष में मोडने का प्रयास कर रही हैं। इसके साथ ही उनकी पूरी कोशिश दलित और पिछड़े वोटों को बंटने से रोकने की है। इसीलिए वह लगातार कह रही है कि भाजपा सत्ता में आयी तो आरक्षण को समाप्त कर देगी।
दूसरे चरण में मुरादाबाद, बरेली मण्डल और लखीमपुर खीरी की सीटों पर मतदान होगा। यहां अगर भाजपा की रणनीति कारगर हुई तो पार्टी बढ़त बना सकती है। क्योंकि इन क्षेत्रों में अन्य के साथ साथ भाजपा समर्थक पिछड़ों की संख्या अधिक है। बरेली मण्डल में कुर्मी भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। इसके साथ ही यहां लोध, किसान, सैनी और मौर्य वोट भी भारी संख्या में हैं। इनके बदोलत भाजपा पहले चरण की क्षति की भरपाई भी कर सकती है।

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