यहां भूतों का वास -मसूरी की पहाडियों में


ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि में ऐसे कई स्थान हैं, जिनका आज भी रहस्य बरकरार है. वैसे तो दुनियाभर में ऐसी कई गुफाएं हैं, जोकि अपने आपमें अद्भुत रहस्य और अनोखी खासियत के लिए मशहूर हैं. लेकिन, देवों की नगरी उत्तराखंड में कई ऐसी गफाएं हैं, जहां उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र पहुंच चुका है. उत्तराखंड में एक पर्वत ऐसा भी है, जिसका जिक्र स्कंदपुराण के मानसखंड में गुफाओं के पर्वत के रूप में किया गया है.

 मसूरी की हसीन वादियों की सैर तो आपने कई बार की होगी. बांज, बुरांस, देवदार, फर के घने जंगलों के बीच मसूरी की पहाड़ियों में घूमने के लिए देश-विदेश के सैलानी पहुचते हैं, लेकिन मसूरी की पहाडियों में इतिहास के कई पन्ने ऐसे हैं जो आपको हॉरर की दुनिया में ले जाएंगे. अगर आप डर से आगे जीना चाहते हैं और ऐसे वीरान जगहों की सैर करना चाहते है जहां भूतों की कहानियां छिपी हो तो मसूरी की पहाडियां आपका इंतजार कर रही है. चूना पत्थरों की खदानों से निकलने वाले धूल, गाडियों की गड़गड़ाहट और पेड़ों के अन्धाधुंध कटान से मसूरी खतरे में आ चुकी  थी. मसूरी की पहाडियों में स्थित हाथीपांव, झड़ीपानी और राजपुर क्षेत्र में कई चूनापत्थर के खदान स्थित हैं जो अब वीरान हो चुके हैं. इन खदानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए बड़ी संख्या में मकान बनाए गये थे जो अब खंडहर हो चुके हैं. स्थानीय लोग अब इन्ही चुना पत्थर की खदानों और खंडहर भवनों में घोस्ट टूरिज्म शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं. हाथीपांव और जॉर्ज एवरेस्ट क्षेत्र में कई खदाने थीं. इन्हीं खदानों के पास अब ईको और घोष्ट टूरिज्म शुरू करने की योजना है. 1960 के दशक से मसूरी क्षेत्र में चूना पत्थर की खदानों में काम शुरू हुआ जो फिर 1990 में बंद हो गया. उस समय हाथीपांव, झड़ीपानी, राजपुर, लम्बीधार सहित कई इलाकों में चूना पत्थर निकाला जाता था. खनन के इस कारोबार के कारण मसूरी की पहाडियां बदरंग हो गईं और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसमें रोक लगा दी. खदान में लगे मजदूरों के लिए कई भवन बनाए गये थे जो अब खंडहर हो चुके हैं. हाथीपांव क्षेत्र में भी स्थानीय लोग अब घोष्ट टूरिज्म शुरू करने की योजना बना रहे हैं.  साहसिक और रोमांच से भरे सोच के बारे में अभय शर्मा बताते हैं कि उनके दादा ने 1965 में करीब 200 बीघा जमीन चूना पत्थर खनन के लिए ली थी, लेकिन बाद में इसमें प्रतिबंध लग गया और बाद में 200 बीघा जमीन में से 120 बीघा जमीन उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने ले ली जो अब उत्तराखंड पर्यटन के पास है. उन्होने कहा कि उनकी जमीन में पूराने भवनों के खंडहर हैं और आस पास चूने की खदान स्थित है. अभय ने कहा कि सैलानियों को पैरानार्मल एक्टिविटी का अहसास कराने के लिए घोष्ट वॉक कराया जाएगा. सैलानी अपना टैंट खुद लगाएंगे और पूरे क्षेत्र को प्लास्टिक फ्री किया जाएगा.  दरअसल, हाथीपांव क्षेत्र को सालों पहले नई मसूरी बसाने के लिए चिन्हित किया गया था. इसके लिए बडी संख्या में जमीन का चिन्हीकरण भी कर लिया गया, लेकिन बाद में ये योजना परवान नही चढ सकी. इसी के पास लम्बीधार खदान मौजूद है, स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां भूतों का वास है. 1980 के दशक में यहां बडी संख्या में मजदूर खदानों से चुना पत्थर निकालते थे जिनमें से कई मजदूरों की मौत हो गई. वर्ल्ड पैरानार्मल सोसाईटी ने भी इस इलाके को हॉन्टेड प्लेस की सूची में रखा हुआ है. स्थानीय लोग बताते हैं कि लम्बीधार खदान के आस पास अचानक अंधेरा छा जाता है और रात के समय अजीब-अजीब सी आवाजें आती है. कई बार तालियों के बजने की आवाज आती है. लेखक गोपाल भारद्वाज कहते हैं लम्बीधार खदान के बारे में कई तरह की धारणाएं प्रचलित हैं. कई लोग वहां भूत-प्रेत होने की बात करते हैं, लेकिन उन्हें कभी नही दिखा. मसूरी के जाने माने इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी कहते है कि लम्बीधार खदान से एशिया का सबसे अच्छा मार्बल निकलता है. आजादी के बाद उत्तर प्रदेश ने यूपी खनिज निमग का गठन किया और मसूरी की पहाड़ियों में चूना पत्थर के पट्टे आबंटित कर दिया गए. सालों तक मसूरी की पहाडियों से चूना पत्थर निकाला जाता रहा. उस दौरान करीब 50 से ज्यादा खदानें हाथीपांव, झडीपानी, लम्बीधार, राजपुर क्षेत्र में हुआ करती थी जिनसे धुएं का गुबार निकलता रहता था.  इन खदानों को बंद करने के लिए पदश्री अवधेश कौशल और सेव मसूरी सोसाईटी ने काफी प्रयास किए. आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ये बंद किए गये. लेखक गोपाल भारद्वाज कहते हैं यहां के चूना पत्थर स्टील फैक्ट्री जबलपुर भेजे जाते थे जिनसे मार्बल केमिकल आदि कई उत्पाद तैयार किए जाते थे.  जॉर्ज एवरेस्ट हाऊस भी इसी इलाके में स्थित है. समुद्र तल से करीब 6 हजार फीट की ऊचाई पर स्थित ये भवन भी खंडहर हो चुका है. पर्यटन विभाग हर साल यहां 3 जुलाई को जॉर्ज एवरेस्ट का जन्मदिन मनाने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन करता है. संयुक्त निदेशक पूनम चन्द्र ने बताया कि विभाग इस इलाके को एडाप्टेट हैरिटेज प्लेस के तौर पर विकसित करने की योजना बना रही है.

ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि में ऐसे कई स्थान हैं, जिनका आज भी रहस्य बरकरार है. वैसे तो दुनियाभर में ऐसी कई गुफाएं हैं, जोकि अपने आपमें अद्भुत रहस्य और अनोखी खासियत के लिए मशहूर हैं. लेकिन, देवों की नगरी उत्तराखंड में कई ऐसी गफाएं हैं, जहां उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र पहुंच चुका है. उत्तराखंड में एक पर्वत ऐसा भी है, जिसका जिक्र स्कंदपुराण के मानसखंड में गुफाओं के पर्वत के रूप में किया गया है. कुमाऊं क्षेत्र के पिथौरागढ़ जिले में स्थित इस पर्वत श्रेणी में हाल ही में उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने 9 गुफाओं की खोज की है, यहां पहले ही विश्व प्रसिद् पाताल भुवनेश्वर गुफा स्थित है, जहां मान्यता है कि 33 करोड़ देवी-देवता वास करते है. पिथौरागढ़ जिले से करीब 78 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगोलीहाट कस्बा, जो रामगंगा और सरयू नदी से घिरा हुआ है. 

देवदार के झुरमुट के बीच बसा ये छोटा कस्बा पंचाचूली और नंदा देवी पर्वत श्रृंखला के नैसर्गिक दीदार भी कराता है. गंगोलीहाट में प्रसिद्व मां हाटकालिका सिद्धपीठ मंदिर स्थित है. गंगोलीहाट शैल पर्वत पर स्थित है और इसी पर्वत श्रृंखला में 9 गुफाएं खोजी गई है, जिसके बाद इस पूरे क्षेत्र को केव सर्किट यानी गुफ सर्किट में विकसित करने की मांग शुरू हो गई है. चूना पत्थर की आकृति से बनी इन गुफाओं में कई कलाकृतियां हैरान करने वाली है. 

मुक्तेश्वर गुफा गंगोलीहाट में स्थित हाटकालिका मंदिर से 1 किमी नीचे स्थित है. इस गुफा का वर्णन स्कंदपुराण के मानसखंड में भी आता है. रावलगांव के पास स्थित यह गुफा के चारों ओर देवदार के घने पेडों से घिरा है. गंगोलीहाट और बेरीनाग क्षेत्र के सैकडों श्रद्धालु हर साल शिवरात्रि, सावन और नौ रात्रि में पूजा अर्चना के लिए आते हैं. यह गुफा करीब 25 मीटर लम्बी है और 20 मीटर चौड़ी है. गुफा के भीतर दीवारों में चूना पत्थर से कई कलाकृतियां निर्मित है और इनसे लगातार पानी टपकटता रहता है. 

शीतलादेवी गुफा मुक्तेश्वर गुफा से 2 किमी नीचे स्थित है. इस गुफा के चारों तरफ देवदार, बांज, बुरांश का जंगल है और गुफा के भीतर शितला देवी की पूजा अर्चना की जाती है. ये गुफा करीब 1 मीटर लंबी है और वर्तमान में केवल स्थानीय लोग ही इस गुफा में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं. 

शैलेश्वर गुफा गंगोलीहाट मंदिर से 7 किमी दक्षिण दिशा में स्थित है. 4 किमी सड़क मार्ग से सफर तय करने के बाद चौदार और गन्तोला गांव पड़ता है, यहां से करीब 1.5 किमी पैदल के द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है. उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र की टीम केवल 20 मीटर अंदर ही इस गुफा के जा सके. गुफा अंदर काफी संकरी है. स्थानीय लोगों की माने तो गुफा करीब 100 मीटर लंबी है और यहां लगातार पानी बहता रहता है. 

मैलचौरा गुफा गंगोलीहाट शहर से 6.5 किमी की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित है. यह गुफा गोपिल गांव के पास स्थित है. गोपिल गांव से 1.5 किमी की दूरी पर सड़क मार्ग से 100 मीटर पैदल सफर कर इस गुफा तक पहुंचा जा सकता है. यह गुफा करीब 60 मीटर चौड़ी होगी और शुरुआत में यह गुफा करीब 1 मीटर चौड़ी है, लेकिन जैसै-जैसे आप अंदर प्रवेश करेंगे, तो गुफा की चौड़ाई बढ़ती जाती है. इस गुफा पर अभी और भी शोध बाकी है, यहां पर बिजली और पानी की मूलभूत सुविधाएं नहीं है. 

दानेश्वर गुफा गंगोलीहाट मंदिर से 6 किमी की दूरी पर उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित है. यह गुफा सुतारगांव के पास स्थित है और रोड से करीब 1.5 किमी की दूरी से कच्चा रास्ता तय कर नीचे पहुंचना पड़ता है. दानेश्वर गुफा में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. दानेश्वर गुफा कई रहस्यों से भरी है, जिसमें करीब 9 मंजिल है. गुफा के 3 मंजिल तो दिखाई देते है और यहां तक आसानी से पहुंचा भी जा सकता है. लेकिन, तीसरी मंजिल से आगे स्थानीय लोगों ने लकड़ी की सीढ़ी लगाई है. अंधेरा काफी होने की वजह से ये जगह आगे-आगे काफी डरावनी होने लगती है, क्योंकि दीवारों से लगातार पानी टपकता रहता है और चमगादड़ भी बहुत हैं. गुफा में लाईमस्टोन के कारण कई तरह की कलाकृतियां मौजूद है, जिसमें शिवलिंग जैसी बहुत की आकृतियां मिलती है. 

यह गुफा गंगोलीहाट कस्बे से 7 किमी की दूरी पर स्थित है. गंगोलीहाट से गोपिल गांव होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है. गोपिल गांव से 2 किमी पैदल दूरी तय कर इस गुफा तक पहुंचना पड़ता है. कोई पक्का रास्ता न होने के कारण, यहां पहुंचने में काफी दिक्कतें आती है. इस गुफा का प्रवेश द्वार 1 मीटर से भी छोटा है, इसलिए इसमें प्रवेश करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सिंकोटेश्वर गुफा के भीतर चिकनाई लिए लाईमस्टोन के पत्थर मौजूद है और उनमें से अभी कई निर्माण की प्रक्रिया में है. 

ये गुफा गंगोलीहाट कस्बे से 14 किमी की दूरी पर भुली गांव के पास स्थित है. भुली गांव से 500 मीटर चढ़ाई तय कर खेतों के बीच में गुफा स्थित है. इस गुफा में भी भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. गुफा करीब 70-80 मीटर लंबी है और इसमें दो मंजिल है. गुफा के भीतर कई रहस्यमई कलाकृतियां आपको सम्मोहित कर देंगे. लाईमस्टोन के मजबूत चट्टान से निर्मित इन कलाकृतियां को देखकर ऐसा मालूम होता है, जैसे पातालभुवनेश्वर में प्रवेश कर लिया हो, भोलेश्वर गुफा में शिवरात्रि के दौरान मेले का आयोजन किया जाता है.

ये गुफा गंगोलीहाट शहर से 5 किमी की दूरी पर उत्तर पूर्व में मल्लागरखा क्षेत्र के पास पाताल भुवनेश्वर गुफा के करीब स्थित है. मल्लागरखा से करीब 1.5 किमी की चढ़ाई तय कर इस गुफा में पहुंचा जा सकता है. यह गुफा पर्वत की चोटी पर स्थित है, जहां से पूरी घाटी का विहंगम दृश्य आपको मनमोहित कर देगा. बांज, कैल, फर और देवदार के घने जंगल के बीच चोटी पर स्थित इस गुफा का नैसर्गिक सौन्दर्य अपने आप में अदभुत है. गुफा करीब 20 मीटर गहरी है और इसमें एक समय में एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है. गुफा की दीवारों और छत पर स्टेलेक्टाइट की कलाकृतियां बनी हुई है. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *