राष्ट्रीय मंच बनाने की तैयारी- कई राजनीतिक दलों के नेता जुड़ेंगे

यशवंत सिन्हा ने राष्ट्रीय मंच बनाने की तैयारी की-  शिवसेना, वरुण गांधी और भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और अनेक बडे नेताओ का साथ मिलना तय है – भाजपा अनेक वर्तमान सांसदो के टिकट काटने की रणनीति बना रही है, ऐसे में इनके पास राष्ट्रीय मंच से जुडने का विकल्‍प खुल जायेगा-  

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भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने राष्ट्रीय मंच बनाने की तैयारी की है। इस मंच से कई राजनीतिक दलों के नेता जुड़ेंगे। खासकर ऐसा नेता, जो हाशिए पर हैं और उन्हें अपनी ही पार्टी में उचित तवज्जो नहीं मिल पा रही है। सिन्हा का यह कदम भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकता है, वजह कि लोकसभा चुनाव में महज 16 महीने बचे हैं, ऐसे संवेदनशील समय में सिन्हा मोदी विरोधियों को ऐसा मंच मुहैया कराने जा रहे, जिसके जरिए केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर जमकर वार होंगे। मंच गठन के पीछे मकसद है कि नेताओं को ऐसा प्लेटफॉर्म दिया जाना, जिससे वे ऐसी बातें भी खुलकर कह सकें, जो पार्टी के प्लेटफॉर्म पर नहीं कह सकते।

इस नेशनल फोरम को ‘राष्ट्रीय मंच’ नाम दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि इस फोरम से कांग्रेस नेता मनीष तिवारी, आम आदमी पार्टी के आशुतोष और आशीष खेतान, जदयू नेता पवन वर्मा, सपा के घनश्याम तिवारी, तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी और एनसीपी के मजीद मेमन आदि जुड़ेंगे। इसके अलावा सामाजिक और किसान संगठनों के बड़े चेहरों को भी जोड़ने की तैयारी है। नीतीश कुमार की पार्टी के पवन वर्मा मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक रहे हैं। हाल में आम आदमी पार्टी की ओर से तीन लोगों को राज्यसभा भेजा गया। इसमें कांग्रेस छोड़कर कुछ दिन पहले पार्टी में शामिल व्यक्ति को राज्यसभा भेजे जाने पर सवाल उठे थे तो आशुतोष बड़ी मुश्किल से बचाव कर पाए थे। माना जा रहा है कि पत्रकारिता छोड़कर केजरीवाल के साथ जुड़ने वाले आशुतोष भी हाल-फिलहाल पार्टी में असहज हैं। मंच के गठन के लिए महात्मा गांधी की 70 वीं पुण्यतिथि के मौके 30 जनवरी को चुना गया है।
दिवंगत शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की जंयती के मौके पर शिवसेना ने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर एक बड़ा एलान किया। शिवसेना 2019 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़ेगी।  वरुण गांधी और भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा जीएसटी एवं नोटबंदी को लेकर  सरकार के लाइन से अलग हटकर बोलते रहे हैं और  चरमराती अर्थव्यवस्था को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने केन्‍्द्र सरकार पर लगातार सवाल उठाए हैं। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर जोरदार निशाना साधा। एक  लेख में उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था का जो ‘कबाड़ा’ किया है, उस पर अगर मैं अब भी चुप रहा तो राष्ट्रीय कर्तव्य निभाने में विफल रहूंगा। मुझे यह भी मालूम है कि जो मैं कहने जा रहा हूं बीजेपी के ज्यादातर लोगों की यही राय है पर वे डर के कारण बोल नहीं पा रहे हैं।’ वही दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन दोहराने के लिए गहन मंथन पर रही है और उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सूबे की 80 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारतीय जनता पार्टी के इस अभियान को लेकर सबसे बड़ी चुनौती अपने ही सांसद बन गए हैं। क्षेत्र में उनकी छवि ठीक नहीं है और कार्यकर्ताओं का असंतोष चरम पर है। पार्टी की कसौटी पर दो दर्जन से ज्यादा सांसद खरे नहीं उतर रहे हैं। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इनका टिकट कट सकता है। नेतृत्व की चिंता इस बात से भी बढ़ गई है कि सांसदों को जो भी कार्यक्रम और लक्ष्य सौंपे गये उसमें कई सांसदों ने पूरी तरह निष्क्रियता दिखाई। 

 
जैसे-जैसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्त्व में भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर उदय हुआ और पार्टी जमीनी स्तर पर भी मजबूत हुई, वैसे-वैसे भाजपा में अपने दम पर किसी सहयोगी दल को मजबूत होने का मौका देने की सोच कम हुई है. इसी सोच का नतीजा है कि शिवसेना ने लगभग निर्णायक तरीके से घोषणा की है कि वह अब इस गठबंधन से अलग होकर 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी. यह चार साल में दूसरी बार है जब शिवसेना ने अपने बूते पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है,
शिवसेना का कहना है कि उसने गठबंधन धर्म निभाने के लिए हमेशा ही समझौता किया है, लेकिन भाजपा ने शिवसेना को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. शिवसेना चाहेगी कि गठबंधन से अलग होने के निर्णय को प्रदेश के लोग उसकी ‘गरिमा’ के साथ जोड़कर देखें. उद्धव का यह बयान ही शिवसेना के इस निर्णय के पीछे की सोच को स्पष्ट रूप से दर्शाता है. ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि शिवसेना के अलग चुनाव लड़ने के फैसले से भाजपा में कोई ज्यादा परेशानी देखने को नहीं मिलेगी.
शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन ना करने और अगले साल होने वाले लोकसभा तथा आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के लिए मंगलवार को एक प्रस्ताव पारित किया. शिवसेना सांसद संजय राउत ने यह प्रस्ताव पेश किया और कहा कि भाजपा पिछले तीन सालों से पार्टी को हतोत्साहित करती आ रही है. मुंबई में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ.
राउत ने कहा, ‘मैंने पार्टी के 2019 का लोकसभा और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के लिए प्रस्ताव पेश किया.’’’उन्होंने कहा कि पार्टी राज्य में कम से कम 25 लोकसभा सीट (कुल 48 में से) और 125 विधानसभा सीट (कुल 288 में से) जीतेगी. राउत ने कहा, ‘भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना के साथ गठबंधन किया था और हिंदुत्व के चलते पार्टी ने धैर्य बनाए रखा. लेकिन पिछले तीन सालों से भाजपा सत्ता के बल पर शिवसेना को हतोत्साहित करती आ रही है.’ शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं ने राउत के प्रस्ताव का समर्थन किया.
 

बताया जा रहा है कि इस मंच के जरिए राष्ट्रीय महत्व से जुड़े मुद्दों पर चर्चा को बढ़ावा दी जाएगी। ताकि केंद्र सरकार की नीतियों की समीक्षा कर जनता को उसके सही और गलत पहलुओं से रूबरू कराया जाए। पिछले कुछ समय से यशवंत सिन्हा बागी रुख अपनाए हुए हैं। चूंकि वित्त मंत्री के तौर पर काम का अनुभव हैं, इस नाते माना जा रहा है कि वे मंच के जरिए देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे उठाएंगे। बजट सत्र की पूर्व संध्या पर लांच हो रहा यह नेशनल फोरम सरकार के खिलाफ बड़ा मंच बन सकता है। खास बात है कि राष्ट्रीय मंच से जुड़ने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपनी पार्टी की सदस्यता नहीं छोड़नी पड़ेगी। इस मंच के जरिए लोग खुलकर अपने मन की बात कर सकेंगे। मंच से शुरुआती तौर पर जुड़ रहे लोगों का कहना है कि इसे आगे राजनीतिक दल में तब्दील करने का कोई इरादा नहीं है।

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