“उपवास” की नहीं “विश्वास” की दरकार

रायसेन में कल एक और किसान ने आत्महत्या की | कर्जे से परेशान था | किसान पुत्र उपवास पर हैं | बयान जारी कर जमीदार पुत्र इसे नौटंकी बता रहे है | विधायक पत्थर चलवा रहे है, आग लगवा रहे है| यह सब क्या है? यह सब हथकंडे हैं | मूल बात को छिपाने के, अपनी अकर्मण्यता को एक कवच से ढंकने और कैसे भी इस मामले को अपने पक्ष में मोड़ने के |
मंदसौर की लपट मालवा में फैल गई | गुस्सा सरकारी अधिकारियों ने सहना पडा | तबादला हुआ, पिटे किसी किसी के तो हाथ पैर भी टूटे | और यह सब उस किसान के मत्थे मढ़ दिया गया, जिसने विषम परिस्थिति में प्रदेश के नागरिकों को पर्याप्त अन्न दिया और सरकार के कीर्ति किरीट में “कृषि कर्मण” का सुनहरा पंख लगाया | सरकार ने उसे घोषणा के बावजूद वो सब नहीं दिया जिसकी घोषणा करते हुए किसान पुत्र अपनी पीठ थपथपाते रहे | इतराते रहे | जमीदार पुत्रों का जनाधार तो वैसे ही खिसका हुआ था | मंदसौर की आंच में उन्हें अपने डूबते भविष्य को संवारने की उम्मीद नजर आई | दोनों पिल पड़े, समाज के उस विश्वास को तोड़ने जो किसान और समाज के बीच परस्पर स्थापित था | किसान जहाँ देश की रीढ़ है तो पिटे अफसर समाज के हाथ | दोनों के हाथ आई वैमनस्यता और अविश्वास | किसान कभी हिंसक होगा ? यह बात तो समझ से परे है | publish by www.himalayauk.org (Web Media) Dehradun Mob. 9412932030

1998 में इस तरह का आंदोलन किया था

इससे पहले मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में 1998 में किसानों ने इस तरह का आंदोलन किया था। 12 जनवरी 1998 को प्रदर्शन के दौरान 18 लोगों की मौत हुई थी। दरअसल, मुलताई में उस वक्त किसान संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आंदोलन हुआ था। किसान बाढ़ से हुई फसलों की बर्बादी के लिए 5000 रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजे और कर्ज माफी की मांग कर रहे थे। उस वक्त राज्य में कांग्रेस सरकार थी। पहली बार :दो राज्यों के किसान एक साथ आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। चेहरा : कोई नहीं है। महाराष्ट्र में आंदोलन किसानों ने शुरू किया। ये विदर्भ या मराठवाड़ा के किसान नहीं हैं, जो सूखे से प्रभावित रहते हैं। संकट :गेहूं, दाल, चावल उगाने वाले किसानों के अलावा उन पर भी मंडरा रहा है, जो फल-दूध-सब्जी बेचते हैं।

 

अब आत्मग्लानिवश किये जा रहे “उपवास” और आगजनी जैसे अपराध किस सभ्यता की निशनी है| यह उपवास आपके ही शब्दों में अशांति के विरुद्ध है | आपने ही प्रमाणित दिया है कि आप शांति स्थापित करने में असमर्थ रहे हैं और यह समझने का ढोंग कर रहे हैं की आप को किसान के मन की बात पता है | सच तो यह है कि मध्यप्रदेश में पक्ष और प्रतिपक्ष का किसान की पीड़ा से कोई सरोकार नही है | किसान आन्दोलन के नाम पर आगजनी कराकर कौन रोटी सेक रहा है | इन हरकतों से समाज में बिगड़ते संतुलन की सोचो | नगर और ग्राम के बीच अविश्वास की खाई पैदा कर दी है आपने | अब सडक पर चलता राहगीर किसी खेत से पानी मांगने में सशंकित रहेगा और किसान हर शहरी आदमी और सरकारी कर्मचारी को लुटेरा समझेगा | हर खेत की सुरक्षा का जिम्मा कोई भी राजनीतिक दल नही ले सकता | अब तक किसान राहगीरों को पानी पिलाना पुण्य समझते रहे हैं और राहगीर बीडी फेकने के पहले, पैरों तले कुचल कर खेत का ख्याल रखते आये है | उनके इस विश्वास को आप की हरकतें तोड़ रही है |
जोडिये समाज में विश्वास के ताने-बने को और छोडिये “उपवास” को इसमें कुछ नही धरा है |
10 जून को किसानों से शांति की अपील के साथ शिवराज ने अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया था। शिवराज ने कहा, “जब-जब प्रदेश में किसानों पर संकट आया, मैं सीएम आवास से निकलकर उनके बीच पहुंच गया। हम नया आयोग बनाएंगे जो फसलों की सही लागत तय करेगा। उस लागत के हिसाब से हम किसानों को सही कीमत दिलाएंगे। किसान आग न लगाएं, चर्चा के लिए आएं।”
– अनशन से पहले शिवराज और उनकी पत्नी साधना सिंह ने पूर्व सीएम कैलाश जोशी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। जोशी ने तिलक कर सफल होने की शुभकामनाएं दी।
कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां 14 जून से 72 घंटे का सत्याग्रह करेंगे। किसानों के आंदोलन के लिए उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार की किसान विरोधी पॉलिसीज को जिम्मेदार बताया है। सत्याग्रह से पहले वे किसानों से मिलने मंदसौर भी जाएंगे। बता दें किसानों की हिंसा रुकवाने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान शनिवार को BHEL दशहरा मैदान पर अनशन पर बैठे थे। हिंसा के दौरान पुलिस की फायरिंग में 6 किसानों की मौत हो गई थी।

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