नवग्रहों में सबसे अधिक प्रभावशाली ग्रह राहु का एकमात्र मंदिर उत्‍तराखण्‍ड में

उत्‍तराखण्‍ड में दुनिया का एकमात्र राहू मंदिर ; जिसे शिव के साथ पूजा जाता है
नवग्रहों में सबसे अधिक प्रभावशाली ग्रह राहु का दुनियां में एकमात्र मंदिर उत्‍तराखण्‍ड में है- जो जानकार हैं वे राहु ग्रह के पूजन के लिए पैठाणी स्थित इस मंदिर का रुख करते हैं। अमृत पान के बाद राहु को दानव होने के बाद भी देवताओं ने नवग्रहों में स्थान तो दे दिया पर देवभूमि की सरकारें पैठाणी स्थित राहु मंदिर को अपनी धार्मिक विरासत में शामिल नहीं कर पाईं। इस मंदिर का प्रचार-प्रसार न होने के कारण राहु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति की पंहुच से ये मंदिर दूर ही है। 

 पैठाणी पौराणिक राहु प्राचीन मंदिर यह वह मंदिर है, जहां हिन्दु धर्मावलंबियों की मान्यताओं के अनुसार उनके ग्रह कष्टों को दूर किये जा सकते है परन्‍तु उत्‍तराखण्‍ड में जो भी राज्‍य सरकार आई, उसने राहु के इस मंदिर की उपेक्षा की जिससे अपने कष्‍टो से ही वह सरकार उबर नही पाई-  चन्‍द्रशेखर जोशी -* सम्‍पादक की विशेष रिपोर्ट

हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल – के लिए चनद्रशेखर जोशी की विशेष प्रस्‍तुति- 

नवग्रहों में सबसे अधिक प्रभावशाली ग्रह राहु महाराज ही होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राहु को समुद्र मंथन के समय सभी देव और दानवों ने भी स्वीकार किया था। मोहनी रूप धारण करने वाले विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनका सर धड़ अलग कर दिया था और राहु महाराज विष्णु से बचने के लिए पौड़ी के धूधातोली जंगलों में आ गए। यहां शरण स्थली में भगवान शंकर की तपस्या शुरू कर दी और भोलेनाथ ने राहु की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अमृत्व का वरदान दिया और कहा था कि राहु नवग्रह में विशेष स्थान प्राप्त करने के साथ ही पैठाणी गोत्र से भी जाने जाएंगे। राहु को भगवान शिव से वरदान प्राप्त है कि इस स्थान पर कोई भी शत्रु राहु से विजय प्राप्त नहीं कर पायेगा।

स्कंद पुराण” के केदारखंड में वर्णन है कि राष्ट्रकूट पर्वत पर पूर्वी व पश्चिमी नयार के संगम पर राहु ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। इसी कारण यहां राहु के मंदिर की स्थापना हुई और राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर ही यह “राठ” क्षेत्र कहलाया। साथ ही राहु के गोत्र “पैठीनसि” के कारण इस गांव का नाम “पैठाणी” पड़ा। यह भी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब राहु ने छल से अमृतपान कर लिया तो श्रीहरि ने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। ऐसी मान्यता है कि राहु का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था। ये भी माना जाता है कि गोत्र, गुरू और ब्राह्मण की हत्या के पाप से ग्रसित पांडवों को कृष्ण ने जब हिमालय की शरण में जाने की आज्ञा दी तब पांडवों को भी पैठाणी पहुंचने पर राहु के दर्शन हुए और उन्होंने पैठाणी स्थित मंदिर का निर्माण करवाया।

जहां राहु की दृष्टि पड़ने से भी लोग बचते हैं वहीं उत्‍तराखण्‍ड के पैठाणी के इस राहु मंदिर में राहु की पूजा की जाती है वो भी भगवान शिव के साथ। राहु का कटा हुआ सिर उत्तराखंड के इसी स्थान पर गिरा। जहां सिर गिरा उसी स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया जहां भगवान शिव के साथ राहु का मंदिर स्थापित किया गया। और यहां शिव के साथ राहु की भी पूजा होने लगी।
हिमालय की गोद में बसी देवभूमि उत्तराखंड की धार्मिक मान्यता कुछ हट कर है, उत्‍तराखण्‍ड में है उनका भी मंदिर जब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने जिस दानव की गर्दन सुदर्शन से काट दी थी उनकी इस मंदिर में पूजा की जाती है। पौड़ी जिले में कोटद्वार से लगभग 150 किमी दूर थलीसैण ब्लॉक में स्थित यह मंदिर ऐसा ही है।
पौड़ी से 60 किमी दूर थलीसैंण कंडारस्यूं पट्टी के पैठाणी गांव तथा त्रिवेणीघाट के संगमतट पर स्थित पौराणिक राहु मंदिर प्राचीन शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है। पश्चिम की ओर मुख वाले इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिग व मंदिर की शुकनासिका पर शिव के तीनों मुखों का अंकन है। मंदिर के शीर्ष पर अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक रूप में गज व सिह स्थापित हैं।

कहते है कि राहु काल प्रतिदिन डेढ़ घंटा दूध द्वारा राहु का अभिषेक करने से शादी में देरी टलती है। जिन्हें बच्चे नहीं होते उनको भी लाभ मिलता है तथा वैवाहिक जीवन की तकलीफ दूर होती है। शनि केरथ को आठ काले घोड़े खींचते हैं। राहु काल को अशुभ माना जाता है जिसमें व्यक्ति काफी कठिनाईयों, अराजकतों व रूकावटों का सामना करता है। पौराणिक कथा केअनुसार समुंद्र मंथन केदौरान असुर राहु ने थोड़ा सा अमृत पी लिया था। इससे पहले की वह अमृत उसकेगले से नीचे उरता मोहिनी (भगवान विष्णु का स्त्री अवतार) ने उसका गला काट दिया। इससे वह सिर तो अमर रहा और उसे राहु कहा जाता है जबकि बाकि शरीर केतु बन गया। यह अमर सिर कभी-कभी सूरज और चांद को निगल जाता है जिससे ग्रहण फलित होता है फिर सूर्य और चंद्रमा गले से होते हुए निकल जाता है और ग्रहण समाप्त हो जाता है। हिंदू शास्त्रों केअनुसार राहु सूर्य तथा चंद्रमा को निगलते हुए ग्रहण को उत्पन्न करता है। राहु का रत्न-गोमेद, तत्व-छाया, रंग-धुम्र, धातु-शीशा होते हैं।

मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर स्थित मंदिरों के शिखर क्षितिज पट्टियों से सज्जित हैं। साथ ही मंदिर की तलछंद योजना में वर्गाकार गर्भगृह के सामने अंतराल की ओर मंडप है। मंदिर की दीवारों के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी की गई है, जिनमें राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र उत्कीर्ण हैं। इसी कारण मंदिर को राहु मंदिर नाम दिया गया।
उत्तर भारत का यह एक मात्र राहु मंदिर है जहां पर श्रद्वालु शिव की आराधना के साथ-साथ राहु की पूजा-अर्चना भी करते हैं। यह मंदिर धर्म एवं पर्यटन दोनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन ग्रन्थों के एक श्लोक ऊं भूभरुव स्व: राठनापुरोभ्द्रवपैठीनसिगोत्र से पता चलता है कि राहु का देश राठपुर था जिस कारण यह क्षेत्र राठ तथा राहु के गोत्र पैठीनसि से इस गांव का नाम पैठाणी पड़ा होगा। पैठाणी में पूर्वी व पश्चिमी नयारों के संगमतट पर स्थित राहु मंदिर में पत्थरों से बने एक ऊंचे चबूतरे पर मुख्य मंदिर का निर्माण किया गया है। इसके चारों कोनों पर एक- एक कर्णप्रसाद बनाए गए हैं। पश्चिम की ओर मुख वाले मुख्य मंदिर की तलछंद योजना में वर्गाकार गर्भगृह के सामने कपिली या अंतराल की ओर मंडप का निर्माण किया गया है। कला पट्टी बेदीवंध के कर्णो पर ही गोल गढ़ी गई है तथा उत्तर पूर्वी और दक्षिण कर्ण- प्रसादों की चंद्रालाओं के बीच पत्थरों पर नक्काशी की गई है। इन पत्थरों पर राहु के कटे हुए सिर और विष्णु के चक्र उत्कीर्ण किए गए हैं। राहु के कटे हुए सिर व विष्णु के चक्र के कारण ही मंदिर को राहु मंदिर नाम दिया गया है। मंदिर के बाहर व भीतर देवीदे वताओं की प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। इसके अलावा गणोश, विष्णु का चक्र, राहु का कटा हुआ सिर, चतुभरुजी चामुंडा आदि प्रतिमाएं भी यहां मौजूद हैं। प्राचीन शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध होने के साथ ही उत्तर भारत का एकमात्र राहु मंदिर होने के कारण राहु की दशा की शांति के लिए दूर-दराज क्षेत्रों से श्रद्धालु यहां पहुंचते है।
उत्तराखंड के कोटद्वार से लगभग 150 किलोमीटर दूर थलीसैण ब्लॉक के पैठाणी गांव में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप धरकर छल से अमृतपान किया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए। कहते हैं, राहू का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था।

शिव के साथ होती है राहू की पूजा…
जनश्रुति है कि जहां पर राहू का कटा हुआ सिर गिरा था वहां पर एक मंदिर का निर्माण किया गया और भगवान शिव के साथ राहू की प्रतिमा की स्थापना की गई और इस प्रकार देवताओं के साथ यहां दानव की भी पूजा होने लगी। वर्तमान में यह राहू मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

अनोखा है मंदिर का शिल्प…
धड़ विहीन की राहू की मूर्ति वाला यह मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी प्राचीन शिल्पकला अनोखी और आकर्षक है। पश्चिममुखी इस प्राचीन मंदिर के बारे में यहां के लोगों का मानना है कि राहू की दशा की शान्ति और भगवान शिव की आराधना के लिए यह मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है।
:: उत्तराखंड में पौड़ी के पैठाणी में स्थित प्राचीन राहु का मंदिर देश का एक अकेला ऐसा मंदिर है जहां राहू की पूजा होती है. इस मंदिर को आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था. समुद्रमंथन के दौरान जब राहु ने देवताओं को धोखा देते हुए अमृतपान किया तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया, कटा हुआ सिर पैठाणी के इस मंदिर में आकर गिरा. पैठाणी के इस प्राचीन मंदिर की खास बात यह है कि यहां बने गर्भगृह में तीन मुखों वाले भगवान शिव की पूजा होती है और मंदिर के बाहर राहु को पूजा जाता है. 

उक्‍त आलेख को प्रकाशित करने पर मैं अपने प्रकाण्‍ड गुरूजनो, विद्वानो, ब्राहमणों का स्‍मरण, प्रणाम करता हूं जिनकी प्रेरणा से, जिनके आशीर्वाद से हिमालयायूके में अटल भविष्‍यवाणी लम्‍बे समय से प्रकाशित की जाती है,  हिमालयायूके की भविष्‍यवाणी खाली नही जाती- 2019 में हिमालयायूके फिर ऐसी ही अटल भविष्‍यवाणी करने जा रहा है, उससे पहले उत्‍तराखण्‍ड मे राजनीतिक हालात पर जल्‍द एक्‍सक्‍लूसिव’ : CS JOSHI- EDITOR; 

हिमालयायूके – हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड- लीडिंग न्‍यूज पोर्टल तथा दैनिक समाचार पत्र के विशेष ज्‍योतिष- जिनकी अकाटय भविष्‍यवाणी   हमारे द्वारा प्रकाशित की जाती है-

परम आदरणीय पं0 परमानंद मैदुली जी पूर्व वाइस चांसलर- (Foreign Return)  

पं0 आदरणीय बिजेन्‍द्र जी महाराज- घोर साधक- मॉ पीताम्‍बरी-श्रीबगुलामुखी

तथा मुम्‍बई से प्रकाण्‍ड विद्वान, ब्राहमण शिराेमणि, प्रकाण्‍ड ज्‍योतिष- जगुडी जी 

तथा परम आदरणीय दिव्‍य योग के ज्ञाता- योगीराज जी महाराज

तथा परम विद्वान,आदरणीय शिवपुत्र शुकदेव चैतन्‍य जी महाराज

तथा  म0प्र0 से रावतपुरा सरकार जी का स्‍मरण 

तथा राजस्‍थान तथा उटी के साधक- श्री व्‍यास जी- जो हर पल हमे निगाह में रखते है, 

तथा सुप्रीम कोर्ट माने जाने वाले मॉ कोटगाडी के साधक, पंडितगण- जिनसे लगातार सम्‍पर्क बना रहता है- 

तथा मॉ भद्रकाली मंदिर के प्रकाण्‍ड पंडितगण- जिनका आशीर्वाद हर पल साथ रहता है- 

तथा डीडीहाट तहसील के नागों के मंदिर काली नाग, धुमरीनाग, सुनहरी नाग- के हमारे वशंज पुजारीगण- जहां के चमत्‍कार आज भी विज्ञान जगत के लिए अजूबा है- 

तथा कालीमठ के पूजनीय ब्राहमण- किमोठी जी

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