12 अक्टूबर -सूचना का अधिकार अधिनियम लागू ; यूपीए को श्रेय

12 अक्टूबर 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पूरे देश में लागू :यूपीए सरकार इस बात का भी श्रेय

हिमालयायूके-   www.himalayauk.org – CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR 

सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। वर्ष 2002 में संसद ने ’सूचना की स्वतंत्रता विधेयक(फ्रिडम आॅफ इन्फाॅरमेशन बिल) पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यू.पी.ए.) की सरकार ने न्युनतम साझा कार्यक्रम में किए गए अपने वायदो पारदर्शिता युक्त शासन व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए 12 मई 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 संसद में पारित किया, जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अन्ततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया।

सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ। भारत में भ्रष्टाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया।

कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार इस बात का भी श्रेय ले सकती है कि जनता की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिहाज इसने कई महत्वपूर्ण कानून बनाये। सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मल्टीब्रांड रिटेल को एफडीआई के लिए खोलना, बीमा, नागरिक उड्डयन आदि में विदेशी निवेश की इजाजत देना इस सरकार के महत्पूर्ण फैसले रहे। सरकार खाद्य सुरक्षा बिल पारित करा कर आम जनता को राहत पहुंचाना चाहती थी, पर संसद में विपक्ष के हंगामे के कारण ऐसा नहीं हो सका। 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा देने के उद्देश्य से 1 अप्रैल 2010 को केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया। इसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। सरकार द्वारा लागू शिक्षा का अधिकार कानून के तहत देश में 14 लाख स्कूलों में 20 करोड़ बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है। यूपीए सरकार ने मल्टीब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी। सरकार के इस अहम फैसले के बाद रोजगार के नए असवर खुलेंगे।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का गठन वामपंथी मोर्चा, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी के समर्थन से लोकसभा में कुल 335 सदस्यों का समर्थन जुटाकर सरकार बनाई। सोनिया गॉधी जी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने इस पद के लिए डॉ. मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित किया। कांग्रेस और यूपीए के अन्य दलों ने भी सोनिया की इच्छा का सम्मान करते हुए मनमोहन सिंह को अपना नेता चुना और इस तरह वे प्रधानमंत्री बने। वरिष्ठ माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष चुने गए। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार पूरे 5 साल चली। इस सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून जैसी महत्वाकांक्षी योजना लागू की जिससे ग्रामीण क्षेत्र की बेरोजगारी दूर करने में काफी हद तक मदद मिली। इसी सरकार ने सूचना का अधिकार कानून भी लागू किया जिसके जरिए स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए। इस सरकार के कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था की गाड़ी भी कमोबेश पटरी पर रही और औद्योगिक एवं कृषि उत्पादन के क्षेत्र में भी संतोषजनक प्रदर्शन रहा।

श्रीमति सोनिया गांधी ने 2005 में कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को फरमान जारी किया था कि लोगों को सब कुछ जानने का हक है। इसी तारतम्य में पारदर्शिता को कथित तौर पर बढ़ावा देने के उद्देश्य से सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) लाया गया था 2005 में। इस कानून के आते ही आरटीआई एक्टविस्ट सक्रिय हुए। सूचना के अधिकार कानून से पारदर्शिता काफी हद तक बढ़ गई। इससे सरकारी नुमाईंदों में खलबली मच गई। भ्रष्टाचार की परतें उघड़ने लगीं। भ्रष्टाचारी बचने के जतन करने लगे। उनके सरमायादार भी आरटीआई के चलते ज्यादा गफलत नहीं कर पा रहे हैं। परीक्षाओं में भी पारदर्शिता आ चुकी है। आरटीआई के माध्यम से प्रशासन में पारदर्शिता लाई गयी

सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन।

सूचना का अधिकार का तात्पर्य है,सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकारकानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकोंको प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वाराराष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य औरशासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।लोकतंत्र में देश की जनता अपनी चुनी हुएव्यक्ति को शासन करने का अवसर प्रदान करती हैऔर यह अपेक्षा करती है कि सरकार पूरीईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपनेदायित्वों का पालन करेगी।

कालान्तरमें अधिकांश राष्ट्रों ने अपने दायित्वों का गला घोटते हुए पारदर्शिता और ईमानदारी की बोटियाँ नोंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी औ रभ्रष्टाचार के बड़े-बड़े कीर्तिमान कायम करने कोएक भी मौक अपने हाथ से गवाना नहीं भूले।भ्रष्टाचार के इन कीर्तिमानों को स्थापितकरने के लिए हर वो कार्य किया जोजनविरोधी और अलोकतांत्रिक हैं। सरकारे यहभूल जाती है कि जनता ने उन्हें चुना है और जनताही देश की असली मालिक है एवं सरकार उनकीचुने हुई नौकर। इसलिए मालिक होने के नाते जनताको यह जानने का पूरा अधिकार है, कि जोसरकार उनकी सेवा है, वह क्या कर रही है ?प्रत्येक नागरिक सरकार को किसी नेकिसी माध्यम से टेक्स देती है। यहां तक एक सुई सेलेकर एक माचिस तक का टैक्स अदा करती है। सड़कपर भीख मांगने वाला भिखारी भी जबबाज़ार से कोई सामान खरीदता है, तो बिक्रीकर, उत्पाद कर इत्यादि टैक्स अदा करता है।इसी प्रकार देश का प्रत्येक नागरिक टैक्स अदाकरता है और यही टैक्स देश के विकास औरव्यवस्था की आधारशिला को निरन्तर स्थिररखता है। इसलिए जनता को यह जानने का पूराहक है कि उसके द्वारा दिया गया, पैसा कब,कहाँ, और किस प्रकार खर्च किया जा रहा है ?इसके लिए यह जरूरी है कि सूचना को जनता केसमक्ष रखने एवं जनता को प्राप्त करने काअधिकार प्रदान किया जाए, जो एक कानूनद्वारा ही सम्भव है।

बीआई सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की धारा 24 का हवाला देते हुए सूचना देने से इनकार करती रही है. धारा 24 के तहत आरटीआई खुफिया एवं सुरक्षा संगठनों पर लागू नहीं होता जिनमें आईबी, रॉ, एनआईए और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी शामिल हैं.

पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने इस सूची में सीबीआई को शामिल किया था. हालांकि अधिनियम में साफ कहा गया है कि भ्रष्टाचार एवं मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित सूचना आरटीआई अधिनियम की धारा 24 के तहत इन संगठनों को मिली छूट के तहत नहीं आती. हैदराबाद के आरटीआई कार्यकर्ता सी जे करीरा ने सीबीआई से देश के कई शीर्ष कार्यालयों में भ्रष्टाचार से संबंधित सूचना मांगी थी लेकिन एजेंसी ने कहा था कि आरटीआई अधिनियम से चूंकि उसे छूट मिली हुई है, वह इस तरह की जानकारी साझा नहीं करेगी.

टिप्पणियां एजेंसी ने साथ ही कहा था कि भ्रष्टाचार एवं मानवाधिकार उल्लंघनों के कथित मामलों को लेकर सूचना तभी सार्वजनिक की जा सकती है जब वे आरोप उसके किसी अधिकारी पर लगे हों. लेकिन यह गलत व्याख्या थी क्योंकि आरटीआई अधिनियम का किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के पास ‘मौजूद या नियंत्रित’ सूचना से लेना देना है और वह इस बात को लेकर कोई भेद नहीं करता कि भ्रष्टाचार के आरोप उसके (सार्वजनिक प्राधिकरण) किसी कर्मचारी के खिलाफ हों या ना हों.

अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारतमें शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनाया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकर हो गया कि वह किसी भी सूचना कोगोपनीय कर सकेगी। सन् 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने बाद 26जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ, लेकिनसंविधान निर्माताओ ने संविधान में इसका कोई भी वर्णन नहीं किया और न ही अंग्रेज़ो का बनाया हुआ शासकीय गापनीयता अधिनियम1923 का संशोधन किया।

सरकारों ने गोपनीयता अधिनियम 1923 की धारा 5 व6 के प्रावधानों का लाभ उठकार जनता सेसूचनाओं को छुपाती रही।सूचना के अधिकार के प्रति कुछ सजगतावर्ष 1975 के शुरूआत में “उत्तर प्रदेश सरकार बनामराज नारायण” से हुई।मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई,जिसमें न्यायालय ने अपने आदेश में लोकप्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्योका व्यौरा जनता को प्रदान करने का व्यवस्थाकिया। इस निर्णय ने नागरिको को भारतीयसंविधान के अनुच्छेद 19(ए) के तहत अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना केअधिकार को शामिल कर दिया।

वर्ष 1982 में द्वितीय प्रेस आयोग ने शासकीयगोपनीयता अधिनियम 1923 की विवादस्पदधारा 5 को निरस्त करने की सिफारिश कीथी, क्योंकि इसमें कहीं भी परिभाषित नहींकिया गया था कि ’गुप्त’ क्या है और’शासकीय गुप्त बात’ क्या है ? इसलिएपरिभाषा के अभाव में यह सरकार के निर्णय परनिर्भर था, कि कौन सी बात को गोपनीयमाना जाए और किस बात को सार्वजनिककिया जाए।बाद के वर्षो में साल 2006 में ’विरप्पामोइली’ की अध्यक्षता में गठित ’द्वितीयप्रशासनिक आयोग’ ने इस कानून को निरस्त करनेका सिफारिश किया।सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान सेप्रारम्भ हुई। राज्य में सूचना के अधिकार के लिए1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसमेंमजदूर किसान शक्ति संगठन (एम.के.एस.एस.)द्वारा अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार केभांडाफोड़ के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम के रूप मेंहुई।1989 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बीपीसिंह की सरकार सत्ता में आई, जिसने सूचना काअधिकार कानून बनाने का वायदा किया।3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीनप्रधानमंत्री बीपी सिंह ने संविधान में संशोधनकरके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथाशासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधनकरने की घोषणा की। किन्तु बीपी ंिसह कीसरकार तमाम कोशिसे करने के बावजूद भी इसेलागू नहीं कर सकी और यह सरकार भी ज्यादादिन तक न टिक सकी।वर्ष 1997 में केन्द्र सरकार ने एच.डी शौरी कीअध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके मई 1997 मेंसूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया,किन्तु शौरी कमेटी के इस प्रारूप को संयुक्तमोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा।

वर्ष 2002 में संसद ने ’सूचना की स्वतंत्रताविधेयक(फ्रिडम आॅफ इन्फाॅरमेशन बिल) पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनानेके नाम पर इसे लागू नहीं किया गया।संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यू.पी.ए.) कीसरकार ने न्युनतम साझा कार्यक्रम में किए गएअपने वायदो तािा पारदर्शिता युक्त शासनव्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने केलिए 12 मई 2005 में सूचना का अधिकारअधिनियम 2005 संसद में पारित किया, जिसे15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिलीऔर अन्ततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया।इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक 2002को निरस्त कर दिया गया।इस कानून के राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पूर्वनौ राज्यों ने पहले से लागू कर रखा था, जिनमेंतमिलनाडु और गोवा ने 1997, कर्नाटक ने 2000,दिल्ली 2001, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवंमहाराष्ट्र ने 2002, तथा जम्मू-कश्मीर ने 2004 मेंलागू कर चुके थे।सूचना का तात्पर्यःरिकार्ड, दस्तावेज, ज्ञापन, ईःमेल,विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र,आदेश, लांग पुस्तिका, ठेके सहित कोई भी उपलब्धसामग्री, निजी निकायो से सम्बन्धित तथाकिसी लोक प्राधिकरण द्वारा उस समय केप्रचलित कानून के अन्तर्गत प्राप्त किया जासकता है।

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