उन पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी, जो ….: शनिदेव

मेरा महात्म  सुनने वालो पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी; शनिदेव
एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, हे देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए। और कुछ देर सोच कर बोले, हे देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं। पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है। हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं। उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं। देवराज इंद्र के आदेश पर सभी देवता पृथ्वी लोक में उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे। देवताओं के आगमन का समाचार सुनकर स्वयं राजा विक्रमादित्य ने उनका स्वागत किया।
महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे। क्योकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान शक्तिशाली थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी। तभी राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के नौ आसन बनवाए। धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा कर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा। सब देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा, आपका निर्णय तो स्वयं हो गया। जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है। राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा, राजन! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो। मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा। सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष रहता हूं। बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है। राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा। उसके वंश का सर्वनाश हो गया। राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा। राजा विक्रमादित्य शनि देवता के प्रकोप से थोड़ा भयभीत तो हुए, लेकिन उन्होंने मन में विचार किया, मेरे भाग्य में जो लिखा होगा, ज्यादा से ज्यादा वही तो होगा। फिर शनि के प्रकोप से भयभीत होने की आवश्यकता क्या है?

उसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ वहां से चले गए, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए।
राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे। उनके राज्य में सभी स्त्री पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। उधर शनिदेवता अपने अपमान को भूले नहीं थे। विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे।

राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा। अश्वपाल ने वहां जाकर घोड़ों को देखा तो बहुत खुश हुआ। लेकिन घोड़ों का मूल्य सुन कर उसे बहुत हैरानी हुई। घोड़े बहुत कीमती थे। अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया। घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुआ तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा। तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया। राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा। लेकिन उसे लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख-प्यास लग आई। बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला। राजा ने उससे पानी मांगा। पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी। फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से बाहर निकलकर पास के नगर में पहुंचा।

राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया। उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्ज्यिनी से आया हूं। राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई। सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया। सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में अकेला छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई। सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का सन्देह राजा पर ही किया, क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था। सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो। राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था। इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया। राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया। कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया। राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता। इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा। शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ॠतु प्रारम्भ हुई। राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी। उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गानेवाले को बुला लाने को कहा। दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हुई थी। अत:उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया। राज कुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गये। राजा को लगा कि उसकी बेटी पागल हो गई है। रानी ने मोहिनी को समझाया, च्बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है। फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?ज् राजा ने किसी सुंदर राजकुमार से उसका विवाह करने की बात कही। लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया। आखिर राजा, रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे। उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा,च्राजा! तुमने मेरा प्रकोप देख लिया। मैंने तुम्हें अपने अपमान का दण्ड दिया है।ज् राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की,च्हे शनिदेव! आपने जितना दु:ख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना l शनिदेव ने कुछ सोचते हुए कहा,राजा ! मैं तेरी प्रार्थना स्वीकार करता हूं। जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत कर के मेरी कथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी। उसे कोई दुख नहीं होगा। शनिवार को व्रत करने और चींटियों को आटा डालने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।ज् प्रात:काल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई। उसने मन-ही-मन शनिदेव को प्रणाम किया। राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई। तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी कह सुनाई। सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने उसे क्षमा कर दिया, क्याेंकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था। सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया। भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सबके देखते-देखते उस खूंटी ने वह हार उगल दिया। सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्ज्यिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया। उस रात उज्ज्यिनी नगरी में दीप जलाकर लोगों ने दीवाली मनाई। अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई, शनी देव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रत कथा अवश्य सुनें। राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए। शनिवार का व्रत करने और कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं। सभी लोग आनन्दपूर्वक रहने लगे।

ज्योतिष में शनि ग्रह कुंडली से लेकर गोचर, महादशा तथा साढ़ेसाती से हमें प्रभावित करते हैं. शनि ग्रह की स्थिति और उससे होने वाले लाभ या हानि से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता. शनि ग्रह को शनिदेव तथा शनैश्चर कहा जाता है.ज्योतिष अनुसार यह ग्रह कुंडली में किसी भी अन्य ग्रह की अपेक्षा बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकता है.
शनि मुख्य रूप से शारीरिक श्रम और सेवकों का कारक है. श्रमिक, चालक तथा निर्माण कर्ता के रुप में देखा जा सकता है. शनि मनुष्य के शरीर में मुख्य रूप से वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. तुला राशि में स्थित होने से शनि को सर्वाधिक बली होते हैं तथा इस राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त शनि मकर तथा कुंभ में स्थित होने पर भी बल पाते हैं. शनि के प्रभाव जातक को वकील, नेता का काम करने वाले लोग तथा गुढ़ विद्याओं में रुचि रखने वाला बना सकता है.
शनि ग्रह को समझने के लिए सबसे पहले शनि की कारक वस्तुओं को जानना आवश्यक है. शनि ज्योतिष में आयु का कारक ग्रह है. इसके प्रभाव से प्राकृ्तिक आपदायें, बुढापा, रोग, निर्धनता,पाप, भय, गोपनीयता, कारावास, नौकरी, विज्ञान नियम, तेल-खनिज, कामगार, मजदूर सेवक, सेवाभाव, दासता, कृ्षि, त्याग, उंचाई से गिरना, अपमान, अकाल, ऋण, कठोर परिश्रम, अनाज के काले दानें, लकडी, विष, टांगें, राख, अपंगता, आत्मत्याग, बाजू, ड्कैती, रोग, अवरोध, लकडी, ऊन, यम अछूत, लंगडेपन, इस्पात, कार्यो में देरी लाना.
बुध व शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं. सूर्य,चन्द्र तथा मंगल शनि के शत्रु ग्रह माने जाते हैं, शनि के साथ गुरु सम संबन्ध रखता है. शनि को मकर व कुम्भ राशियों का स्वामित्व प्राप्त है इनकी मूलत्रिकोण राशि कुम्भ है. कुंभ राशि में शनि 1अंश से 20 अंश के मध्य अपनी मूलत्रिकोण राशि में होते है. शनि तुला राशि में 20 अंश पर उच्च राशिस्थ होते हैं. शनि की नीच राशि मेष है, मेष राशि में शनि 20 अंश पर होने पर अपनी नीच राशि में होते है. शनि ग्रह को स्त्री प्रधान, और नपुंसक ग्रह कहा गया है. शनि ग्रह पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं. शनि ग्रह का भाग्य रत्न नीलम, कटैला है. शनि भूरा, नेवी, ब्लू रंग, कालापन लिए हुए होते हैं. शनि ग्रह के लिए 8, 17, 26 अंक का प्रयोग करना शुभ रहता है. शनि ग्रह के लिए ब्रह्मा, शिव का पूजन करना चाहिए.
शनि का बीज मंत्र | Saturn Beej Mantra
ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैं नम:
शनि का वैदिक मंत्र | Saturn Vedic Mantra
नीलाजंन समाभासं रवि पुत्रम यजाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शज्नैश्वरम।।
शनि की दान योग्य वस्तुएं | Donations associated with Saturn
शनि के लिए लोहा, काली कीलें, काला कपडा, काले फूल, मां की दाल, काली उडद की दाल, कस्तूरी, काली गाय. इन वस्तुओं का दान करने से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है.
शनि का स्वरुप | Physical features of a person with Saturn
शनि देव लम्बे पतले शरीर वालें, रंग में पीलापन लिए होता है. लम्बे और मुडे हुए नाखून, बडे बडे दांत, वाररोग, आलसी,रुखे उलझे बाल वाले है. शनि देव वायु तत्व रोग, पित्त प्रधान, गर्दन, हड्डियां, दान्त, प्रदूषण के कारण होने वाले रोग, मानसिक विक्षेप, पेट के रोग, चोट, आघात, अंगहीन, कैन्सर, लकवा, गठिया, बहरापन,लम्बी अवधि के रोग देता है. शनि को देरी, अवरोध, कष्ट, विपत्ति, लोकतन्त्र, मोक्ष का कारक माना गया है.
शनि के विशिष्ठ गुण | Specific qualities of a person with Saturn
शनि तर्क, दर्शन, आत्मत्याग, नपुंसक ग्रह, कृ्पण, विनाशकारी शक्तियां, ठण्डा बर्फीला ग्रह, रहस्यमय, रुखा. आदि गुण देता है.
शनि के कार्यक्षेत्र | Saturn related profession and business
शनि आजीविका भाव का स्वामी होने पर व्यक्ति से सेवा कार्य कराता है. इस योग का व्यक्ति कठोर परिश्रम करने वाला, नौकरी पसन्द, सरकारी नौकरी प्राप्त, दिमागी और शारीरिक कार्य करने में कुशल, लोहा और इस्पात, ईंट, शीशे टायल कारखाना, जूते-चप्पल, लकडी या पत्थर का काम, बढई, तेल का काम, राजगीर, दण्ड देने से संबन्धित उपकरण, शनि से प्रभावित जातक सभी प्रकार के उत्तरदायित्व वाली नौकरियां करने वाला होता है.

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