वैशाख- 11 अप्रैल गणेश चतुर्थी व शनि वक्री- शनि बदलाव का दूरगामी असर

High Light# Himalayauk Newsportal Bureau # मान्यताओं के अनुसार इसी महीने भगवान नारायण ने नर का अवतार लिया था#  प्रातःकाल श्री विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें# श्री रामचरितमानस के सम्पूर्ण पाठ का संकल्प लें  # 9 अप्रैल से हिन्दी पंचांग का दूसरा माह वैशाख शुरू # स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी महीनों में उत्तम बताया गया है# इस महीने के देवता भगवान विष्णु है # वैशाख -, 11 अप्रैल गणेश चतुर्थी – शनि की उल्टी चाल शुरू- शनि का यह बदलाव हर चीज में देखने को मिलेगा # ये माह 7 मई तक # सूर्यास्त के बाद भगवान गणेश और चंद्र की पूजा # 11 अप्रैल से शनि भी गोचर करते हुए वक्री यानि पीछे की तरफ अपनी चाल चलेंगे. # शनि कल 11 मई दिन सोमवार को सुबह 09:39 बजे से वक्री हो जायेंगे यानि उल्टी चाल चलेंगे और अगले 29 सितंबर तक इसी अवस्था में गोचर रहेंगे # शनि का वक्री होना कुछ राशियों के जातकों को परेशानी में डाल सकता है#दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है #  इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था।  # www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) # डा0अनूप गौड महायोगी Rishikesh Uttrakhand मो0 8077900406 # #

रामायण का सार बताने वाला एक मंत्र का बहुत बडा महात्‍म्‍य है- नीचे पढे-

भगवान विष्णु का अति प्रिय माह वैशाख # वैशाख -, 11 अप्रैल गणेश चतुर्थी – शनि की उल्टी चाल शुरू- शनि का यह बदलाव हर चीज में देखने को मिलेगा, 9 अप्रैल से हिन्दी पंचांग का दूसरा माह वैशाख शुरू हो गया है। इस माह से भगवान विष्णु की पूजा खासतौर पर की जाती है। ये माह 7 मई तक चलेगा।  इस माह में कई प्रमुख पर्व आएंगे।

शनिवार, 11 अप्रैल को गणेश चतुर्थी है। ये व्रत गणेशजी के लिए किया जाता है। सूर्यास्त के बाद भगवान गणेश और चंद्र की पूजा की जाती है।  वैदिक ज्‍योतिष में शनि के महत्‍व का जिक्र है.आमतौर पर सभी ग्रह ब्रह्मांड में रैखिक प्रतिरूप में घूमते हैं. ज्‍योतिषशास्‍त्र कहता है कि प्रत्‍येक ग्रह समय-समय पर राशि परिवर्तन कर नई राशि में प्रवेश करता है. हालांकि, कभी-कभी ग्रह पीछे की ओर भी गोचर करते हैं और कल 11 अप्रैल से शनि भी गोचर करते हुए वक्री यानि पीछे की तरफ अपनी चाल चलेंगे. शनि हर साल गोचर करते हुए वक्री होते हैं और वक्री होकर शनि लगभग साढ़े चार महीने तक एक ही राशि में विचरण करते हैं: वैशाख मास में कितने पर्व आ रहे है-

हिंदू धर्म के अलावा वैशाख के महीने में ईसाई, मुस्लिम, सिख और बौद्ध धर्म के पवित्र त्योहार मनाए जाएंगे। सिखों का नया साल वैशाखी 13 अप्रैल को मनाई जाएगा। इसी दिन फसलों की कटाई भी होती है।  इसके अलावा अप्रैल में मुस्लिमों का पवित्र महीना रमजान 23 अप्रैल से शुरू होगा। ईसाई धर्म का पवित्र त्योहार गुड फ्राइडे 10 अप्रैल को मनाया जाएगा। इसी दिन प्रभु यशु मसीह को सूली पर टांगा गया था। गुड फ्राइडे के दो दिन बाद  ईस्टर 12 अप्रैल को मनाया जाएगा। वहीं, सात मई को वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा होगी।  

शनि कल 11 मई दिन सोमवार को सुबह 09:39 बजे से वक्री हो जायेंगे यानि उल्टी चाल चलेंगे और अगले 29 सितंबर तक इसी अवस्था में गोचर रहेंगे.जैसे ही शनि की चाल बदलेगी उसके साथ हमें भी अपने आस-पास बहुत कुछ बदलता हुआ दिखाई देगा.शनि का यह बदलाव हमें अपनी पर्सनल,प्रोफेशनल से लेकर सोशल लाइफ तक में देखने को मिलेगा.शनि इस समय मकर राशि में गोचर कर रहे हैं.जब शनि वक्री होते हैं तो विशेष रूप से उस राशि के लिए कष्टदायी रहने की संभावनाएं ज्यादा रहती है जिसमें वह गोचर कर रहे हैं.हालांकि यह अन्य राशियों पर भी प्रभावी रहते हैं.वक्री शनि किन राशि के जातक के जीवन में राशिनुसार कष्टकर हो सकते हैं और इससे उबरने का क्या समाधान हो सकता है .

शनि के गोचर करते हुए वक्री होने की दशा का प्रभाव धनु , मकर , कुंभ, मिथुन व तुला राशि पर पड़ेगा. धनु ,मकर और कुंभ राशि पर इस समय साढ़े साती चल रही है जिस कारण शनि का वक्री होना इन राशियों के जातकों को परेशानी में डाल सकता है वहीं मिथुन और तुला पर शनि की ढैय्या दशा चल रही है इसलिए इन राशि के जातकों को भी अभी बेहद सावधान रहने की जरुरत है. शनि का वक्री चाल इन्हे संकट में डाल सकता है.

शनि के प्रकोप से बचने के लिए शनिवार को व्रत रखना चाहिए . – हनुमान जी की पूजा करने से भी शनि का दुष्प्रभाव दूर हो सकता है. – शनिवार के दिन पीपल के पेड पर जल जरुर अर्पित करना चाहिए. – शाम के समय सरसों के तेल का दीपक जलाने से भी लाभ मिलता है.

शनि लाभ देकर जाएंगे;  11 मई 2020 को शनि अपनी चाल बदलेंगे. शनि 11 मई से 29 सितम्बर तक मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर करेंगे. जिन लोगों की कुंडली में शनि बुरी अवस्था में है उन लोगों पर शनि का अशुभ प्रभाव पड़ने वाला है. वहीं जिन जातकों की कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत है उन्हें शनि लाभ देकर जाएंगे. 

वैशाख मास में कितने पर्व आ रहे है- स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी महीनों में उत्तम बताया गया है।

# सोमवार, 13 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा # इसके बाद से खरमास खत्म हो जाएगा। # शनिवार, 18 अप्रैल को वरुथिनी एकादशी है # इस भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करें # बुधवार, 22 अप्रैल को सतुवाई अमावस्या है # इस तिथि पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए # इस माह में गुरुवार को भी अमावस्या तिथि है # रविवार, 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया है # इसी तिथि पर भगवान परशुराम प्रकट हुए # इस दिन गर्मी से बचाने वाले छाते का, मटकी का दान करना चाहिए # शनिवार, 2 मई को जानकी जयंती है # इस दिन माता सीता के लिए व्रत-पूजा करनी चाहिए # रविवार, 3 मई को मोहिनी एकादशी है # इस तिथि पर भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करें व्रत करें # बुधवार, 6 मई को नृसिंह जयंती है # इस दिन भगवान नृसिंह का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है # गुरुवार, 7 मई को भगवान बुद्ध की जयंती और वैशाख पूर्णिमा है # पूर्णिमा पर घर में भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करें।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुरुवार, 9 अप्रैल से वैशाख मास शुरू होकर 7 मई तक रहेगा। इन दिनों में भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। इन दिनों में सूर्योदय से पहले उठकर स्नान और पूजा की जाती है। स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी महीनों में उत्तम बताया गया है। पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस महीने में सूर्योदय से पहले स्नान करता है और व्रत रखता है। वो कभी दरिद्र नहीं होता। उस पर भगवान की कृपा बनी रहती है और उसे  सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। क्योंकि इस महीने के देवता भगवान विष्णु ही है। वैशाख महीने में जल दान का विशेष महत्व है। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि महीरथ नाम के राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इस महीने में सूर्योदय से पहले किसी तीर्थ स्थान, सरोवर, नदी या कुएं पर जाकर या घर पर ही नहाना चाहिए। घर में नहाते समय पवित्र नदियों का नाम जपना चाहिए। नहाने के बाद सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।

रामायण का सार बताने वाला एक मंत्र

रामायण का सार बताने वाला एक मंत्र काफी प्रचलित है। जो लोग इस मंत्र का पाठ रोज करते हैं, उन्हें रामायण पढ़ने के बराबर पुण्य मिलता है। इसे एक श्लोकी रामायण कहते हैं। रोज सुबह घर के मंदिर में दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से शांति होने लगती है। इससे बुरे विचारों से छुटकारा मिल जाता है। नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करने से भगवान की कृपा जल्दी मिल सकती है। ये है मंत्रआदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।मंत्र का अर्थश्रीराम वनवास गए. वहां स्वर्ण मृग का का वध किया। वैदेही यानी सीताजी का रावण ने हरण कर लिया, रावण के हाथों जटायु ने अपने प्राण गंवा दिए। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंकापुरी का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया। ये रामायण का सार है।

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गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Report- Chandra Shekhar Joshi- Editor

वैशाख महीने में क्या करें 

1. वैशाख मास में जल दान का विशेष महत्व है। यदि संभव हो तो इन दिनों में प्याऊ लगवाएं या किसी प्याऊ में मटके का दान करें। 2. किसी जरुरतमंद व्यक्ति को पंखा, खरबूजा, अन्य फल, अन्न आदि का दान करना चाहिए।   3. मंदिरों में अन्न और भोजन दान करना चाहिए। 4. इस महीने में ब्रह्मचर्य का पालन और सात्विक भोजन करना चाहिए। 5. वैशाख महीने में पूजा और यज्ञ करने के साथ ही एक समय भोजन करना चाहिए।

क्या नहीं करें जो आसानी से कर सकतेे हो-

1.इस महीने में मांसाहार, शराब और अन्य हर तरह के नशे से दूर रहें। 2. वैशाख माह में शरीर पर तेल मालिश नहीं करवानी चाहिए। 3. दिन में नहीं साेना चाहिए 4. कांसे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए। 5. रात में भोजन नहीं करना चाहिए और पलंग पर नहीं सोना चाहिए।

भगवान विष्णु का अति प्रिय माह वैशाख;  साल का दूसरा महीना आरंभ हो चुका हैं इस माह का नाम वैशाख हैं इस माह पूर्णिमा तिथि पर विशाखा नक्षत्र होने से इसे वैशाख का महीना कहा जाता हैं इस महीने की शुरुवात नौ अप्रैल यानी की आज से हो गई हैं जो कि 7 मई तक रहेगा। नारद जी के अनुसार ब्रह्मा जी ने इस महीने को अन्य सभी महीनों में सबसे श्रेष्ठ बताया है। उन्होंने इस महीने को सभी जीवों को मनचाही फल देने वाला बताया है। नारद जी के अनुसार ये महीना धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्या का सार है और देवताओं द्वारा पूजित भी है। उन्होंने वैशाख माह का महत्व बताते हुए कहा है कि जिस तरह विद्याओं में वेद, मन्त्रों में प्रणव अक्षर यानी ऊं, पेड-पौधों  में कल्पवृक्ष, कामधेनु, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा, तेजों में सूर्य, शस्त्रों में चक्र, धातुओं में सोना और रत्नों में कौस्तुभमणि है। उसी तरह अन्य महीनों में वैशाख मास सबसे उत्तम है। इस महीने तीर्थ स्नान और दान से जाने-अनजाने में किए गए पाप खत्म हो जाते हैं। ग्रंथों में इसे पुण्य देने वाला माह बताया हैं महाभारत, स्कंद पुराण और पद्म पुराण निर्णय सिंधु ग्रंथ में वैशाख महीने का महत्व बताया हैं इन ग्रंथों के मुताबिक ये भगवान विष्णु का अति प्रिय माह हैं इसमें सुबह सूर्योदय से पहले स्नान का विशेष महत्व बताया गया हैं इसके अलावा वैशाख के महीने में तीर्थ या गंगा स्नान करने से श्री हरि विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता हैं।

माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था

वैशाख का महीना हिन्दू वर्ष का दूसरा माह होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस वजह से वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। धर्म-कर्म, स्नान-दान और पितरों के तर्पण के लिये अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ज्योतिषीय उपाय किये जाते हैं।  प्रत्येक अमावस्या पर पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए व्रत अवश्य रखना चाहिए। वैशाख अमावस्या पर किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं- ●  इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। ●  पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें। ●  वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, इसलिए शनि देव तिल, तेल और पुष्प आदि चढ़ाकर पूजन करनी चाहिए। ●  अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए और संध्या के समय दीपक जलाना चाहिए। ●  निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन और यथाशक्ति वस्त्र और अन्न का दान करना चाहिए। वैशाख अमावस्या के महत्व से जुड़ी एक कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। प्राचीन काल में धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वे बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का आदर करने वाले व्यक्ति थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन घूमते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः सांसारिक जीवन को अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।

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