श्रीबगलामुखी-पीताम्बरा माई का प्राकट्य दिवस; 1 मई पर विशेष

देवी बगलामुखी का प्राकट्य वैशाख शुक्‍ल अष्‍टमी तिथ‍ि पर हुआ था इस बार यह तिथ‍ि एक मई यान‍ि क‍ि शुक्रवार को पड़ रही है। देवी के इस स्‍वरूप की उपासना करने से गंभीर से गंभीर बीमारी और शत्रुओं का नाश होता है। बात चाहे भारत-पाकिस्‍तान के युद्ध की रही हो या फिर राजसत्‍ता  की लालसा की। देवी बगलामुखी के चरणों में द‍िग्‍गज नेताओं ने सिर झुकाया और  मन मांगी मुरादें पाई हैं। देवी बगलामुखी का स्‍वरूप पीला होने के कारण इन्‍हें पीतांबरा देवी के नाम से भी जाना जाता है।

भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है। स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं। इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है। महाविद्या की साधना योग्‍य गुरू के बिना पूर्ण नही है, देहरादून नंदादेवी एनक्‍लेव बंजारावाला में श्रीबगुलामुखी पीताम्‍बरा माई का मंदिर हेतु भूमि दान  में प्राप्‍त होने तथा नीव भरने के बाद निर्माण कार्य लम्‍बित है, परम पूज्‍य साधक डा0 अनूप गौड जी मो0 8077900406 ने चन्‍द्रशेखर जोशी को मंदिर के कार्य को आगे बढाने के लिए आशीर्वाद देते हुए कहा कि माई के सच्‍चे उपासक ही बडे कार्य को करने में सक्षम होते हैं।

बगलामुखी देवी को प्रसन्न करने के लिए 36 अक्षरों का बगलामुखी महामंत्र ;

 ‘ऊं हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ऊं स्वाहा’ का जप हल्दी की माला पर करना चाहिए।

माँ बगलामुखी; बगला एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ दुल्हन है, अर्थात दुल्हन की तरह आलौकिक सौन्दर्य और अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माँ बागलमुखी मंत्र कुंडलिनी के स्वाधिष्ठान चक्र को जागृति में सहयता करतीं हैं।

देवी बगलामुखी का सिंहासन रत्नो से जड़ा हुआ है और उसी पर सवार होकर देवी शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। कहा जाता है कि देवी के सच्चे भक्त को तीनों लोक मे अजेय है, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैं। 

देहरादून नंदादेवी एनक्‍लेव बंजारावाला में श्रीबगुलामुखी पीताम्‍बरा माई का मंदिर हेतु भूमि दान  में प्राप्‍त होने तथा नीव भरने के बाद निर्माण कार्य लम्‍बित – For Contribution 9412932030

श्री बगलामुखी; पीताम्बरा माई ; विश्व की रक्षा करने वाली हैं,साथ जीव की जो रक्षा करती हैं,वही बगलामुखी हैं ये स्तम्भन की देवी भी हैं। कहा जाता है कि सारे ब्रह्मांड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रु नाश, वाक सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है।

 विश्व की रक्षा करने वाली हैं,साथ जीव की जो रक्षा करती हैं,वही बगलामुखी हैं।स्तम्भन शक्ति के साथ ये त्रिशक्ति भी हैं।अभाव को दूर कर,शत्रु से अपने भक्त की हमेशा जो रक्षा करती हैं।दुष्ट जन,ग्रह,भूत पिशाच सभी को ये तत्क्षण रोक देती हैं।आकाश को जो पी जाती हैं,ये विष्णु द्वारा उपासिता श्री महा त्रिपुर सुन्दरी हैं। ये पीत वस्त्र वाली,अमृत के सागर मे दिव्य रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं।ये शिव मृत्युञ्जय की शक्ति हैं।ये अपने भक्तों के कष्ट पहुँचाने वाले को बाँध देती हैं,रोक देती है।ये उग्र शक्ति के साथ,बहुत भक्त वत्सला भी हैं,परम करूणा के साथ भक्त के प्रत्यक्ष या गुप्त शत्रु को रोक देती हैं।ये वैष्णवी शक्ति हैं,ये शीघ्र प्रभाव दिखाती है,इस लिए इन्हें सिद्ध विद्या भी कहा जाता हैं।गुरू,शिव जब कृपा करते है तो ही इनकी साधना करने का सौभाग्य प्राप्त हो पाता हैं।वाम,दक्षिण दोनो आचार से इनकी पूजा होती हैं परन्तु दक्षिण मार्ग से इनकी पूजा शीघ्र फलीभूत होती हैं।ये काली,श्यामा के ही सुन्दरी,ललिता की एक दिव्य मूर्ति हैं।इनकी उपासना में अनुशासन,शुद्धता,के साथ गुरू की कृपा ही सर्वोपरि हैं।इनकी उपासना से साधक त्रिकालदर्शी होकर भोग के साथ मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है,इनके कई मंत्र के जप के बाद मूल मंत्र का जप किया जाता है,कवच,न्यास,स्तोत्र पाठ के साथ अर्चन भी किया जाता हैं,इनका ३६ अक्षर मंत्र ही मूल मंत्र कहलाता हैं।इनकी साधना के अंग पूजा में प्रथम गुरू,गणेश,गायत्री,शिव,वटुक के साथ विडालिका यक्षिणी,योगिनी का पूजा अनिवार्य माना जाता हैं।ये विश्व की वह शक्ति हैं,जिनके कृपा से,चराचर जगत स्थिर रहता हैं। ये ब्रह्म विद्या है इनकी साधना में शुद्धता के साथ जप,ध्यान के साथ गुरू कृपा मुख्य हैं।इनके जप से कुन्डलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है,इनके साधक कोई भी आसुरी शक्ति एक साथ मिलकर भी परास्त नहीं कर सकता,ये अपने भक्तों की सदा रक्षा करती है।विश्व की सारी शक्ति मिलकर भी इनकी बराबरी नहीं कर सकते हैं। कई जन्म के पुण्य प्रभाव से इनकी साधना करने का सौभाग्य प्राप्त होता हैं।पुस्तक से देखकर या कही से सुनकर इनका मंत्र जप करने से कभी कभी जीवन मे उपद्रव शुरू हो जाता है।इसलिए बिना गूरू कृपा के इनकी साधना न करें।भारत में इनके मंदिर तो कितने है,परन्तु इनका विशेष साधना पीठ श्री पीताम्बरा पीठ,दतिया मध्य प्रदेश हैं।ये शुद्ध विद्या है,इनकी महिमा जगत में विख्यात हैं।इनकी कृपा से चराचर जगत वश में रहता है,इनकी साधना करने से ये अपने भक्त को सभी प्रकार से देखभाल करती है।ये परम दयामयी तथा करूणा रखती है।

बच्चों की रक्षा का मंत्र; यदि आप बच्चों की सुरक्षा को ले कर सदा चिंतित रहते हैं, बच्चों को रोगों से, दुर्घटनाओं से, ग्रह दशा से और बुरी संगत से बचाना चाहते हैं तो देवी के रक्षा मंत्र का जाप करना चाहिए। ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष

माँ बगलामुखी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् (Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram)

ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी, माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च, ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ॥ 1 ॥

महा-विद्या महा-लक्ष्मी, श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता, पार्वती सर्व-मंगला ॥ 2 ॥

ललिता भैरवी शान्ता, अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च, तारा काली सरस्वती ॥ 3 ॥

जगत् -पूज्या महा-माया, कामेशी भग-मालिनी ।
दक्ष-पुत्री शिवांकस्था, शिवरुपा शिवप्रिया ॥ 4 ॥

सर्व-सम्पत्-करी देवी, सर्व-लोक वशंकरी ।
वेद-विद्या महा-पूज्या, भक्ताद्वेषी भयंकरी ॥ 5 ॥

स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च, दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी ।
भक्त-प्रिया महा-भोगा, श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥ 6 ॥

मेना-पुत्री शिवानन्दा, मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च, नृपाराध्या नरोत्तमा ॥ 7 ॥

नागिनी नाग-पुत्री च, नगराज-सुता उमा ।
पीताम्बरा पीत-पुष्पा च, पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा ॥ 8 ॥

पीत-गन्ध-प्रिया रामा, पीत-रत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी, गदा-मुद्-गर-धारिणी ॥ 9 ॥

सावित्री त्रि-पदा शुद्धा, सद्यो राग-विवर्द्धिनी ।
विष्णु-रुपा जगन्मोहा, ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया ॥ 10 ॥

रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी, भक्त-वत्सला ।
लोक-माता शिवा सन्ध्या, शिव-पूजन-तत्परा ॥ 11 ॥

धनाध्यक्षा धनेशी च, धर्मदा धनदा धना ।
चण्ड-दर्प-हरी देवी, शुम्भासुर-निवर्हिणी ॥ 12 ॥

राज-राजेश्वरी देवी, महिषासुर-मर्दिनी ।
मधु-कैटभ-हन्त्री च, रक्त-बीज-विनाशिनी ॥ 13 ॥

धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च, भण्डासुर-विनाशिनी ।
रेणु-पुत्री महा-माया, भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥ 14 ॥

ज्वालामुखी भद्रकाली, बगला शत्र-ुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च, गुह-माता गुणेश्वरी ॥ 15 ॥

वज्र-पाश-धरा देवी, जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी, बगला परमेश्वरी ॥ 16 ॥

फल- श्रुति
अष्टोत्तरशतं नाम्नां, बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिप-ुबाधा-विनिर्मुक्तः, लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात्॥ 1 ॥

भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, ग्रह-पीड़ा-निवारणम् ।
राजानो वशमायाति, सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥ 2 ॥

नाना-विद्यां च लभते, राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति, साक्षात् शिव-समो भवेत् ॥ 3 ॥

॥ श्रीरूद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥

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