मोदी ने केदारनाथ में शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण क्यों किया- शंकराचार्य-केदारनाथ क्या संबंध हैं

HIGH LIGHT# शंकराचार्य का केदरनाथ धाम के साथ क्या संबंध है # केदारनाथ के दर्शन करने के बाद विलुप्त हुए थे शंकराचार्य # शंकराचार्य ने किन मठों की स्थापना की? # उत्तराखंड में ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और ओडिशा के पुरी में गोवर्धन पीठ # आदि गुरु शंकराचार्य के बचपन का क्या नाम था? # शंकराचार्य के बचपन का नाम शंकर था # उनके पिता शिव के बड़े उपासक थे # शंकराचार्य का निधन कैसे हुआ? # शंकराचार्य का निधन नहीं हुआ। वह केदारनाथ के दर्शन करने के बाद विलुप्त हो गए थे # CHANDRA SHEKHAR JOSHI CHIEF EDITOR; Himalayauk Newsportal & Print Media: Mob. 9412932030

 पीएम मोदी ने आखिर केदारनाथ में शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण क्यों किया। शंकराचार्य का केदरनाथ से क्या संबंध हैं,  शंकराचार्य का जन्मकाल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का माना जाता है।

आदिगुरू शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है। श्री शंकराचार्य एक प्रसिद्ध हिन्दू सन्त थे जिन्होंने अद्वैत वेदान्त के ज्ञान के प्रसार के लिये दूर-दूर तक यात्राये कीं। ऐसा विश्वास है कि इन्होंने ही केदारनाथ मन्दिर को 8वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया और चारों मठों की स्थापना की। लोककथाओं के अनुसार उन्होंने अपने यात्रा की शुरूआत बद्रीनाथ के ज्योतिर्मठ आश्रम से की थी और फिर केदारनाथ के पहाड़ो पर आकर अपना अन्तिम पड़ाव डाला। शंकराचार्य के चार सबसे प्रिय शिष्य उनके साथ चले किन्तु उन्हें वापस जाने के लिये कह कर वे अकेले ही चल पड़े। यात्रियों को यहाँ गर्म पानी के सोते भी दिख जाते हैं जिन्हें शंकराचार्य ने अपने शिष्यों के लिये मौसम के प्रतिकूल प्रभावों और दर्द को दूर करने के लिये बनाया था। लोककथाओं के अनुसार शंकराचार्य ने हिन्दुओं के तीर्थस्थानों अर्थात चारधाम की खोज के उपरान्त 32 वर्ष की अल्पायु में ही समाधि ले ली थी।

वहीं कुछ इतिहासकार का मानना है कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईसवीं में हुआ था और उनकी मृत्यु 820 ईसवीं में हुई थी। आदि शंकराचार्य का जन्म केरल में कालपी ‘काषल’ नाम के गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। बताया जाता है कि उनके पिता ने शिव की दिनरात उपासना की, तब वह पैदा हुए थे। इसलिए उनका नाम शंकर रखा गया। जब वह तीन साल के थे उनके पिता का निधन हो गया।

शंकर इतने ज्ञानी थे कि महज छह साल की उम्र में वह प्रकांड पंडित हो गए। 8 साल की उम्र में उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया। कहा जाता है कि वह अपनी मां की इकलौती संतान थे इसलिए मां नहीं चाहती थीं कि वह सन्यासी बनें। एक दिन नदी में एक मगरमच्छ ने उनका पांव पकड़ लिया। शंकर ने मां से कहा कि अगर वह उन्हें सन्यास लेने की अनुमति नहीं देंगी तो मगरमच्छ उन्हें खा जाएगा। जैसे ही उनकी मां ने उन्हें अनुमति दी मगरमच्छ ने उनका पांव छोड़ दिया।

आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। पश्‍चिम दिशा के द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। दक्षिण में उन्होंने श्रंगेरी मठ की स्थापना की। पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की। जोशीमठ इलाके में यही वह जगह है जहां शंकराचार्य विलुप्त हुए थे।

शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनन्द स्वरूप ने बताया कि शंकराचार्य ने चारों धाम की स्थापना की सनातन धर्म की फिर से स्थापना कर की। जब उनके कार्य पूरे हो गए तो उन्हें लगा कि जिस उद्देश्य से उनका जन्म हुआ था, वह उन्होंने पूरे कर लिए हैं। वह अपने शिष्यों के साथ केदारनाथ में दर्शन करने पहुंचे। यहां उन्होंने शिष्यों के साथ भगवान के दर्शन किए।

स्वामी आनंद स्वरूप ने बताया कि शिवलिंग के दर्शन के बाद आदि गुरु शंकराचार्य की भगवान शंकर से बात हुई। उन्होंने उनसे देह त्यागने की अनुमति ली। आदि शंकराचार्य मंदिर से बाहर आए। शिष्यों को रोका और कहा कि पीछे मुड़कर मत देखना। आदि शंकराचार्य यहां विलुप्त हो गए। जहां पर विलुप्त हुए उसी जगह पर शिवलिंग की स्थापना की गई। उनका समाधि स्थल बनाया गया। 2013 में आई त्रासदी में यह समाधि स्थल बह गया था।

केदारनाथ मंदिर के थोड़ा पीछे आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि इसी संत ने भारत में चार पावन धामों की स्थापना की थी, जो हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं। इस प्रसिद्ध हिंदू दार्शनिक को 32 वर्ष की युवावस्था में निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य स्वयं ही धरती में समाहित हो गए थे। हज़ारों की संख्या में श्रद्धालुगण यहां पर आते हैं, केदारनाथ में शंकराचार्य की समाधि बेहद लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। किंवदंती के अनुसार, शंकराचार्य 8वीं सदी में केदारनाथ आये थे और केदारनाथ मंदिर एवं अपने चार मठों में से एक का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने अपने अनुयायियों के लिए गर्म पानी का कुंड बनाया था ताकि वे इलाके के बेहद ठंडे मौसम से बचाव कर सकें।

गौरीकुंड का गर्म पानी का तालाब हिंदुओं के लिए पावन स्थलों में से एक है, जहां पर वे डुबकी लगाने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड के पावन जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है। विहंगम परिदृश्यों से घिरा यह कुंड केदारनाथ मंदिर जाने वाले प्रसिद्ध ट्रैक का आरंभिक बिंदु भी है। यह कुंड गढ़वाल हिमालय में 6,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। श्रद्धालुगण देवी पार्वती को समर्पित गौरी देवी मंदिर के दर्शनों के लिए भी जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह वही जगह है जहां पर देवी पार्वती, भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए लंबी अवधि तक ध्यान मुद्रा में रही थीं। इस क्षेत्र का संबंध भगवान गणेश की कथा से भी है, यहीं उनके शरीर पर हाथी का सिर जोड़ा गया था। 

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