ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानी 9 जून से 12 जून तक अदभूत मंगलकारी दिवस -मान्यता है कलयुग का अंत & गंगा के सूखने के साथ ही कलयुग समाप्त और सतयुग का उदय
# 10 जून, शुक्रवार -ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी # 9 जून को मां गंगा का अवतरण दिवस है। साथ ही वेद माता गायत्री का प्राकट्य उत्सव # 10 जून को मोक्षदायिनी निर्जला एकादशी पर्व रहेगा। इसके एक दिन बाद यानी रविवार को ज्येष्ठ महीने के प्रदोष व्रत का संयोग बन रहा है। गंगा दशहरा स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त है # इन तीनों पर्व पर किए गए तीर्थ स्नान, व्रत और पूजा से हर तरह के रोग और दोष खत्म # गंगा दशहरा पर्व 9 जून, गुरुवार को मनेगा। इस पर्व पर चार बड़े शुभ योग बन रहे हैं। ्# गंगा दशहरा के दिन सभी गंगा मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। पूजा में चरणामृत स्वरूप भक्तों में गंगा जल वितरित किया जाता है।
# 9 जून गगा जी अवतरण दिवस पर एक्ससक्लूूसवि रिपोर्ट – Execlusive Report by Chandra Shekhar Joshi Chief Editor ; www.himalayauk.org (Leading Newsortal & Print Media) Publish at Dehradun & Hairdwar Mob 9412932030 Mail; csjoshi_editor@yahoo.in & himalayauk@gmail.com
‘ऊँ नमः गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नमः’।
गंगा ने 7 पुत्रों को नदी में बहा दिया ; आखिर क्यों उन्होंने अपने पुत्रों को मारा देवी गंगा ने रहस्य खोला कि अब मुझे आपका परित्याग करना होगा .आप संतान के लिए अपना दिया हुआ वचन भूल गए. अब ये संतान आपके पास रहेगी और मैं आपको छोड़कर जा रही हूं. परन्तु देवी गंगा ने यह रहस्य खोला देवी गंगा ने जाने से पहले राजा शांतनु के प्रश्न का जवाब दिया कि आखिर क्यों उन्होंने अपने पुत्रों को मारा. देवी ने बताया कि उनके आठों पुत्र सभी वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था. इनका जन्म ही हर पल दुख सहने के लिए हुआ था .जीवन भर के कष्ट से बचाने के लिए देवी गंगा ने अपनी ही संतान को धारा में प्रवाहित कर मुक्त कर दिया. मां गंगा के आठवें पुत्र पितामह भीष्म बने, जिन्हें कभी कोई सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि हर कदम पर दुख झेलकर पड़ा और अंत में वे कठिन मृत्यु को प्राप्त हुए.
विवाह के बाद जब गंगा मां बनी तो उन्होंने अपनी संतान को नदी में बहा दिया.जब भी देवी गंगा किसी संतान को जन्म देतीं तो उसे तुरंत ही नदी में बहा देती थीं.इस तरह सात पुत्र काल के गाल में समा चुके थे जब देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र का जन्म हुआ तब भी मां गंगा उसे नदी को भेंट निकल गईं, तब राजा शांतनु स्वयं को रोक ना सके. उन्होंने गंगा को रोक कर पूछ लिया कि वह हर बार अपनी संतानों को नदी में क्यों बहा रही हैं? तब गंगा ने कहा कि आपने अपना वचन तोड़ दिया अब मुझे आपका परित्याग करना होगा.आप संतान के लिए अपना दिया हुआ वचन भूल गए. अब ये संतान आपके पास रहेगी और मैं आपको छोड़कर जा रही हूं.
देवी गंगा ने जाने से पहले राजा शांतनु के प्रश्न का जवाब दिया कि आखिर क्यों उन्होंने अपने पुत्रों को मारा. देवी ने बताया कि उनके आठों पुत्र सभी वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था.इनका जन्म ही हर पल दुख सहने के लिए हुआ था.जीवन भर के कष्ट से बचाने के लिए देवी गंगा ने अपनी ही संतान को धारा में प्रवाहित कर मुक्त कर दिया. मां गंगा के आठवें पुत्र पितामह भीष्म बने, जिन्हें कभी कोई सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि हर कदम पर दुख झेलकर पड़ा और अंत में वे कठिन मृत्यु को प्राप्त हुए.
ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 9 जून को सुबह 8.21 से शुरू होगी और 10 जून को सुबह 7.25 तक रहेगी। इस बार दशमी तिथि और हस्त नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस तिथि के स्वामी यम और नक्षत्र के स्वामी सूर्य हैं। पिता-पुत्र के इस संयोग में स्नान-दान करने से शुभ फल मिलेगा। इस दिन घर पर भी पानी में गंगा जल मिलाकर नहाने से गंगा स्नान का फल मिल सकता है।
गंगा नदी को हिन्दू लोग को माँ एवं देवी के रूप में पवित्र मानते हैं। हिंदुओं द्वारा देवी रूपी इस नदी की पूजा की जाती है क्योंकि उनका विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। तीर्थयात्री गंगा के पानी में अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं ताकि उनके प्रियजन सीधे स्वर्ग जा सकें। देवव्रत इन्हीं के पुत्र थे। भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की। ब्रह्मा जी मान गए और गंगा को आदेश दिया कि वह पृथ्वी पर जाये और वहां से पाताललोक जाये ताकि भगीरथ के वंशजों को मोक्ष प्राप्त हो सके। गंगा को यह काफी अपमानजनक लगा और उसने तय किया कि वह पूरे वेग के साथ स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेगी और उसे बहा ले जायेगी। तब भगीरथ ने घबराकर शिवजी से प्रार्थना की कि वे गंगा के वेग को कम कर दें। गंगा पूरे अहंकार के साथ शिव के सिर पर गिरने लगी। लेकिन शिव जी ने शांति पूर्वक उसे अपनी जटाओं में बांध लिया और केवल उसकी छोटी-छोटी धाराओं को ही बाहर निकलने दिया। शिव जी का स्पर्श प्राप्त करने से गंगा और अधिक पवित्र हो गयी। पाताललोक की तरफ़ जाती हुई गंगा ने पृथ्वी पर बहने के लिए एक अन्य धारा का निर्माण किया ताकि अभागे लोगों का उद्धार किया जा सके। गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों में बहती है-स्वर्ग, पृथ्वी, तथा पाताल। इसलिए संस्कृत भाषा में उसे “त्रिपथगा” (तीनों लोकों में बहने वाली) कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि सरस्वती नदी के समान ही, कलयुग (वर्तमान का अंधकारमय काल) के अंत तक गंगा पूरी तरह से सूख जायेगी और उसके साथ ही यह युग भी समाप्त हो जायेगा। उसके बाद सतयुग (अर्थात सत्य का काल) का उदय होगा।
जब मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाते हैं। राजा शांतनु को देवी गंगा से प्रेम हो गया था। शांतनु ने गंगा से विवाह करने की बात कही तो गंगा विवाह के लिए मान गईं, लेकिन देवी ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी कि वह अपनी इच्छा के अनुसार ही रहेगी। उसके निजी जीवन में किसी भी तरह की रोक-टोक नहीं होगी। अगर राजा कभी किसी काम में टोकेंगे तो गंगा उन्हें छोड़कर चली जाएगी।गंगा उन्हें छोड़कर चली जाएगी और गगा जी उन्हें छोडकर चली गयी 9 जून गगा जी अवतरण दिवस पर एक्ससक्लूूसवि रिपोर्ट – चन्ददशेखर जोशी
गंगा दशहरा: 9 जून, गुरुवार कुछ ग्रंथों में गंगा नदी को ज्येष्ठ भी कहा गया है। क्योंकि ये अपने गुणों के कारण दूसरी नदियों से ज्यादा महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इसलिए इसे ज्येष्ठ यानी दूसरी नदियों से बड़ा माना गया है। गंगा दशहरा पर्व 9 जून, गुरुवार को मनेगा। इस पर्व पर चार बड़े शुभ योग बन रहे हैं। ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि पर गंगा, धरती पर आईं थी। इसलिए इस दिन को गंगा अवतरण दिवस भी कहते हैं।
शांतनु ने देवी गंगा की ये बात मान ली और उनका विवाह हो गया। विवाह के बाद जब भी देवी गंगा किसी संतान को जन्म देतीं तो उसे तुरंत ही नदी में बहा देती थीं। शांतनु अपने वचन की वजह से गंगा को रोक नहीं पा रहे थे।
गंगा दशहरा 9 जून को है। जिन दस योगों में गंगा धरती पर आईं थी। उनमें से सात योग इस बार बन रहे हैं। इस साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर हस्त नक्षत्र और व्यतिपात योग के साथ ही वृष राशि का सूर्य और कन्या राशि में चंद्रमा के रहते हुए गंगा दशहरा पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व पर गंगाजी या पास की किसी भी पवित्र नदी, सरोवर या घर में गंगाजल से नहाने की परंपरा है। इसके बाद देवी गंगा के साथ नारायण, शिव, ब्रम्हा, सूर्य, राजा भगीरथ और हिमालय पर्वत का भी पूजन करना चाहिए।
शांतनु को गंगा की बात याद थी कि अगर राजा देवी को टोकेंगे तो वह छोड़कर चली जाएंगी। राजा शांतनु गंगा को खोना नहीं चाहते थे। गंगा नदी ने एक के बाद एक सात संतानों को नदी में बहा दिया, लेकिन शांतनु ने कुछ नहीं कहा। इसके बाद जब आठवीं संतान हुई तो गंगा उस संतान को भी नदी में बहाने जाने लगी।
9 जून, गुरुवार को गंगा दशहरा पर ग्रह-नक्षत्रों से मिलकर चार शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन गुरु-चंद्रमा और मंगल का दृष्टि संबंध रहेगा। जिससे गजकेसरी और महालक्ष्मी योग बनेंगे। वहीं, वृष राशि में सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग बनेगा। साथ ही सूर्य-चंद्रमा के नक्षत्रों से रवियोग भी पूरे दिन रहेगा। जिससे इस दिन किए गए स्नान-दान और पूजा का दस गुना शुभ फल मिलेगा।
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर में ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाकर नहा लें।
घर पर ही गंगाजल को शंख में भरकर पूजना चाहिए।
ज्येष्ठ महीने में देवी गंगा के अवतरण दिवस पर गंगा पूजा का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इस दिन गंगा नदी के किनारे जाकर पूजा और आरती करनी चाहिए। ऐसा न कर सकें तो घर पर ही गंगाजल को शंख में भरकर पूजना चाहिए। साथ ही सुबह-शाम गंगा आरती करें। इस दिन शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से बीमारियां दूर होती हैं और उम्र बढ़ती है। वहीं, शंख में गंगाजल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करने से महापुण्य मिलता है।
इस बार राजा शांतनु खुद को रोक नहीं पाए और उन्होंने गंगा को रोक कर पूछ लिया कि वह हर बार अपनी संतानों को नदी में क्यों बहा रही हैं? गंगा ने कहा कि आज आपने मेरी शर्त तोड़ दी है। आप संतान के लिए अपना दिया हुआ वचन भूल गए। अब ये संतान आपके पास रहेगी और मैं आपको छोड़कर जा रही हूं। इस तरह शांतनु ने गंगा को खो दिया और अपनी संतान को बचा लिया। उन्होंने पुत्र का नाम देवव्रत रखा था। यही पुत्र बाद में भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को 10 योगों में देवी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इसलिए इस पर्व को दशहरा कहा गया है। इसमें ये दस योग कहे गए हैं- ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या का चंद्रमा और वृषभ का सूर्य। डॉ. मिश्र के अनुसार इस बार गंगा दशहरा पर 10 में से 7 योग बन रहे हैं, जिनमें ये पर्व मनाया जाएगा। आनंद योग, गर करण और बुधवार का संयोग इस बार नहीं है।
गंगा में डुबकी भी 10 बार लगानी चाहिए। इस दिन जो भी मनोकामना की जाती है वो पूरी होती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, हस्त नक्षत्र के साथ ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी दस तरह के पाप खत्म करने वाली होती है। इसलिए इसे दशहरा कहते हैं।
गायत्री जयंती पर्व 9 जून, गुरुवार को है। अथर्ववेद में बताया गया है कि मां गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस मिलता है। विधि और नियमों से की गई गायत्री उपासना रक्षा कवच बनाती है। जिससे परेशानियों के समय उसकी रक्षा होती है। देवी गायत्री की उपासना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है। जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्मांड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है। इसीलिए गायत्री उपासना जरूर करनी चाहिए।
गायत्री प्राकट्य पर्व: 10 जून, शुक्रवार — मां गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मवर्चस फल मिलता है। मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है। ये पंचतत्वों के प्रतिक हैं। इसका मतलब ये है कि संसार के सभी जीवों में प्राण शक्ति के रूप में मां गायत्री मौजूद है। इसलिए ग्रंथों में कहा गया है कि हर दिन मां गायत्री की उपासना करनी चाहिए।
मां गायत्री को वेदमाता कहते हैं। इनसे ही सभी वेदों की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इन्हें वेद माता कहा जाता है। ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस बार गायत्री जयंती 10 जून, शुक्रवार को है। वेदमाता गायत्री की उपासना से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
10 जून, शुक्रवार -ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी # निर्जला एकादशी: 10 जून, शुक्रवार
इस एकादशी पर अपने पितरों की शांति के लिए ठंडे पानी, भोजन, कपड़े, छाते और जूते-चप्पल का दान # इस तिथि पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए उपवास किया जाता है, इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करते हैं।
स्कंद पुराण में एकादशी महात्म्य नाम का अध्याय है। इसमें सालभर की सभी एकादशियों की जानकारी दी है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशियों का महत्व बताया है। निर्जला एकादशी के बारे में पांडव पुत्र भीम से जुड़ी कथा है। महाभारत काल में भीम ने इस एकादशी का उपवास किया था। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा गया है।
ये व्रत महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए बताया था। तब भीम ने कहा कि पितामाह, आपने एक माह में दो एकादशियों के उपवास की बात कही है। मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी खाने के बिना नहीं रह सकता हूं। वेदव्यास ने भीम से कहा कि सिर्फ निर्जला एकादशी ही ऐसी है जो सालभर की सभी एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर होता है। तब इस दिन भीम ने व्रत किया था।
रवि प्रदोष व्रत: 12 जून, रविवार
रविवार को त्रयोदशी तिथि होने से रवि प्रदोष योग 12 जून को बनेगा। ज्येष्ठ महीना होने से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत किया जाएगा। जिसके प्रभाव से दाम्पत्य जीवन में सुख बढ़ता है। रवि प्रदोष के योग में शिव-पार्वती पूजा करने से रोग, शोक और हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। इस तिथि पर शिवलिंग पर जल चढ़ाने का विधान है।
SPECIAL; धर्मो रक्षति रक्षितः “रक्षित धर्म, रक्षक की रक्षा करता है”। आप द्वारा किए जा रहे आपके सामाजिक कार्य निस्संदेह साधुवाद के पात्र हैं गर्वनर महाराष्ट ने हिमालयायूके न्यूजपोर्टल के सम्पादक चन्द्रशेखर जोशी को शुभकामनाये प्रेषित की -
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