कोढ नही मात्र चर्म रोग – वैद्य दीपक कुमार

DEEPAK JI copyकोढ नही मात्र चर्म रोग – वैद्य दीपक कुमार –
हिमालयाायूके न्‍यूज पोर्टल तथा दैनिक समाचार पत्र के लिए लिखे गये अपने विशेष लेख में कनखल हरिद्वार स्‍थित वैद्य जी श्री दीपक कुमार जी लिखते हैं-
सफेद दाग (श्वित्र)
शरीर की चमडी पर कभी-कभी सफेद दाग हो जाते हैं। बहुत से लोग इसको कोढ समझते हैं जबकि यह कोढ न होकर मात्र चर्म रोग है।
शुद्ध वायु के अभाव में या कब्ज आदि के कारण जब रक्त दूषित हो जाता है। तब रक्त विकार उत्पन्न होते हैं

ताम्र पात में धरो, आमचूर को लेह।
शीत जल से रगडये, किंचित सेंधव देय।।
स्थूल चर्म दल न रहे, इनका लेप कराय।
विवर्ण बदले अंग का, त्वक कोमलता थाय।।
शरीर की चमडी पर कभी-कभी सफेद दाग हो जाते हैं। बहुत से लोग इसको कोढ समझते हैं जबकि यह कोढ न होकर मात्र चर्म रोग है। इसमें छुआछूत होने का कोई डर नहीं रहता। यह रोग किस कारण से होता है कोई बहुत निश्चित ज्ञात नहीं है लेकिन विरुद्धाहार जैसे की दूध के साथ दही, दूध के साथ नमक, दूध के साथ मछली इत्यादि के सेवन से अधिकतर देखा जाता है। परहेज के साथ यदि इसकी चिकित्सा धैर्यपूर्वक की जाए तो यह ठीक होने की उम्मीद बहुत रहती है।
-ः चिकित्सा ः-
१. हमारी फार्मेसी द्वारा निर्मित रक्त विकार व नीमघन वटी सफेद दाग में बहुत लाभप्रद हैं।
२. अर्क मूल, गन्धक, हरताल, कुटकी, हल्दी को बराबर लेकर गोमूत्र में पीसकर सात दिनों तक लेप करने से सफेद दाग में लाभ दिखने लगता है।
श्वेत कुष्ठ नाशक लेप
गुंज चित्रकमूल मैनसिल तोल बराबर लीजै।
आठ भाग हरताल बावची के सोलह करिदीजै।।
पीसि गाय क मूत्र लेप करि श्वेत कुष्ठ पर कीजै।
ठीक रंग है जाय अंग सब मन में निश्चय कीजै।।
३. तुलसी रस एवं नींबू रस मिलाकर दाद पर लगाने से लाभ मिलता है।
४. सफेद कोढ के प्रारम्भ में अंजीर के पत्तों का रस लगाने से उसका बढना बंद होके मिट जाता है।
कुटकी गिलोय दारूहरिद्रा, मंजिठ त्रिफला बच आण।
सम मात्रा ले कुटिये, नीम छाल ले आण।।
वात व्याधि को नास व्है, क्वाथहु करके दीण।
विसर्प मण्डल न रहै, श्वेत कुष्ठ व्है हीण।।
५. इमली के बीजों की मींगी और बावची दोनों बराबर लें, पानी के साथ पीस कर लेप करने से सफेद दाग मिटते हैं।
६. मंजीठ को पीस मधु में मिलाकर लगाने से त्वचा के पीले और दूसरी प्रकार के दाग मिटते हैं।
७. सिरीष के बीजों का तेल निकाल कर उस तेल की मालिश करने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
देय भावना सिरस की, मूली काले बीज।
प्रियंगु रजनी कही, कूठहु तामें बीज।।
शीतल जल से पीसिए, सरसों बीज मिलाए।
अंग श्वेतता सब मिटे, सिध्मा रोग पलाय।।
८. सहंजन, चित्रक को दही के माण्ड में मिलाकर वातज, कफज, कुष्ठ रोगी को सेवन कराएं। साथ में ही इस सहजन के पत्तों का शाक बनाकर रोगी को खिलाएं।
९. सतौना, कमीला, मुलहेठी, फिटकरी, राल, नीलोफर और मैनसिल समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर इसे मक्खन में मिलाकर लेप करने से भी स्रावयुक्त कुष्ठ में लाभ होता है।
१०. मंजीठ ४०० ग्राम, आंवला, ५०० ग्राम, शुद्ध बावची २०० ग्राम, मिश्री २०० ग्राम महीन पीसकर १-१ ग्राम पानी के साथ सेवन करने से इस रोग में अत्यधिक लाभ मिलता है।
११. बादाम के छिलकों का तेल सफेद दाग पर लगाने से लाभ मिलता है।
१२. तुलसी रस का मर्दन करने से त्वचा रोग मिटते हैं।
ःःःःःःःःःःःःःःःःः
डॉ. दीपक कुमार
रक्त विकार
रक्त मनुष्य का जीवन है, रक्त के बिना मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती। प्राण के साथ ही रक्त भी शरीर से विदा हो जाता है। शुद्ध वायु फेफडों में जाकर रक्त के दूषित अंश को अपने में मिलाकर वापस लौटती है। शुद्ध वायु के अभाव में या कब्ज आदि के कारण जब रक्त दूषित हो जाता है। तब रक्त विकार उत्पन्न होते हैं जैसे की फोडे-फुन्सी, खाज-खुजली, लाल गोल चकते इत्यादि रक्त विकार। कभी-कभी बहुत ज्यादा तले-भूने पदार्थ, मिर्च-मसालों का अत्यधिक प्रयोग, जंक फूड, असमय खाना, मास-मदिरा का इत्यधिक प्रयोग करना इसके मुख्य कारण हैं।
-ः चिकित्सा ः-
१. हमारी फार्मेसी द्वारा निर्मित रक्त विकार नाशक का सेवन बहुत लाभप्रद होता है।
२. रक्त शुद्ध करने के लिए चोबचीनी का प्रयोग बहुत अच्छा है।
३. जटामांसी को घोट छानकर मधु मिलाकर पीने से रक्त शुद्ध होता है।
४. मुनक्का रक्त को शुद्ध करके बढाने वाला है।
५. नारियल पानी से रक्त शुद्ध होता है।
६. परवल के पत्तों को ओटा मधु मिलाकर पिलाने से रक्त शुद्ध होता है।
७. वर्द्धमान पिप्पली के प्रयोग से रक्त शुद्ध होकर शरीर का मल बढता है।
८. सूखे पौदीने को पीस के फंकी लेने से रुधिर का जमना बन्द हो जाता है।
९. बकरी के कच्चे दूध में आठवां भाग मधु मिला के पिलाने से रुधिर शुद्ध हो जाता है जिन दिनों में यह प्रयोग किया जाए उन दिनों में उस रोगी को सांभर नमक और लालमिर्च के बदले में सैन्धा नमक और कालीमिर्च देनी चाहिए।
१०. पिस्ते के तेल का सेवन करने से रक्त में जो किसी तत्व की न्यूनता होती है वह मिट जाती है।
११. गोरखमुण्डी के पुष्पों के प्रयोग से रक्त शुद्ध होता है।
१२. सफेद मुसली रक्त शोधक, मूत्र और पुरुषार्थवर्द्धक है।
१३. एरण्ड के पत्तों को राई तेल से चुपड अग्नि पर तपा के बांधने से शरीर में जमा हुआ रक्त बिखर जाता है।
१४. लज्जालू (छुईमुई) सूजन रोकती है और रक्त को शुद्ध करती है।
१५. बादाम की जड का क्वाथ पीने से रक्त शुद्ध होता है।
१६. बिदारीकंद रक्त को शुद्ध करने वाली और दूध बढाने वाली है।
१७. शरफोंका के पंचाग के क्वाथ में मधु मिलाकर पिलाने से रक्त शुद्ध होता है तथा फोडे-फुन्सियां ठीक होते हैं।
१८. सफेद जीरा और अनन्तमूल का क्वाथ पिलाने से रक्त शुद्ध हो जाता है।
१९. बच्चों का रुधिर शुद्ध करके निर्बलता मिटाने के लिए अन्नतमूल को दूध और शक्कर के साथ औटा के पिलाना चाहिए।
२०. सेब खाने से शरीर पुष्ट तथा रुधिर शुद्ध होता है।
२१. वासापत्र, त्रिफला, खदिरत्वक नीम की अन्तरछाल, पटोल पत्र और गिलोय को बराबर भाग में लेकर यवकुट कर क्वाथ बना उसमें मधु या मिश्री मिलाकर पिएं।
२२. शतावरी मूल, चक्रमर्द मूल और बलामूल को समान मात्रा में लेकर इनका क्वाथ बनाकर (३२ गुने जल में अष्टमांश शेष जल) इसमें मिश्री और इलायची मिलाकर पिलावें।
२३. शतावरी स्वरस में दुगुनी शक्कर मिलाकर शर्बत बनाएं। फिर उसमें केसर, जायफल, जावित्री और छोटी इलायची चूर्ण मिलाकर (शर्बत ४० मि.ली., चूर्ण ५० मि.ग्रा.) ४२ दिनों तक पीने से रक्त विकृति जन्यविष मूत्र द्वारा बाहर निकल जाता है और रक्तशुद्धि हो जाती है। शर्बत में दूध या पानी भी मिलाया जा सकता है।
२४. श्वेत सरिता, कृष्ण सरिता, माषपर्णी, मुग्दपर्णी, इलायची, लवंग, कचूर इनका क्वाथ बनाकर इस क्वाथ में अमलतास के गूदे का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से प्रायः सभी प्रकार के रक्त विकार मिटते हैं।
२५. सरिवा (अनन्त मूल), सुगन्धबाला, नागरमोथा, सौंठ, कुटकी सम मात्रा में चूर्ण करके २-३ ग्राम पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

डॉ. दीपक कुमार

आदर्श आयुर्वेदिक फार्मेसी

दक्ष मन्दिर मार्ग, कनखल

हरिद्वार, उत्तराखण्ड

डण्. ९१.९८९७९०२७६०

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *