14 मई; पावन, मंगलकारी और कल्याणकारी दिवस;शुभ मुहूर्त- 6 घंटे तथा राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का स्थापना दिवस
Akshaya Tritiya 2021 : पंचांग के अनुसार 14 मई 2021 शुक्रवार को वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है. इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है. शास्त्रों में इस तिथि को बहुत ही शुभ और कल्याणकारी माना गया है. अक्षय तृतीया की तिथि को स्वयंसिद्ध माना गया है.
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12 May 2021: Himalayauk Newsportal #High Light# अत्यंत पावन, मंगलकारी और कल्याणकारी दिवस # अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी मां की पूजा # परशुराम जयंती 14 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी # भगवान विष्णुजी को चावल चढ़ाना शुभ इस दिन अक्षय तृतीया भी है# इस दिन भगवान सौभाग्य का द्वार खोल देते हैं. भगवान को कुछ चीजें बहुत प्रिय होती है. जिसके दान से व्यक्ति सौभाग्य को प्राप्त होता है. # गाय को जल में गुड़ मिलाकर गाय को पिलायें # # कोंकण, गोवा और केरल मे भगवान परशुराम की विशेष पूजा # भारत के अधिकांश ग्राम परशुराम जी ने ही बसाए # अक्षय तृतीया पूजा का शुभ मुहूर्त- सुबह 5:38 से दोपहर 12:18 तक # शुभ मुहूर्त कुल अवधि 6 घंटे 40 की मिनट होगी. #
14 मई 2021 को वैशाख मास की शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया है. 14 मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया की तिथि पर पूजा का मुहूर्त सुबह 05 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 18 मिनट तक बना हुआ है. इस समय वैशाख मास चल रहा है और 14 मई को अक्षय तृतीया है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं. इस दिन भगवान सौभाग्य का द्वार खोल देते हैं. भगवान को कुछ चीजें बहुत प्रिय होती है. जिसके दान से व्यक्ति सौभाग्य को प्राप्त होता है.
हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक अक्षय तृतीया के दिन जल का कोई पात्र जैसे गिलास, घड़ा आदि का दान देना चाहिए. इन चीजों का दान करना बहुत शुभ होता है. अक्षय तृतीया के दिन गाय की सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन गुड़ का दान करना चाहिए अर्थात गाय को जल में गुड़ मिलाकर किसी गाय को पिलायें. इस दिन आटे में गुड़ मिलाकर या रोटी में गुड़ लपेटकर गाय को खिलाना चाहिए. ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. उनके चरणों में जौ अर्पित करना चाहिए. हिंदू धर्म में अन्न दान को महादान की संज्ञा दी गई है. हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के दिन अन्न का दान करना बहुत ही पुण्य फलदायी माना गया है.
भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था. मान्यता है कि भारत के अधिकांश ग्राम परशुराम जी ने ही बसाए थे. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेल दिया. इससे नई भूमि का निर्माण हुआ. इसी कारण कोंकण, गोवा और केरल मे भगवान परशुराम की विशेष पूजा की जाती है. उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है.
परशुराम जी प्रकृति प्रेमी और सरंक्षक थे. वे जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाए रखना था. परशुराम जी मानना था कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे. परशुराम जी को भार्गव के नाम से भी जाना जाता है. परशुराम जी पशु-पक्षियों की भाषा को समझते थे और उनसे बात कर सकते थे. कहा जाता है कि कई खूंखार जानवर भी उनके छूने मात्र से उनके मित्र बन जाते थे. परशुराम जी मेधावी थे, उन्होंने बचपन में कई विद्याओं को सीख लिया था. परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कई अस्त्र शस्त्र प्रदान किया. भगवान शिव ने अपना परशु परशुराम को प्रदान किया था. यह अस्त्र परशुराम को बहुत प्रिय था. इस अस्त्र को वे हमेशा अपने साथ रखते थे. इसी कारण इन्हें परशुराम कहा गया.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक परशुराम जी एक मात्र ऐसे अवतार हैं, जो आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। कल्कि पुराण में उल्लेख किया गया है कि जब कलयुग में भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि अवतरित होंगे, तो परशुराम जी ही उनको अस्त्र-शस्त्र में पारंगत करेंगे।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया को अक्षय तृतीया मनाई जाती है. हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया को अत्यंत पावन, मंगलकारी और कल्याणकारी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाए उसका फल कई गुना अधिक मिलता है. इस दिन जाप, यज्ञ, पितृ-तर्पण और दान-पुण्य करना फलदायी होता है.
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णुजी को चावल चढ़ाना शुभ होता है. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजन कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ भोजन अर्पित किया जाता है. वहीं, खेती करने वाले लोग इस दिन भगवान को इमली चढ़ाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से साल भर अच्छी फसल होती है.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सोने या उससे बने आभूषण खरीदने की भी परंपरा है. माना जाता है कि इस दिन सोना खरीदने से सुख-समृद्धि आती है और भविष्य में धन की प्राप्ति भी होती है. यही वजह है कि इस दिन अधिकतर लोग सोना खरीदते हैं. ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति भी होती है. इस साल अक्षय तृतीया 14 मई के दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी.
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो भी दान किया जाता है उसका पुण्य कई गुना ज्यादा मिलता है. इस दिन घी, शक्कर, अनाज, फल-सब्जी, इमली, कपड़े और सोने-चांदी का दान करना चाहिए. कई लोग इस दिन इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे कि पंखे और कूलर का दान भी करते हैं.
अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त — अक्षय तृतीया की तिथि: 14 मई 2021 — अक्षय तृतीया पूजा का शुभ मुहूर्त- सुबह 5:38 से दोपहर 12:18 तक. – कुल अवधि 6 घंटे 40 की मिनट होगी. – तृतीया तिथि प्रारंभ- 14 मई 2021 को सुबह 05:38 बजे से – तृतीया तिथि समाप्त-15 मई 2021 को सुबह 07:59 तक
राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का स्थापना दिवस 14 मई को मनाया जाता है, राष्टीय अध्यक्ष परम आदरणीय स्वामी राजराजेश्वर गिरी जी महाराज के निर्देशानुसार राष्टीय संत सुरक्षा परिषद द्वारा देशभर में इस दिन दुर्गा माता जी, हनुमान जी, भारत माता का पूजन किया जाता है उत्तराखण्ड प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर जोशी ने कहा कि 14 मई 2021 शुक्रवार को वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का स्थापना दिवस उत्तराखण्ड में भी मनाया जायेगा,
राष्टीय अध्यक्ष परम आदरणीय स्वामी राजराजेश्वर गिरी जी महाराज ने राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का स्थापना दिवस 14 मई को प्रेषित अपने संदेश में सभी भक्तो को आशीर्वाद दिया है
प्रदेश महासचिव राम रतन सैनी ने ऋषिकेश से बताया कि उत्तराखण्ड की प्रदेश कार्यकारिणी तथा जनपदो के जिला अध्यक्षो को इस संबंध में सूचित कर दिया गया है कुमायूं मण्डल अध्यक्ष, तथा उधम सिेह नगर जनपद अध्यक्ष , नैनीताल जनपद अध्यक्ष, बागेश्वर जनपद अध्यक्ष, टिहरी गढवाल जनपद अध्यक्ष, चमोली जनपद अध्यक्ष तथा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अपने अपने शहरो में राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का स्थापना दिवस पूजन करके मनायेगे
राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का मुख्यालय श्रीकश्यप ऋषि आश्रम, अंकलेश्वर, भरोच, गुजरात में है, जहां राष्टीय अध्यक्ष परम आदरणीय स्वामी राजराजेश्वर गिरी जी महाराज विराजमान है, राष्टीय संत सुरक्षा परिषद का संगठन देश के अनेक राज्यो में कार्य कर रहा है, राष्टीय संत सुरक्षा परिषद के कार्यकारी राष्टीय अध्यक्ष श्री रामेश्वर गिरी जी के अथक प्रयासो से पूरे देश के अलावा उत्तराखण्ड में भी संगठन ने कम समय में ही मजबूती स्थापित की है,