हे, सच्चिदानंद,आपने कहा था- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
14 May 2021: Himalayauk Newsportal & Print Media Presents # Execlusive Report By Chandra Shekhar Joshi
गीता के अध्याय 11, श्लोक -32 में कृष्ण कह रहे है अर्जुन से कि सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने वाला महाकाल मैं ही हूँ। कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताःप्रत्यनीकेषु योधाः ॥ (32)कृष्ण ने कहा – ‘मैं इस सम्पूर्ण संसार का नष्ट करने वाला महाकाल हूँ, इस समय इन समस्त प्राणियों का नाश करने के लिए लगा हुआ हूँ, यहाँ मौजूद लोगों को तुम अगर नहीं मारोगे तो भी वे मरेंगे क्योंकि काल उन्हें मारना चाहता है।’
कुरूक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने यह कहा था
‘सहस्त्रों सूर्यों का ताप मेरा ही ताप है। एक साथ सहस्त्रों ज्वालामुखियों का विस्फोट मेरा ही विस्फोट है। शंकर के तीसरे नेत्र की प्रलयंकर ज्वाला मेरी ही ज्वाला है। शिव का तांडव मैं हूँ। प्रलय मैं हूँ। लय मैं हूँ। विलय मैं हूँ। प्रलय के वात्याचक्र का नर्तन मेरा ही नर्तन है। जीवन मृत्यु मेरा ही विवर्तन है। ब्रह्माण्ड मैं हूँ। मुझमें ब्रह्माण्ड है। संसार की सारी क्रियमाण शक्ति मेरी भुजाओं में है। मेरे पगों की गति ही धरती की गति है।’
आपने वह सब कुछ किया, जो समाज के लिए जरूरी था। आपने सभी कृत्य धर्म को विजयी बनाने के लिए किये थे,
हे, वासुदेव, आपने यह भी तो कहा था-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ….कि जब जब धर्म की हानि होगी आप अवतार लेंगे।
हे, सच्चिदानंद! कितने ही धर्म परायण इस दुनिया से विदा हो गए। इसको अब रोकिये-
फोटो- सन् १९०० विश्वरूप लिथोग्रॉफ। तीन लोको के साथ विश्वरूप: स्वर्ग (सिर से पेट तक), पृथ्वी (ऊसन्धि), अधोलोक (पैर) सन् १८००-५०, जयपुर
भगवान के इस अविनाशी रूप को देख कर भयभीत हो गए और भगवान से उनके वासुदेव वाले मनुष्य रूप में वापस लौट आने की प्रार्थना की
महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने बृहत विराट रूप का दर्शन कराया था। इसके अलावा बहुत कम ही लोग यह जानते हैं कि कन्हैया ने किसे और कब-कब अपने ईश्वररूप का दर्शन कराया था।
भगवान के इस अविनाशी रूप को देख कर भयभीत हो गए और भगवान से उनके वासुदेव वाले मनुष्य रूप में वापस लौट आने की प्रार्थना की । भगवान श्री कृष्ण का चर्तुभुज रूप को देख कर अर्जुन ने उनके दर्शन किए। इसके बात वो भगवान के इस अविनाशी रूप को देख कर भयभीत हो गए और भगवान से उनके वासुदेव वाले मनुष्य रूप में वापस लौट आने की प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान अपने सामान्य रूप में लौट आए। … भगवान ने अर्जुन से कहा मैं तुम में हूं और दुर्योधन में भी मैं ही हूं।
भगवान के इस अविनाशी रूप को देख कर भयभीत हो गए और भगवान से उनके वासुदेव वाले मनुष्य रूप में वापस लौट आने की प्रार्थना की । भगवान श्री कृष्ण का चर्तुभुज रूप को देख कर अर्जुन ने उनके दर्शन किए। इसके बात वो भगवान के इस अविनाशी रूप को देख कर भयभीत हो गए और भगवान से उनके वासुदेव वाले मनुष्य रूप में वापस लौट आने की प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान अपने सामान्य रूप में लौट आए। … भगवान ने अर्जुन से कहा मैं तुम में हूं और दुर्योधन में भी मैं ही हूं।
विश्वरूप अथवा विराट रूप भगवान विष्णु तथा कृष्ण का सार्वभौमिक स्वरूप है। इस रूप का प्रचलित कथा भगवद्गीता के अध्याय ११ पर है, जिसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध में विश्वरूप दर्शन कराते हैं। यह युद्ध कौरवों तथा पाण्डवों के बीच राज्य को लेकर हुआ था। इसके संदर्भ में वेदव्यास कृत महाभारत ग्रंथ प्रचलित है।
महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने बृहत विराट रूप का दर्शन कराया था। इसके अलावा बहुत कम ही लोग यह जानते हैं कि कन्हैया ने किसे और कब-कब अपने ईश्वररूप का दर्शन कराया था।
#अक्रूरजी को दिए दर्शन # उद्धव को दिए दर्शन # राजा मुचुकुंद ने किए दर्शन # शिशुपाल ने किए दर्शन # धृतराष्ट्र की सभा मेंअर्जुन को कराए श्रीहरि के विराट रूप के दर्शन # महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को कराए तीसरी बार दर्शन # बाद में लौटते वक्त रास्ते में अर्जुन ने श्रीकृष्ण ने एक बार पुन: उनके उन्हीं रूप के दर्शन की अभिलाषा की # तो उन्होंने अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान करके पुन: अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए थे #
1. अक्रूरजी को दिए दर्शन :अक्रूरजी जब श्रीकृष्ण को मथुरा ले जाने के लिए गोकुल आए तो वह यह सोचकर आए थे कि मुझे कंस से श्रीकृष्ण की जान की रक्षा करना है। वह सदा वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण की कंस से रक्षा की ही चिंता करते रहते थे। वह इस बात पर कभी विश्वास नहीं करते थे कि श्रीकृष्ण भगवान है जबकि उन्होंने उनके चमत्कार के कई किस्से सुन रखे थे। फिर भी उनके मन में शंका रहती थी। फिर बलराम और श्रीकृष्ण को मथुरा ले जाते वक्त उन्होंने ने श्रीकृष्ण को अपनी योजना बताई की किस तरह मैं और मेरी यादव सेना तुम्हें कंस से बचाएगी। उस वक्त श्रीकृष्ण ने कहा था कि अक्रूरजी आप हमारी सुरक्षा की चिंता न करें, लेकिन अक्रूरजी उन्हें बालक समझकर उनकी बात टाल गए तब एक जगह रास्ते में यमुना के किनारे अक्रूरजी अपनी योजना के तहत यमुना ने स्नान करने के लिए डूबकी लगाई तब उन्हें यमुना के भीतर जल में श्रीकृष्ण नजर आए वह यह देखकर अचंभित हो गए।
फिर उन्होंने जल से बाहर निकलकर किनारे पर रथ पर सवार श्रीकृष्ण को देखा तो कुछ समझ में नहीं आया। उन्होंने सोचा ये उनका भ्रम हो। इस तरह उन्होंने दो बार डूबकी लगाई तब भी यही हुआ तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि श्रीकृष्ण दो जगह एक साथ कैसे हो सकते हैं फिर जब उन्होंने तीसरी डूबकी लगाई तो श्रीकृष्ण ने जल के भीतर ही उनसे पूछा काका यहां क्या कर रहे हो? यह देखकर अक्रूरजी दंग कर जल में ही तब उन्होंने श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन किए। बाद में जल से बाहर निकलकर वे श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़े और कहते लगे कि प्रभु अब मेरी चिंता समाप्त हो गई। अब मुझे आपकी चिंता नहीं रही। जगत की सुरक्षा करने वाले की मैं क्या सुरक्षा कर सकता हूं।
2. उद्धव को दिए दर्शन : इसी तरह श्रीकृष्ण के चचेरे भाई उद्धव के मन में भी शंका थी। वे उनसे ज्ञान और प्रेम पर वाद-विवाद करते थे और श्रीकृष्ण से कहते थे कि तुमने गोकुल और वृंदावन की भोलीभाली राधा और ग्वालनों को अपनी माया से प्रेमजाल में फांस रखा है। इस पर श्रीकृष्ण ने उद्धव को उनके ज्ञान के अहंकार को समाप्त करने के लिए एक पत्र लिखकर उन्हें गोकुल इसलिए भेजा था कि वे राधा और ग्वालनों को मेरे प्रेमजाल से निकलकर उन्हें ब्रह्मज्ञान दें, परंतु उल्टा राधा ने ही उन्हें प्रेम की महत्ता को समझाकर उनके ज्ञान चक्षु खोल दिए थे। तब उद्धवजी राधा का नाम जपते हुए श्रीकृष्ण के पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें राधा सहित अपने विष्णुरूप के दर्शन दिए थे।
3. राजा मुचुकुंद ने किए दर्शन :जब कालयवन ने एक गुफा में सतयुग से सोए हुए राजा मुचुकुंद को जगा दिया था तो उनके देखते ही कालयवन भस्म हो गया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने राजा मुचुकुंद को अपने वृहद रूप के दर्शन देकर उन्हें हिमालय में तपस्या करने के लिए भेज दिया था।
4. शिशुपाल ने किए दर्शन : जब पांडवों के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण की अग्रपूजा की घोषणा की गई थी तब उनकी बड़ी बुआ के लड़के शिशुपाल ने उन्हें ईश्वर या भगवान मानने से इनकार करके उनका अपमान किया था। तब श्रीकृष्ण ने कहा था कि तुम्हारे 100 अपराध क्षमा करने का मैं तुम्हारी मां को वचन दे चुका हूं अत: सावधान तुम्हारे 99 अपराध हो चुके हैं। लेकिन शिशुपाल नहीं माना तब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया था। शिशुपाल के मृत शरीर से उसकी आत्मा श्रीहरि के पार्षद जय के रूप में जब बाहर निकली और उसने श्रीकृष्ण को देखा तब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को अपने बृहद विराट रूप के दर्शन कराकर कहा था कि तुम अब मुक्त हो चुके हो अत: तुम पुन: मेरे धाम लौट जाओ।
5. धृतराष्ट्र की सभा में :जब महाभारत युद्ध के समय एक बार श्रीकृष्ण कौरव सभा में शांतिदूत बनकर गए तो दुर्योधन उन्हें बंदी बनाकर वहीं उनको घेरकर मारना चाहता था परंतु तुरंत ही उन्होंने कौरवों की भरी सभा में अपने बृहद रूप का ऐसा प्रदर्शन किया कि सभी की आंखें तेज प्रकार से बंद हो गए। उनके इस विराट रूप के दर्शन पितामह भीष्म, विदुर और द्रोण ही कर सके थे। बाकी तो यह देखकर अंधे जैसे हो गए थे और दुर्योधन वह शकुनि आदि भयभित होकर भाग गए थे।
6. अर्जुन को कराए श्रीहरि के विराट रूप के दर्शन : सुभद्रा प्रसंग के समय भगवान श्रीकृष्ण ने दो जगह अपने बृहद विराट रूप के अर्जुन को दर्शन कराए थे। पहला जब द्वारिका में अर्जुन द्वारा एक ब्राह्मण के तीन बालकों की जान नहीं बचाने पर अर्जुन यमलोक में चले गऐ थे लेकिन वहां से भी उन्हें निराश होना पड़ा था तब प्रतिज्ञा अनुसार अर्जुन खुद को अग्नि में भस्म करने वाले था उस वक्त श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि चलो अब हम मिलकर प्रयास करते हैं और फिर श्रीकृष्ण अर्जुन को लेकर सात पर्वत लांघने के बाद एक अंधेरी गुफा में ले गए और अंत में उस गुफा के पार उन्होंने अर्जुन को श्रीहरि विष्णु के बृहद विराट रूप के कृष्ण रूप में ही दर्शन कराए थे। और श्रीकृष्ण ने अपने ही अनंत स्वरूप को प्रणाम किया था।
7. बाद में लौटते वक्त रास्ते में अर्जुन ने श्रीकृष्ण ने एक बार पुन: उनके उन्हीं रूप के दर्शन की अभिलाषा की तो उन्होंने अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान करके पुन: अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए थे।
8. महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को कराए तीसरी बार दर्शन : महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन कई तरह की शंका और कुशंकाओं से घिर जाता है तब श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने बृहत विराट रूप का दर्शन कराया।
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