भाजपा के नेता पैम्फलेट लेकर जा रहे है, देश में जगी उत्सुकता
भाजपा के नेता पत्रकारों (एंकरों) के घर भी जा रहे हैं. पैम्फलेट देते हैं और फ़ोटो खिंचाते हैं. पत्रकारों के अलावा कुछ मशहूर हस्तियों के घर जा रहे हैं जैसे पूर्व सेनाध्यक्ष, डॉक्टर, प्रोफ़ेसर. वैसे इन एंकरों को प्रेस कांफ्रेंस में पैम्फलेट मिला ही होगा. नहीं मालूम कि इन्होंने या किसी गणमान्य ने अपने सवाल पूछे या नहीं. पूछने की हिम्मत भी हुई या नहीं. प्रचार के लिए मेहनत करने और अपनी बात को लोगों तक ले जाने में भाजपा का जवाब नहीं. हार-जीत के अलावा विपक्ष इस मामले में भाजपा की रणनीति को मैच नहीं कर सकता. इन तस्वीरों से एक मैसेज तो जाता ही है कि शहर या समाज के कथित रूप से ये बड़े लोग भाजपा के कार्य से प्रभावित हैं या भाजपा इनसे संपर्क में हैं. अमित शाह तथाकथित संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के घर गए थे. कश्यप जी को बताना चाहिए कि उत्तराखंड और अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन को लागू करने के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया. क्या आपने इस फ़ैसले का समर्थन किया था?
या मोदी सरकार के क़दम का समर्थन किया था? इस दौरान आपने संवैधानिक प्रश्नों पर कितनी आलोचना की? क्या आपने तब मोदी सरकार से सवाल किए थे या संविधान की समझ पर राजनीतिक चालाकी का पर्दा डाल कर समर्थन कर रहे थे? पत्रकारों ने सुभाष कश्यप से नहीं पूछा होगा. बहरहाल जो नहीं हुआ सो नहीं हुआ. इन लोगों से पूछने का एक नया दौर शुरू हो सकता है अगर जनता भी इनके घर अपने सवालों का पैम्फलेट लेकर जाने लगे.
2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी कमर कस ली है. इसी को लेकर आज बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच बैठक हुई. बताया जा रहा है कि हरियाणा के सूरजकुंड में हुई ये बैठक बंद कमरे में हुई. इस बैठक में RSS की ओर से सरकार्यवाह भैयाजी जोशी और सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने हिस्सा लिया. तो वहीं बीजेपी की सचिव और महासचिव ने हिस्सा लिया. संघ नेतृत्व सरकार की नीतियों को लेकर तो संतुष्ट है, लेकिन उसके कामकाज को लेकर जनता में बन रही धारणा से चिंतित है. जनता के बीच सरकार की जो धारणा बन रही है, उसको बदलने के लिए संघ बीजेपी सरकार के सामाजिक कार्यों का बखान अपने स्वयं सेवकों के ज़रिए करने की तैयारी में है. इस बैठक में भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, लघु उद्योग भारती और स्वदेशी जागरण मंच जैसे संघ के आर्थिक समूह अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे. इसके अलावा मोदी सरकार की विभिन्न आर्थिक नीतियों के मामले में अपना फीडबैक भी दिया.
नरेन्द्र मोदी का सपना- ः मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी ने सुनाया-
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना है कि जब भारत आजादी के ७५ वर्ष मना रहा हो यानि वर्ष २०२२ तक उन्नत और नए भारत का निर्माण हो जाए।
देहरादून (ब्यूरो)। विकास की मुख्यधारा से पिछडे देश के सभी निर्धन एवं गरीब व्यक्तियों के आर्थिक एवं सामाजिक रूप से जीवन स्तर को ऊंचा उठाना केन्द्र और राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता है. यह बात मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केन्द्र सरकार के सफलतम चार वर्ष पूरे होने पर ताज पैलेस नानकमत्ता में आयोजित केन्द्रीय योजनाओं के लाभार्थियों के सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग करते हुए कही। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना है कि जब भारत आजादी के ७५ वर्ष मना रहा हो यानि वर्ष २०२२ तक उन्नत और नए भारत का निर्माण हो जाए। उन्होंने कहा कि नवभारत निर्माण का स्वरूप ऐसा हो कि जिसमें गरीबी न रहे और सबके पास रहने के लिए अपना घर हो जिसमें बिजली, पानी, शौचालय, गैस आदि आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध हों। उन्होंने देश को गरीबी से मुक्त करने हेतु प्रधानमंत्री द्वारा किये जा रहे पयासों के लिए बधाई दी. मुख्यमंत्री ने कहा कि ऊधम सिंह नगर जिले में उज्ज्वला, सौभाग्य, उजाला योजना के अन्तर्गत रजिस्टर्ड होने वाले परिवारों को १५ अगस्त तक पूरी तरह योजनाओं से लाभांवित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के कुशल नेतृत्व के कारण विश्व में भारत माता की जय-जयकार होती है तथा भारत ने अपनी शाक्ति का एहसास दुनिया को कराया ळें मुख्यमंत्री ने कहा कि विदेश नीति में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने कमाल कर दिखाया है तथा देश के किसी भी नागरिक के विदेश में फंसे होने पर उसे तत्काल देश में लाने का काम किया जाता है। नितिन गडकरी के नेतृत्व में प्रत्येक दिन २७ किमी राजमार्ग का निर्माण किया जा रहा है जो पहले रोज सिर्फ चार किमी बनता था. गडकरी ने अगले वर्ष से प्रतिदिन ४० किमी राजमार्ग निर्माण का लक्ष्य तय किया है।
उत्तराखण्ड में डबल इंजन तेल न होने के कारण खडा है- जनता में जबर्दस्त प्रतिक्रिया है- कर्ज पर सरकार चल रही है-
SBI ने सबसे ज्यादा बट्टे खाते में डाली रकम—– क्या यह भी है पम्पलेट में ?
फंसे कर्जों यानी ग़ैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) और भारी नुकसान होने के बाद बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1,44,093 करोड़ रुपये के बैड लोन को राइट ऑफ (बट्टा खाते में डालना) किया है. बैंकों द्वारा बट्टा खाते में डाली गई यह राशि पिछले साल की तुलना में 61.8 प्रतिशत ज्यादा है. पिछली साल बैंकों द्वारा 89,048 करोड़ रुपये बट्टा खाते में डाले गए थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से पिछले 10 सालों में निजी और सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों ने 31 मार्च 2018 तक 4,80,093 करोड़ रुपये के बैड लोन बट्टा खाते में डाले. इस राशि का 83.4 प्रतिशत या 400,584 करोड़ रुपये पब्लिक सेक्टर बैंकों का था. वहीं, पिछले 10 वर्षों में निजी बैंकों द्वारा कुल बट्टा खाते में डाली गई राशि 79,490 करोड़ रुपये थी. यह आंकड़ें रेटिंग एजेंसी आईसीआरए (इंवेस्टमेंट इनफॉरमेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी) द्वारा जारी किए गए हैं. गौरतलब है कि बैंक सामान्यतया उन कर्जों को राइट आॅफ या बट्टा खाते में डालते हैं जिनकी वसूली करना उनके लिए मुश्किल होता है. कॉरपोरेशन बैंक के पूर्व चेयरमैन प्रदीप रामनाथ के मुताबिक, यह बैंकों की एक नियमित प्रकिया है. जब बैड लोन को राइट आॅफ किया जाता है तो वह बैंक के बही खाते से बाहर चला जाता है. इससे बैंक को कर लाभ मिलता है. हालांकि, कर्ज के बट्टा खाते में जाने के बाद भी बैंक वसूली उपायों को जारी रखते हैं.
वित्त वर्ष 2016-17 में सार्वजनिक बैंकों ने 81,683 करोड़ रुपये मूल्य की गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) को बट्टे खाते में डाला. इसी अवधि में संचयी आधार पर उन्हें 473.72 करोड़ रुपये का एकीकृत शुद्ध लाभ हुआ. रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार 2017-18 में केवल एसबीआई ने ही 40,196 करोड़ रुपये मूल्य के फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डाला. केनरा बैंक ने 8,310 करोड़ रुपये, पंजाब नेशनल बैंक ने 7,407 करोड़ रुपये, बैंक आफ बड़ौदा ने 4,948 करोड़ रुपये फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डाला.
इसके अलावा इंडियन ओवरसीज बैंक ने 10,307 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ इंडिया ने 9,093 करोड़ रुपये, आईडीबीआई बैंक ने 6,632 करोड़ रुपये व इलाहाबाद बैंक ने 3,648 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले. आरबीआई ने इन बैंकों व 7 अन्य बैंकों के खिलाफ त्वरित सुधार कार्रवाई रुपरेखा के तहत कार्रवाई शुरू की है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार बैंकों ने 2013-14 में 34,409 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली.
जिन युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है, आयोग परीक्षा लेकर रिज़ल्ट नहीं निकाल रहे हैं, पास करके नियुक्ति पत्र नहीं दिया जा रहा है, नौकरी में लेकर निकाल दिया जा रहा है, कालेज में प्रोफ़ेसर नहीं हैं, क्लास ठप्प हैं, परीक्षाएं या तो होती नहीं या फिर मज़ाक़ हो चुकी हैं, किसान से लेकर ठेके पर काम करने वाले लोग सब इन एक लाख लोगों के घर जाएं जिनकी सूची भाजपा के पास है.
सबको बारी-बारी से इनके घर जाना चाहिए यह बताने के लिए कि आपको जो पैम्फलेट दिया गया है, ज़रा देखिए उसमें हमारी समस्या है या नहीं, हमारे लिए कोई बात है या नहीं. युवा पूछें कि जो पैम्फलेट अमित शाह देकर गए हैं उसमें मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले का ज़िक्र है जिसकी जांच या गवाही से जुड़े क़रीब पचास लोगों की संयोगवश दुर्घटना में या असामयिक मौत हो चुकी है?यह कैसा संयोग है कि एक केस से जुड़े पचास लोगों की मौत हो जाती है? मीडिया में छप भी रहा है मगर सन्नाटा पसरा है. बिहार के कई हज़ार करोड़ के सृजन घोटाले के मुख्य आरोपियों की गिरफ़्तारी का वारंट आज तक नहीं आया, उसका ज़िक्र है कि नहीं.
नोटबंदी के दौरान तमिलनाडु में पचास हज़ार मंझोले उद्योग बंद हो गए उसका ज़िक्र है या नहीं. बैंक कैशियरों ने अपनी जेब से नोटबंदी के दौरान जुर्माना दिया, उसका ज़िक्र है या नहीं.
नोटबंदी के दौरान कैशियरों पर अचानक कई करोड़ नोट गिनने का दबाव डाला गया, उनसे चूक होनी ही थी. जिसकी भरपाई कैशियरों ने कई करोड़ रुपये अपनी जेब से देकर की. कैशियरों ने जाली नोट के बदले अपनी जेब से जुर्माना भरा.
नोटबंदी के झूठ का नशा इतना हावी था कि कैशियरों ने भी सरकार से अपना पैसा नहीं मांगा. बैंक सिस्टम के भीतर सबसे कम कमाने वाला लूट लिया गया मगर उसने और उनके साथियों ने उफ़्फ़ तक नहीं की.
बैंक सेक्टर भीतर से ढह गया और रेल व्यवस्था चरमरा चुकी है, उसका ज़िक्र पैम्फलेट में है या नहीं. छह एम्स में सत्तर फ़ीसदी पढ़ाने वाले डॉक्टर नहीं हैं, अस्सी फ़ीसदी सपोर्ट स्टाफ़ नहीं है. हमारे देश में डॉक्टर कैसे बन रहे हैं और मरीज़ों का उपचार कैसे हो रहा है इसका ज़िक्र है या नहीं.
हर राज्य में पुलिस बल ज़रूरी संख्या से कई हज़ार कम हैं, वहां भर्ती हो रही है या नहीं. न्याय व्यवस्था का भी बुरा हाल है. अगर ये सब नहीं है तो उस पैम्फलेट में क्या है जो बीजेपी के नेता पत्रकारों और सेनाध्यक्षों के घर लेकर जा रहे हैं. कई महीने से दलितों के घर खाना खा रहे थे, वहां तो ये वाला पैम्फलेट लेकर नहीं गए! किसानों को भी ये पैम्फलेट दे आना चाहिए.
यह दृश्य ही अपने आप में शर्मनाक है कि एंकर अपने घर में किसी सत्तारूढ़ दल का पैम्फलेट चुपचाप और दांत चियारते हुए स्वीकार कर रहा है. पर दौर बदल गया है. अब जो बेशर्म है उसी की ज़्यादा ज़रूरत है पत्रकारिता में. क्या आपने देखा है कि पैम्फलेट स्वीकार करने वाले एंकरों ने उस पर सवाल करते हुए कुछ लिखा या बोला हो. अगर आप इसी तरह मीडिया को ध्वस्त होने देंगे तो फिर आपके लिए क्या बचेगा? आपकी आवाज़ को कौन पूछेगा.
साभार- संयुक्त आलेख-