कोरोना: वायरस एक मुर्दा ;छूते ही ज़िंदा & क्लोरोक्वीन न ले

फिलहाल, क्लोरोक्वीन को कोरोना की दवा न माना जाए और इसका इस्तेमाल आप न करें।

कोरोना: वायरस यानी एक मुर्दा जो आपके छूते ही ज़िंदा हो जाता है आख़िर वायरस है क्या और यह कैसे फैलता है? HIMALAYAUK कुछ वायरसों को हराना ख़ासा मुश्किल होता है, ख़ासकर उन लोगों के लिए जिनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही जर्जर है। कोरोना वायरस से डरें नहीं। बस सतर्क रहें। आपस में दूरी बनाए रखें और नियमित अंतराल पर हाथ साबुन से धोते रहें। लेकिन ध्यान रहे – बीस सेकंड तक रगड़-रगड़कर वरना वायरस का चिकनाई वाला खोल हटेगा नहीं। ;;;;नीरेंद्र नागर

गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Special Report

किसी जीव के संपर्क में आते ही वायरस धड़ाधड़ अपनी संख्या बढ़ाने लगता है और इस तरह उस मेज़बान जीव के शरीर में कोहराम मचा देता है। जीव के संपर्क में आते ही उसकी संख्या क्यों बढ़ने लगती है, जैसे हर चाबी से हर ताला नहीं खोला जा सकता, वैसे ही हर टीके या दवा से हर वायरस का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। वायरस रूपी इन रक्तबीजों को कैसे नष्ट किया जा सकता है। इसके दो तरीक़े हैं।

क्या मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन से कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज भी किया जा सकता है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि दिल्ली समेत देश के कई बाज़ारों से यह दवा गायब हो चुकी है, ढूंढने पर भी नहीं मिलती है। तो क्या लोग कोरोना से बचने के लिए क्लोरोक्वीन ले रहे हैं? यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो इसे तुरन्त रोक दीजिए।

पहला और बेहतर तरीक़ा तो यह है कि किसी वायरस के आपके शरीर की किसी कोशिका में प्रवेश करने से पहले ही उसे नष्ट किया जाए। बहुत सारे वायरस साबुन से नष्ट हो जाते हैं। साबुन से वे इसलिए नष्ट हो जाते हैं कि वायरस का बाहरी खोल फ़ैट यानी चिकनाई से बना होती है जो साबुन से नष्ट हो जाता है जैसे तेल वाले हाथ साबुन से साफ़ हो जाते हैं। लेकिन एक बार यह डॉन जीवित कोशिका में प्रवेश कर गया तो उसे मारना नामुमकिन न सही, मुश्किल ज़रूर हो जाता है।

शरीर वायरस के इस हमले का दो तरह से मुक़ाबला करता है। एक, वायरस के हमले के साथ ही आपके शरीर का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है और खोज-खोज कर वायरस को नष्ट करता है ताकि वह फैलने न पाए। जैसे संसद हमले में हमारे सुरक्षाकर्मियों ने आतंकवादियों को मारा था, वैसे ही। जब सारे आतंकी वायरस हमारे शरीर के सुरक्षाकर्मियों द्वारा मार डाले जाते हैं तो ख़तरा समाप्त हो जाता है और शरीर वायरस से मुक्त हो जाता है। दूसरा तरीक़ा यह कि वायरस ने जिन कोशिकाओं पर हमला कर उनपर नियंत्रण कर लिया हो, उन कोशिकाओं को ही नष्ट कर दिया जाए। यह तरीक़ा वैसा ही है जैसे कि कोई आतंकवादी किसी मकान में छुप जाए तो उसको मार गिराने के लिए उस मकान को ही नष्ट कर दिया जाता है।

किसी जीव के लिए यह आदर्श उपाय नहीं है क्योंकि इससे उसकी अपनी कोशिकाओं का नुक़सान होता है लेकिन वायरस के विस्तार को रोकने के लिए कई बार यह अनिवार्य हो जाता है। यह ‘युद्ध’ शरीर के लिए बहुत सारी समस्याएँ पैदा कर देता है जिसका परिणाम होता है सूजन, बुख़ार, बलग़म, सिरदर्द, गले में दर्द आदि। एम्स के एक ब्रोशर के अनुसार नए कोरोना वायरस से संक्रमित 80% लोग बिना दवा के कुछ दिनों में आसानी से ठीक हो जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में कोरोना वायरस के जितने भी केस अब तक मिले हैं, उनमें मृतकों की संख्या 5% से ज़्यादा नहीं है। दूसरे शब्दों में 95% रोगी इस वायरस का शिकार होने के बाद भी ठीक हो रहे हैं। यह टिप्पणी लिखे जाने तक दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के क़रीब 3.8 लाख मामले प्रकाश में आए हैं जिनमें 1.02 लाख ठीक हो चुके हैं, बाक़ी का इलाज चल रहा है और 16 हज़ार के आसपास की मौत हुई है।

क्या मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन से कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज भी किया जा सकता है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि दिल्ली समेत देश के कई बाज़ारों से यह दवा गायब हो चुकी है, ढूंढने पर भी नहीं मिलती है। तो क्या लोग कोरोना से बचने के लिए क्लोरोक्वीन ले रहे हैं? यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो इसे तुरन्त रोक दीजिए।

 दरअसल सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म वॉट्सऐप पर एक मैसेज वायरल हो गया, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप यह कहते हुए दिखते हैं कि उन्होंने अमेरिकी फूड्स एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़डीए) से कहा है कि वह कोरोना के इलाज के लिए क्लोरोक्वीन के इस्तेमाल की अनुमति जल्दी से दे दे।  पर इसके तुरन्त बाद एफ़डीए ने सफ़ाई देते हुए इससे इनकार कर दिया।

 हालांकि इस पर प्रयोग कुछ प्रयोग हुए हैं या हो रहे हैं, पर अब तक कोई नतीजा नहीं आया है, जिससे इस दावे की पुष्टि होती हो कि इस दवा से कोरोना का इलाज किया जा सकता है।

 फ़्रांस में एक छोटे समूह में हुए प्रयोग के बाद स्पेसएक्स कंपनी के प्रमुख एलन मस्क ने ट्वीट किया कि कोरोना के इलाज में क्लोरोक्वीन पर विचार किया जा सकता है। फ्रांस में 20 लोगों के एक समूह पर क्लोरोक्वीन का प्रयोग किया गया।  दरअसल हुआ यह कि कुछ लोगों को 200 मिलीग्राम हाइड्रोक्लोरोक्वीन सल्फ़ेट 10 दिन तक दी गई। इसमें से 70 प्रतिशत लोगों को राहत मिली। लेकिन छह लोगों को हाइड्रोक्लोरोक्वीन सल्फ़ेट के साथ-साथ एज़ीथ्रोमाइसिन भी दिया गया है। ये सभी पूरी तरह 6 दिन में वायरस से ठीक हो गए। 

 इस प्रयोग को  पाइलट तो माना जा सकता है, पर इसके नतीजे को अंतिम नहीं माना जा सकता है। एफ़डीए ने इसे सही नहीं माना। इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है। क्लोरोक्वीन पर दूसरी जगहों पर भी प्रयोग हुए हं। मिनेसोटा विश्वविद्यालय ने भी इस पर शोध किया है, पर उसका नतीजा अभी नहीं पता चला है। इसलिए फ़िलहाल, क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल कोरोना के इलाज के रूप में नहं करना चाहिए।

दिल्ली में ठीक इसका उल्टा हुआ। दिल्ली में लोग दवा दुकानों पर टूट पड़े और बड़ी मात्राा में क्लोरोक्वीन खरीद लिया। दरअसल क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल सदियों पहले लातिन अमेरिकी देश पेरू में बुखार ठीक करने के लिए किया जाता था। भारत में अंग्रेजों ने इससे मलेरिया का इलाज शुरू किया और सफल रहे। यह सिनकोना की छाल से बनाया जाता है, जिसकी खेती पश्चिम बंगाल के दुआर के इलाक़ों में बहुतायत और आसानी से की जाती है। यह सस्ता है और आसानी से उपलब्ध भी है। दिल्ली और दूसरी जगहों से जो लोग यह दवा खरीद ले गए, उनके ऊपर इसका क्या असर पड़ा, यह पता चल जाए तो बड़ी बात है।  पर फिलहाल, क्लोरोक्वीन को कोरोना की दवा न माना जाए और इसका इस्तेमाल आप न करें।

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