अजेय दिखने वाली बीजेपी की यह दुर्दशा महाराष्ट्र में कैसे हुई; अन्य राज्यो में दूरगामी असर ?
मोदी-शाह की पसंद देवेंद्र फडणवीस केे कारण बीजेपी की फजीहत- कुछ अन्य राज्यो में भी यही स्थिति- महाराष्ट्र इकाई से लेकर केंद्रीय नेतृत्व ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन सरकार फिर भी नहीं बन सकी। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के दरबार में भी हाजिरी लगाई लेकिन शिवसेना मुख्यमंत्री पद के बंटवारे की जिद पकड़कर बैठी रही और उसने विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बना ली। भाजपा नेता एकनाथ खडसे ने कहा कि बीजेपी और शिवसेना को मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहे विवाद को सुलझा लेना चाहिए था ; हिमालयायूके
शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए उसके पास पूर्ण संख्या बल था लेकिन राजनीतिक अनुभव की कमी ने उसका खेल बिगाड़ दिया और यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। दूसरी ओर, राजनीतिक तजुर्बे के खेल से एनसीपी और कांग्रेस विपक्ष में बैठने के बजाय सरकार में सहभागी बन गयीं।
आज शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार को लेकर कितने भी सवाल खड़े किये जाएं लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी कि इन दलों ने महाराष्ट्र में वर्षों से स्थापित राजनीतिक समीकरणों को बदल डाला है। इस नए समीकरण का आने वाले दिनों में कितना असर पड़ेगा यह सबके सामने आएगा लेकिन ग्राम पंचायत से लेकर मुंबई महानगरपालिका तक में यह नया समीकरण बीजेपी को परेशान करेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
कुछ महीनों पहले तक अजेय दिखने वाली बीजेपी की यह दुर्दशा महाराष्ट्र में कैसे हुई, इसके विश्लेषण आने वाले समय में होते रहेंगे लेकिन एक बात साफ़ है कि इस हार के लिए बीजेपी नेताओं को किसी और की तरफ़ उंगली उठाने या उस पर आरोप लगाने की ज़रूरत नहीं है। पूरे राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए कहा जा सकता है कि बीजेपी की इस स्थिति के लिए कोई और नहीं वह स्वयं जिम्मेदार है और इस पर पार्टी के नेताओं को भी विचार करना चाहिए। लेकिन शायद वे अभी भी इस पर विचार करेंगे ऐसा लगता नहीं है। जिस तरह से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बयान दे रहे हैं, इन बयानों को सुनकर तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता।
विधानसभा चुनाव के बाद जब महाराष्ट्र में सरकार बनाने का खेल शुरू हुआ था तो पहले दिन से ही फडणवीस ने शिवसेना पर आरोपों की झड़ी लगानी शुरू कर दी थी। फडणवीस ही नहीं उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी भी शिवसेना को इस बात के लिए घेरते रहे कि वह बीजेपी के साथ मिलकर सरकार क्यों नहीं बना रही है। बीजेपी नेताओं ने इसके कारण पर विचार कर उसका समाधान निकालने के बजाय शिवसेना पर सिर्फ़ और सिर्फ़ यही आरोप लगाया कि ‘उसका हिंदुत्व कहां गया’, ‘उसकी विचारधारा कहां गयी’! लेकिन आज की राजनीति में यही सवाल बीजेपी के नेताओं से पूछा जाए कि ‘उनका हिंदुत्व कहां गया या उनकी विचारधारा कहां गयी’ तो शायद ही उनकी पार्टी का नेता इन सवालों के सही या सलीके से जवाब दे पाएंगे।
महाराष्ट्र में बीजेपी की दूसरी बार बनी सरकार महज 80 घंटे के अंदर ही गिर गयी। यह सरकार उसने एनसीपी से बग़ावत करने वाले नेता अजीत पवार के समर्थन से बनाई थी। सरकार गिरी तो बीजेपी के अदंर से आवाज़ उठी है कि पार्टी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। महाराष्ट्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता और किसी समय महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे रहे एकनाथ खडसे ने पार्टी के अजीत पवार का समर्थन लेकर सरकार बनाने के निर्णय पर सवाल उठाए हैं। खडसे ने कहा, ‘यह मेरा निजी विचार है कि बीजेपी को अजीत पवार का समर्थन नहीं लेना चाहिए था। अजीत सिंचाई घोटाले में अभियुक्त हैं और उनके ख़िलाफ़ कई आरोप हैं। इसलिए हमें उनके साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था।’ महाराष्ट्र में सरकार बनाने का बीजेपी का ख़्वाब आख़िरकार अधूरा; जिसकी टीस उसे लंबे समय तक रहेगी। इस क़दम के कारण उसकी छीछालेदार तो हुई ही पार्टी के भीतर भी उसके इस क़दम के ख़िलाफ़ आवाज उठने लगी है ;;;हिमालयायूके-
महाराष्ट्र की सियासत में उस समय हंगामा मच गया था जब एंटी करप्शन ब्यूरो ने अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले में चल रहे 9 मामलों को बंद कर दिया था। यह कहा गया था कि पवार को पार्टी से बग़ावत करने का इनाम मिला है। खडसे ने पत्रकारों से कहा कि अजीत पवार का उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना सिर्फ़ अपना चेहरा बचाने की कोशिश थी। महाराष्ट्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता खडसे ने कहा कि अगर अजीत पवार फ़्लोर टेस्ट का इंतजार करते तो यह उनके लिए और ज़्यादा अपमानजनक होता और पहले ही यह उम्मीद थी कि वह इस्तीफ़ा दे देंगे। हिमालयायूके-
महाराष्ट्र में बीजेपी का विस्तार, जिसे वह अपनी विचारधारा का फैलाव बताती है, क्या उसकी नीतियों या विचारधारा के दम पर हुआ है? या दूसरी पार्टी के नेता आयात कर या उनको तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल करने से, यह बात अब किसी से छुपी नहीं है। 2014 के विधानसभा चुनाव में दिए गए भाषण हों या इस बार की चुनावी सभाओं में दिए बयान, बीजेपी के नेताओं ने अजीत पवार और उनकी पार्टी को ‘नेशनल करप्ट पार्टी’ कहकर संबोधित किया। देवेंद्र फडणवीस अजीत पवार के बारे में कहते थे, ‘हमारी सरकार आयी तो अजीत दादा जेल में चक्की पीसिंग-चक्की पीसिंग।’ लेकिन उन्हीं अजीत पवार के दम पर रातों-रात उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और कार्यभार संभालते ही पहला आदेश जो दिया वह था – अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले की जांच बंद कर उन्हें दोषमुक्त करना। ऐसे में कहां गया उनका पारदर्शी सरकार चलाने का दावा और कहां गयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह सीख जो बीजेपी का हर नेता दोहराता रहता है कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा।
बीजेपी के नेताओं का राजनीतिक अनुभव एनसीपी प्रमुख शरद पवार के समक्ष बौना दिखाई दिया, बीजेपी के नेताओं ने – ‘शरद पवार ने 70 सालों में क्या किया?, पवार के दिन ख़त्म हो गए, कांग्रेस-एनसीपी को मिलाकर 20 सीटें आएंगी’ की बातें कहीं, उनसे शरद पवार का कद और बड़ा हुआ है और इस बात को सबने देखा है। पवार ने मुंबई में बैठे-बैठे बीजेपी के नेताओं की दिल्ली से चली जा रही राजनीतिक चालों को काटा और उनके हर दांव को फ़ेल किया, चाहे वह अजीत पवार की बग़ावत ही क्यों ना रही हो।
महाराष्ट्र में रातोरात राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता अजित पवार से ‘डील’ कर बीजेपी की सरकार तो बन गई, मगर शक्ति-परीक्षण (फ्लोर टेस्ट) से पहले ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार मैदान छोड़कर चले गए. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उन्हें बुधवार को शाम पांच बजे बहुमत साबित करने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने असमर्थता जताते हुए इस्तीफा दे दिया. इससे न बीजेपी का ‘ऑपरेशन कमल’ सफल हुआ और न ही अजित पवार का विधायकों को लाने का दावा. बहुमत का ‘जुगाड़’ न होता देख आखिरकार फडणवीस ने मंगलवार की शाम साढ़े तीन बजे प्रेस वार्ता कर इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. फडणवीस से दो घंटे पहले अजित पवार ने इस्तीफा दिया. कुल मिलाकर अजित पवार 78 और देवेंद्र फडणवीस 80 घंटे ही मुख्यमंत्री रह पाए. शनिवार की सुबह आठ बजे अचानक जब अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली थी तो इसे बीजेपी खेमे की ओर से ‘बड़ा मास्टर स्ट्रोक’ के रूप में प्रचारित किया गया. सोशल मीडिया पर भी बीजेपी समर्थकों की ओर से इस ‘महाउलटफेर’ नाम देकर तारीफों के पुल बांधे गए. मगर, जैसे ही शरद पवार ने ट्वीट कर सरकार में शामिल होने को अजित पवार का निजी फैसला बताकर एनसीपी को इससे अलग कर लिया, उसके बाद से सियासी घटनाक्रम हर घंटे-दो घंटे पर बदलने लगा.