ब्रह्मांड और अध्यात्म में क्या संबंध

# Execlusive Article Presents by www.himalayauk.org (Web & Print Media) Chandra Shekhar Joshi- Editor in Chief

यह ब्रह्मांड और अध्यात्म में क्या संबंध है यह हम आज जानेंगे क्योंकि अक्सर लोग समझते हैं कि ब्रह्मांड के विषय में जानना अर्थात विज्ञान के विषय में जानना इसमें आध्यात्मिक का कोई लेना देना नहीं है लेकिन यह बिल्कुल असत्य बात है क्योंकि अध्यात्म का एक छोटा सा भाग है वह है ब्रह्मांड अध्यात्म तो उनसे भी बड़ा है इसीलिए विज्ञान से तुलना करना एकदम बेबुनियाद है। अध्यात्मा और विज्ञान दोनों एक दूसरे के पूरक हैसुर बिल्कुल भिन्न नहीं है। जहां विज्ञान समाप्त होता है वहीं से अध्यात्म का प्रारंभ होता है इसीलिए दोनों एक दूसरे के एक पूर्व की तरह है दूसरा पश्चिम की तरह किंतु आगे जाते दोनों के मार्ग मिल जाते हैं। यहां पर दिए गए सारे विचार मेरे स्वयं के हैं और किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई भी संबंध नहीं रखता है अगर होता भी है तो केवल संयोग ही होगा।

श्रीमद्भगवद्गीता का एक श्लोक है । जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराया था तब भगवान ने यह बात अर्जुन से कहीं थी।

अध्याय : 11 :श्लोक : 7
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि ॥ ११-७॥

हे अर्जुन! तू मेरे इस शरीर में एक स्थान में चर-अचर सृष्टि सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देख और अन्य कुछ भी तू देखना चाहता है उन्हे भी देख। (७)

भगवान ने कहा था अर्जुन तू देख मेरे एक एक रोम में भिन्न भिन्न ब्रह्मांड है। क्या आपको यह बात थोड़ी अधिक नहीं लगती? किंतु नहीं भगवान ऐसी असत्य वाणी बोल नहीं सकते पर उन्होंने कहा था वह भी सत्य ही था। हमारे भीतर ही ब्रह्मांड है। हम ब्रह्मांड से कतई भिन्न नहीं है। ब्रह्मांड जो दृश्यमान है वह भौतिकता के नियमो से बंधा हुआ है और जो ब्रह्मांड अपने भीतर है वह अभौतिक्ता के नियमो से है। यहां पर मैं बताना चाहूंगा की हर एक चीज के दो पहलू होते हैं अर्थात एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक इसी तरह से हर एक चीज में एक अपोजिट होता है। इसमें से आप कौन सी साइड लेना चाहते हैं वह आप पर निर्भर करता है। विज्ञान और अध्यात्म दोनों एक दूसरे के बिना बिल्कुल नहीं है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं बस फर्क इतना है एक पश्चिम की ओर जा रहा है माल और दूसरा पूर्व की ओर लेकिन यह बात भी सत्य है कि अंत में जाकर दोनों को मिलना ही पड़ेगा बिना मिले लक्ष्य साधना कभी संभव नहीं होगा। आज विज्ञानिक लोग तरह-तरह के प्रयोग करते रहते हैं ब्रह्मांड के विषय में जानने को उत्सुक रहते हैं किंतु यह भूल जाते हैं कि ब्रह्मांड केवल भौतिक चीजों से नहीं बना अपितु अभौतिक चीजों से भी बना है तो उसे जानने के लिए अभौतिकता में प्रवेश करना पड़ेगा और अब अभौतीक्ता का पर्याय शब्द है आध्यात्मिकता।

आज का विज्ञान के विषय में पर्याप्त जानकारी इसीलिए नहीं रख पाता है क्योंकि उनके पास केवल भौतिक चीजों के आधार पर ही संशोधन है प्रमाण है लेकिन जो भौतिक चीजें है उसके विषय में जानना हो तो आध्यात्मिकता में प्रवेश अनिवार्य है। जब विज्ञान अध्यात्मिकता में प्रवेश करेगा तब जो संशोधन करेगा तब जो प्रयोग होंगे वह सत्य की ओर मार्ग प्रशस्त करेगा।

ब्रह्मांड भौतिक चीजों से केवल नहीं बना है समझे कि भौतिक अर्थात ग्रह नक्षत्र तारा अवकाशी पिंड आकाशगंगा है जो दिखने वाले यानी कि जस्सी मान पदार्थ है वह सब भौतिकी जो है और जो अदृश्य पदार्थ है वैसे तो उसे अदृश्य पदार्थ बोल नहीं सकते किंतु यहां पर केवल समझने के लिए बोल रहे है, वह भौतिक चीजों से अधिक मात्रा में है। इस कारण से विज्ञान का अध्यात्मिकता में प्रवेश अनिवार्य है।

ब्रह्मांड अपने भीतर ही है केवल हमने अनुभव नहीं किया है। जो लोग ध्यान में गहरे में जाते है वह अनुभव कर पाते है कि पूरा ब्रह्मांड भी अपने ही भीतर है। उसका कोई प्रमाण नहीं होता जैसे किसी को पूछा जाए प्रेम की अनुभूति क्या होती है तो अच्छे अच्छे और बड़े बड़े प्रेमी भी नहीं समझा पाएंगे ठीक वैसे ही बताना असंभव है। उसका केवल अनुभव किया जा सकता है क्योंकि अभौतिक चीजों का वर्णन करना असम्भव है। अपने ही भीतर का ब्रह्मांड होने का एक और प्रमाण यह है कि जब हम  नाम का गहरेंस उच्चारण करते है तो एक बिलकुल ही भिन्न प्रकार की तरंग (आंदोलन) दौड़ने लगती है। यह वह तरंगे है जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है और वही ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सही कारण है। ॐ ध्वनि ही है जिसने अपने वाइब्रेशन के द्वारा सुषुप्त अवस्था में रहा ब्रह्मांड को जागृत किया और यह सृष्टि चलने लगी। वहीं ध्वनि है जिसने आपको हमको एक जन्म दिया अनेकों योनियों को जन्म दिया है और तो और केवल पृथ्वी पर ही नहीं अनेकों ग्रह है जहां पर अनेकों जीव विभिन्न सुरतो में बसते है और उन्हीं के ग्रह पर वास करते है।

ब्रह्मांड ऐसे कई रहस्यों से भरा हुआ है जिसका विज्ञान अभी तक एक प्रतिशत भी रहस्य नहीं समझ पाए है तो आप ही कयास लगाएं कितना विचित्र और रहस्यमय है हमारा ब्रह्मांड? वैसे ही अपने भीतर है ब्रह्मांड। यह वही ब्रह्मांड है जो अपने भीतर है। कोई भी चीज पांच भौतिक तत्वों से बनती है। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश। ठीक वैसे ही हमारे ही भीतर यह पांचों तत्व है और समय समय पर कभी जागृत हो उठते है। किंतु इन पांच तत्व के उपर भी 3 तत्व है महात तत्व, मूल तत्व और परम तत्व यह भी अपने भीतर है। इसीलिए कहते है परमात्मा सबके भीतर है क्योंकि परम तत्व ही परमात्मा है और परमात्मा अर्थात परम तत्व याने ॐ ध्वनि की तरंगे!

आप एक प्रयोग करें एक कमरे में स्नान इत्यादि कर के बैठ जाए और न्नभी तक से आवाज़ निकले ऐसी ध्वनि ॐ की निकले। बस ॐ और ॐ ही बोलना है पर गहराई से कम से कम आपको यह दो से चार घंटे तक करना है और उसके पश्चात आप बाहर चले जाइए और जब आप पुनः कुछ समय पश्चात आएंगे अथवा कोई और उस कमरे में प्रवेश करेगा तो उन्हें भी यह ध्वनि सुनाई देगी। क्यों होता है ऐसा? वह ध्वनि हमारे चारों तरफ सूक्ष्म रूप में उपस्थित है। वहीं है जीवन का आधार। इसी तरह के बिना हमारा तो क्या किसी भी चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा।

अब आप कहेंगे इस तरह का प्रयोग तो कोई भी शब्द से करो परिणाम वहीं होगा तो आप प्रयास कर के देखिए। किसी भी शब्द की ध्वनि नहीं आयेगी किंतु केवल ॐ की ध्वनि आयेगी। वह ध्वनि पूरे ब्रह्मांड और अपने भीतर आत्मा के रूप में विद्यमान है तो जब कोई इस ध्वनि का उच्चारण करता है तो परम तत्व उस ध्वनि से आकर्षित होता है और उस जगह पर खींचा आता है जहां यह ध्वनि का उद्गम होता है। ॐ ध्वनि का उद्गम स्थान आपका कमरा था तो आपके कमरे में वह ध्वनि आकर्षित होती रहती है और वहां पर टिकी रहती है बहुत अंतराल तक। विज्ञान में एक प्रयोग भी हुआ था इसी तरह का कुछ एक समुंदर किनारे एक वैज्ञानिक ॐ का उच्चारण करता रहा कुछ समय तक तो जैसे समुद्र में से जल धरती पे आ के वापस जाता है तब उस ध्वनि से रेत में ऐसे आकार का कोई अक्षर दिखाई पड़ता है और अपने कैमरे से उसकी तस्वीर खींच लेता है और वापस घर आता है और उस पर अपना संशोधन करता है। कई बार वह घटना को दोहराता गया वहीं परिणाम निकला तो उसने यह निष्कर्ष निकाला कि ॐ शब्द किसी भी भाषा का नहीं है। यह केवल एक रेखा चित्र है जो इस ध्वनि से अंकित होता है अर्थात एक प्रकार के सकारात्मक या कहो अत्यंत सकारात्मक आंदोलन (vibration) है जो उस ध्वनि से उत्पन्न होते है और उससे वह अक्षर उभरता है। यह है परम तत्व। यह पूरे ब्रह्मांड तो क्या अनेकों ब्रह्मांड के रचेयता है। यही है ईश्वर।

अब आप यह कहेंगे कि एक ध्वनि से कैसे इतने बड़े और विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति संभव है? तो चलिए उसका भी उत्तर समझ लेते है। यह ॐ ध्वनि 0.003 डेसिबल की तरंगे निकालती है। जो सबसे सूक्ष्म मानी जाती है। अब आपको यह भी बता दे अगर इंसान 20000 डेसिबल की ध्वनि निकाल पाए तो सारे ब्रह्मांड का अंत हो सकता है। यह हम नहीं पर विज्ञान कहता है। जैसे एक बड़ी ध्वनि की तरंग सब कुछ नष्ट करती है ठीक उससे विपरीत कम से कम डेसिबल की तरंगे उत्पत्ति भी करती है। यह ठीक विपरीत मामला है।

पहले एक छोर सकारात्मक ऊर्जा का होता है और दूसरा छोर नकारात्मक ऊर्जा का। तो कम डेसिबल वाली ध्वनि सकारात्मक होती है और ज्यादा डेसिबल वाली ध्वनि नकारात्मक अर्थात विनाश का स्त्रोत होती है। हमारे देवताओं में इसीलिए तो ब्रह्मा को उत्पत्ति का कारक बताया है तो उनके पास सरस्वती हाथ में सुरमई वीणा लिए बैठी है और विनाश के देवता महादेव के पास डमरू जो अत्यंत तेज डेसिबल वाली ध्वनि करता है और उससे विनाश संभव होता है। आप भी कभी गौर करना, जब आप संगीत सुनते है तो अत्यंत धीमे से सुनना पसंद करोगे अगर अधिक समय तक सुनना है तो पर एकदम तेज ध्वनि से सुनोगे तो घर के बर्तन इत्यादि तक उपर से नीचे गिरने लगते है। यह वही आंदोलन या तरंगों के प्रभाव से होता है। वह ध्वनि तो केवल 50 डेसिबल तक ही होती है और आपके घर की हालत बिगड़ी देते है तो सोचे अगर बीस हजार डिसेबल तक जाए तो क्या होगा?

ठीक उससे विपरीत विज्ञान ने यह प्रमाणित किया है कि अगर किसी गंभीर रोगी के पास सुरमई संगीत अत्यंत ही धीमे अर्थात 10 से 20 डेसिबल तक की ध्वनि से बजाया जाए लंबे अतराल तक तो संगीत के प्रभाव से रोगी भी ठीक होने लगता है और कई रोगियों को ठीक भी किया गया है। यह क्या दर्शाता है? ध्वनि का इतना गहरा प्रभाव? तो हा है इसका उत्तर।

जैसे ही संगीत से रोगी ठीक हो सकते है तो आप एक प्रयोग करें। एक जगह पर एक तुलसी का पौधा ले और वहां पर अत्यंत सुरीला मधुर अत्यंत धीमी गति से संगीत 24 घंटे कुछ दिनों तक चलाए। दूसरी तरफ एक और पौधा ले और वहां पर कुछ ना करें। स्मरण रखो उन दोनों की देखभाल आपको कोई भेदभाव के साथ करनी है पर कुछ ही दिनों में पाओगे कि जहां पर संगीत चलाया गया था वहां पर अत्यंत सुंदर पौधा है और जहां पर नहीं चलाया था वहां पर सामान्य जैसा ही पौधा है। यह क्या सूचित करता है? यह है ध्वनि की शक्ति! तो ध्वनि क्या चीज है यह हमने जाना। अब बात करते है अपने भीतर के ब्रह्मांड की। उसके लिए आपको पुनः ॐ ध्वनि की सहायता लेनी पड़ेगी। ध्यान की गहराई में जब ॐ की ध्वनि छिड़ती है तब सारा ब्रह्मांड आपको दृश्यमान हो जाता है और आपको स्पष्ट दिखने लगता है। तब आप पाओगे वह आप ही के भीतर है! ब्रह्मांड वैसे तो बहुत ही रहस्यों से भरा पड़ा है पर यह तो थी एक छोटा सा रहस्य जो हमने आज समझा है 

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