चुनाव आयोग उपचुनावों को टालेगा? बंगाल,उत्तराखण्ड मेंं चुनाव करायेगा?
HIGH LIGHT# ममता पांच नवंबर21 तक विधायक नहीं बनतीं तो उनको अपनी कुर्सी किसी और को सौंपनी होगी। वही उत्तराखण्ड में मार्च २१ में सीएम बनाए गए रावत को 9 सितंबर तक विधायक के रूप में चुना हुआ जनप्रतिनिधि होना होगा # पहले ऐसी स्थिति में संबंधित व्यक्ति इस्तीफा देकर अगले दिन दोबारा शपथ ले सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने अब यह रास्ता बंद कर दिया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब छह से आठ सप्ताह में तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। शायद उसकी आड़ में केंद्र के इशारे पर चुनाव आयोग लगातार उपचुनावों को टालते रह सकता है। छह महीने पूरा हो जाने पर ममता के सामने अपनी कुर्सी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। उनको उपचुनाव तक ही सही, किसी और को इस पद पर बिठाना होगा।
नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव हार जाने के बाद ममता के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद छह महीनों के भीतर चुनाव लड़ना और जीतना जरूरी है। यानी उनको पांच नवंबर तक विधायक बनना होगा। इसी के अनुरूप वे कोलकाता की भवानीपुर सीट से चुनाव लड़ने का मन बना चुकी हैं।
वही उत्तराखण्ड में मार्च में सीएम बनाए गए रावत को 9 सितंबर तक विधायक के रूप में चुना हुआ जनप्रतिनिधि होना होगा, तभी वह संवैधानिक रूप से सीएम पद पर बने रह सकेंगे. मुख्यमंत्री बने रहने के लिए तीरथ सिंह रावत का विधायक के रूप में चुना जाना जरूरी है, क्योंकि इस साल मार्च में जब उन्हें सीएम पद सौंपा गया था, तब वह सांसद के रूप में जनप्रतिनिधि थे. एएनआई की एक रिपोर्ट की मानें तो इस मामले में चर्चा छिड़ने के बाद रावत ने कहा कि ‘मैं इस बारे में फैसला नहीं करूंगा, पार्टी करेगी. दिल्ली तय करेगी कि मुझे कहां से चुनाव लड़ना है और मैं आदेश का पालन करूंगा.’ इस बयान के बाद साफ तौर पर उन अटकलों पर विराम लग गया है, जिनके हवाले से कहा जा रहा था कि उत्तराखंड में उपचुनाव की संभावना न के बराबर है.
तीरथ सिंह रावत के उत्तराखंड मुख्यमंत्री पद पर बने रहने को लेकर उठे सवालों और बहस के बाद खुद रावत ने इस मामले का पटाक्षेप यह कहकर कर दिया है कि उपचुनाव वह किस सीट से लड़ेंगे, यह फैसला भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान के हाथों में है. सीएम रावत ने कहा कि वह हमेशा पार्टी के फैसलों का स्वागत और सम्मान करते रहे हैं और पार्टी उनके लिए जो कुछ भी तय करेगी, वह स्वीकार करेंगे. उन्होंने पार्टी के प्रति इस बात के लिए भी आभार जताया कि कठिन समय के दौरान पार्टी ने सीएम पद की जिम्मेदारी के लिए उनका चयन किया.
वही दूसरी ओर प0 बंगाल में इस सीट पर जीते टीएमसी विधायक शोभनदेव चटर्जी ने विधानसभा से इस्तीफा देकर ममता के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ कर दिया है। विभिन्न वजहों से बंगाल की पांच सीटों पर उपचुनाव होना है। इसके अलावा उम्मीदवारों के निधन की वजह से मुर्शिदाबाद जिले की दो सीटों पर चुनाव टाल दिया गया था। यानी सात सीटों पर चुनाव होना है। ममता सरकार में वित्त मंत्री अमित मित्र ने भी चुनाव नहीं लड़ा था।
हालांकि पहले ऐसी स्थिति में संबंधित व्यक्ति इस्तीफा देकर अगले दिन दोबारा शपथ ले सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने अब यह रास्ता बंद कर दिया है। ऐसे में अगर ममता पांच नवंबर तक विधायक नहीं बनतीं तो उनको अपनी कुर्सी किसी और को सौंपनी होगी।
अब बडा सवाल यह है कि क्या बीजेपी सरकार इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
ममता ने राज्य सचिवालय में पत्रकारों से बातचीत में सवाल किया कि चुनाव आयोग आखिर उपचुनाव कराने के बारे में चुप्पी क्यों साधे बैठा है? उनका कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर ही आयोग इस बारे में फैसला करेगा। लेकिन मोदी आखिर उससे ऐसा करने को क्यों नहीं कह रहे हैं?
टीएमसी का कहना है कि जब कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा था तब तो प्रधानमंत्री समेत तमाम केंद्रीय नेता लगातार रैलियां कर रहे थे। उस समय ममता ने कई बार चुनावों के बाकी चरणों को एक साथ कराने की मांग की थी। लेकिन अब शायद सरकार कोरोना के बहाने इसे टाल रही है। पश्चिम बंगाल में चुनाव के लायक अनुकूल माहौल है। संक्रमण काफी कम हो चुका है। इससे पहले ममता ने कहा था कि उपचुनाव बहुत संक्षिप्त नोटिस पर कराए जाने चाहिए ताकि चुनाव प्रचार के दौरान संक्रमण का खतरा न्यूनतम रहे।