आगामी आम चुनाव में मध्य वर्ग पल्ला न झाड़ ले- सरकार के पास पैसे नहीं


मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी शायद ही याद हो कि वह बीते साढ़े चार साल में देश में कितने एम्स खोलने का एलान कर चुके हैं? इस सवाल का सीधा और सटीक जवाब आपको गूगल जी भी नहीं दे पाते! मोदी राज में घोषित नये एम्स का ताज़ा स्टेटस क्या है? इस कौतूहल का समाधान आगे करेंगे। फ़िलहाल, ख़बर है कि 17 दिसम्बर 2018 को मोदी कैबिनेट ने मदुरै (तमिलनाडु) और बीबीनगर (तेलंगाना) के लिए नये एम्स को मंज़ूरी दे दी। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत मंज़ूर हुए दोनों एम्स पर क्रमशः 1264 और 1028 करोड़ रुपये ख़र्च होंगे।

दिलचस्प बात है कि ‘तेज़ी से कड़े फ़ैसले लेने वाली मोदी सरकार’ के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तमिलनाडु एम्स का एलान 2016 के बजट भाषण में किया था। सरकार को यही तय करने में क़रीब पौने तीन साल लग गए कि नया एम्स मदुरै में बनेगा। इसके निर्माण के लिए 45 महीने की मियाद तय हुई है। बीबीनगर एम्स के बारे में तो इतना ब्यौरा भी सुलभ नहीं है। हालाँकि, मोदी कैबिनेट ने तेलंगाना एम्स को सैद्धान्तिक मंज़ूरी अप्रैल 2018 में दे दी थी। लेकिन इतने दिनों में अभी तो सिर्फ़ यही तय हो पाया है कि लागत 1028 करोड़ रुपये होगी और शहर कौन-सा होगा, जहाँ यह एम्स बनेगा। अभी तो काग़ज़ पर भी कोई समय-सीमा यानी डेडलाइन तय नहीं है। बस, कोरा एलान है!

अरुण जेटली कैंसर से पीड़ित हैं और इलाज के लिए अमरीका गए हैं। वे अंतरिम बजट पेश होने तक शायद ही लौट पाएँ क्योंकि इसे लोकसभा में 1 फ़रवरी को इसे पेश किया जाना है। वित्त मंत्री ने ख़ुद ही आधिकारिक तौर पर यह जानकारी दी है कि वह दो हफ़्ते के लिए निजी छुट्टी पर न्यूयॉर्क जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि वित्त मंत्री जेटली को जाँघ में कैंसर वाला एक ट्यूमर है, जिसका इलाज जल्द से जल्द किया जाना ज़रूरी है। इसकी जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि क्योंकि हाल ही में उनकी किडनी ट्रांसप्लांट की गई थी इसलिए यह सर्जरी काफ़ी मुश्किल होगी। कैंसर के इलाज के लिए होने वाली कीमोथीरैपी से किडनी पर ज़ोर पड़ेगा जो ख़ुद ही शरीर से तालमेल बिठाने की प्रक्रिया में है। ऐसे में सर्जरी की प्रक्रिया में काफ़ी समय लग सकता है और वित्त मंत्री बजट के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इस स्थिति में फ़िलहाल यह साफ़ नहीं है कि जेटली की अनुपस्थिति में अंतरिम बजट कौन पेश करेगा। पिछले साल जब वह किडनी ट्रांसप्लांट के लिए छुट्टी पर थे तब रेलवे और कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। जेटली से पहले भी राजनीतिक दलों के कई नेता कैंसर का शिकार हो चुके हैं। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर पैनक्रियटिक कैंसर और सोनिया गाँधी सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित हैं। दो महीले पहले ही केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार का इस बीमारी से निधन हो गया था।

देश में पिछले 26 साल में कैंसर के मरीज क़रीब दुगुने हो गए हैं। 2016 के आँकड़ों के अनुसार देश में क़रील 14.5 लाख लोग कैंसर से पीड़ित थे। दो साल में यह संख्या कहीं ज़्यादा हो गई होगी। कैंसर देश में लोगों की मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह है। 

इसके बावजूद कैंसर के प्रति सरकार सचेत नहीं है। कचरा निस्तारण से लेकर जल और वायु प्रदूषण तक से निपटने में सरकार विफल रही है। शहरों में अक्सर पीएम 2.5 ख़तरनाक स्तर पर पहुँच जाती है यानी हवा ज़हरीली हो जाती है। यह हमारे फेफड़ों में कैंसर पैदा कर रही है। इसकी चपेट में आम लोग से लेकर ख़ास लोग सभी आ रहे हैं। इसके बावजूद सरकार कोई ठोस नीति तक नहीं बना पा रही है। 

ये एलान ही मोदी राज की ‘फेंकते रहो’ नीति की आत्मा है। अब ज़रा इस आत्मा से जुड़े इसके अजर-अमर तत्व को भी जान लीजिए। मई 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले, मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स यानी अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान बनाने का एलान किया था। इससे पहले मोदी राज के गुज़रे चार सालों में 13 एम्स बनाने की घोषणा हो चुकी थी।

अब लगे हाथ जून 2018 तक इन 13 एम्स के काम की क्या प्रगति हुई, इसका जायज़ा लेते हैं –

  • गोरखपुर एम्स: जगह तय, 1,011 करोड़ रुपये की लागत मंज़ूर, मार्च 2020 का लक्ष्य और 10% से कम फ़ंड जारी।
  • नागपुर एम्स: जगह तय, 1,577 करोड़ रुपये की लागत मंज़ूर, अक्टूबर 2020 का लक्ष्य, 15% फ़ंड जारी।
  • कामरूप एम्स: जगह तय नहीं, 1,123 करोड़ रुपये की लागत मंज़ूर, अप्रैल 2021 का लक्ष्य, सिर्फ़ 5 करोड़ रुपये जारी।
  • गुजरात एम्स: अभी तक शहर का नाम ही तय नहीं, कोई फ़ंड जारी नहीं, कोई डेडलाइन तय नहीं।
  • बिहार एम्स: 2015 के चुनावी साल में बजट में एलान, तीन साल बाद भी स्थान तय नहीं, कोई डेडलाइन तय नहीं, कोई फ़ंड जारी नहीं।
  • गुंटूर एम्स: जगह तय, 1,618 करोड़ रुपये की लागत मंज़ूर, अक्टूबर 2020 का लक्ष्य, 15% फ़ंड जारी।
  • कल्याणी एम्स: जगह तय, 1,754 करोड़ रुपये की लागत मंज़ूर, अक्टूबर 2020 का लक्ष्य, 16% फ़ंड जारी।
  • बठिंडा एम्स: जगह तय, 925 करोड़ रुपये की लागत, जून 2020 का लक्ष्य, 4% फ़ंड जारी।
  • जम्मू एम्स: सम्बा ज़िले के विजयपुर में प्रस्तावित, कोई बजट और कोई डेडलाइन तय नहीं।
  • कश्मीर एम्स: पुलवामा ज़िले के अवन्तिपुरा में प्रस्तावित, कोई बजट और कोई डेडलाइन तय नहीं। लेकिन जम्मू-कश्मीर के दोनों एम्स के नाम पर 91 करोड़ रुपये का फ़ंड जारी हुआ।
  • बिलासपुर एम्स: जगह तय, 1,350 करोड़ रुपये की लागत मंज़ूर, दिसम्बर 2021 का लक्ष्य, नरेन्द्र मोदी ने 3 अक्टूबर 2017 को शिलान्यास किया, लेकिन कोई फ़ंड जारी नहीं!
  • तमिलनाडु एम्स: अभी तक शहर का नाम ही तय नहीं, कोई फ़ंड जारी नहीं, कोई डेडलाइन तय नहीं।

यहाँ 13वें नम्बर पर जिस ‘तमिलनाडु एम्स’ का ज़िक्र है, उसकी क़िस्मत अब जाकर पलटी है! इसे ही अब ‘मदुरै एम्स’ का नाम मिला है।

संजय कुमार सिंह

चुनाव से पहले की सरकारी तैयारियों के क्रम में एक लोक-लुभावन ख़बर छपी है जो आयकर सीमा बढ़ाने के बारे में है। अज्ञात और अनाम सूत्रों के हवाले से छपी इन ख़बरों का एक ही मक़सद हो सकता है और वह है यह अनुमान लगाना कि बजट सत्र में इसकी घोषणा कर दी जाए तो सरकार को कितना लाभ होगा और होगा भी कि नहीं। हालाँकि, सरकार इस मामले में भी गंभीर होती तो आँकड़ों के साथ यह ख़बर आती कि इस तरह से यह संभव है और किया जा सकता है। वैसे, यह भी मुमकिन है कि सरकार जानती है कि ऐसा किया नहीं जा सकता है और उसे करना नहीं है। पर वह माहौल समझना चाहती है ताकि जाते-जाते यह घोषणा कर ही दे तो इसका लाभ होगा कि नहीं। आप जानते हैं कि यह सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम संसद सत्र में जो घोषणा करेगी वह लागू तो अगले साल ही होगा और इसका लाभ या नुक़सान अगली सरकार को झेलना है। मौजूदा सरकार को इस घोषणा का चुनावी लाभ भर मिलना है।

ख़बर के मुताबिक़ वित्त मंत्री अरुण जेटली आगामी अंतरिम बजट में इसकी घोषणा कर सकते हैं। इसके साथ ही वह मेडिकल ख़र्च और ट्रांसपोर्ट अलाउंस को भी फिर से टैक्स-फ्री कर सकते हैं। 

सब जानते हैं कि अंतरिम बजट में नीतियों में बहुत अधिक बदलाव नहीं किया जाता है, फिर भी भारतीय जनता पार्टी की यह सरकार जब चुनाव पूर्व घोषित तौर पर छक्के लगा रही है तो इसीलिए कि उसे चिंता सता रही है कि कहीं आगामी आम चुनाव में मध्य वर्ग उससे पल्ला न झाड़ ले। इसलिए टैक्स स्लैब में बदलाव किए जाने की उम्मीद निराधार नहीं है।

यह दिलचस्प है कि चुनाव क़रीब आए तो सरकार मतदाताओं को लुभाने की हर संभव कोशिश कर रही है और इसे छिपा भी नहीं रही है। ऐसा नहीं है कि यह उसकी योजना का हिस्सा है क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं हैं – यह सार्वजनिक हो चुका है। और पेट्रोल-डीज़ल जैसी ज़रूरी और आम उपयोग की वस्तु को अपने प्रिय जीएसटी से बाहर रखकर उस पर जीएसटी की सर्वोच्च दर से भी ज़्यादा टैक्स लेना और उस बेशर्मी में पेट्रोल की क़ीमत को अधिकतम तक जाने देना साधारण नहीं है।सत्ता में आने से पहले सरकार पेट्रोलियम पदार्थों और डॉलर की क़ीमत के साथ महँगाई को बहुत महत्व देती थी, पर पेट्रोलियम की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कम होने के बाद उसका लाभ उठाने का मौक़ा उसने जाने दिया। यह भी असाधारण है। तब यह आसानी से कहा जा सकता था कि इसका लाभ हम आपको देंगे। ऐसा जिसे आप याद रखेंगे – ऐसे चुनावी जुमले तब आराम से कहे जा सकते थे। पर सरकार ने ऐसा नहीं किया। 


मुमकिन है, तब उसे लगता होगा कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उसकी कथित कोशिशों, जिसमें नोटबंदी और जीएसटी शामिल है – का सकारात्मक असर होगा और उसे यह सब करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। पर तीन हिन्दी राज्यों में चुनाव हारने और रफ़ाल पर कुछ संतोषजनक नहीं हो पाने के कारण सरकार की चिन्ता बढ़ी है और वह लोक-लुभावन घोषणाओं से अगले चुनाव की वैतरणी पार करना चाहती हो। इसमें कोई शक नहीं है कि स्वयं प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष पर जो आरोप हैं, वे गंभीर और परेशान करने वाले हैं। सत्ता में नहीं रहने पर इनकी जाँच हो गई तो मुश्किल हो सकती है। अभी कुछ ही समय पहले अमित शाह 50 साल सत्ता में रहने का दावा करते थे और आरक्षण पर बहस के दौरान क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मान लिया कि चुनाव पूर्व सरकार और छक्के लगाएगी। इसमें सरकार एक विरोधी या प्रतिकूल अधिकारी को 20 दिन भी पद पर रहने देना मंजूर न होने के अपने नुक़सान के और मायने हैं तथा इससे निपटना ज़रूरी है। जीएसटी में छूट से लेकर आयकर में राहत की घोषणाएँ निश्चित रूप से इसी क्रम में हैं।
वैसे भी, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पाँच साल पहले विपक्ष में रहते हुए आयकर सीमा पाँच लाख रुपये करने की माँग की थी। यह अलग बात है कि पाँच साल सत्ता में रहने के बावजूद उनकी सरकार ने यह काम नहीं किया। आयकर में छूट की सीमा धीरे-धीरे भी नहीं बढ़ा पाए। अब जब यह सुगबुगाहट है तो यह जानना दिलचस्प है कि भारतीय उद्योग परिसंघ ने वित्त मंत्रालय को सौंपी अपनी बजट पूर्व सिफ़ारिशों में कहा है कि आयकर छूट सीमा को मौजूदा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये कर दिया जाए। व्यक्तिगत आयकर के सबसे ऊँचे स्लैब को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करने, चिकित्सा ख़र्च और परिवहन भत्ते पर आयकर छूट मिलने तथा आयकर की दर में कमी करने का आग्रह किया है। 

अब तो यह सार्वजनिक है कि सरकार के पास पैसे नहीं है और वह भारतीय रिजर्व बैंक का ‘सरप्लस रिजर्व’ लेने की कोशिश में है। भारतीय वायु सेना को की गई आपूर्ति का भुगतान हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को नहीं किया जा सका है और ऐसी तमाम ख़बरों का खंडन सरकार ने नहीं किया है या उनपर चुप रही है तो सूत्रों के हवाले से प्रकाशित इस लोक-लुभावन ख़बर का भी खंडन नहीं होना है। उम्मीद कीजिए कि सरकार इसकी घोषणा भी कर दे। भले अगली सरकार मजबूरी में इसे वापस न ले पाए और सीआईआई के सुझावों को घुमा-फिराकर अमली जामा पहना दिया जाए। वैसे, सच यह भी है कि पिछले साल जब इस सरकार का अंतिम पूर्ण बजट आने वाला था तब भी जनवरी के इन्हीं दिनों ऐसी ख़बर छपी थी। वैसे, सिक्सर के चक्कर में अब यह मजाक भी चल पड़ा है कि चुनाव जीतने की मजबूरी में क्या पता सरकार 15 लाख बाँटना भी शुरू कर दे!

लोकसभा चुनाव से पहले पेश किए जाने वाला यह अंतरिम बजट मोदी सरकार के लिए काफ़ी अहम माना जा रहा है। इसममें कई लोकलुभावन और दूसरे महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं। इसमें किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषणाएँ भी शामिल हैं।

मध्यवर्ग के लिए भी राहत की घोषणा की जा सकती है। भारतीय उद्योग परिसंघ ने वित्त मंत्रालय को सौंपी अपनी बजट पूर्व सिफ़ारिशों में कहा है कि आयकर छूट सीमा को मौजूदा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये कर दिया जाए। व्यक्तिगत आयकर के सबसे ऊँचे स्लैब को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करने, चिकित्सा ख़र्च और परिवहन भत्ते पर आयकर में छूट देने और आयकर की दर में कमी करने का आग्रह किया है।

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