नोटबंदी- क्या कह रहे हैं अर्थशास्त्री
8 नवंबर को पीएम मोदी ने अचानक 500 और 1000 को नोटबंदी की घोषणा कर दी। जिसके बाद देश में नकदी का संकट उत्पन्न हो गया है। जहां एक तरफ पहले लोगों को 1000 के चेंज मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ता था वहीं नोटबंदी के बाद सरकार ने 2000 के नोट चलाकर चेंज की बड़ी समस्या पैदा कर दी है। इसके बाद नए नोटों की छपाई को लेकर भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय अपनी-अपनी राह चल रहे हैं।
क्या कह रहे हैं अन्य अर्थशास्त्री
ऐसे और कई अर्थशास्त्री हैं जो नोटबंदी को लेकर अपनी राय दे रहे हैं. अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने नोटबंदी की आलोचना की है. प्रोफेसर पटनायक का कहना है कि नोटबंदी से देश में आर्थिक मंदी जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. प्रोफेसर पटनायक का यह भी कहना है कि नोटबंदी से काले धन पर कोई ज्यादा असर नहीं होने वाला है. लेकिन अर्थशास्त्री राजीव कुमार ने सरकार के नोटबंदी के निर्णय की तारीफ की है. राजीव कुमार का कहना है यह एक साहसिक कदम है और इससे कालाधन पर अंकुश लगाया जा सकता है. राजीव मानते हैं कि देश में काले धन की अर्थव्यवस्था की राशि 30 लाख करोड़ रुपये के करीब है. यदि इसका पचास फीसद हिस्सा भी 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में रखा गया होगा तो इस कदम से सीधे 15 लाख करोड़ रुपये बैंक डिपाजिट के जरिए प्रत्यक्ष अर्थव्यवस्था में आ सकते हैं. कालाधन पर किताब लिखने वाले और काला धन पर काफी काम करने वाले प्रोफेसर अरुण कुमार ने नोटबंदी को एक नासमझ कदम बताया है. उनका कहना है कि इस कदम से सबसे ज्यादा कष्ट गरीब को होगा. नंदन नीलकेणि का मनना है कि नोटबंदी डिजिटल इकानॉमी को प्रोत्साहन देगा जो भारत के लिए जरूरी है.
रिजर्व बैंक को सूचनार्थ बताकर वित्त मंत्रालय छपाई के लिए सीधे निर्देश जारी कर रहा है। दूसरी ओर, रिजर्व बैंक का ध्यान अपने मुद्रणालयों में दो हजार और एक सौ रुपए के नोटों की छपाई पर है। ऐसे में पांच सौ रुपए के नए नोटों की छपाई प्रक्रिया धीमी तो चल ही रही है, वित्त मंत्रालय के मातहत मुद्रणालयों में समन्वय का संकट उठ खड़ा हुआ है। इन हालात में नकदी संकट तीव्र होने की आशंका खुद रिजर्व बैंक ने जताई है।
आपको बता दें कि पांच सौ रुपए के कुल 1660 करोड़ नोट चलन में हैं, जिन्हें नए डिजाइन वाले नोटों से बदला जाना है। अभी तक सिर्फ एक करोड़ नोटों को छाप कर जारी किया जा सकता है, जो जरूरत का सिर्फ 0.06 फीसद है। आलम यह है कि पुराने जो नोट जमा किए जा रहे हैं, उस अनुपात में नए नोट बाजार में जारी नहीं किए जा पा रहे। इस वजह से ही एटीएम और खातों से रकम निकालने की सीमा तय की गई है। साथ ही, बैंकों के खजाने में जमा बढ़ रहा है। इसकी प्रमुख वजह नोटों की छपाई में हो रही देरी है। दरअसल, पांच सौ रुपए के नोटों की छपाई को सीधे वित्त मंत्रालय के अधिकारी नियंत्रित कर रहे हैं। नासिक और देवास के मुद्रणालयों में पांच सौ के नोट छप रहे हैं। ये मुद्रणालय आरबीआइ और वित्त मंत्रालय के संयुक्त उपक्रम एसपीएमसीआइएल के तहत हैं। यहां वित्त मंत्रालय का निर्देश चलता है। इस उपक्रम का कोई सीईओ या अध्यक्ष नहीं है। इस कारण वित्त मंत्रालय सीधे दोनों जगह के काम को देख रहा है। दोनों जगह नोटों की छपाई के बारे में आरबीआइ के गाइड लाइन भेजे गए। इसके आधार पर नोटों की डिजाइन और प्रूफ वित्त मंत्रालय के पदेन अधिकारियों ने पास किए जबकि छपाई के अंतिम चरण तक आरबीआइ को नजर रखनी होती है। समन्वय के अभाव में गड़बड़ियां हुर्इं और दो डिजाइन वाले पांच सौ के नोट हड़बड़ी में छप गए। आरबीआइ की प्रिंसिपल एडवाइजर अल्पना किल्लावाला के अनुसार, ‘अभी नए नोट जारी करने की हड़बड़ी है। इस कारण कुछ गलत डिजाइन वाले नोट जारी कर दिए गए हैं। लेकिन वे चलन में हैं। अगर लोगों को परेशानी हो तो उन नोटों को आरबीआइ के काउंटरों से बदला जा सकता है।’ दूसरी ओर, वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशक और प्रवक्ता डीएस मलिक के अनुसार, ‘नए नोटों की कमी है। दोनों छापाखानों में हमारे वित्त मंत्रालय के पदेन अधिकारी अच्छे से काम देख रहे हैं। उस उपक्रम के प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। दरअसल, प्रधानमंत्री ने अचानक घोषणा की और हमें युद्धस्तर पर इंतजाम करने पड़ रहे हैं। जल्द ही समस्याओं का निपटारा हो जाएगा।’
जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया है तब से इस पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. समाज के अलग-अलग लोग अपनी राय रख रहे हैं. कुछ लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं तो कुछ विरोध. ऐसा लग रहा है जैसे पूरी दुनिया बंट गई है. लगभग सभी राजनैतिक दल नोटबंदी के खिलाफ खड़े हो गए हैं लेकिन जनता दल यूनाईटेड खुलकर नोटबंदी की तारीफ कर रही है.मीडिया के अंदर भी नोटबंदी को लेकर अलग-अलग राय हैं. दुनिया के नामी अर्थशास्त्री और उद्योगपति भी नोट बंदी को लेकर बंटे हुए हैं.
अमर्त्य सेन ने कहा यह “निरंकुश कार्रवाई” जैसा
नोबेल प्राइज़ विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन नोट बंदी जैसे निर्णय से खुश नहीं है. एक अंग्रेजी अखबार के साथ साक्षात्कार में प्रोफेसर सेन ने सरकार के नोट बंदी के इरादे और अमल पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है यह “निरंकुश कार्रवाई” जैसी है और सरकार की “अधिनायकवाद प्रकृति” का खुलासा करती है. प्रोफेसर सेन ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा लोगों को अचानक बताना कि उनके पास जो करेंसी है उसका इस्तेमाल नहीं हो सकता, अधिनायकवाद जैसा है. प्रोफेसर सेन का कहना है सिर्फ एक तानाशाही सरकार लोगों को इस तरह का कष्ट दे सकती है. लाखों बेगुनाह लोग अपने स्वयं के पैसे वापस लाने की कोशिश में पीड़ा,असुविधा और अपमान का सामना कर रहे हैं. विदेश से भारत में काला धन लाने में सरकार जैसी पहले अपने वादे में विफल हुई थी इस बार भी ऐसा ही होगा.
डी सुब्बाराव मानते हैं कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार कम होगा
अर्थशास्त्री और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने सरकार के नोटबंदी के कदम की सहराना की है. सुब्बाराव का कहना है कि कम अवधि में नोटबंदी विकास को चोट पहुंचा सकती है लेकिन लंबे समय में इसका असर ज्यादा फायदेमंद होगा. जितनी जल्दी सरकार और रिज़र्व बैंक संक्रमण को सही तरीके से संभालेगा उतना कम प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. सुब्बाराव मानते हैं कि रियल एस्टेट काला धन के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया है और नोटबंदी के बाद इस पर अंकुश लगाया जा सकता है. इसके साथ-साथ जमीन-मकान इत्यादि की कीमतों और किराए में कमी आ सकती है. सुब्बाराव ने कहा है कि नोटबंदी की वजह से सरकार की आय में सुधार होगा. लोगों की अघोषित आय पर टैक्स एजेंसी की नजर रहेगी और उन पर कड़ी कर्रवाई की जाएगी.
सुब्बाराव उम्मीद करते हैं कि नोटबंदी की वजह से सरकार सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत टैक्स के रूप में पा सकती है. सुब्बाराव का मानना है कि नोटबंदी की वजह से प्राइवेट सेक्टर में निवेश बढ़ेगा, सिस्टम को ठीक करने से बचत और निवेश पर सकारात्मक असर होगा. सुब्बाराव का कहना है कि नोटबंदी की वजह से लोग कैशलेस ट्रांजेक्शन की तरफ शिफ्ट होंगे और इससे भ्रष्टाचार कम होगा, देश का विकास होगा.
रुचिर शर्मा ने नोटबंदी की आलोचना की
मॉर्गन स्टेनली मुख्य वैश्विक रणनीतिकार रुचिर शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि बड़े बिल समाप्त होने से आज कुछ छिपा धन नष्ट हो सकता है लेकिन संस्कृति और संस्थाओं में गहरे परिवर्तन के अभाव की वजह से कल इस काली अर्थव्यवस्था का पुनर्जन्म होगा. एक अंग्रेजी अखबार में अपने एक आर्टिकल के जरिए रुचिर ने लिखा है कि अपने सिस्टम से सिर्फ काले धन को मिटाकर भारत विकास की उम्मीद नहीं कर सकता है. निश्चित रूप से कोई दूसरा देश भी नहीं है जहां ऐसा हुआ हो. रुचिर का कहना है कि दूसरे कम आय वाले देशों की तरह भारत की इकानॉमी कैश पर निर्भर करती है. भारत की बैंकिंग और टैक्स संस्थाएं त्रुटिपूर्ण हैं लेकिन इतनी त्रुटिपूर्ण नहीं हैं कि भारत में नोटबंदी जैसे कदम की जरूरत थी. भारत की जीडीपी में बैंक जमाओं का योगदान 60 प्रतिशत है जो एक गरीब देश के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. लेकिन पोलैंड और चेक रिपब्लिक जैसे उभरते देशों में भी इतना ही होता है जो संस्थागत क्षमता के लिए जाने जाते हैं. रुचिर शर्मा का कहना है सोवियत यूनियन, नार्थ कोरिया और ज़िम्बाब्वे जैसे देश बड़े बिल खत्म करने के लिए कठोर कदम उठा चुके हैं लेकिन ज्यादा से ज्यादा देशों में नतीजा अति मुद्रा स्फीति जैसी स्थिति हुई है. रुचिर मानते हैं अगर भारत मौलिक रूप से कुछ करना चाहता है तो बैंकिंग सिस्टम में निजीकरण की जरूरत है जहां सरकार का ऑनरशिप ज्यादा है और ऐसा दूसरे लोकतांत्रिक देशों में कम देखने को मिलता है.
टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने सरकार के नोटबंदी के कदम की सहराना की है. ट्विटर पर रतन टाटा ने लिखा कि सरकार का नोटबंदी का जो कदम है वह तीन सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक है. रतन टाटा का कहना है कि प्रधानमंत्री के मोबाइल और डिजिटल भुगतान पर ध्यान की वजह से एक नकद चालित अर्थव्यवस्था से एक कैशलेस अर्थव्यवस्था की सुविधा होगी जिसे भविष्य में अत्यधिक गरीब और वंचितों को लाभ होगा. रतन टाटा का कहना है कि नोटबंदी से कालेधन का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. भारत में समानांतर काले धन की अर्थव्यवस्था की वजह से चोरी, काला धन और भ्रष्टाचार बढ़ गया है और नोटबंदी के कार्यक्रम कार्यान्वयन के जरिए प्रधानमंत्री ने देश में काला बाजार अर्थव्यवस्था पर युद्ध छेड़ने में ज़बर्दस्त साहस दिखाया है. रतन टाटा ने लिखा है कि सरकार के काले धन को खत्म करने और काले धन के खिलाफ लड़ने के संकल्प को भारत के सभी नागरिकों के समर्थन और सहयोग की जरूरत है.