02 अप्रैल; दुर्गा सिद्धिदात्री; ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमो नमः
High Light #Durga-Saptashti- 9 दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय #नवां दिन, नवम् नवरात्रा 02 अप्रैल 2020, तिथिः राम नवमी, वार, गुरूवार, नवें दिन की दुर्गा सिद्धिदात्री है। # भवानी दुर्गा का नवां स्वरूप माँ सिद्धिदात्री का है। यह सभी सिद्धियों को देने वाली हैं। माँ चतुर्भुजी हैं जो कमल के आसन पर विराजित हैं यह सिंहारूढ़ हैं तथा अपने हाथों मे चक्र, गदा,शंख, और कमल को धारण किए हुए हैं। यह सर्वसिद्धि देने वाली और कष्टों दूर करने वाली हैं। # Durga-Saptashti-Chapter-12 Barhvan Adhyay : दुर्गासप्तशती के नवें अध्याय से मां का पूजन करें। नौवें दिन सिद्धिदात्री को मौसमी फल, हलवा, पूड़ी, काले चने, खीर और नारियल का भोग लगाया जाता है। नवमी के दिन पूजा करते समय बैंगनी या जामुनी रंग पहनना शुभ रहता है। यह रंग अध्यात्म का प्रतीक होता है। नवरात्र के 9वें दिन देवी की आराधना निम्न मंत्र के द्वारा करने से मां प्रसन्न होती है- वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥ Durga-Saptashti- 9 दुर्गा सप्तशती नवां अध्याय : 02 अप्रैल 2020 का दैनिक पंचांग
इनकी आराधना का मन्त्र पुराण में इस प्रकार प्राप्त होता है – अमल कमल संस्था तद्रज:पुंजवर्णा, कर कमल धृतेषट् भीत युग्मामबुजा च। मणिमुकुट विचित्र अलंकृत कल्प जाले; भवतु भुवन माता संत्ततम सिद्धिदात्री नमो नम:।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने सिद्धियों की प्राप्ति के लिए सिद्धिदात्री देवी की आराधना की थी, तभी भोलेनाथ को सभी सिद्धियां मिली थीं। तभी महादेव का आधा शरीर पुरुष का और आधा महिला का हो गया, तब महादेव का अर्धनारीश्वर स्वरूप प्रत्यक्ष हुआ।
चन्द्रशेखर जोशी- मुख्य सेवक- मॉ दशम विदया पीताम्बरा मंदिर-निर्माणाधीन- नंदादेवी एनक्लेव बंजारावाला देहरादून उत्तराखण्ड; हिमालयायूके को गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Bureau Report..
राजा ने कहा- हे ऋषिराज ! अपने रक्तबीज के वध से सम्बन्ध रखने वाला वृतांत मुझे सुनाया। अब मैं रक्तबीज के मरने के पश्चात क्रोध में भरे हुए शुम्भ व निशुम्भ ने जो कर्म किया, वह सुनना चाहता हूँ। महर्षि मेघा ने कहा- रक्तबीज के मारे जाने पर शुम्भ और निशुम्भ को बड़ा क्रोध आया और अपनी बहुत बड़ी सेना का इस प्रकार सर्वनाश होते देखकर निशुम्भ देवी पर आक्रमण करने के लिए दौड़ा, उसके साथ बहुत से बड़े-बड़े असुर देवी को मारने के वास्ते दौड़े और महा पराक्रमी शुम्भ अपनी सेना सहित चण्डिका को मारने के लिए बढ़ा, फिर शुम्भ और निशुम्भ का देवी से घोर युद्ध होने लगा और वह दोनों असुर इस प्रकार देवी पर बाण फेकने लगे जैसे मेघों से वर्षा हो रही हो, उन दोनों के चलाये हुए बाणों को देवी ने अपने बाणों से काट डाला और अपने शस्त्रों को वर्षा से उन दोनों दैत्यों को चोट पहुंचाई, निशुम्भ ने तीक्ष्ण तलवार और चमकती हुई ढाल लेकर देवी ने अपने क्षुरप्र नामक बाण ने निशुम्भ की तलवार व ढाल दोनों को ही काट डाला। तलवार और ढाल कट जाने पर निशुम्भ ने देवी पर शक्ति से प्रहार किया। देवी ने अपने चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए।
फिर क्या था दैत्य मारे क्रोध के जलभून गया और उसने देवी के मारने के लिए उसकी ओर शूल फेंका, किन्तु देवी ने अपने मुक्के से उसको चूर चूर कर डाला, फिर उसने देवी पर गदा से प्रहार किया, देवी ने त्रिशूल से गदा को भस्म कर डाला, इसके पश्चात वह फरसा हाथ में लेकर देवी की ओर लपका। देवी ने अपने तीखे बाणों से उसे धरती पर सुला दिया। अपने पराक्रमी भाई निशुम्भ के इस प्रकार से मरने पर शुम्भ क्रोध में भरकर मारने के लिए दौड़ा। वह रथ में बैठा हुआ उत्तम आयुधों से सुशोभित अपनी आठ बड़ी-बड़ी भुजाओं से सारे आकाश को ढके हुए था। शुम्भ को आते हुए देखकर देवी ने अपना शंख बजाया और धनुष की टंकोर का भी अत्यंत दुस्सह शब्द किया, साथ ही अपने घण्टे के शब्द से जो कि सम्पूर्ण दैत्य सेना के तेज को नष्ट करने वाला था सम्पूर्ण दिशाओं को व्याप्त कर दिया। इसके पश्चात देवी के सिंह ने भी अपनी दहाड़ से जिसे सुन बड़े-२ बलवानों को मद चूर-चूर हो जाता था। आकाश पृथ्वी और दशों दिशाओं को पूरित कर दिया, फिर आकाश में उछलकर काली ने अपने दांतों तथा हाथों को पृथ्वी पर पटका, उसके ऐसा करने से ऐसा शब्द हुआ, जिससे कि उससे पहले के सरे शब्द शांत हो गए, इसके पश्चात शिवदूती ने असुरों के लिए भय उत्पन्न करने वाला अट्टहास किया, जिसे सुनकर सब दैत्य थर्रा उठे और शुम्भ को बड़ा क्रोध हुआ, फिर अम्बिका ने उसे अरे दुष्ट ! खड़ा रह!!, खड़ा रह!! कहा तो आकाश से सभी देवता ‘जय हो, जय हो, बोल उठे ! शुम्भ ने वहाँ आकर ज्वालाओं से युक्त एक अत्यंत भयंकर शक्ति छोड़ी, जिसे आते देखकर देवी ने अपनी महोल्का नामक शक्ति से काट डाला। हे राजन! फिर शुम्भ के सिंह नाद से तीनों लोक व्याप्त हो गए और उसकी प्रतिध्वनि से ऐसा घोर शब्द हुआ, जिसने इससे पहले के सब शब्दों को जीत लिया।
शुम्भ के छोड़े बाणों को देवी ने और देवी के छोड़े बाणों को शुम्भ ने अपने बाणों से काट सैकड़ों और हजारों टुकड़ों में परिवतिर्त कर दिये। इसके पश्चात जब चण्डिका ने क्रोध में भर शुम्भ को त्रिशूल से मारा तो वह मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, जब उसकी मूर्छा दूर हुई तो वह धनुष लेकर आया और अपने बाणों से उसने देवी काली तथा सिंह को घायल कर दिया, फिर उस राक्षस दस हजार भुजाएं धारण करके चक्रादि आयुधों से देवी को आच्छादित कर, तब भगवती कुपित होकर अपने बाणों से उन चक्रों तथा बाणों को काट डाला, यह देख कर निशुम्भ हाथ में गदा लेकर चण्डिका को मारने के लिए दौड़ा, उसके आते ही देवी ने तीक्ष्ण धार वाले खड्ग से उसकी गदा को काट डाला। उसने फिर त्रिशूल हाथ में लिया, देवताओं को दुखी करने वाले निशुम्भ को त्रिशूल हाथ में लिए हुए आता देखकर चण्डिका ने अपने शूल से उसकी छाती पर प्रहार किया और उसकी छाती को चीर डाला शूल विदीर्ण हो जाने पर उसकी छाती में से एक उस जैसा ही महापराक्रमी दैत्य ठहर जा! ठहर जा! कहता हुआ निकाला । उसको देखकर देवी ने बड़े जोर से ठहाका लगाया। अभी वह निकलने भी ने पाया था कि उसका सिर अपनी तलवार से काट डाला। सिर के कटने के साथ ही वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। तदन्तर सिंह दहाड़ दहाड़ कर असुरों का भक्षण करने लगा और काली शिवदूती भी राक्षसों का रक्त पीने लगी। कौमारी की शक्ति से कितने ही महादैत्य नष्ट हो गए। ब्रह्मा जी के कमण्डल के जल से कितने ही असुर समाप्त हो गए। कई दैत्य माहेश्वरी के त्रिशूल से विदीर्ण होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और कई बाराही के प्रहारों से छिन्न – भिन्न होकर धराशायी हो गए। वैष्णवी ने भी अपने चक्र से बड़े २ महा पराक्रमियों का कचूमर निकालकर उन्हें यमलोक भेज दिया और ऐन्द्री से कितने ही महाबली राक्षस टुकड़े २ हो गए । कई दैत्य मारे गए , कई भाग गए, कितने ही काली शिवदूती और सिंह ने भक्षण कर लिए।
Durga-Saptashti-Chapter-9- नव अध्याय समाप्तम
Durga-Saptashti-Chapter-12 Barhvan Adhyay
देवी बोली – हे देवताओं ! जो पुरुष इन स्त्रोत्रों द्वारा एकाग्रचित होकर मेरी स्तुति करेगा, उसके सम्पूर्ण कष्टों को निःसन्देह हर लूंगी। मधु केटभ के नाश, महिसासुर के वध और शुम्भ तथा निशुम्भ के वध की जो मनुष्य कथा कहेंगे, मेरे महात्म्य को अष्टमी चतुर्दर्शी व नवमी के दिन एकाग्रचित से भक्तिपूर्वक सुनेंगे, उनको कभी कोई पाप न रहेगा, पाप से उत्पन्न हुई विपति भी उनकी न सताएगी, उनके घर में दरिद्रता न होगी और ने उनको प्रियजनों का विछोह ही होगा, उनको किसी प्रकार का भय न होगा। इसी लिए प्रत्येक मनुष्य को भक्ति पूर्वक मेरे इस कल्याणकारक महात्म्य को सदा पढ़ना चाहिए, मेरा यह माहात्म्य महामारी से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण उपद्रोवों को एवं तीन प्रकार के उत्पातों को शांत कर देता है, जिस घर व मंदिर में या जिस स्थान पर मेरा यह स्त्रोत विधि पूर्वक पाठ करता है, उस स्थान का मैं कभी भी त्याग नहीं करती और वहाँ सदा ही मेरा निवास रखता है। बलिदान, पूजा, होम तथा महोत्सवों में मेरा यह चरित्र उच्चारण करना तथा सुनना चाहिए। ऐसा हवन या पूजन मनुष्य चाहे जानकर या बिना जाने कर, मैं उसे तुरन्त ग्रहण कर लेती हूँ और शरद कल में प्रत्येक वर्ष जो महापूजा की जाती है, उनमें मनुष्य भक्ति पूर्वक मेरा यह माहात्म्य सुनकर सब विपतियों से छूट जाता है और धन, धान्य तथा पुत्रादि से सम्पन्न हो जाता है और मेरे इस माहात्म्य व कथाओं इत्यादि को सुनकर मनुष्य युद्ध मे निर्भय हो जाता है और महाम्त्य के शरण करने वालों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं तथा कल्याण की प्राप्ति होती है और उनका कुल आनन्दित हो जाता है, सब कष्ट शांत हो जाते हैं तथा भंयकर स्वप्न दिखाई देना तथा घरेलु दुःख इत्यादि सब मिट जाते हैं । बालग्रहों में ग्रसित बालकों के लिए यह मेरा महात्म्य परम शांति का देने वाला है ।
मनुष्यों में फूट पड़ने पर यह भलीभाँति मित्रता करवाने वाला है। मेरा यह महात्म्य मनुष्यों को मेरी जैसी सामर्थ्य की प्राप्ति करवाने वाला है, पुश, पुष्प, अधर्य, धूप, गन्ध, दीपक इत्यादि सामग्रियों द्वारा पूजन करने से, ब्राह्मण को भोजन कराके हवन करके प्रतिदिन अभिषेक करके नाना प्रकार के भोगों को अर्पण करके और प्रत्येक वर्ष दान इत्यादि करके जो मेरी आराधना की जाती है और उससे मैं जैसी प्रसन्न हो जाती हूँ, वैसी ही प्रसन्न मैं इस चरित्र के सुनने से हो जाती हूँ । यह महात्म्य श्रवण करने पर पापों को हर लेता है तथा आरोग्य प्रदान करता है, मेरे पादुर्भाव का कीर्तन दुष्ट प्राणियों से रक्षा करने वाला है, युद्ध का भय नहीं रहता। हे देवताओं! तुमने जो स्तुति की है अथवा ब्रह्मजी ने जो मेरी स्तुति की है, वह मनुष्यों की कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करने वाली है। वन में सूने मार्ग में अथवा दावानल से घिर जाने पर, वन में चोरों से घिरा हुआ या शत्रुओं द्वारा पकड़ा हुआ, जंगल में सिहों से, व्याघ्रों से या जंगली हाथियों द्वारा पीछा किया हुआ, राजा के क्रोध हो जाने पर मारे जाने के भय से, समुद्र में नाव के डगमगाने पर भयंकर युद्ध में फंसा होने पर, किसी भी प्रकार की पीड़ित, घोर बाधाओं से हुआ मनुष्य, मेरे इस चरित्र को स्मरण करने से संकट से मुक्त हो जाता है।
मेरे प्रभाव से सिंह चोर या शत्रु इत्यादि दूर भाग जाते हैं और पास नहीं आते। महर्षि ने कहा- प्रचण्ड पराक्रमी वाली भगवती चंडिका यों कहने के पश्चात सब देवताओं के देखते ही देखते अन्तर्धान हो गई और सम्पूर्ण देवता अपने शत्रुओं के मारे जाने पर पहले की तरह यज्ञ भाग का उपभोग करने लगे और उनको अपने अदिकार फिर से प्राप्त हो गए तथा युद्ध में देवताओं के शत्रुओं शुम्भ व निशुम्भ के देवी के हाथों मारे जाने पर बाकि बचे हुए राक्षस पाताल को चले गए। हे राजन! इस प्रकार भगवती अम्बिका नित्य होती हुई भी बार- बार प्रकट होकर इस जगत का पालन करती है, इसको मोहित करती है, जन्म देती है और प्रार्थना करने पर समृद्धि प्रदान करती है। हे राजन! भगवती ही महाप्रलय के समय महामारी का रूप धारण करती है और वही सम्पूर्ण ब्राह्मण में व्याप्त है अरु वही भगवती समय- समय पर महाकाली तथा महामारी का रूप बनाती है और स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूप में प्रकट होती है, वह सनातनी देवी प्राणियों पालन करती है और वही मनुष्य के अभ्युदय के समय लक्ष्मी का रूप बनाकर स्थित जाती है तथा आभाव दरिद्रता बनकर विनाश का कारण बन जाती है। पुष्प, धूप और गन्ध आदि से पूजन करके उसकी स्तुति करने से वह धन एवम पुत्र देती है और धर्म में शुभ बुद्धि प्रदान करती है।
Durga-Saptashti-Chapter-13 दुर्गा सप्तशती तेरहवाँ अध्याय
महर्षि मेघा ने कहा – हे राजन ! इस प्रकार देवी के उत्तम माहात्म्य का वर्णन मैंने तुमको सुनाया। जगत को धारण करने वाली इस देवी का ऐसा ही प्रभाव है, वही देवी ज्ञान के देने वाली है और भगवान विष्णु की इस माया के प्रभाव से तुम और यह वैश्य तथा अन्य विवेकीजन मोहित होते हैं और भविष्य में मोहित होंगे। हे राजन ! तुम इसी परमेश्वरी की शरण में जाओ। यही भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है। मार्कण्ड जी ने कहा- महर्षि मेघा की यह बात सुनकर राजा सुरथ ने उन उग्र व्रत वाले ऋषि की प्रणाम किया और राज्य के छिन्न जाने के कारण उसके मन में अत्यंत ग्लानि हुई, और वह राजा तथा वैश्य तपस्या के लिए वन को चले गए और नदी के तट पर आसान लगाकर भगवती के दर्शन के लिए तपस्या करने लगे। दोनों ने नदी के तट पर देवी की मूर्ति बनाई और पुष्प, धूप, गन्ध, डीप तथा हवन द्वारा उसका पूजन करने लगे। पहले उन्होंने आहारको काम कर दिया। फिर बिलकुल निराहार रहकर भगवती में मन लगाकर एकाग्रता पूर्वक उसकी आराधना करने लगे।
Durga-Saptashti-Chapter-13 Terhva Adhyay
वह दोनों अपने शरीर के रक्त से देवी को बलि देते हुए तीन वर्ष तक लगातार भगवती की आराधना करते रहे। तीन वर्ष के पश्चात जगत का पालन करने वाली चंडिका ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन देकर कहा। देवी बोली- हे राजन! तथा अपने कुल को प्रसन्न करने वाले वैश्य! तुम जिस वर की इच्छा रखते हो वह मुझसे माँगो, वह वर में तुमको दूँगी, क्योंकि मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ। मार्कण्ड जी कहते हैं- यह सुन राजा ने अगले जन्म में नष्ट न होने वाला अखण्ड राज्य और इस जन्म में बल पूर्वक अपने शत्रुओं को नष्ट करने के पश्चात अपना पुनः राज्य प्राप्त करने के लिए भगवती से वरदान माँगा और वैश्य ने भी जिसका चित्त संसार की ओर से विरक्त हो चुका था, अतः भगवती से अपनी तथा अहंकार रूप आसक्ति को नष्ट कर देने वाले ज्ञान को देने के लिए कहा। देवी ने कहा- हे राजन ! तुमशीघ्र ही अपने शत्रुओं को मारकर पुनः अपना राज्य प्राप्त कर लोगे, तुम्हारा राज्य स्थिर रहने वाला होगा, फिर मृत्यु के पश्चात आप सूर्यदेव के अंश से जन्म लेकर सावर्णिक मनु के नाम से इस पृथ्वी पर ख्याति को प्राप्त होंगे। हे वैश्य ! कुल में श्रेष्ठ आपने जो मुझसे माँगा है, वह आपको देती हूँ, आपको मोक्ष के देने वाले ज्ञान की प्राप्ति होगी। मार्कण्ड जी कहते हैं- इस प्रकार उन दोनों को मनवांछित वर प्रदान कर तथा उनसे अपनी स्तुति सुनकर भगवती अतंर्धान हो गई और इस प्रकार क्षत्रियों में श्रेष्ठ वह राजा सुरथ भगवान सूर्यदेव से जन्म लेकर इस पृथ्वी पर सावर्णिक मनु के नाम से विख्यात होंगे।
02 अप्रैल 2020 का दैनिक पंचांग
हिन्दू पंचांग को वैदिक
पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय एवं काल की सटीक गणना की
जाती है। पंचांग मुख्य रूप से पांच अगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग एवं करण हैं। यहां
हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ, मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त
का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की
स्थिति, हिन्दू
मास, एवं
पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
तिथि | नवमी | 26:41 तक |
नक्षत्र | पुनर्वसु | 19:20 तक |
करण |
बालवा कौवाला |
15:12 तक 26:41 तक |
पक्ष | शुक्ल | |
वार | गुरुवार | |
योग | अतिगंदा | 15:14 तक |
सूर्योदय | 06:13 | |
सूर्यास्त | 18:35 | |
चन्द्रमा | मिथुन राशि में | |
राहुकाल | दोपहर | 13:57 − 15:29 |
विक्रमी संवत् | 2077 | |
शक सम्वत | 1941 | |
मास | चैत्र | |
शुभ मुहूर्त | अभिजीत | 11:59 − 12:49 |
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