भगवती कोटगाड़ी : कलयुग मे नाम लेने मात्र से जागृत, सुप्रीम कोर्ट का दर्जा प्राप्त: दुर्गम स्थान पर विराजमान: अतिशयोक्ति मानने की भूल ना कर बैठना- देदून में पीतांबरा श्री बगलामुखी की स्थापना से पूर्व और स्थापना के उपरांत चंद्रशेखर जोशी को भगवती का दरबार मे आने का संकेत

Dt 6 August 2023: किवदंतियों के अनुसार, जब उत्तराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थ मानते हैं और उनकी अधिकार परिधि शिव तत्व में विलीन हो जाती है। तब अनंत निर्मल भाव से परम ब्रह्मांड में स्तुति होती है कोटगाड़ी देवी की# संसार में भटका मानव जब चौतरफा निराशाओं से घिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है, तो संकल्प पूर्वक कोटगाड़ी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से स्मरण किया जाता है, वहीं से निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं# मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है# इस मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं।

अगस्त माह अंतिम सप्ताह में नई दिल्ली में राष्ट्रीय वैदिक तंत्र गुरु डॉ आचार्य शैलेश तिवारी जी से दिल्ली में आशीर्वाद लेकर चंद्रशेखर जोशी वर्ष के अंतिम माहो में कोट गाड़ी के दुर्गम स्थान को प्रस्थान करेंगे,, इससे पूर्व विख्यात भेज परम आदरणीय श्रीमान प्रदीप भंडार जी से रामनगर जनपद नैनीताल में आशीर्वाद लेंगे

महामाई की प्राण प्रतिष्ठा देहरादून कराने के उपरांत न्याय के सुप्रीम कोर्ट की मान्यता प्राप्त वडगाड़ी भगवती का अपने दरबार में बुलाने का संकेत आया : चंद्रशेखर जोशी ब्राह्मण वशिष्ठ गोत्र, नाग वंशीय पुजारी परिवार तथा पुण्या गिरी माता टनकपुर मुख्य पुजारी तिवारी परिवार से मौसेरा रिश्ता & मुख्य सेवक महामाई पितांबरा श्री बगलामुखी शक्तिपीठ मंदिर बंजारावाला देहरादून

कोट गाड़ी, जोशी जाति के ब्राह्मणों का गांव, जहां मा कोट गाड़ी स्वय प्रकट हुई थी, तथा बोलती भी थी, यह स्थान माता का शक्तिपीठ है, एक रत्ती भी चूक ना हो पाए, क्योंकि भगवती को गलती मंजूर नहीं, माता का दरबार सुप्रीम कोर्ट की मान्यता लिए है

कोटगाड़ी देवी # कोटगाड़ी मंदिर में भगवती सात्विक वैष्णवी रूप में पूजी जाती है. लोक मान्यता है कि यहां देवी माता की मूर्ति में योनि उकेरी हुई है, जिसे ढंककर रखा जाता है.# यहां पर सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।#पांखू के कोकिला स्थान पर देवी का योनि वाला भाग गिरा था। इसलिए यहां योनि आदि शक्ति पीठ की पूजा होती है। इसे कोट यानी न्याय की देवी भी कहा जाता हैं जो कोटगाड़ी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई। यहां देवी सातवीं वैष्णवी के रूप में पूजी जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां आकर इसके तात्कालिक शक्ति और दिव्य महात्म्य का बखान किया था। इन्हें कोकिला माता के नाम से भी जाना जाता हैं। मां के दरबार में जर, जमीन और जोरू के विषय पर तुरंत फैसला होता है। जब लोगों को कहीं से न्याय नहीं मिलता है तब वह इस कोट में आकर सादे कागज में अपनी अर्जी लगाते हैं।

By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे

मंदिर के पुजारी जीवन चंद्र पाठक रोज रात को देवी मां की सैया सजाते हैं। मां रात्रि को उस पर विश्राम करती हैं। सुबह के समय बिस्तर पर सलवटें मिलती हैं।

आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि पर ही पधारकर धन्य मानते हुए कहा कि इस ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र मेंशक्तिपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है।

देवी भगवती को समर्पित यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चौकोड़ी के करीब कोटमन्या मार्ग से 17 किलोमीटर की दूरी पर कोटगाड़ी नाम के एक गांव में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार कोटगाड़ी मूलत: जोशी जाति के ब्राह्मणों का गांव था। एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई थीं और यहीं रहती थीं तथा न्याय भी देती थीं। देवत्व के लिए प्रसिद्ध इस देवभूमि के कोटगाड़ी ग्राम में कोकिला देवी एक ऐसी देवी हैं, जिनके दरबार में न्यायालय से मायूस हो चुके लोग आकर न्याय की गुहार लगाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाता, वह माता के दरबार में बिना वकील के हो जाता है। विरोधी दोषी हुआ तो उसे बेहद कड़ी सजा दी जाती है।

गांववासी अपने जंगल को भी देवी को चढ़ा देते हैं। देवी उनके जंगलों की देखभाल भी शक्ति से करती हैं। देवी के गर्भ गृह के भीतर जमीन के नीचे अविरल बहने वाली जल संपदा है। इसका सिंचाई और पीने के शुद्ध पानी के रूप में प्रयोग होता है। इसी प्रवाह से निकले पानी से कोकिला नदी या क्रांति नदी की महत्ता स्कंद पुराण में वर्णित है। कोटगाड़ी माता को लोग जहां डाक द्वारा भी अर्जी दाखिल करते हैं वहीं दूर से मनौती मानने पर भी वो सबकी सुन लेती है

न्याय की देवी अधिष्ठात्री के रूप में प्रतिष्ठित है कोटगाड़ी भगवती मां. कुमाऊं के अन्य कई न्यायकारी मंदिरों की भांति यहां भक्त अपनी आपदा-विपदा, अन्याय, असमय कष्ट व कपट के निवारण के लिये पुकार लगाते हैं मनौती मांगते हैं. न्याय की कामना करते हैं. लोक विश्वास है कि भगवती-वैष्णवी के दरबार में पांचवीं पुश्तों तक का भी निर्णय-न्याय मिलता है. इस संदर्भ की अनेक किवदंतियां हैं. पहले देवी के सामने अपने प्रति हो रहे अन्याय की पुकार व घात लगाने की प्रथा थी. अब अपनी विपदा को पत्र व स्टाम्प पेपर में लिख कर देने का प्रचलन बड़ गया है.

धर्म चक्र: यह है भगवती का सुप्रीम कोर्ट; ( अतिशयोक्ति मानने की भूल न कर बैठना) नाम लेने मात्र से जागृत होने वाली भगवती देवी के इस दरबार को शास्त्रों में सुप्रीम कोर्ट की उपाधि प्राप्त है, जो पिथौरागढ़ जनपद के सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, चंद्रशेखर जोशी को देहरादून मे महा माई की प्राण प्रतिष्ठा समारोह कराने के उपरांत अपने दुर्गम स्थान मे स्थित दरबार में आने का निर्देश प्राप्त हुआ है

वही ज्ञात हो कि महामाई पितांबरा श्री बगुलामुखी की प्राण प्रतिष्ठा हेतु महामाई ने मुझे अप्रैल 2023 में निमित्त मात्र बनाया, अब सुप्रीम शक्ति से दरबार में आने का संकेत मिला; चंद्रशेखर जोशी मुख्य सेवक महामाई देहरादून

कलयुग मे जब सभी देवता कुछ विशेष परिस्थितियों में स्वयं को न्याय देने व फल प्रदान करने में असमर्थ मानते है तो ऐसी स्थिति में कोकिला कोटगाडी देवी न्याय देती है। हिमालय के देवी ्रशक्ति पीठों में कोकिला माता का महात्म्य सबसे निराला है, सिद्वि की अभिलाशा रखने वाले तथा ऐश्वर्य की कामना करने वाले लोगों के लिए भी यह स्थान त्वरित फलदायक है, देवी के उपासक इन्हें विश्वेश्वरी, चन्दि्रका, कोटवी, सुगन्धा, परमेश्वरी, चण्डिका, वन्दनीया, सरस्वती, अभया प्रचण्डा, देवमाता, नागमाता, प्रभा आदि अनेक नामों से पुकारते है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जल कुण्ड है, मान्यता है, कि ब्रहम व मूहत में माता कोकिला इस जल से स्नान करती है। कोकिला माता की छत्रछाया में विराजमान काली नाग को भी काली का परम उपासक माना जाता है। कुल मिलाकर कोकिला माता का दरबार श्रद्वा व भक्ति का संगम है, जो सदियों से पूज्यनीय है।

पीडतों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना जाता है, और इसी भाव से इनकी पूजा प्रतिश्ठा सम्पन कराने की परम्परा है यह मंदिर न्याय की देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। कुमाऊं के अन्य कई न्यायकारी मंदिरों की भांति यहां भक्त अपनी आपदा-विपदा, अन्याय, असमय कष्ट व कपट के निवारण के लिये पुकार लगाते हैं।

देवत्व के लिए प्रसिद्ध देवभूमि उत्तराखंड में कोटगाड़ी (कोकिला देवी) नाम की एक ऐसी देवी हैं, जिनके दरबार में कोर्ट सहित हर दर से मायूस हो चुके लोग आकर न्याय की गुहार लगाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाता, वह माता के दरबार में बिना दलील-वकील के हो जाता है। विरोधी दोषी हुआ तो वह उसे बेहद कड़ी सजा देती हैं।

कोटगाड़ी मंदिर में भगवती सात्विक वैष्णवी रूप में पूजी जाती है। लोक मान्यता है कि यहां देवी माता की मूर्ति में योनि उकेरी हुई है, जिसे ढंककर रखा जाता है। कोटगाड़ी के मुख्य मंदिर के साथ बागादेव के रुप में पूजित दो भाइयों सूरजमल और छुरमल का मंदिर है। मंदिर के अहाते में हवन कुंड व धूनी है। मंदिर के सामने बने कमरों में साधुओं के ठहरने की सुविधा है।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पांखू में मौजूद है देवी का अनोखा और अलौकिक मंदिर जिसे कोटगाड़ी मंदिर के नाम से जाना जाता है। न्याय की यह देवी पिथौरागढ जनपद के डीडीहाट क्षेत्र मे है, कोकिला कोटगाडी देवी न्याय की देवी के रूप में विख्यात एक नही सैकडो चमत्कारिक करिश्मे जब न्याय की उम्मीद नही रह जाती है, तो कोटगाडी देवी की शरण में न्याय मिलता है, कोटगाडी देवी उसे अवश्य ही न्याय दिलाती जिस प्रकार अंतिम न्याय उच्चतम न्यायालय में मिलता है

लोक विश्वास है कि भगवती-वैष्णवी के दरबार में पांचवीं पुश्तों तक का निर्णय-न्याय मिलता है। इस बात को लेकर अनेक किवदंतियां भी हैं, पहले देवी के सामने अपने प्रति हो रहे अन्याय की पुकार व घात लगाने की प्रथा थी अब अपनी विपदा को पत्र व स्टाम्प पेपर में लिख कर देने का प्रचलन बड़ गया है। कोटगाड़ी देवी के मुख्य सेवक भंडारी ग्वल्ल हैं। यह मंदिर चंद राजाओं के समय में स्थापित बताया जाता है और मंदिर बनाने को लेकर स्वप्न में स्थानीय निवासियों को इस मंदिर की स्थापना का आदेश मिला था। हर वर्ष चैत्र व अश्विन मास की अष्टमी को तथा भादों में ऋषि पंचमी को मंदिर में मेला लगता है।

दोषी ही नहीं उसके प्रियजनों, पशुओं की जान तक ले लेती हैं, लेकिन यदि फरियादी ही दोषी हो और किसी अन्य पर झूठा दोष या आरोप लगा रहा हो, तो उसकी भी खैर नहीं। वह स्वयं भी माता के कोप से बच नहीं सकता। इसलिए लोग बहुत सोच समझकर ही माता के दरबार में न्याय की गुहार लगाते हैं और जब हर ओर से हार कर उनका नाम लेते हैं, तो उन्हें अवश्य ही न्याय मिलता है।

कुमायूं में न्याय की देवी कोटगाड़ी की विशेष मान्‍यता है, मान्यताओं के अनुसार यहां असंभव कार्य संभव हो जाता है। लोगों की माने तो सुप्रीम कोर्ट से भी निराश जन यहां न्‍याय पाता है। वर्षो से देवी न्‍याय करती आ रही है, पुजारी याचिकाकर्ता से पूरी शिकायत कागज पर लिखवाकर देवी के हाथ में विद्यमान तराजू पर रख देते हैं, फिर पुजारी को देवी आभास कराती है कि इतने दिन बाद इसकी शिकायत पर न्‍याय होगा। यहां विज्ञान भी फेल हो जाता है, देवी का सच्‍चा न्‍याय याचिकाकर्ता को अमुक दिन पर मिलता है।

कोटगाड़ी माता का दरबार एक छोटे से मंदिर के रूप में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चौकोड़ी के करीब कोटमन्या मार्ग से 17 किमी की दूरी पर कोटगाड़ी नाम के एक गांव में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार कोटगाड़ी मूलत: जोशी जाति के ब्राह्मणों का गांव था। एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई थीं और यहीं रहती थीं, तथा बोलती भी थीं।

लिहाजा यह स्थान माता का शक्तिपीठ है। माता ने स्वयं स्थानीय वाशिंदों को पास के दशौली गांव के पाठक जाति के एक ब्राह्मण को यहां बुलाया था। कोटगाड़ी गांव के जोशी लोग माता के आदेश पर दशौली के एक पाठक पंडित को यहां लेकर आए, और उन्हें माता के मंदिर के दूसरी ओर के ‘मदीगांव” नाम के गांव में बसाया। इन्हीं पाठक पंडित परिवार को ही मंदिर में पूजा-पाठ कराने का अधिकार दिया गया।

वर्तमान में उन पाठक पंडित की करीब 10 पीढ़ियों के उपरांत करीब 28 परिवार हो चुके हैं। इस तथ्य से मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। पाठक परिवार के लोग ही मंदिर में पूजा कराने का अधिकार रखते हैं। स्वयं के आचरण तथा साफ-सफाई व शुद्धता का बहुत कड़ाई से पालन करते हैं। परिवार में नई संतति अथवा किसी के मौत होने जैसी अशुद्धता की स्थिति में पास के घांजरी गांव के लोगों को अपनी जगह पूजा कराने की जिम्मेदारी देते हैं। लिहाजा एक परिवार के सदस्यों का करीब तीन से नौ माह में पूजा कराने का नंबर आता है।

गांव के पास ही भंडारी ग्वल ज्यू का भी एक मंदिर है। कोटगाड़ी आने वाले लोगों के लिए भंडारी ग्वल ज्यू के मंदिर में भी शीष नवाना व खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाना आवश्यक माना जाता है। कार्की लोग इस मंदिर के पुजारी होते हैं। माता के बारे में मान्यता है कि वह यहां आए बिना भी पुकार सुन लेती हैं, और कड़ा न्याय करती हैं। इसी कारण माता पर न केवल लोगों का अटूट विश्वास है बल्कि उनसे भय भी रहता है। कुमाऊं मंडल में अनेक गांवों के लोगों ने कोटगाड़ी माता के नाम पर इस भय मिश्रित श्रद्धा का सदुपयोग वनों-पर्यावरण को बचाने के लिए भी किया है। गांवों के पास के वनों को माता को चढ़ा दिया गया है, जिसके बाद से कोई भी इन वनों से एक पौधा भी काटने की हिम्मत नहीं करता।

एक प्राचीन कथा के अनुसार जब योगेश्वर भगवान श्री कृश्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन किया और उसे जलाशय छोडने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान कृश्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि, हे प्रभु हमे ऐसा सुगमं स्थान बताये जहाँ हम पूर्णतः सुरक्षित रह सके तब भगवान श्री कृश्ण ने इसी कश्ट निवारिणी माता कीश््रशरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था। कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाडी से थोडी ही दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसे स्थानीय भाशा में ’’काली नाग को डान कहते है, बताते है, पर्वत की चोटी पर स्थित इस मदिर को कभी भी गरुड आर-पार नही कर सकते ऐसी परमकृपा है,

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