Editor-in-chief Hindustan Times resigned?

प्रधानमंत्री का संपादक हटवाना? Editor-in-chief at Hindustan Times resigned from his post.

Execlusive: www.himalayauk.org (Newsportal) 

Aparisim “Bobby” Ghosh is a journalist and the editor-in-chief of the Hindustan Times. He was previously managing editor of the business news website Quartz and TIME Magazine’s World Editor
Aparisim ‘Bobby’ Ghosh, who served as the editor-in-chief at Hindustan Times for the past 14 months, has resigned from his post.  Ghosh was moving to New York “for personal reasons” a statement by Hindustan Times chairperson Shobhana Bhartia said.

प्रधानमंत्री का संपादक हटवाना?
[EDITED BY : हरि शंकर व्यास ] PUBLISH DATE: ; SEP 27, 2017 06:31 AM

यदि ‘द वायर’ का लिखा सचमुच सही है तो बहुत शर्मनाक है यह! पर वायर ने पीएमओ, शोभना भरतीया को सवाल भेज, सोर्स और परिस्थितिजन्य घटनाक्रम के हवाले जो रिपोर्ट छापी है वह मामूली नहीं हैं। सोचें, भारत का प्रधानमंत्री सवा सौ करोड़ लोगों की चिंता करने के बजाय यह चिंता करता मिले कि अखबार गुलाम हैं तब भी उसका संपादक, पत्रकार धर्म-जाति-नस्ल के नाम पर हुए अपराधों का ब्योरा न बनवाए! आजाद भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक बीजी वर्गीज को इसलिए हटवाया था क्योंकि वर्गीज विचार में स्वतंत्रता लिए हुए थे। नरेंद्र मोदी ने हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक को इसलिए हटवाया बताते हैं क्योंकि उसने अपराध का, ‘हेट ट्रैकर’ वाला रिकार्ड बनवाना चाहा।

Bhartia was all praises for Ghosh saying he brought in a dramatic shift in their various news products during his brief stint as the top boss of the newspaper.
“This is reflected not only in our traffic numbers, but in the sheer ambition of our journalism. Under his leadership, HT Newsroom has pursued bold ideas and has addressed some of the most pressing issues of our time. We have come to be recognized as the place for journalistic innovation and enterprise,” Bhartia said.
While there is no information on his future ventures, Bhartia said that he has agreed to stay on editor-in-chief for a while “to help in the transition and complete some projects he has already launched”.
Ghosh had taken over as the editor-in-chief of Hindustan Times in 2016 from Sanjoy Narayan, who had held the job since 2008.
Before Hindustan Times, Ghosh was the managing editor at Quartz for almost two years since June 2014. Ghosh has held several positions at Time magazine. He became ‘world editor’ for the magazine after having served as the Baghdad bureau chief and as a foreign correspondent in Iraq. He has also worked in Time Europe and Time Asia.

Aparisim “Bobby” Ghosh is a journalist and the editor-in-chief of the Hindustan Times[1]. He was previously managing editor of the business news website Quartz[2] and TIME Magazine’s World Editor.[3] An Indian national, he was the first non-American to be named World Editor in TIME’s more than 80 years. He has previously been TIME’s Baghdad bureau chief, and one of the longest-serving correspondents in Iraq. He has written stories from other conflict areas, like Palestine and Kashmir. He has also worked for Time Asia and Time Europe and has covered subjects as varied as technology and football (like his very famous article about Lionel Messi), business and social trends. He started his career as journalist with Deccan Chronicle, a popular English daily, at Visakhapatnam, Andhra Pradesh, India. His Baghdad journalism has included profiles of suicide bombers and other terrorists, stories about extraordinary Iraqis and also political figures.
Author of provocative Time magazine article related to the cover “Is America Islamophobic?” mildly titled “Does America Have a Muslim Problem?” when US attention to the building of a mosque near Ground Zero led the news.
He has postulated that to a believing Muslim, the perception may be that ‘burning the Koran is much worse than burning the Bible, because the koran is directly from God, while the Bible isn’t.'[4]
Hindustan Times’ editor-in-chief Bobby Ghosh has resigned from his post, reports said.
According to Outlook, Ghosh’s resignation, which has come within 14 months of him joining the organisation, “was announced to the employees by chairperson of the HT Media Ltd Shobhana Bhartia on Monday”.
Exchange4media said that Bhartia announced Ghosh’ resignation in a letter to Hindustan Times employees, whrein Bhartia said that Ghosh will be returning to New York.
“I am deeply disappointed to share the news that Bobby Ghosh will be returning to New York, for personal reasons,” the letter said.
Hindustan Times was recently in the Hindustan Times was recently in the news for shutting down few of its branch offices and firing a large number of its employees. The company had reportedly stated that the sacking was part of the company investing into a ‘Digital Future’ and the ‘creation of an ultra modern and hi-tech newsroom in Delhi’
Ghosh is credited to have engineered transformation of various news products of the news organisation in his short span of 14 months with HT Digital Streams Ltd.

प्रधानमंत्री का संपादक हटवाना?
[EDITED BY : हरि शंकर व्यास ] PUBLISH DATE: ; SEP 27, 2017 06:31 AM

यदि ‘द वायर’ का लिखा सचमुच सही है तो बहुत शर्मनाक है यह! पर वायर ने पीएमओ, शोभना भरतीया को सवाल भेज, सोर्स और परिस्थितिजन्य घटनाक्रम के हवाले जो रिपोर्ट छापी है वह मामूली नहीं हैं। सोचें, भारत का प्रधानमंत्री सवा सौ करोड़ लोगों की चिंता करने के बजाय यह चिंता करता मिले कि अखबार गुलाम हैं तब भी उसका संपादक, पत्रकार धर्म-जाति-नस्ल के नाम पर हुए अपराधों का ब्योरा न बनवाए! आजाद भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक बीजी वर्गीज को इसलिए हटवाया था क्योंकि वर्गीज विचार में स्वतंत्रता लिए हुए थे। नरेंद्र मोदी ने हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक को इसलिए हटवाया बताते हैं क्योंकि उसने अपराध का, ‘हेट ट्रैकर’ वाला रिकार्ड बनवाना चाहा।

सोचें, इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी का सफर क्या फर्क लिए हुए है? तब भी हिंदुस्तान टाइम्स वैसा ही था जैसा आज है। तब मालिक केके बिड़ला ने अपने पिता जीडी बिड़ला की विरासत को कलंकित कर रखा था और आज उनकी बेटी शोभना भरतीया अपने पिता केके बिड़ला की देन का, उनकी सोच में ऐसा भठ्ठा बैठाए हुए हैं कि केके बिड़ला की आत्मा भी यह देख बिलबिलाती होगी तो माधवराव सिंधिया, सोनिया गांधी, चिदंबरम से लेकर नरेंद्र मोदी के दरबार का उनकी बेटी का गिरगिटी सफर बिड़लाओं की पुण्यताओं पर कैसा पानी फेर रहा है!

मगर इस किस्से में इससे भी गंभीर हम हिंदुओं का कोर सवाल यह उठता है कि हम कैसे लिजलिजे, कायर और बिना रीढ़ के हैं! जो खरबपति है, जो तीन-चार पीढ़ियों की विरासत लिए हुए है, जिनके दादा ने अंग्रेजों के वक्त आजादी का यज्ञ बनवाया थे वे स्वदेशी सत्ता के आगे भला क्यों ऐसे लेटते हैं मानो रीढ़ हो ही नहीं! ये कैसे हिंदू हैं?

उफ! घृणा होती है यह विचारते हुए कि भारत का लोकतंत्र आज पाकिस्तान के आगे बौना बना दिख रहा है। पिछले साढ़े तीन साल में भारत बनाम पाकिस्तान के लोकतंत्र, मीडिया, अदालत में तुलना की जाए तो वहां लोकतंत्र का हर फूल दम दिखा रहा है वहीं भारत में हर फूल मुरझाया पड़ा है। पांवों में कुचलते हुए भी कहता है यह तो कृपा! प्रधानमंत्रीजी आप मेरे संपादक को ठीक नहीं मानते हैं तो मैं उसे तुरंत हटाती हूं। आप तो बस मेरे हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशीप सम्मेलन में आने की कृपा करें!

याद है आपको वह किस्सा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के द इकोनोमिक टाइम्स के ग्लोबल बिजनेस समिट का ऐनवक्त नरेंद्र मोदी, अमित शाह ने बायकॉट किया और मालिकों के पसीने निकलवा दिए। फिर शोभना भरतीया तो यों भी उस हिंदुस्तान टाइम्स की मालकिन हैं, जिसने इंदिरा गांधी हों, राजीव गांधी हों या देवगौड़ा या वाजपेयी-मनमोहन सिंह, नरेंद्र मोदी सबके आगे एक ही चरित्र दिखाया है कि हम सत्ता के पुजारी हैं! और भारत के ये कथित बड़े अखबार ‘लीडरशीप’ के शिखर सम्मेलन कर दावा करते है कि वे कितने बड़े हैं और ‘लीडरशीप’ पर विचार का पाखंड करते हैं। झुकने की कहो तो रेंगेंगे, संपादक हटाएंगे और खरबपति मीडिया मालिक के बावजूद भारत को दुनिया में शर्मसार करेंगे!

तभी इंदिरा गांधी ने केके बिड़ला से बीजी वर्गीज नाम के संपादक को नौकरी से हटवाया तो नरेंद्र मोदी ने बॉबी घोष नाम के संपादक को शोभना भरतीया से निकलवाया है तो नया कुछ नहीं है। जो नया है वह ये है कि बॉबी घोष के लिखे या उनकी कमान में निकले अखबार में ऐसा कभी कुछ छपा नहीं, जिससे लगा हो कि खुद्दार, ईमानदार पत्रकारिता हो रही है। पूरा अखबार जब अरूण जेटली के घर की दहलीज का है तब भी भला नरेंद्र मोदी, उनके मंत्री या भाजपा के लिए क्यों कर यह नौबत आई कि शोभना भरतीया प्रधानमंत्री को अपने प्रोग्राम में बुलाने का न्योता देने जाएं और लौटें तो उस संपादक को हटाने का फैसला करें, जिसे विश्वव्यापी खोज के बाद विदेश से बुला कर शोभना भरतीया ने मई 2016 में संपादक बनाया था? जो बतौर अनिवासी भारतीय वैश्विक पत्रिका टाइम के अंतरराष्ट्रीय संपादक का अनुभव लिए है, जिसे मिलीयन डॉलर की तनख्वाह मिलती रही हो। अंग्रेजी के इस कथित बड़े संपादक को एक झटके में हटाना और उसका चुपचाप हट जाना मालिक और संपादक संस्था दोनों के दस तरह के सवाल लिए हुए है।

इस पूरे मामले की खबर देते हुए ‘द वायर’ वेबसाइट ने प्रधानमंत्री दफ्तर, शोभना भरतीया को फैक्स से सवाल भेज कर जो पूछा और हिंदुस्तान टाइम्स के भीतर के घटनाक्रम, सोर्स के हवाले जो लंबी-चौड़ी रपट छापी है उसमें नरेंद्र मोदी-शोभना भरतीया की मुलाकात पुष्ट है तो सरकार की सफाई है कि भरतीया तो सिर्फ न्योता देने के लिए आई थीं। यह कहना गलत है कि अखबार मालिकन और प्रधानमंत्री की मुलाकात ने संपादक की छुट्टी करवाई। तब किसने करवाई?

जान लें कि मालकिन की घोषणा से जाहिर नहीं हुआ कि इस संपादक ने अपनी तह इस्तीफा दिया। मालकिन ने ‘द वायर’ को जवाब देने से क्यों कन्नी काटी? यदि राजी खुशी मामला था, बॉबी घोष ने नाकाबिल हो अपनी तह हटने का यदि फैसला लिया था तो उसे खुद विदेश लौटने की पुष्टि करनी थी? यह बात बेमतलब की है कि उसके पास विदेशी पासपोर्ट है इसलिए विदेशी के नाते शोभना को हटाना पड़ा। वह खुद जब अंतरराष्ट्रीय नाम, अनुभव के चलते बॉबी घोष को लेकर आईं और भारत में ऐसा कोई कानून नहीं जो एनआरआई भारतीय को संपादक न बनने दे तो फिर संपादक को दरवाजा दिखाने का आधार यह नहीं बनता है।

तब मामला क्या था? ‘द वायर’ ने इसमें बॉबी घोष के ‘हेट ट्रेकर’ बनवाने की पहल से नरेंद्र मोदी, सरकार, भाजपा के चिढ़ने की बात कही है। मतलब बॉबी घोष ने अखबार की वेबसाइट के साथ एक अलग माइक्रोसाइट बनवाई जिसमें धर्म-जाति, नस्ल के नाम पर होने वाले अपराधों का राष्ट्रीय डाटाबेस रखा जाना था। मतलब गौरक्षा के नाम जैसी बातों पर होने वाली घटनाओं का रिकार्ड बनाना!

समझ सकते हैं कि यह बॉबी घोष की सेकुलर, हिंदुस्तान टाइम्स के वामपंथी-सेकुलर पत्रकारों के मन वाली पत्रकारिता करने का चोरी-छिपे वाला प्रयास था। चोरी-छिपे वाला इसलिए कि हिंदुस्तान टाइम्स, हिंदुस्तान, मिंट आदि अखबारों में तो संपादक दो टूक लिख नहीं सकते तो वेबसाइट से ही मोदी सरकार को चेहरा दिखाओ कि आपके राज में क्या–क्या हो रहा है? मोदी राज का, भाजपा का डिजिटल रिकार्ड बनता जाता।

जाहिर है नरेंद्र मोदी, उनका मीडिया प्रबंधन तिलमिलाया होगा। ‘द वायर’ की खबर के अनुसार बॉबी घोष की छुट्टी होते ही अखबार में ‘हेट ट्रैकर’ पर काम बंद हो गया!

यहीं बुनियादी सवाल उठता है कि बॉबी घोष की छुट्टी या ‘हेट ट्रैकर’ रूकने से क्या मोदी का ‘पॉपुलर ट्रैकर’ चल पड़ेगा? क्या शोभना भरतीया इससे उनकी समर्थक हो गई? मोदी-शाह को ध्यान रखना चाहिए कि इन्होने पी चिदंबरम के गुस्साने पर भी मिंट अखबार के संपादक राजू नारिसेटी की छुट्टी की थी। जो भौंपू होता है, जो बिना रीढ़ का होता है वह सबके आगे रेंगता है। उससे न देश बनता है न सेकुलर राष्ट्र बनता है और न हिंदू राष्ट्र!

फिर नरेंद्र मोदी, अमित शाह भूल रहे हैं कि इंदिरा गांधी वाली 20वीं नहीं, बल्कि 21वीं सदी है। उनका रोजनामचा, उनकी भाव-भंगिमा तक का, उनके कामों, उनकी हकीकत का पल-पल का ब्योरा अनुभव, वक्त डिजिटल रिकार्ड, इतिहास बनवाता जा रहा है। यों भी जब अखबारों, टीवी चैनलों को आपने जनता की निगाह में भोंपू बना दिया है तो जनता में इनसे इमेज बनने, बनाने का मामला अब डिमिनिशिंग रिटर्न वाला है। ये भोंपू मोदी-शाह के जितने फोटो दिखाएंगे उलटे उतनी जनता में जुगुप्सा पैदा होगी।

मोदी-शाह सत्ता के मद में अपने खुद के उस अनुभव को भी भूले हुए हैं कि मीडिया प्रचार जनता में उलटा रिएक्शन बनवा सकता है, जैसा गुजरात के वक्त हुआ था। मीडिया ने गालियां दीं और मोदी के लिए जनता में फूल खिले। इमरजेंसी का मीडिया मैनेजमेंट याकि शोभना भरतीया के पिता केके बिड़ला का रामनाथ गोयनका को मैनेज करना तक इंदिरा गांधी को जीता नहीं पाया था। इंदिरा गांधी ने बीजी वर्गीज को हटवा कर पुण्यता नहीं पाई। वे आज भी बांग्लादेश बनवाने वाली दुर्गा के बावजूद तानाशाही का कंलक लिए हुए हैं! ऐसे ही बॉबी घोष को हटवा कर या मीडिया को औकात दिखा कर नरेंद्र मोदी देश के पढ़े-लिखों में, दुनिया के बौद्धिकों में, शिक्षितों में क्या पुण्यता अर्जित कर रहे है? वे क्यों नहीं समझ रहे है कि बौद्धिकों में पाई पुण्यता के बिना सही इतिहास नहीं बनता। वे मई 2014 में क्या थे आज क्या है क्या यह उनके अपने सोशल मीडिया में नहीं दिख रहा? पर साहेब, सत्ता अंधी होती है तभी इंदिरा गांधी, बीजी वर्गीज, नरेंद्र मोदी, बॉबी घोष की पुनरावृति स्थायी है।t

साभार

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