कृषि क़ानून; सुप्रीम कोर्ट की बेहद कड़ी टिप्पणी; आप कानून पर रोक लगाएं नहीं तो हम लगा देंगे.

Farmers’ Protest:  Put Farm Laws On Hold Or We Will Do It, Chief Justice Tells Government

NEW DELHI (Himalayauk Bureau) 11 Jan 2021: High Light 26 जनवरी की परेड के लिए इंजक्शन ऑर्डर दें- सॉलिसिटर जनरल ने कहा, इस पर – सीजेआई बोले- आप हमें भाषण न दें

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Supreme Court slams Centre over farm protests, proposes to form panel

कृषि क़ानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि वह इस मामले में केंद्र सरकार से बहुत निराश है।   सुप्रीम कोर्ट में आज किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई हुई जिसमें कोर्ट ने सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने सरकार से कहा कि आप कानून पर रोक लगाएं नहीं तो हम लगा देंगे.

सीजेआई बोबडे ने कहा कि हम इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि बुजुर्ग और महिलाएं प्रदर्शन में क्यों शामिल हैं। 

कड़ाके की ठंड और दिल्ली में हो रही बारिश के बीच किसानों के आंदोलन से देश की सियासत पूरी तरह गर्म है। भारत बंद से लेकर भूख हड़ताल तक कर चुके किसान ट्रैक्टर रैली निकालकर दम दिखा चुके हैं और अब 26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड की तैयारी है।

सीजेआई बोबडे ने कहा कि उनके पास तो ऐसी कोई याचिका नहीं आई है जिसमें यह कहा गया हो कि ये क़ानून अच्छे हैं। 

सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने बेहद कड़ा रूख़ अपनाते हुए कहा, ‘हमने आपसे पिछली बार पूछा था लेकिन आपने जवाब नहीं दिया। हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, लोग आत्महत्या कर रहे हैं और वे ठंड में बैठे हुए हैं। आप हमें बताएं अगर आप इन क़ानूनों को होल्ड नहीं कर सकते तो हम ऐसा कर देंगे। इन्हें रोकने में आख़िर दिक्कत क्या है।’ 

17 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान सीजेआई बोबडे ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस पर विचार करे कि क्या कृषि क़ानूनों को होल्ड (रोका) किया जा सकता है। इस पर केंद्र की ओर से कहा गया था कि ऐसा नहीं किया जा सकता। किसानों को दिल्ली के बॉर्डर्स से हटाने को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। 

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि उनके पास कई किसान संगठन आए हैं जिन्होंने कहा है कि ये क़ानून बेहतर हैं। उन्होंने कहा कि बाक़ी किसानों को कोई दिक़्कत नहीं है। इस पर सीजेआई बोबडे ने कहा कि उनके पास तो ऐसी कोई याचिका नहीं आई है जिसमें यह कहा गया हो कि ये क़ानून अच्छे हैं। 

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, ‘हम इस बात को लेकर दुखी हैं कि सरकार इस मसले को हल नहीं कर पा रही है। आपने बिना व्यापक बातचीत के ही इन क़ानूनों को लागू कर दिया और इसी वजह से धरना शुरू हुआ। इसलिए आपको इसका हल निकालना ही होगा।’ 

इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कई ऐसे उदाहरण हैं जो कहते हैं कि अदालत क़ानूनों पर रोक नहीं लगा सकती। 

सीजेआई ने सरकार से पूछा, ‘क़ानूनों पर रोक लगने के बाद क्या वह धरना स्थल पर लोगों की चिंताओं के बारे में जानेगी। हमें पता चला है कि बातचीत इस वजह से फ़ेल हो रही हैं क्योंकि सरकार क़ानूनों के हर क्लॉज पर चर्चा करना चाहती है और किसान इन सभी कृषि क़ानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने सीजेआई से कहा कि वे इस तरह का संदेश न दें कि हमने कुछ नहीं किया, हमने अपनी ओर से बेहतर काम किया। उन्होंने अदालत से कहा कि वह 26 जनवरी की परेड के लिए इंजक्शन ऑर्डर दें जिससे परेड में दख़ल न हो। इस पर सीजेआई ने कहा कि अब हम इस मामले में आदेश देंगे। 

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह कल आदेश दें, जल्दबाज़ी में न दें। सीजेआई ने इसके जवाब में कहा, ‘हमने आपको बहुत वक़्त दिया, आप हमें धैर्य रखने को लेकर भाषण न दें। हम आज और कल दो हिस्सों में आदेश सुना सकते हैं।’

ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति ने सरकार के इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया है कि वे इन क़ानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ले जाएं। किसानों ने चेताया है कि अगर केंद्र सरकार इन क़ानूनों को रद्द नहीं करती तो वे दिल्ली के सभी बॉर्डर्स को बंद कर देंगे। समिति ने कहा है कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बिना ख़ुद इस मसले में फ़ैसला करना चाहिए। समिति ने आरोप लगाया है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक ढाल की तरह इस्तेमाल कर रही है। 

बीते 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को दिल्ली के बॉर्डर्स से हटाने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने केंद्र सरकार से कहा था कि अगर आप खुले मन से बातचीत नहीं करेंगे तो यह फिर से फ़ेल हो जाएगी। उसके बाद से भी किसानों और सरकार के बीच हुई बातचीत फ़ेल हो चुकी है। 

कृषि क़ानूनों के मसले पर केंद्र सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार को हुई आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही। यह बैठक नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में हुई। बातचीत के दौरान सरकार ने कृषि क़ानूनों में संशोधन की बात कही जबकि किसानों ने फिर कहा कि उन्हें संशोधन नहीं चाहिए, बल्कि उनकी मांग क़ानूनों को रद्द करने की है। अगली बैठक 15 जनवरी को दिन में 12 बजे होगी। 

टिकरी, सिंघु और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों का साफ कहना है कि उन्हें इन कृषि क़ानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। किसानों से बातचीत करने तक से पीछे हटती रही सरकार अब इन क़ानूनों में संशोधन करने की बात कह चुकी है, एमएसपी पर लिखित आश्वासन की बात कह चुकी है लेकिन किसान इसके लिए राजी नहीं हैं। सरकार के लिए भी इस मसले का हल निकालना बेहद मुश्किल हो गया है। 

किसान आंदोलन से परेशान बीजेपी और मोदी सरकार के मंत्री कृषि क़ानूनों को किसानों के हित में बताने में जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूरी सरकार और बीजेपी संगठन कृषि क़ानूनों के हित में प्रचार कर रहे हैं। बीजेपी और मोदी सरकार की ओर से देश भर में किसान चौपाल सम्मेलन किए जा रहे हैं। इन सम्मेलनों में इन क़ानूनों की ख़ूबियों के बारे में बताया जा रहा है लेकिन दूसरी ओर आंदोलन बढ़ता जा रहा है। 

कांग्रेस ने आज की सुनवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसा 73 साल में सरकार के साथ नहीं हुआ होगा. इस बीच सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कृषि कानूनों को लेकर कई विपक्षी नेताओं से बातचीत की ताकि संयुक्त कार्रवाई की जा सके. सूत्रों ने ये भी बताया कि विपक्षी दल संसद सत्र शुरू होने से पहले मुलाकात कर सकते हैं.

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि आज सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई. सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि आपसे नहीं होता तो हम कानून पर रोक लगा देते हैं. ऐसा 73 सालों में किसी सरकार के साथ नहीं हुआ होगा. उन्होंने कहा, “पीएम को देश और किसानों से माफी मांगनी चाहिए और तीनों कानूनों को रद्द करने का एलान करना चाहिए. देश के किसानों को इससे कम कुछ नहीं चाहिए.”  

सुरजेवाला ने कहा, “इस आंदोलन की सीधी जिम्मेदारी अमित शाह, मनोहर लाल खट्टर और योगी आदित्यनाथ की है. राजनीति में आकर विरोध करना चाहते थे पर सड़कें किसने खुदवाईं, बैरिकेड्स किसने लगाए, पुलिस लगाकर किसानों का रास्ता किसने रोका. इसलिए अमित शाह, खट्टर, चौटाला और योगी आदित्यनाथ पर मामले दर्ज होने चाहिए. प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार हैं. हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेगी.”

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