गंगा यमुना क्या अब बंधने से बचेंगी?

गंगा यमुना को सभी धर्मो के अनुयायी मानते है #अदालत ने इसी आदेश को आगे बढ़ाते हुये प्रदेश के ग्लेशियरों, झील-झरनों, घास के मैदानों,जंगलो आदि को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया है #हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड की कवरेज- 

नैनीताल उच्च न्यायालय, उत्तराखंड ने 20 मार्च, 2017 को एक ऐतिहासिक आदेश दिया। न्यायालयों की चिंता केन्द्र व राज्य सरकारों की विफलता बताती है। अपने निर्णय में उच्च न्यायालय नैनीताल ने गंगा को एक मानव का दर्जा दिया है। मोहम्मद सलीम बनाम् उत्तराखंड सरकार व अन्य की याचिका नम्बर 2014 के 126 केस में न्यायाधीश श्री राजीव शर्मा व न्यायाधीश श्री आलोक सिंह ने अन्य मुद्दों के साथ में खास करके केंद्र सरकार को यह आदेश दिया की वो गंगा प्रबंधं बोर्ड बनाये। गंगा प्रबंधं बोर्ड धारा 80 के तहत जो भी समस्याएँ आती हैं उन्हें तुरंत दूर करे और तीन महीने के अन्दर में यह बोर्ड काम करने लगे।

अदालत ने अपने आदेश के दसवे बिंदु पर ये भी कहा की आज गंगा और यमुना एक असाधारण स्थिति का सामना कर रही है जहाँ वो अपने अस्तित्व को ही खो रही हैं। यह स्थिति असाधारण तरीके अपनाते हुए गंगा और यमुना नदी को जीवित रखते हुए बचाने की आवश्यकता बताती है।

उन्नीसवें बिन्दु में गंगा-यमुना को मानवीय दर्जा देते हुये कहा गया है किः-

अपनी ‘‘पेरेंट्स पेट्री‘‘ ताकत का इस्तेमाल करते हुए जिसका मतलब है की राज्य सरकार लोगों के अधिकारों और विशेष अधिकारों का ख्याल रखने के लिए ज़िम्मेदार है, गंगा और यमुना और उनकी सब सहायक नदियाँ, स्त्रोत, प्राकृतिक पानी का बहाव- तेजी से या रुक रुक कर, सबको क़ानूनी दर्जा दे दिया गया है और इनको मानव वाले अधिकार, कर्तव्य और उत्तरदायित्व होंगे जिससे की गंगा और यमुना नदियों को जीवित रखा जा सके। नमामि गंगा के निदेशक, मुख्य सचिव व राज्य के प्रघान वकील को गंगा और यमुना नदी और उनकी सहायक नदियों को जीवित और सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी दी गयी है।

अदालत ने इसी आदेश को आगे बढ़ाते हुये प्रदेश के ग्लेशियरों, झील-झरनों, घास के मैदानों,जंगलो आदि को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया है।

माननीय उच्च न्यायालय का सम्मान करते हुये हम यह जोड़ते है कि गंगा यमुना को मात्र हिन्दु ही नही वरन् सभी धर्मो के अनुयायी मानते है। बादशाह अकबर भी गंगा जी का ही जल पीते थे। यह मात्र हिन्दुओं की ही नदी नही है जैसा की कुछ समूह यह सिद्ध करने की कोशिश कई सालो से कर रहे है। सभी नदियंा बिना धर्म, जाति, भाषा, लिंग आदि किसी का भी बिना भेदभाव किये सबको सब तरह से अपने लाभ देती है।

20 मार्च व बाद के आदेश में भी कहीं बांधों के बारे में अदालत ने साफ तौर पर कुछ नही कहा है। जोकि सरकार को बांधों के सवाल पर बच निकलने का रास्ता देता है। साथ ही नदी से जुड़ते हुये लोगो के अधिकारों के बारे में भी आदेश मौन है। यह हमारी चिंता का विषय है।

यह तो सिद्ध ही है कि बांधों से बहती नदी, ग्लेशियरों, झील-झरनों, घास के मैदानों व जंगलों आदि पर बुरा असर होता ही है। यदि किसी भी नदी को बांध दिया जाता है तो निचले हिस्से में पानी नही रहता जिससे नदी में बचा हुआ पानी भी गंदा हो जाता है। निर्मल नदी के लिये अविरल नदी का होना वास्तव में पहली शर्त है। अदालत के आदेश के बाद अब सरकार पर ये जिम्मेदारी साफ तौर पर आ गई है।

गंगा के संदर्भ में अदालतों के पुराने आदेशों की पालना को देखते हुये इस आदेश की पालना पर संदेह होता है। 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया। गंगा पर हजारों करोड़ रुपये गंगा एक्शन प्लान के तहत खर्च हुये थे। जिसकी आलोचना करते हुये भाजपा सरकार ने 20हजार करोड़ से ‘‘नमामि गंगा‘‘ की शुरुआत की। 22 फरवरी को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने कहा की ‘नमामि गंगा‘‘ के तहत खर्च किये गये 2 हजार करोड़ से कुछ नही हुआ है। टिहरी बांध की पर्यावरण स्वीकृति में भागीरथी नदी घाटी प्राधिकरण बनाने की शर्त थी। जो अभी तक भी ढंग से काम नही कर पाया है। ‘नमामि गंगा‘‘ में भी गंगाघाटी के बांधों की समस्याओं पर कोई बात नही है। दुखद पहलू है कि वर्तमान आदेश में भी कही बांधों का जिक्र नही है।

कांग्रेस व भाजपा दोनो ही दल जब से उत्तराखंड राज्य बना है, राज्य में अपनी सरकारें बना चुके है। केन्द्र में भी कांग्रेस शासन के बाद लगभग 3 वर्षो से भाजपा सरकार है। गंगा के मायके में गंगा की स्थिति पर दोनो ही बांधों के खतरनाक खेल में शामिल है। फिर इन सरकारों से हम क्या उम्मीद रखे की वो गंगा-यमुना के अभिवावक का कर्तव्य निभायेगे?

इस आदेश का देश के तमाम नदी प्रेमियों ने स्वागत किया है। खतरा है कि इस आदेश का अुनपालन करने कि जिम्मेदारी जिनको दी गई है वो उसी सरकार के नीचे काम कर रहे है। जिसके व्यवहार के बारे हमने अपनी चिंताये बराबर रखी है। राज्य के मुख्यमंत्री जी ने इस आदेश के आते ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौति देने की बात कही है। माननीय मुख्य मंत्री जी ने पद संभालते ही यमुना के बांधों में तेजी लाने के लिये केन्द्र से बात की है। ये नयी सरकार के भावी क्रियाकलापों की ओर इशारा करता है।

हम दोनो सरकारों को इन प्रश्नों के जवाब की अपेक्षा करते हैः–

सरकारें भागीरथी को 100 किलोमीटर पर ‘‘इकोसेंसेटिव जोन‘‘ बनाये जाने पर अपना रुख साफ करेगी?

सरकारो द्वारा बांधो पर किस सीमा तक रोक लगाई जायेगी?

माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे केस जिसमें न्यायालय ने 24 बांधों पर रोक लगाई है, उस पर सरकारों का क्या रुख रहेगा?

‘‘नमामि गंगा कार्यक्रम‘‘ के पदाधिकारियों को अदालत ने जिम्मेदार बनाया है तो क्या नमामि गंगा कार्यक्रम में अब गंगा के बांधों की बात होगी?

बांध कंपनियांे के अब तक के पर्यावरणीय उलंघनों पर कोई कार्यवाही होगी?

विमलभाई,    राजपाल रावत

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