गुरु यंत्र का प्रयोग एक अच्छा उपाय

गुरु यंत्र को वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति यंत्र के नाम से भी जाना जाता है तथा अधिकतर ज्योतिषी इस यंत्र का प्रयोग किसी जातक की कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे गुरु की अशुभता को कम करने के लिए अथवा गुरु द्वारा किसी कुंडली में बनाए जाने वाले दोष के निवारण के लिए करते हैं। इसके अतिरिक्त गुरु यंत्र का प्रयोग किसी कुंडली में शुभ अथवा सकारात्मक रूप से कार्य कर रहे गुरु को अतिरिक्त बल प्रदान करने के लिए भी किया जाता है जिससे कुंडली में शुभ गुरु की शक्ति बढ़ने से जातक को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होते हैं हालांकि किसी कुंडली में शुभ रूप से कार्य कर रहे गुरु को अतिरिक्त बल प्रदान करके इससे लाभ प्राप्त करने के लिए गुरु के रत्न पीले पुखराज को धारण करना गुरु यंत्र के प्रयोग की तुलना में अच्छा उपाय है किन्तु पीले पुखराज का प्रयोग केवल गुरु के कुंडली में शुभ होने की स्थिति में ही किया जाना चाहिए तथा गुरु के कुंडली में अशुभ होने की स्थिति में जातक को पीला पुखराज नहीं धारण करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कुंडली में अशुभ रूप से काम कर रहे गुरु को अतिरिक्त बल प्राप्त हो जाएगा जिसके चलते ऐसा गुरु जातक को और भी अधिक हानि पहुंचा सकता है। इस लिए किसी कुंडली में गुरु के नकारात्मक अथवा अशुभ होने पर गुरु का रत्न धारण नहीं करना चाहिए अपितु इस स्थिति में गुरु के यंत्र का प्रयोग एक अच्छा उपाय है।

बृहस्पति के विशेष यन्त्र के शुभ प्रभाव से ज्ञान, बुद्धि, सुख-सौभाग्य, वैभव व मनचाही कामयाबी पाना आसान हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बृहस्पति ने शिव कृपा से देवगुरु का पद पाया। इसलिए बृहस्पति उपासना शिव को प्रसन्न कर सांसारिक जीवन की कामनाओं जैसे विवाह, संतान, धन आदि को भी सिद्ध करने वाली मानी गई है। गुरु के अशुभ फलों को कम करने के अतिरिक्त गुरु यंत्र व्यक्ति को गुरु की सामान्य तथा विशिष्ट विशेषताओं से संबंधित शुभ फल भी प्रदान कर सकता है। गुरु यंत्र का प्रयोग किसी जातक को शिक्षा तथा उच्च शिक्षा से संबंधित अच्छे अथवा बहुत अच्छे फल दे सकता है गुरु यंत्र का प्रयोग जातक को धन संपन्नता तथा आध्यातमिक उन्नति के क्षेत्रों में भी बहुत अच्छे फल प्रदान कर सकता है तथा इस यंत्र के शुभ प्रभाव में आने वाला जातक गृहस्थ तथा आध्यातम दोनों ही क्षेत्रों में एक साथ उन्नति कर सकता है।

                किसी कुंडली में गुरु के अशुभ फलों को कम करने के अतिरिक्त गुरु यंत्र जातक को गुरु की सामान्य तथा विशिष्ट विशेषताओं से संबंधित शुभ फल भी प्रदान कर सकता है। गुरु की सामान्य विशेषताओं के बारे में चर्चा करें तो गुरु यंत्र का प्रयोग किसी जातक को शिक्षा तथा उच्च शिक्षा से संबंधित अच्छे अथवा बहुत अच्छे फल दे सकता है जिसके चलते शिक्षा प्राप्त करने वाले बहुत से छात्र गुरु यंत्र का प्रयोग करके इससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गुरु यंत्र का प्रयोग जातक को धन संपन्नता तथा आध्यातमिक उन्नति के क्षेत्रों में भी बहुत अच्छे फल प्रदान कर सकता है तथा इस यंत्र के शुभ प्रभाव में आने वाला जातक गृहस्थ तथा आध्यातम दोनों ही क्षेत्रों में एक साथ उन्नति कर सकता है। गुरु यंत्र का प्रयोग जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा तथा सम्मान बढ़ाने में भी सहायता कर सकता है तथा इस यंत्र के प्रयोग से जातक की आर्थिक स्थिति पर भी शुभ प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त गुरु यंत्र का प्रयोग किसी जातक को उसकी कुंडली में गुरु द्वारा प्रदर्शित विशिष्ट विशेषताओं से संबंधित शुभ फल भी प्रदान कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी जातक की कुंडली में उसका विवाह तथा वैवाहिक जीवन गुरु की विशिष्ट विशेषता है तो गुरु यंत्र का शुभ प्रभाव ऐसे जातक के लिए विवाह तथा वैवाहिक जीवन से संबंधित शुभ फल प्रदान कर सकता है जिसके फलस्वरूप ऐसे जातक को सुंदर, सभ्य, सुसंस्कृत तथा समर्पित जीवन साथी की प्राप्ति हो सकती है जो उसके जीवन के बहुत से क्षेत्रों में उसकी उन्नति का आधार बनता है। इस प्रकार गुरु यंत्र का प्रयोग विभिन्न जातकों को उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति के आधार पर भिन्न भिन्न प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।

                   किन्तु यहां पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि किसी भी जातक को गुरु यंत्र से प्राप्त होने वाले लाभ तभी मिल सकते हैं जब जातक द्वारा स्थापित किया जाने वाला गुरु यंत्र सम्पूर्ण विधि के साथ बनाया गया हो जिसमें इस यंत्र के शुद्धिकGURU MANTRA रण तथा प्राण प्रतिष्ठा जैसे अति महत्वपूर्ण चरण सम्मिलित हैं। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना ही किसी भी गुरु यंत्र को स्थापित कर लेना कोई विशेष लाभ प्रदान नहीं करता अथवा बिल्कुल ही लाभ प्रदान नहीं करता। इसलिए गुरु यंत्र को स्थापित करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपका गुरु यंत्र विधिवित बनाया गया तथा प्राण प्रतिष्ठित है। गुरु यंत्र को बनाने की विधि तकनीकी तथा लंबा समय लेने वाली है जिसे केवल इस विशेष वैदिक पद्धति का ज्ञान रखने वाले कुछ पंडित ही पूर्ण कर सकते हैं। इस यंत्र को बनाने के विधि में उपयोग होने वालीं महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के बारे में जानने के लिए सूर्य यंत्र नामक लेख पढ़ें जिसमे सूर्य यंत्र को बनाने की संम्पूर्ण विधि का वर्णन किया गया है। गुरु यंत्र को बनाने की विधि भी बहुत सीमा तक सूर्य यंत्र को बनाने की विधि से मिलती जुलती है तथा कुछ दोनों यंत्रो को बनाने की प्रक्रिया में केवल कुछ विशेष बदलाव हैं जैसे कि गुरु यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए गुरु मंत्र का प्रयोग किया जाता है तथा सूर्य यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए सूर्य मंत्र का प्रयोग किया जाता है।

                 विधिवत बनाया गया गुरु यंत्र प्राप्त करने के पश्चात आपको इसे अपने ज्योतिषि के परामर्श के अनुसार अपने घर में पूजा के स्थान अथवा अपने बटुए अथवा अपने गले में स्थापित करना होता है। उत्तम फलों की प्राप्ति के लिए गुरु यंत्र को गुरुवार वाले दिन स्थापित करना चाहिए तथा घर में स्थापित करने की स्थिति में इसे पूजा के स्थान में स्थापित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आप अपने गुरु यंत्र को गुरुवार के दिन ही अपने ज्योतिष के परामर्श अनुसार अपने बटुए में, अथवा अपने गले में भी स्थापित कर सकते हैं। गुरु यंत्र की स्थापना के दिन नहाने के पश्चात अपने यंत्र को सामने रखकर 11 या 21 बार गुरु के बीज मंत्र का जाप करें तथा तत्पश्चात अपने गुरु यंत्र पर थोड़े से गंगाजल अथवा कच्चे दूध के छींटे दें, गुरु महाराज से इस यंत्र के माध्यम से अधिक से अधिक शुभ फल प्रदान करने की प्रार्थना करें तथा तत्पश्चात इस यंत्र को इसके लिए निश्चित किये गये स्थान पर स्थापित कर दें। आपका गुरु यंत्र अब स्थापित हो चुका है तथा इस यंत्र से निरंतर शुभ फल प्राप्त करते रहने के लिए आपको इस यंत्र की नियमित रूप से पूजा करनी होती है। प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात अपने गुरु यंत्र की स्थापना वाले स्थान पर जाएं तथा इस यंत्र को नमन करके 11 या 21 गुरु बीज मंत्रों के उच्चारण के पश्चात अपने इच्छित फल इस यंत्र से मांगें। यदि आपने अपने गुरु यंत्र को अपने बटुए अथवा गले में धारण किया है तो स्नान के बाद इसे अपने हाथ में लें तथा उपरोक्त विधि से इसका पूजन करें तथा अपना इच्छित फल इससे मांगें। अपने पास स्थापित किए गये गुरु यंत्र की नियमित रूप से पूजा करने से आपके और आपके गुरु यंत्र के मध्य एक शक्तिशाली संबंध स्थापित हो जाता है जिसके कारण यह यंत्र आपको अधिक से अधिक लाभ प्रदान करने के लिए प्रेरित होता है।

लेखक
हिमांशु शंगारी

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