हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै,कांधे मूंज जनेऊ साजै-
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै-
आपके हाथ में बज्र और ध्वजा हैं तथा कांधे पर मूंजजनेऊ की शोभा है । ‘‘उपनयनसंस्कार’’ यह एकदीक्षा-विधि है । यह कर्मकाण्ड है , यह केवल ब्राम्हणों के लिये है । हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धारण कर श्रीराम और लक्ष्मण के सामने गए थे- महर्षि वाल्मीकि जी ने यह स्वयं लिखा है-
सन्दर्भवश प्रस्तुत आलेख- चन्द्रशेखर जोशी की कलम से
महर्षि वाल्मीकि द्वारा ‘रामायण’ ग्रंथ में दिया गया श्रीराम-हनुमान मिलन का प्रसंग ही सही कहानी है।
महर्षि वाल्मीकि जी के अनुसार हनुमान जी अपने आराध्य श्रीराम को पहली बार किष्किंधा के वन में मिले थे। यह प्रसंग तुलसीदास जी द्वारा भी रामचरित मानस में जोड़ा गया है, इस महान ग्रंथ में यह कथा ‘किष्किंधाकाण्ड’ के नाम से है। यह तब की बात है जब वानर सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि के क्रोध से डरकर अपने मित्र हनुमान की शरण में आते हैं और उनसे छिपने के लिए सहायता मांगते हैं। एक दिन सुग्रीव ने वन की ओर से दो पुरुषों को आते हुए देखा, उन्होंने सादे वस्त्र पहने थे किंतु शस्त्र धारण किए हुए थे। सुग्रीव के मन में भय प्रकट हुआ। उन्हें लगा कि हो ना हो यह भाई बालि के भेजे हुए गुप्त सैनिक हो सकते हैं जो उसे ढूंढ़कर मारने के लिए भेजे गए हैं। सुग्रीव ने तुरंत ही अपना यह भय हनुमान को बताया और कहा कि मित्र हनुमान, आप स्वयं वन में जाकर पूछताछ करें कि ये दोनों पुरुष कौन हैं, कहां से आए हैं और इनका वन में आने का उद्देश्य क्या है। मित्र की परेशानी को समझते हुए हनुमान ब्राह्मण का रूप धारण कर श्रीराम और लक्ष्मण के सामने पहुंच गए और उनसे पूछताछ करने लगे। हनुमान ने पूछा कि आप दोनों कौन हैं, कहां से आए हैं और आपको क्या चाहिए? पूछने पर श्रीराम बोले – “कोसलेस दसरथ के जाए। हम पितु बचन मानि बन आए॥ नाम राम लछिमन दोउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई॥ इहाँ हरी निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही॥ आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई॥ प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥ पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥ रामचरित मानस की यह पंक्ति हनुमान जी की उस समय की भावनाओं को दर्शाती हैं। स्वयं प्रभु के मुख से परिचय पाकर हनुमान जी फूले नहीं समाते हैं। सच्चाई जानने की देर ही थी कि हनुमान जी अपने असली रूप में वापस लौट आए और झट से श्रीराम के चरण पकड़कर धरती पर गिर पड़े। यह पल ऐसा था मानो हनुमान जी को पूर्ण संसार मिल गया हो। उनके मुख से एक भी शब्द नहीं फूट रहा था, बस अपने प्रभु को पा लेने की जो खुशी उनके मुख पर दिखाई दे रही थी, उसका कोई मोल नहीं था।
हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।
ज्योतिषीयोंके सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख58 हजार112 वर्षपहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्रपूर्णिमा कोमंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न केयोग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले केआंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।
इन्हेंबजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र कीतरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) नेहनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान “मारुति” अर्थात “मारुत-नंदन” (हवा का बेटा) हैं।
इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की “देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।”
राहुकी बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकरहनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तोउन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकीबायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव कोक्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणीसाँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्माउन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे।जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभीप्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग कोहानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र सेभी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्रमर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण नेकहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव नेअवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदिदेवों ने भी अमोघ वरदान दिये
इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि। हिँदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
special
वास्तु के अनुसार हनुमानजी का चित्र हमेशा दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए। यह चित्र बैठी मुद्रा में लाल रंग का होना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हनुमानजी का चित्र इसलिए अधिक शुभ है क्योंकि हनुमानजी ने अपना प्रभाव सर्वाधिक इसी दिशा में दिखाया है। हनुमानजी का चित्र लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत हनुमानजी का चित्र देखकर लौट जाती है। इससे घर में सुख और समृद्धि बढ़ती है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और इसी वजह से उनका चित्र शयनकक्ष में न रखकर घर के मंदिर में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर रखना शुभ रहता है। शयनकक्ष में रखना अशुभ है। यदि आपको लगता है कि आपके घर पर नकारात्मक शक्तियों का असर है तो पंचमुखी हनुमानजी का चित्र मुख्य द्वारा के ऊपर लगा सकते हैं
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