चीन बार्डर के पास भारत ने 100 टैंक तैनात किये

चीन की सेना को हिला पाना मुश्किल- चीन की धमकियां 

इंडियन नेवी की ताकत को दुनिया में अग्रणी श्रेणी स्तर पर ले जाने के लिए भारत सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। 

डोकलाम विवाद पर पहली बार चीनी सेना से सीधी धमकी दी है. डोकलाम पर भारत के भूटान के साथ खड़े रहने से चीन बुरी तरह बौखला गया है. इसीलिए चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत को धमकाते हुए चीनी सेना के 90 सालों के इतिहास को याद दिलाया.

चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने कहा, ”मैं भारत को याद दिलाना चाहता हूं कि वो किसी तरह के भ्रम में न रहे, चीन की सेना का 90 साल का इतिहास हमारी क्षमता को साबित करती है, देश की रक्षा करने को लेकर हमारे विश्वास को कोई भी डिगा नहीं सकता. पहाड़ को हिलाना मुमकिन है लेकिन चीन की सेना को हिला पाना मुश्किल है.” डोकलाम में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी चीन से बर्दाश्त नहीं हो रही है, क्योंकि भारतीय सेना ने उसे डोकलाम को हड़पने की उसकी साजिशों पर पानी फेर दिया है. चीन की धमकियां इसी बौकलाहट का नतीजा हैं.

 

चीन ने सीमावर्ती इलाकों में सड़कों का जाल बिछा दिया है, ताकि युद्ध होने की स्थिति में उनकी सेना आसानी से भारत की सीमा तक पहुंच सके. वहीं भारत सरकार सड़कों के साथ सुरंगों के ज़रिये अपनी सेना बॉर्डर तक पहुंचाने की योजना पर काम कर रही है. इस योजना पर केंद्रीय रक्षा और गृह मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत सरकार की योजना है कि अरुणाचल प्रदेश से लेकर चीन बॉर्डर तक सुरंगें बनाई जाए. इन सुरंगों की लंबाई 7 किलोमीटर होगी. इसे बनाने का जिम्मा सीमा सड़क संगठन (BRO) को दिया गया है. तवांग इलाके में बनने वाले इन सुरंगों में दो लेन होंगे, यानी दोनों तरफ से एक साथ आवाजाही हो सके. 475 मीटर और 1.79 किलोमीटर लंबी सुरंगें इसी परियोजना का हिस्सा हैं. ये सुरंगें 11,000 और 12,000 फीट की ऊंचाई पर बनाई जाएंगी. फिलहाल भारतीय फौज को चीन बॉर्डर तक पहुंचने के लिए 13,700 फीट ऊंचे सेला दर्रे का प्रयोग करना पड़ता है. यह रास्ता बेहद दुर्गम है. साथ ही यहां से गुजरने के दौरान सेटेलाइट और अत्याधुनिक दुरबीन की मदद से सेना की गतिविधि पर दुश्मन नजर रख सकते हैं. वहीं सुरंग बन जाने के बाद सेना दुश्मन की नजरों में आए बिना आसानी से बॉर्डर तक पहुंच पाएगी. इस सुरंग की चौड़ाई इतनी रखी जाएगी ताकि सेना के वाहन भी यहां से आसानी से आवाजाही कर सकें.

चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने कहा, ”अपनी संप्रभुता की रक्षा करने का हमारा संकल्प कभी नहीं डिगने वाला है, हम हर कीमत पर अपनी संप्रभुता और सुरक्षा के हितों की रक्षा करेंगे, इलाके में हालात को देखते हुए चीन की सेना ने कदम उठाए हैं, हम हालात को देखते हुए सेना की तैनाती बढ़ाएंगे.”
चीनी प्रवक्ता के बयान से साफ है कि चीन हड़बड़ाया हुआ है. चीन को उम्मीद नहीं थी कि भारत, भूटान की मदद के लिए उससे भिड़ जाएगा. चीन को इसलिए भी उम्मीद नहीं थी क्योंकि भले ही भारत के साथ उसका सीमा विवाद पुराना हो लेकिन संबंध वैसे नहीं हैं जैसे भारत और पाकिस्तान के आपस में हैं.

1962 भारत और चीन युद्ध लड़ चुके हैं, हालांकि इसके बाद दोनों देशों के बीच कभी हथियार नहीं चले. सैनिकों के एक-दूसरे के इलाके में घुसपैठ की घटनाएं जरूर हुई हैं.  जानकार (रिटा.) कर्नल श्यौदान सिंह के मुताबिक, ”चीन भूल गया है कि ये 62 का भारत नहीं है, ये 2017 का भारत है, और हम लोग चीन से ज्यादा तैयार हैं, पूरे उपकरण, पूरे हथियार, जवान तैयार हैं, हम लोग चीन से कम नहीं है, हम लोग चीन से बेहतर हैं.”

इंडियन नेवी की ताकत को दुनिया में अग्रणी श्रेणी स्तर पर ले जाने के लिए भारत सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत भारत सरकार ने अपने उस प्रोजेक्ट पर दोबारा काम करना शुरू कर दिया है जिसके तहत भारत के लिए विश्व की सबसे एडवांस सबमरीन का निर्माण किया जाना है। खबर की मानें तो अगर ये डील फाइनल होती है तो ये रक्षा स्तर पर भारत की अब तक की सबसे बड़ी डील होगी। लंबे समय से अधर में लटकी इस डील को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने रिक्वेस्ट ऑफ इन्फॉर्मेशन (आरएफआई) के जरिए विश्व के छह देश रूस, फ्रांस, जर्मनी, जापान, स्वीडन और स्पेन से अनुरोध किया है, जिनकी मदद से इन सबमरीनों का निर्माण किया जाना है। रिपोर्ट के अनुसार इन सबमरीन के निर्माण में करीब 70 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने का अनुमान है। भारत सरकार ने इस मेगा प्रोजेक्ट को पोजेक्ट 75 इंडिया (पी-75आई) नाम दिया है। इसे मदर ऑफ ऑल अंडरवॉटर डील्स भी कहा गया है। हालांकि ये डील अपने निर्धारित समय से करीब दस साल पीछे है। क्योंकि नवंबर 2007 में इस डील को अनुमति दी जा चुकी है। 

हाल के सालों में ये सुरक्षा से जुड़ा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट होगा जोकि अपनी प्रगति की तरफ बढ़ रहा है। जानकारी के अनुसार ये प्रोजेक्ट जितना देरी से शुरू होगा इंडियन नेवी के लिए उतना ही ज्यादा नुकसानदाई होगा। क्योंकि वक्त से एक दशक पीछे चल रही ये डील जबतक पूरी होगी तब नेवी की ज्यादातर सबमरीन की हालात जर्जर हो चुकी होग। इसलिए भारत सरकार इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द शुरू कर पूरा करना चाहती है। खबर की मानें तो ये इतना आसान और जल्दी होने वाला काम नहीं है क्योंकि सबमरीन के निर्माण के लिए भारत की छह विदेशी कंपनियों फ्रांस की नेवल ग्रुप-डीसीएनएस, जर्मनी की थायस्सेक्रप मरीन सिस्टम, रूस की रोसोबोरोनएक्पोर्ट रूबिन डिजाइन, स्पेन की नवनसिया, स्वीडन की साब और जापान की मित्सुबिशी-कावासाकी हैवी इंडस्ट्रीज कॉम्बाइन मदद करेंगी। बता दें कि भारत जिन छह सबमरीन का निर्माण करने जा रहा है वो दुनिया की सबसे खतरनाक सबमरीनों में से एक होंगी। इनकी रेंज से चीन-पाकिस्तान भी खुद नहीं बचा सकेंगे। रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार का मानना है कि इंडियन नेवी के पास हर समय 18 डीजल से चले वाली सबमरीन और छह न्यूक्लियर सबमरीन रहें। इसके साथ ही चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए करीब चार लंबी रेंज की न्यूक्लियर सबमरीन हर समय नेवी के पास रहें। जल्द से जल्द सबमरीन का निर्माण किया जाना भारत के इसलिए भी बहुत जरूरी है। वर्तमान में इंडियन नेवी के पास सिर्फ दो न्यूक्लियर सबमरीन है। इसमें स्वदेशी अरिहंत को पिछले साल ही नेवी में शामिल किया गया है। अरिहंत एक बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन है जो करीब छह हजार टन वजनी है। भारत के पास इसके अलावा अकुला-।। सबमरीन भी है जो करीब बारह हजार टन की है। ये सबमरीन रूस से दस साल के लिए लीज पर ली गई है।

ग्लोबल फायर पावर के मुताबिक भारत दुनिया का चौथा और चीन दुनिया का तीसरा सबसे ताकतवर देश है. भारत का रक्षा बजट जहां 3 लाख 60 हजार करोड़ है वहीं चीन का अपनी सेनाओं पर 10 लाख 365 हजार करोड़ रूपए खर्च करता है.

भारत के पास करीब 13 लाख 62 हजार तो चीन के पास करीब 22 लाख 60 हजार सैनिक हैं. भारत के पास करीब 4426 टैंक हैं तो चीन के पास 6457 टैंक हैं.

भारत के पास करीब 7700 बड़ी तोपें हैं, जबकि चीन के पास बड़ी तोपों की संख्या करीब 8000 है. दोनों देशों के एयरफोर्स की बात करें भारत के पास 2012 विमान हैं तो चीन के पास मौजूद विमानों की संख्या करीब 2955 है. नेवी की बात की जाए तो भारत के पास कुल लड़ाकू जहाज़ 72 हैं जबकि चीन के पास 221 हैं. भारत एयरक्राफ्ट करियर के मामले में चीन पर बीस है, भारत के पास विमानवाहक जहाजों की संख्या तीन है जबकि चीन के पास एक ही है, और जंग के हालातों में एयरक्राफ्ट करियर बेहद निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

प्रस्‍तुति- हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल-

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