“वक़्त की चुनौतियों का सामना करें”; पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सिखाई मोदी को नसीहत/सियासत

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री व केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वो वक़्त की चुनौतियों का सामना करें, और कर्नल बी संतोष बाबू व हमारे सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा व भूभागीय अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुती दे दी।’

चीन में न तो भारत-विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं, न ही वहां के टीवी चैनल और अख़बारों ने इसे अपनी सबसे बड़ी खबर बनाया है और न ही भारतीय माल के बहिष्कार की बात कोई चीनी संस्था कर रही है। चीनी सरकार तो बिल्कुल चुप ही है। आपने जरा भी सोचा कि ऐसा क्यों हैं? इसका जवाब ढूंढिए, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान में, जो उन्होंने बहुदलीय बैठक में दिया था।

चीन के साथ भारत की तनातनी बनी हुई है. LAC के हालात पर आज भी भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत हो रही है. आज की बातचीत में भारत ने साफ कहा कि चीन को 5 मई से पहले की स्थिति बहाल करनी होगी. 5 मई को ही मौजूदा तनाव की पहली झड़प हुई थी. लेकिन सीमा पर स्थिति को लेकर जो भी आऱ-पार की लड़ाई छिड़ी हो, इधर कांग्रेस का सरकार पर हमला थम नहीं रहा है. आज पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मैदान में उतर आए. उन्होंने एक बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बयान पर सावधानी बरतने की नसीहत दी. मनमोहन सिंह के बयान में ये साफ नहीं कि उन्होंने प्रधानमंत्री के किस बयान की ओर इशारा किया है लेकिन कांग्रेस सर्वदलीय बैठक के बाद दिए गए प्रधानमंत्री के उस बयान को मुद्दा बना रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि वहां न तो कोई घुसपैठ नहीं हुई है. मोदी के इस बयान पर पीएमओ ने अपने स्पष्टीकरण में कहा था कि पीएम का बयान 15 जून की गलवान घटना के संबंध में था. 

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 गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद चीन ने भारत को कड़ी चेतावनी दी है। इसे खुले आम धमकी भी कहा जा सकता है।

इसके पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात सैनिकों को स्थिति से निपटने की पूरी छूट दे दी गई है, कमांडर अपने स्तर पर फ़ैसले ले सकते हैं और उन्हें गोलाबारी शुरू करने के लिए असाधारण स्थिति का इंतज़ार करने की कोई ज़रूरत नहीं होगी।

चीनी सरकार के नियंत्रण में चलने वाले और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ज़ोरदार शब्दों में भारत को चेतावनी दी है।

ग्लोबल टाइम्स के मुख्य संपादक हू शीजिन ने एक लेख में कहा है कि ‘यह भारत और चीन के बीच भरोसा बढ़ाने के लिए किए जाने वाले उपायों पर किए गए क़रार का उल्लंघन है। किसी सेना ने गोली नहीं चलाई लेकिन यदि गोलियाँ चली होतीं तो तसवीर दूसरी हो सकती थी।’

ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में भारत को 1962 की याद दिलाई गई है। यह कहा गया है कि ‘कुछ भारतीय यह मानते हैं कि आधुनिकीकरण के बाद भारतीय सेना 1962 में चीन के हाथों मिली पराजय का बदला ले सकती है। मैं उन्हें यह बता दूँ कि 1962 में आर्थिक मामलों में चीन और भारत की स्थितियाँ बहुत अलग नहीं थीं। पर आज चीन की जीडीपी भारत की जीडीपी की पाँच गुनी है और सेना पर चीन का ख़र्च भारत के ख़र्च का तीन गुना ज़्यादा है।’

इसी अख़बार के एक दूसरे लेख में ज़्यादा आक्रामक रवैया अपनाया गया है और अधिक तीखी बातें कही गई हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि ‘यदि भारत ने चीन-विरोधी भावनाओं को नियंत्रित नहीं किया और अपने सबसे बड़े पड़ोसी के साथ युद्ध में उलझा तो 1962 से भी अधिक अपमानजनक स्थिति होगी।’

इस लेख का मतलब यह हुआ कि चीन भारत को डराना चाहता है लेकिन भारतीय जानकारों का कहना है कि चीन भारत को हल्के में लेने की ग़लती न करे वर्ना उसे लेने के देने पड़ सकते हैं। जानकार बताते हैं कि सीमा पर भारत की तैयारी पूरी है और भारतीय सैनिक हर परिस्थिति का माक़ूल जवाब देने में सक्षम हैं। कहा जा सकता है कि चीनी अख़बार ने 1962 के युद्ध का ज़िक्र तो किया, लेकिन 1967 की झड़प का ज़िक्र नहीं किया जिसमें बड़ी संख्या में चीन के सैनिक मारे गए थे और उसे मुँह की खानी पड़ी थी। जानकार कहते हैं कि यदि चीन को लगता है कि भारत की सेना पाँच दशक पहले की ही तरह होगी तो उसे बहुत बड़ी ग़लतफहमी है। 

एक रिपोर्ट के अनुसार, बोस्टन में हार्वर्ड केनेडी स्कूल ऑफ़ गवर्नमेंट में बेलफर सेंटर और वाशिंगटन में एक नई अमेरिकी सुरक्षा केंद्र के हालिया अध्ययन में कहा है कि भारतीय सेना उच्च ऊँचाई वाले इलाक़ों में लड़ाई के मामले में माहिर है। चीनी सेना इस मामले में कमज़ोर है। बेलफर सेंटर के मार्च में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, भारतीय लड़ाकू विमान चीन के मुक़ाबले ज़्यादा प्रभावी है। 

लेकिन यह सवाल अहम है कि चीनी सत्ता प्रतिष्ठान के इस लेख में इस तरह की धमकी भरी बातें क्यों कही गई हैं? चीन कहीं जंग पर तो आमादा नहीं है?

प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर मनमोहन सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को बयान देते समय हमेशा अपने शब्दों और घोषणाओं को लेकर सावधान होना चाहिए। हालाँकि उन्होंने प्रधानमंत्री के किसी बयान का ज़िक्र नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि उनका यह बयान गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद शुक्रवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए बयान को लेकर है। तब प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘न वहाँ कोई हमारी सीमा में घुस आया है और न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।’ प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के बाद उनकी चौतरफ़ा आलोचना की गई। बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री के संशोधित बयान को जारी किया था और कहा था कि प्रधानमंत्री के बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। प्रधानमंत्री के इसी बयान पर विवाद के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज अपना बयान जारी किया है। 

मनमोहन सिंह ने कहा है, ‘प्रधानमंत्री को अपने बयान से उनके (चीन) षड्यंत्रकारी रुख को बल नहीं देना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार के सभी अंग इस ख़तरे का सामना करने व स्थिति को और ज़्यादा गंभीर होने से रोकने के लिए परस्पर सहमति से काम करें।’

मोदी के बयान पर मनमोहन सिंह ने आगाह किया कि ‘प्रधानमंत्री को अपने शब्दों व एलानों द्वारा देश की सुरक्षा एवं सामरिक व भूभागीय हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सदैव बेहद सावधान होना चाहिए’।

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री व केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वो वक़्त की चुनौतियों का सामना करें, और कर्नल बी संतोष बाबू व हमारे सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा व भूभागीय अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुती दे दी।’

बता दें कि चीन पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने बयान जारी कर कहा था कि हमारी सीमाओं में कोई घुसपैठ नहीं हुई है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने उनके बयान को ट्वीट भी किया था। 

कांग्रेस ने इस बयान को लपका और सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री का मतलब भारतीय क्षेत्र को चीन के हाथ सौंपने से था। बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय ने शनिवार को कहा कि पीएम मोदी की टिप्पणी को ‘ग़लत व्याख्या’ देने का प्रयास किया जा रहा है।

इस पर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय क्षेत्र को चीनी आक्रमण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। राहुल ने पहला सवाल पूछा है कि अगर धरती चीन की थी तो हमारे सैनिक क्यों मारे गए और दूसरा सवाल यह कि वे कहां मारे गए। राहुल गलवान घाटी में सैनिकों की शहादत को लेकर लगातार ट्वीट कर रहे हैं। 

इसके बाद राहुल ने रविवार को भी गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की मौजूदगी के मुद्दे पर एक बार फिर प्रधानमंत्री पर ज़ोरदार हमला किया। उन्होंने गलवान सैटेलाइट तसवीरों के आधार पर कहा है कि चीन ने पैंगोंग झील के पास के भारतीय इलाक़े पर कब्जा कर लिया है। 

राहुल गाँधी ने ट्वीट कर कहा, ‘प्रधानमंत्री ने कहा है कि न तो कोई देश में घुसा है और न ही किसी ने किसी इलाक़े पर कब्जा किया है। लेकिन सैटेलाइट तसवीर दिखाते हैं कि चीन ने पैंगोंग झील के किनारे के इलाक़े पर कब्जा कर लिया है।’

डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने लिखा- गलवान घाटी में हुई मुठभेड़ के बाद भारत में कितना कोहराम मचा हुआ है। हमारे विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री को सफाई पर सफाई देनी पड़ रही हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रधानमंत्री की सफाई को और भी साफ-सूफ करना पड़ रहा है, विरोधी दल ऊटपटांग और भोले-भाले सवाल किए जा रहे हैं और भारत की जनता है कि उसका पारा चढ़ा जा रहा है। वह जगह-जगह प्रदर्शन कर रही है, चीनी राष्ट्रपति के पुतले जला रही है, चीनी माल के बहिष्कार की आवाज़ें लगा रही है। 

हमारे कई टीवी एंकर गुस्से में अपना आपा खो बैठते हैं। हमारे 20 जवानों की अंतिम-यात्राओं के दृश्य देखकर करोड़ों लोगों की आंखें आंसुओं से भर जाती हैं। लेकिन हम जरा देखें कि चीन में क्या हो रहा है? 

चीन में न तो भारत-विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं, न ही वहां के टीवी चैनल और अख़बारों ने इसे अपनी सबसे बड़ी खबर बनाया है और न ही भारतीय माल के बहिष्कार की बात कोई चीनी संस्था कर रही है। चीनी सरकार तो बिल्कुल चुप ही है। आपने जरा भी सोचा कि ऐसा क्यों हैं? इसका जवाब ढूंढिए, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान में, जो उन्होंने बहुदलीय बैठक में दिया था।

चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ने गलवान के हत्याकांड पर अपना मुंह तक नहीं खोला है। उसके विदेश मंत्री ने हमारे विदेश मंत्री के आरोपों के जवाब में वैसा ही आरोप लगाकर छोड़ दिया है कि भारतीय सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है और वे वैसा न करें। दोनों विदेश मंत्रियों ने अपनी संप्रभुता की रक्षा की बात कही और सीमा पर शांति बनाए रखने की सलाह एक-दूसरे को दे दी?  चीन में न तो भारत-विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं, न ही वहां के टीवी चैनल और अख़बारों ने इसे अपनी सबसे बड़ी खबर बनाया है और न ही भारतीय माल के बहिष्कार की बात कोई चीनी संस्था कर रही है। चीनी सरकार तो बिल्कुल चुप ही है। आपने जरा भी सोचा कि ऐसा क्यों हैं? इसका जवाब ढूंढिए, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान में, जो उन्होंने बहुदलीय बैठक में दिया था। उन्होंने कहा था कि हमारी सीमा में कोई नहीं घुसा है और हमारी जमीन के किसी भी हिस्से पर किसी का कब्जा नहीं है। 

मोदी ने चीन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला।  यानी चीन ने कुछ किया ही नहीं है। यह बयान नरेंद्र मोदी का नहीं, चीनी राष्ट्रपति शी चिन पिंग का-सा लगता है। उन्होंने नहीं लेकिन उनके प्रवक्ता ने यही कहा है कि चीन ने किसी रेखा का उल्लंघन नहीं किया है। यानी अभी तक देश को यह ठीक-ठाक पता ही नहीं है कि गलवान घाटी में हुआ क्या है?

यह सवाल मैंने पहले दिन ही उठाया था। जब मोदी अपनी सफाई पेश कर रहे थे, तब नेता लोग क्या खर्राटे खींच रहे थे? मोदी को चाहिए था कि प्रमुख नेताओं के साथ बैठकर वे सब बातें सच-सच बताते और ज़रूरी होता तो उन्हें गोपनीय रखने का प्रावधान भी कर देते। अब भी स्थिति संभाली जा सकती है। 

मोदी चीनी राष्ट्रपति शी से सीधी बात करें। इस स्थानीय और अचानक झड़प पर दोनों नेता दुख और पश्चाताप व्यक्त करें। यदि वे यह नहीं करते तो माना जाएगा कि दोनों के व्यक्गित संबंध शुद्ध नौटंकी मात्र थे। यह स्थिति शी के लिए नहीं, मोदी के लिए बहुत भारी पड़ जाएगी। नेहरू पर उठी बीजेपी की उंगली सदा के लिए कट जाएगी। 

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