वेबसाइट लॉन्च- कलयुग की चमत्कारी देवी “जसोलधाम शक्ति पीठ” -माता राणी भटियाणी मन्दिर
27 May 2021: Himalayauk Newsportal & Print Media # कोरोना की विकट महामारी को ध्यान में रखते हुए माजीसा की कृपा से # श्री राणी भटियाणी मंदिर की वेबसाइट www.jasoldham.org # रानी भटियानी एक हिन्दू देवी है जो पश्चिमी राजस्थान, भारत और सिंध, पाकिस्तान में उनके प्रमुख मंदिरों में जसोल, बाड़मेर और जैसलमेर है, जहां उन्हें माजीसा या भुआसा कहा जाता है।
जन जन की आस्था का केंद्र माता राणी भटियाणी मन्दिर #जसोल धाम की वेबसाइट हुई लॉन्च माजीसा के भक्तों को ऑनलाइन दर्शन और आरती का मिलेगा लाभ
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देहरादून-27 मई 2021- जन जन की आस्था का केंद्र माता राणी भटियाणी मन्दिर की आधिकारिक वेबसाइट का लोकार्पण किया गया। वेबसाइट का लोकार्पण वरिया महंत श्री गणेशपूरी महाराज के सानिध्य में किया गया। श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान के अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि माजीसा के भक्तों की श्रद्धा के मध्यनजर व कोरोना की विकट महामारी को ध्यान में रखते हुए संस्थान को यह एक जरुरी कार्य महसूस हुआ। जिसे नवरात्रि में माजीसा की कृपा से क्रियान्वित किया गया और आज 27 MAY 2021 उसका विधि विधान से लोकार्पण किया गया।
ट्रस्ट अध्यक्ष ने बताया कि लाखो लोगो की आस्था का केंद्र श्री राणी भटियाणी मंदिर की वेबसाइट www.jasoldham.org के माध्यम से सर्व समाज जुड़ सकेगा। अब वेबसाइट पर सीधे आरती दर्शन की व्यवस्था भी की गई है। माजीसा के भक्त वेबसाईट के माध्यम से घर या देश विदेश कहीं पर भी बैठे दर्शनकर अपनी श्रद्धा के सुमन माजीसा को अर्पण कर सकते है। जसोल धाम की वेबसाइट पर दर्शनार्थियों को सम्पूर्ण जानकारी, तमाम धार्मिक आध्यात्मिक गतिविधियों की जानकारी आमजन और भक्त भाविकों को दूर देश में भी इसके माध्यम से सुलभ होगी।
वेबसाइट के माध्यम से भक्त मन्दिर के विभिन्न सोशियल मीडिया हेंडल जैसे-फेसबुक, यूट्यूब व इंस्टाग्राम से जुड़कर दर्शन लाभ ले सकते है। लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान मंहत गणेशपूरी महाराज ने कहा कि कलयुग की इस चमत्कारी देवी की पूजा- आराधना सभी वर्गो के लोग 365 दिन करते आ रहे है। जिससे जसोल आज “जसोलधाम शक्ति पीठ” के रूप में जाना जाने लगा हैं । इस कठिन परिश्रम का श्रेय “रावल किशनसिंह जसोल” जिनके अथक प्रयासों व अपने जीवन के अनुभव से इतने कम समय में यह भव्यता लाना से सम्भव हुआ हैं, मैं उनको साधुवाद स्वरूप आशीष देता हूँ कि वो स्वस्थ एवं दीर्घायु रहकर हमेशा मार्गदर्शन करते रहें।
उन्होंनेे कहा कि ट्रस्ट अध्यक्ष रावल साहब पुरानी धरोहरों का संरक्षण, वन पर्यावरण के प्रति लगाव, पीड़ितों की सेवा, जन मानस में आध्यात्मिक व धार्मिक भावना जाग्रत करना का कार्य कर रहे है जो सराहनीय है। वेबसाइट लोकार्पण से पूर्व मन्दिर ट्रस्ट सदस्यों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ट्रस्ट के किए कार्यो को लेकर चर्चा की तथा कोरोना काल के चलते ट्रस्ट मंडल के द्वारा जन मानस की सेवा को लेकर किए गए कार्यो को लेकर भी संवाद किया गया।
श्री राणी भटियाणी मंदिर की वेबसाइट www.jasoldham.org
इस अवसर पर वीसी से जस्टिस आर एस राठौड़, रावत त्रिभुवन सिंह बाड़मेर, कर्नल ठा.शम्भूसिंह देवड़ा(से.नि.), रावल विक्रम सिंह सिणधरी, ठा.गजेन्द्रसिंह जसोल, ठा.पुंजराज सिंह वरीय, ठा.मांगसिंह जागसा, ठा.हनुवन्तसिंह नोसर, संस्थान मैनेजर जेठूसिंह, संस्थान सुपरवाईजर भोपालसिंह मलवा मौजूद रहे।
भूआजी स्वरूपों उर्फ माता राणी भटियाणी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था। राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था। … विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया।
जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां वि.सं. 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। बालिका बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल। रावल कल्याणमल से होना तय हुआ। कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया।
स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रारम्भ से ही ईष्र्या करने लगी परन्तु राणी स्वरूप कंवर उसे अपनी बड़ी बहिन के समान समझती थी। जसोल ठिकाने में रानी स्वरूप कवर राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी। विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जिसका नाम लालसिंह रखा गया। रावल के दो विवाह करने के पश्चात् यह पहला पुत्र होने पर जसोल में खुशी मनाई गयी। रानी देवड़ी मन ही मन कुंठित रहने लगी और राणी भटियाणी के आंखों का तारा देवड़ी की आँखों में खटकने लगा।
कुछ समय पश्चात् देवड़ी के भी एक पुत्र हुआ परन्तु लालसिंह ही जसोल ठिकाने का उत्तराधिकारी बन सकता था क्योंकि देवड़ी का पुत्र तो उससे उम्र में छोटा था। इसी कुटिलता को लिए हुए देवड़ी ने लालसिंह की हत्या का षड़यंत्र रचा और वह उपयुक्त अवसर की तलाश में रहने लगी।
श्रावण की तीज के अवसर पर राणी भटियाणी अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में झूला झूलने गयी परन्तु कुंवर लालसिंह को महल में अकेला ही सोया हुआ छोड़ गयी। देवड़ी ऐसे ही मौके की तलाश में थी। उसने कुंवर लाल को दूध में जहर मिलवा कर पिला दिया। एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि कुंवर लालसिंह को महल की सीढियों से लुढ़का दिया गया और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। देवड़ी लालसिंह की मृत्यु के समाचार पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। आखिर रास्ते का कांटा दूर हो गया अब मेरा पुत्र ही यहाँ का शासक बनेगा।
राणी भटियाणी जब अपनी सहेलियों के साथ तीज का झूला झूल कर वापस आयी तो लालसिंह को मृत पाया। राणी भटियाणी इस कुटिल चाल को समझ गयी और पुत्र वियोग में व्याकुल हो गयी। उसका मन कहीं भी नहीं लगता। अब वह अस्वस्थ रहने लगी उधर बड़ी रानी कुंवर लालसिंह को मरवा कर ही संतुष्ट नहीं हुई उसने राणी भटियाणी को भी मरवाने की सोच ली। उसने भटियाणी को जहर दिलवा दिया इस कारण वि.सं. 1775 माघ सुदी द्वितीया को उनका स्वर्गवास हो गया। राणी भटियाणी की मृत्यु का समाचार सुन कर जसोल ठिकाने में शोक छा गया। एक दिन राणी भटियाणी के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां कुछ मांगने के लिए चले आये। देवड़ी ने उन्हें भटियाणी के चबूतरे के आगे जाकर मांगने को कहा। दु:खी होकर ढोली अपने गाँव के ‘बाईसा के चबूतरे के आगे जाकर सच्चे मन से विनती करने लगे और आप बीती सुनायी।
राणी भटियाणी ने प्रसन्न होकर उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए और ‘परचे के प्रमाण स्वरूप रावल कल्याणमल के नाम एक पत्र दिया जिसमें रावल की मृत्यु उसी दिन से बारहवें दिन होना लिखा और ऐसा ही हुआ। रावल कल्याणमल का स्वर्गवास ठीक बारहवें दिन हो गया। यह बात आस पास के गांवों में फैल गयी। इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए। जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे। प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में वैशाख, भाद्रपद और “माघ महीनों की शुक्ल पक्ष की तेरस व चवदस को यहाँ श्रद्धालु आते हैं। मनौती पूरी होने पर जात देते है ‘कांचळी’, ‘लूगड़ी’, ‘बिंदिया और चूड़ियां राणी भटियाणी के भक्त जन चढ़ाते हैं।
राजस्थान ही नहीं भारतवर्ष के हर कोने से यहाँ पर श्रद्धालु आते हैं। राणी भटियाणी के नाम से एक पशु मेला भी आयोजित किया जाता है जिसमें ऊंट, घोड़े, बैल आदि खरीदने और बेचने के लिए व्यापारी आते हैं।
जसोल और जोगीदास गाँव स्थित जन-जन की आराध्य देवी माता राणी भटियानी की ख्याति आज राजस्थान से गुजरती हुई पडौसी राज्यों गुजरात,मध्यप्रदेश, हरियाणा,महाराष्ट्र, और सिंध प्रदेश तक जा पहुंची है। जहाँ प्रतिवर्ष 15 लाख से अधिक श्रद्धालू भक्तजन माता राणी के दरबार में शीश नवाकर अपने सुखद सफल सौभाग्य की मन्नते माँगते है।
इस मंदिर में भाद्रपद मास की त्रयोदसी व माघ मास की चतुर्दसी को राणी भटियानी का भव्य मेला भरता है। प्रतिवर्ष साल में 2 बार भाद्रपद व माघ मास में मेला भरता है। जोगीदास गाँव माता राणी की जन्मस्थली में भी माता राणी भटियानी का भव्यमंदिर बना है जहा साल में 2 बार श्रद्धालू यात्री आते है।……….जय माता दी…~ॐ~… जय श्री माजीसा माँ…….जय माता राणी भटियानी………
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