कैलाश मानसरोवर यात्रा ; उत्तराखंड में जारी रहेगी

भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए सरकार ने आज सिक्किम में नाथू ला के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा रद्द कर दी. यात्रा के लिए दिल्ली में जमा हुए श्रद्धालुओं के तीसरे जत्थे को और आगे जाने से रोक दिया गया.

यह फैसला चीन-भारत सीमा से लगे विवादित इलाके को लेकर भारतीय और चीन के जवानों के बीच तनातनी को लेकर लिया गया है. हालांकि एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि इस साल सिक्किम में नाथू ला के जरिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा नहीं होगी लेकिन उत्तराखंड में लिपूलेख दर्रे के रास्ते तीर्थयात्रा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जारी रहेगी.

नाथू ला मार्ग के जरिए कुल आठ जत्थों में मानसरोवर की यात्रा करने का इंतजार कर रहे 400 लोगों को इस बारे में जानकारी दे दी गई है कि इस रास्ते से यात्रा रद्द कर दी गयी है. कैलाश मानसरोवर पर्वत को भगवान शिव का घर समझा जाता है.

चीन ने पहले दो जत्थों के लिए वीजा जारी कर दिया था लेकिन सीमा पर तनाव को देखते हुए बचे हुए श्रद्धालुओं के आवेदनों पर रोक लगा दी थी. आगे की यात्रा के लिए चीन की मंजूरी का इंतजार करने के लिए नाथू ला में तीन दिन गुजारने के बाद पहला जत्था 23 जून को गंगटोक लौट गया. श्रद्धालुओं का दूसरा जत्था गंगटोक से आगे नहीं गया और आखिर में श्रद्धालुओं से घर लौट जाने को कहा गया. तीसरा जत्था जल्द ही दिल्ली से रवाना होने वाला था.

चीन ने भारत के सामने पहले शर्त रखी है कि भारत के सिक्किम के पास दोकलाम इलाके से अपने सैनिक वापस बुलाने के बाद ही वह श्रद्धालुओं को तिब्बत में प्रवेश करने की मंजूरी देगा. इसके बाद सरकार ने यात्रा रद्द करने का फैसला किया.

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में एक अधिकारी ने कहा कि जिन श्रद्धालुओं को नाथू ला दर्रे के रास्ते चीन में प्रवेश करने की मंजूरी नहीं दी गयी , उन्हें उत्तराखंड के रास्ते होने वाली यात्रा में शामिल होने की मंजूरी दी जा सकती है अगर इस रास्ते से श्रद्धालुओं की कुछ रिक्तियां होती हैं.

यात्रा की नोडल एजेंसी कुमांउ मंडल विकास निगम (केएमवीएन) के क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी डी के शर्मा ने कहा, ”सात या आठ श्रद्धालुओं जिन्हें चीनी अधिकारियों ने नाथू ला के जरिए यात्रा करने की मंजूरी नहीं दी, उन्होंने इस रास्ते से यात्रा पूरी करने की इच्छा जतायी है”. उन्होंने कहा कि अगर कोई जगह खाली होती हैं तो उन्हें लिपूलेख के रास्ते यात्रा में शामिल किया जा सकता है. आमतौर जगह खाली तब होती हैं जब किसी श्रद्धालु को तिब्बत में 15,160 फुट की उंचाई पर स्थित कैलाश मानसरोवर की कठिन यात्रा के लिए मेडिकली फिट नहीं पाया जाता है.

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