UK; इस मंदिर में किसी वीआइपी की भी नहीं चलती
रहस्यमय मंदिर; नागराज मणि के साथ हैं -हिमालयायूके ; इस मंदिर के अंदर साक्षात रूप में नागराज अपने अद्भुत मणि के साथ वास करते हैं,जिसे देखना आम लोगों के वश की बात नहीं है। पुजारी भी साक्षात विकराल नागराज को देखकर न डर जाएं इसलिए वे अपने आंख पर पट्टी बांधते हैं। यह भी मानना है कि मणि की तेज रौशनी की चुंधियाहट इन्सान को अंधा बना देती है। लोग यह भी कहते हैं कि न तो पुजारी के मुंह की गंध तक देवता तक और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक पहुंचनी चाहिए। इसलिए वे नाक-मुंह पर पट्टी लगाते हैं। उत्तराखंड में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं है ; Execlusive: (www.himalayauk.org) (web & Print Media) CS JOSHI-
आज कल मंदिरों में वीआईपी को पहले दर्शन कराने की खबर गर्म है, पहले वीआईपी दर्शन करेगे, उसके बाद आम जनता, तब तक आम जनता मंदिर में प्रवेश भी नही कर सकती- परन्तु इस मंदिर में किसी वीआइपी की भी नहीं चलती; ऐसा भी एक मंदिर हैं, जहां महिला और पुरुष किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अन्दर जाने की इजाजत नहीं है। इस मंदिर में किसी वीआइपी की भी नहीं चलती है। वीआइपी की छोड़िए, यहां इस मंदिर के पुजारी की भी नहीं चलती है। पुजारी को भी आंख, नाक और मुंह पर पट्टी बांध कर देवता की पूजा करनी पड़ती है। श्रद्धालु इस मंदिर परिसर से लगभग 75 फीट की दूरी पर रहकर पूजा कर मन्नतें मांगते हैं। यह मन्दिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल नामक ब्लॉक में वांण नामक स्थान पर स्थापित है। राज्य में यह देवस्थल लाटू मंदिर नाम से विख्यात है, क्योंकि यहां लाटू देवता की पूजा होती है। उत्तराखंड की अनुश्रुतियों के अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या नंदा देवी के धर्म भाई हैं। दरअसल वांण गांव प्रत्येक 12 वर्षों पर होने वाली उत्तराखंड की सबसे लंबी पैदल यात्रा श्रीनंदा देवी की राज जात यात्रा का बारहवां पड़ाव है। यहां लाटू देवता वांण से लेकर हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा देवी की अगवानी करते हैं। इस मंदिर के कपाट साल में एक ही दिन वैशाख माह की पूर्णिमा को खुलते हैं और पुजारी आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर कपाट खोलते हैं। श्रद्धालु और भक्त दिन भर दूर से ही लाटू देवता का दर्शन कर पुण्यभागी बनते हैं। लाटू देवता के कपाट खुलने के शुभ अवसर पर यहां विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका पाठ का आयोजन किया जाता है। इस दिन यहां एक विशाल मेला लगता है।
चमोली में देवाल के वांण स्थित मां नंदा के धर्मभाई लाटू देवता मंदिर के कपाट 10 मई को विधि-विधा प्रसिद्घ लाटू देवता मंदिर के कपाट 10 मई को पारंपरिक तौर पर खोल दिए जाएंगे।
रहस्यमयी मंदिर जिसके अंदर नहीं जाता कोई -उत्तराखंड की प्रसिद्ध श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के अंतिम आबादी वाले पड़ाव वाण गांव में स्थित लाटू देवता का मंदिर ; उत्तराखंड की प्रसिद्ध श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के अंतिम आबादी वाले पड़ाव वाण गांव में स्थित लाटू देवता का मंदिर आज भी देश और दुनिया के लिए रहस्य बना है। हर वर्ष बैसाख पूर्णिमा को मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, इस दिन मंदिर के अंदर केवल पुजारी प्रवेश करते हैं वो भी पूरे चेहरे को कपड़े से ढककर। क्या है . मान्यता है कि मंदिर के अंदर शिवलिंग है जिसकी शक्ति और तेज से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते पुजारी भी कपड़ा बांधकर मंदिर में प्रवेश करते हैं।
चमोली में देवाल के वांण स्थित मां नंदा के धर्मभाई लाटू देवता मंदिर के कपाट 10 मई को विधि-विधान के साथ खुलेंगे। इस मौके पर एक दिवसीय बोरी मेले का भी आयोजन रखा गया है। आयोजन को लेकर हुई बैठक में ग्रामीणों को मेला संपन्न करने के लिए कमेटी गठित कर जिम्मेदारी सौंपी गई। वांण स्थित लाटू देवता मंदिर के पुजारी खीम सिंह ने बताया कि वैसाख मास की पूर्णिमा के दिन कपाट खोलने की परंपरा वर्षो से चली आ रही है और इस दिन नंदादेवी राजजात के इस अहम पड़ाव पर स्थित लाटू देवता मंदिर के गर्भगृह में पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा की प्रक्रिया पूर्ण करते हैं।
लाटू देवता को मां नंदा का भाई माना जाता है और श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान वाण से लेकर होमकुंड तक राजजात की अगुवाई भी लाटू करता है। 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थिदत 350 परिवारों वाले वाण गांववासी लाटू देवता को अपना ईष्ट मानते हैं। कुल पुरोहित रमेश कुनियाल कहते हैं कि यह मंदिर संभवत राज्य का पहला मंदिर जिसके भीतर श्रद्धालु प्रवेश नहीं करते हैं। किवदंतियों के अनुसार लाटू कनौज का गौड़ ब्राह्मण था, जो परम शिवभक्त था। शिव के दर्शनों के लिए कैलाश जाते हुए वाण गांव में उसने विश्राम किया था। इस दौरान प्यास लगने एक महिला से उसने पानी मांग लेकिन भूलवश जाम पी लिया। कुपित होकर लाटू ने अपनी जीभ काट ली और मूर्छित हो गया। बाद में भगवती (लाटू की धर्म बहन) की कृपा से लाटू को होश आया, जिसके बाद यहां लाटू की पूजा की जाती है। लाटू देवता के मंदिर में बारह महीने श्रद्धालु पहुंचते हैं, जो मंदिर के बाहर से पूजा अर्चना कर ही लौटते हैं
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