28 अप्रैल; विशेष शुभ दिन-मॉ पीतांबरा अवतार दिवस

3 अवतार  हुए 28 अप्रैल को  ;अक्षय तृतीया के दिन ही पीतांबरा, नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के अवतार हुए हैं, इसीलिए इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है. मान्यताओं के अनुसार भारतीय काल गणना के सि‍द्धांत से अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई; इसी तिथि को बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन होता है, लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किए जाते हैं।
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। शास्त्रों में अक्षय तृतीया को युग की प्रारंभिक तिथि व कल्प की आदि तिथि माना जाता है । इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है। दस महाविद्याओं में भगवती पीतांबरा (बगलामुखी) के अनन्य साधक परशुरामजी ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया। निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था। परशुरामजी का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि अर्थात तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। अतः इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं।

दस महाविद्या शक्‍तिपीठ मंदिर बजारावाला देहरादून में बनाने हेतु कल्‍पना हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड के सम्‍पादक चन्‍द्रशेखर जोशी ने की , इस क्रम में उन्‍हें एक राणा परिवार ने कुछ भूमि दान रूवरूप भी उपलब्‍ध करायी है, उन्‍हें आशा है कि एक दिन यहां भव्‍य शक्‍तिपीठ मंदिर का निर्माण होगा और इसमें गुरूजन समय समय पर विराजकर भक्‍तों को आशीर्वाद देकर उनका कष्‍ट दूर करेगें-28 अप्रैल को  मॉ पीताम्‍बरा के अवतार दिवस पर सुक्ष्‍म पूजापाठ चन्‍द्रशेखर जोशी के निवास स्‍थान पर विद्वान ज्‍योतिषविद श्रीपरमानंद जी के कर कमलो से सम्‍पन्‍न होगा

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।

स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी भी कहा जाता है। पीतांबरा पीठ को बगलामुखी साधना करने वालों के बीच बड़ी ही सिद्ध पीठ के तौर पर जाना जाता है। कहा जाता है कि मां पीतांबरा ने समुद्र मंथन के दौरान विष्णु की मदद की थी, जिससे समुद्र मंथन से अमृत पाने में देवता सफल हो सके। इसलिए शरणागत भक्तों को मां संकट से उबारती हैं। कई बार इस मंदिर में देश पर आए युद्ध के संकट से देश को उबारने के लिए विशेष यज्ञ कराए गए हैं।माँ पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी, उसी समय ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।

अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इसी दिन से सारे शुभ काम शुरू होते हैं अक्षय तृतीया 28 अप्रैल 2017 को सुबह 10.30 बजे से शुरू हो होगी जो 29 अप्रैल 2017 को सुबह 6.55 बजे तक ही रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 28 तारीख को सुबह 10:29 बजे से दोपहर के 12:17 बजे तक का है
वैशाखशुक्ल तृतीया शनिवार 29 अप्रैल को अक्षय तृतीय मनाई जाएगी। इसी दिन भगवान परशुराम का भी अवतार हुआ था। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में वैशाख माह का अतिविशिष्ट महत्व है। उसमें अक्षय तृतीया का महत्व अतिविशिष्ट होता है। क्योंकि तृतीया तिथि की स्वामिनी माता गौरी हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. राजनाथ झा के अनुसार इस दिन किया गया धर्म-कर्म, दान, पूजा-पाठ, सदाचरण अक्षय रहता है। अक्षयतृतीया को ऐसी वस्तुओं का दान करना चाहिए, जो गर्मी में उपयोगी राहत प्रदान करने वाली हो। इस दिन दान उपवास करने का हजार गुना फल मिलता है। खासतौर से श्रद्धालु छाता, दही, जूते-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का शरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करते हैं।
भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन से ही सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। माना जाता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव इसी दिन हुआ था।

इसी दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं इसी कारण इस दिन श्री बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं।
पद्म पुराण के मुताबिक इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। कहते हैं कि इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र और आभूषणों की खरीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं।
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया था। इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं।

अक्षय तृतीया अर्थात ऐसी तृतीया तिथि जिसका कभी क्षय न हो। इस दिन करने वाले कार्य का कभी क्षय नहीं होता है, चाहे वह पुण्य कार्य हो पाप कर्म। अतः अक्षय तृतीया को पुण्य कर्म करना ही लाभकारी रहता है। इस बार अक्षय तृतीया को लेकर थोड़ा भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ पंचागों में 28 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और कुछ में 29 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। भविष्य पुराण के अनुसार यदि अक्षय तृतीया वाले दिन कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो प्रशस्त माना गया है। 28 अप्रैल को सुबह 10: 31 मिनट तक तृतीया है, जो 29 अप्रैल को प्रातः 6: 56 मिनट तक रहेगी। 28 अप्रैल को अपरान्ह 1: 40 मिनट तक कृतिका नक्षत्र है तत्पश्चात रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ हो जायेगा,जो 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक रहेगा। इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो रहा है। खरीद्दारी का शुभ मुहूर्त-28 अप्रैल मध्यान्ह 12:20 मिमट से रात्रि 10 बजे तक रहेगा और फिर 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पवित्र मानी जाने वाली अक्षय तृतीया पर्व हिन्दू श्रद्धालू उपवास और दान आदि कर्म फल को अक्षय मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु वैशाख मास की अक्षय तृतीया को अवतरित हुये थे। भगवान विष्णु को गरीबों की सहायता करना एंव सहयोग करना बेहद प्रिय है। वर्तमान समय में अक्षय तृतीया के दिन सोना, चॉंदी एंव आभूषण खरीदना एक तरह का फैशन बन गया है। यह चलन सिर्फ व्यावसायिकता का प्रतीक और कुछ नहीं। इसका कोई शास्त्रीय आधार या उल्लेख वर्णित नहीं है।
जिन जातकों के कार्यो अड़चने आ रही हैं, या फिर जिनके व्यापार में लगातर हानि हो रही है। अधिक परिश्रम के बावजूद भी धन नहीं टिकता है एंव घर में अशान्ति बनी रहती है। सन्तान मनोकूल कार्य न करें तथा विरोधी चॅहुओर से परेशान कर रहें। जिन महिलाओं के वैवाहिक सुख में तनाव की स्थिति बनी रहती है। उपरोक्त समस्याओं से जूझ रहे जातक अक्षय तृतीया का व्रत रखकर और गर्मी में निम्न वस्तुओं जैसे-छाता, दही, जूता-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का सरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करने से उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है। ”शुध्यन्ति दानः सन्तुष्टया द्रवयाणि” अर्थात धन दान और सन्तोष से विशुद्ध होता है।
वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी पुण्य कर्म किये जाते है, उनका फल अक्षय होता है। 1- भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था। 3- भगवान विष्णु ने नर-नारायण और परशुराम का अवतरण अक्षय तुतीया को ही हुआ था। 4- ब्रह्रमा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी तिथि को हुआ था इसीलिए इसको अक्षय तिथि कहते है। 5- इसी तिथि को बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किये जाते है। 6- उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते है।

वृन्दावन स्थित श्री बॉके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते है अन्यथा बॉके बिहारी पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते है। 8-अक्षय तृतीया 21 घटी 21 पल होती है। 9-इसी तिथि को महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। 10-द्वापर युग का समापन भी इसी तिथि को हुआ था। 11-इस तिथि को बिना पंचाग देखे कोई शुभ व मॉगलिक कार्य जैसे- विवाह, गुह प्रवेश, वस्त्र-आभूषण खरीदना, वाहन एंव घर आदि खरीदा जा सकता है। 12- अक्षय तृतीय यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन पड़े तो इसका फल कई गुना अधिक हो जाता है। 13- तृतीया मध्यान्ह से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। 14- यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ का संकेत है। 15- चारो धाम की यात्रा भी इसी तिथि से शुरू हो रही है।

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