महाशिवरात्रि- 30 साल बाद दुर्लभ संयोग & ग्रहों की चाल में बड़ी उथल-पुथल- अधिकारियों के भ्रष्टाचार उजागर – मीडिया, वकालात लोगों के लिए अच्छा समय- के संयोग

10 FEB 2023 # HIGH LIGHT # महाशिवरात्रि (18 फरवरी  और होली 8 मार्च– # ग्रहों की स्थिति साधक को महादेव की आराधना का विशेष लाभ & ग्रहों की चाल में बदलाव   – बड़ी उथल-पुथल होने के योग- अधिकारियों के भ्रष्टाचार उजागर – मीडिया और वकालात से जुड़े लोगों के लिए अच्छा समय # महाशिवरात्रि पर पूरे 30 साल बाद एक बड़ा ही दुर्लभ संयोग   # शिवरात्रि पर न्याय देव शनि कुंभ राशि में विराजमान रहेंगे  # 13 फरवरी को कुंभ राशि में पिता-पुत्र सूर्य और शनि की युति भी बनने वाली है  # सुखों के प्रदाता शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे। इस दिन प्रदोष व्रत का संयोग भी बन रहा है।  # मान्यताएं हैं कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे। इनमें सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग शामिल हैं# 28 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे और 7 मार्च तक रहेंगे। होलिका दहन 7 मार्च 2023 को होगा। वहीं 8 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी। 

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पुराणों के मुताबिक इस तिथि पर ही भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। ये पर्व इस बार 18 फरवरी को है- फाल्गुन महीने के खत्म होने पर यानी आखिरी दिन होलिका दहन होता है जो कि 7 मार्च को – रंगो का त्योहार 8 को# वसंत ऋतु   14 मार्च से 15 मई तक –

ज्योतिषियों के मुताबिक  ग्रहों की चाल में बदलाव होने के करण – – फरवरी के पहले ही सप्ताह में शनि अस्त- एक दिन बाद बुध का राशि परिवर्तन – 5 दिन बाद सूर्य राशि परिवर्तन- शनि की चाल में बदलाव के साथ इन दो ग्रहों का परिवर्तन कई मायनों में खास – शनि अस्त -बुध और सूर्य का राशि परिवर्तन- कई उतार-चढ़ाव -त्रिग्रही योग — सोमवार, 13 फरवरी को सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में शनि के साथ आ जाएगा। इससे कुंभ राशि में सूर्य, शुक्र और शनि का त्रिग्रही योग रहेगा- – इन ग्रहों की चाल में बदलाव होने से- बड़ी उथल-पुथल होने के योग- अधिकारियों के भ्रष्टाचार उजागर- किस्मत का साथ भी नहीं –  इस ग्रह स्थिति के कारण लोगों के दिल-दिमाग में अनिश्चितता रहेगी- मीडिया और वकालात से जुड़े लोगों के लिए अच्छा समय रहेगा।

फागुन मास 6 फरवरी से शुरू –  7 मार्च को होली के साथ खत्म हो – महाशिवरात्रि (18 फरवरी  और होली 8 मार्च– ये दो ऋतुओं के संधिकाल का समय है। ऋतुओं के संधिकाल में पूजा-पाठ, व्रत-उपवास के साथ ही ध्यान करने की भी परंपरा है। जब ऋतु परिवर्तन का समय होता है, उस समय  मन अशांत रहता है।  फाल्गुन मास की पूर्णिमा को महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी। इस कारण इस दिन चंद्रमा की विशेष आराधना कर चंद्रमा से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है।  वसंत ऋतु के आने से पहले ही फाल्गुन महीने के दौरान मौसम में सुखद और सकारात्मक बदलाव होने लगते हैं। जो मन को भाते हैं। आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि इस मौसम में ही शरीर में ताकत बढ़ती है। साथ ही शरीर के तीन दोष यानी वात, पित्त और कफ में बैलेंस बना रहता है। इसलिए फाल्गुन को सुखद महीना भी कहा जाता है।

28 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे और 7 मार्च तक रहेंगे। होलिका दहन 7 मार्च 2023 को होगा। वहीं 8 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी। 

महाशिवरात्रि शनिवार के दिन होने से शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है।   शिव आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि 18 फरवरी को हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इस अवसर पर साधना में सफलता देने वाला त्रिग्रही योग के साथ शनि प्रदोष और सर्वार्थसिद्धि योग का संयोग बनेगा।  इस साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 18 फरवरी शनिवार को रात 8 बजकर 2 मिनट से अगले दिन 19 फरवरी को शाम 4 बजकर 18 मिनट तक रहेगी।शिवरात्रि में निशिथ काल पूजा का मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। पर्व पर शनिदेव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में विराजमान रहेंगे। साथ ही सूर्यदेव शनि की राशि कुंभ में चंद्रमा के साथ विराजित रहेंगे। ग्रहों की यह स्थित त्रिग्रही योग का निर्माण करेंगी। ग्रहों की यह स्थिति साधक को महादेव की आराधना का विशेष लाभ प्रदान करेगी। इसके दो दिन बाद 20 फरवरी को सोमवती अमावस्या का संयोग बनेगा। शिवरात्रि के दिन, सुबह नित्य कर्म करने के पश्चात्, भक्त गणों को पूरे दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के दौरान, भक्तों को मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा दोहरानी चाहिए और भगवान शिव से व्रत को निर्विघ्न रूप से पूर्ण करने हेतु आशीर्वाद मांगना चाहिए। 

महाशिवरात्रि पर चार पहर पूजा के मुहूर्तप्रथम पहल की पूजा शाम 6.41 से रात 9.47 बजे। द्वितीय पहर की पूजा रात 9.47 से रात 12.53 बजे। तृतीय पहर की पूजा रात 12.53 से रात 5.58 बजे। चतुर्थ पहर की पूजा सुबह 3.58 बजे सुबह 7.06 बजे। निशिता काल पूजा समय रात 12.15 से रात 1.05 बजे तक।

7 फरवरी को बुध, धनु से निकलकर मकर राशि में आ गया है। जो इस महीने की 27 तारीख को अगली राशि में चला जाएगा। वहीं, अब 13 फरवरी तक बुध और सूर्य, साथ होने से बुधादित्य योग बनेगा। इस शुभ योग का फायदा कई लोगों को मिलेगा। 15 मार्च तक बुध, अपने मित्र ग्रह शनि की राशियों में ही रहेगा। जिससे इसका शुभ फल मिलेगा। 

होलाष्टक काल को विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन समारोह जैसे अधिक शुभ कार्यों को करने के लिए अशुभ माना गया है।

पौराणिक कथा के मुताबिक कामदेव द्वारा भगवान शिव की तपस्या भंग करने के कारण शिवजी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी पर कामदेव को भस्म कर दिया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय कामदेव ने महादेव भगवान शिव की तपस्या को भंग कर दिया था। इस बात से नाराज भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के प्राण जाने की खबर सुनकर उनकी पत्नी ने भगवान शिव से प्रार्थना की तो उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान कर दिया। तब से ही होलाष्टक मनाने की परंपरा चली आ रही है। आपको बता दें कि होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का अंत हो जाता है। हवन, यज्ञ, भागवत या रामायण जैसे कार्य भी होलाष्टक में नहीं करने चाहिए।

शनिवार, 18 फरवरी को महाशिवरात्रि है। इस पर्व से जुड़ी दो मान्यताए हैं। पहली, फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी पर ब्रह्मा-विष्णु के सामने शिव जी शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। दूसरी मान्यता ये है कि इस तिथि पर शिव जी और पार्वती जी का विवाह हुआ था। शिव जी और देवी पार्वती के विवाह से पहले का प्रसंग है।

शिव जी ने कहा कि मैं विवाह करने आया हूं तो मुझे अहंकार नहीं करना चाहिए

शिव जी का विवाह करने के लिए बारात लेकर हिमालय राज के यहां पहुंचे। उस समय शिव जी का श्रृंगार बहुत ही अद्भुत था। भगवान के शरीर पर भस्म लगी थी, गले में सांप था। शिव जी का ऐसा स्वरूप देखकर हिमालय राज की पत्नी और पार्वती जी की माता मैना देवी डर गईं।

मैना देवी ने शिव जी को देखकर कहा कि मैं मेरी बेटी का विवाह इसके साथ नहीं करूंगी। अगर मुझे पहले ये मालूम होता तो मैं इस विवाह के लिए तैयार ही नहीं होती। मैं नारद जी के कहने पर इस रिश्ते के लिए तैयार हुई थी, लेकिन अब मैं ऐसे दूल्हे के साथ मेरी बेटी का विवाह नहीं करना चाहती।

ये सुनकर भी शिव जी मौन खड़े थे। उस समय किसी ने शिव जी से पूछा कि आपको गुस्सा नहीं आ रहा है? आपका अपमान हो रहा है। शिव जी ने कहा कि मैं विवाह करने आया हूं तो मुझे अहंकार नहीं करना चाहिए। मैं जैसा हूं, मैं अच्छी तरह जानता हूं। अन्य लोग मेरे बारे में जैसा चाहें, वैसा सोच सकते हैं। मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैना के मना करने के बाद नारद मुनि ने उन्हें समझाया। इसके बाद मैना शिव-पार्वती के विवाह के लिए तैयार हो गई थीं। इसके बाद देवी पार्वती और शिव जी का विवाह हुआ।

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