मंत्र सम्बंधित देवी-देवता का टेलीफोन नंबर होता है

मंत्र सम्बंधित देवी-देवता का टेलीफोन नंबर होता है। जैसे ही आप मंत्र का उच्चारण करेंगे, उस देवी-देवता के पास आपकी पुकार तुरंत पहुंच जायेगी। गुरु दिक्षा लेकर मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मंत्र निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।

पीताम्बरां च द्वि-भुजां त्रि-नेत्रां गात्र-कोमलाम् ।
शिला-मुदगर-हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुखीम्।। “
अर्थात:- कोमल शरीरवाली, वज्र और मुदगर हाथों में धारण करने वाली, त्रि-नेत्र एवं दो भुजाओं वाली पीताम्बरां बगलामुखी जी का मैं स्मरण करता हूं ।
माता बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं. इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं. ये स्तम्भन की देवी हैं. सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती. शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है. किसी छोटे कार्य के लिए १०००० तथा असाध्य से लगाने वाले कार्य के लिए एक लाख मंत्र का जाप करना चाहिए. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. इस कवच के पाठ से वायु भी स्थिर हो जाती है। शत्रु का विलय हो जाता है। विद्वेषण, आकर्षण, उच्चाटन, मारण तथा शत्रु का स्तम्भन भी इस कवच के पढ़ने से होता है। बगला प्रत्यंगिरा सर्व दुष्टों का नाश करने वाली, सभी दुःखो को हरने वाली, पापों का नाश करने वाली, सभी शरणागतों का हित करने वाली, भोग, मोक्ष, राज्य और सौभाग्य प्रदायिनी तथा नवग्रहों के दोषों को दूर करने वाली हैं। जो साधक इस कवच का पाठ तीनों समय अथवा एक समय भी स्थिर मन से करता है, उसके लिए यह कल्पवृक्ष के समान है और तीनों लोकों में उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। साधक जिसकी ओर भरपूर दृष्टि से देख ले, अथवा हाथ से किसी को छू भर दे, वही मनुष्य दासतुल्य हो जाता है। इस कवच के पाठ से भयंकर से भयंकर तंत्र प्रयोग को भी नष्ट किया जा सकता है लेकिन इसका पाठ केवल बगलामुखी में दीक्षित साधक ही कर सकते हैं। बिना गुरू आज्ञा के इसका पाठ नही करना चाहिए।

३६ अक्षर का बगलामुखी महामंत्र इस प्रकार है-
ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा.

आज लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि पड़ोसी की सफलता से दुखी हैं। ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए माताओं में माता बगलामुखी (वाल्गामुखी) मानव कल्याण के लिये कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही हैं। माता, जो दुष्टों का संहार करती हैं। अशुभ समय का निवारण कर नई चेतना का संचार करती हैं। इनकी आराधना करके आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। सामान्यत: आजकल इनकी सर्वाधिक आराधना राजनेता लोग चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्ठान स्वरूप करवाते हैं। इनकी आराधना करने वाला शत्रु से कभी परास्त नहीं हो सकता, वरन उसे मनमाना कष्टï पहुंच सकता है। माता की आराधना युद्ध, वाद-विवाद मुकदमें में सफलता, शत्रुओं का नाश, मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, देवस्तम्भन, आकर्षण कलह, शत्रुस्तभन, रोगनाश, कार्यसिद्धि, वशीकरण व्यापार में बाधा निवारण, दुकान बाधना, कोख बाधना, शत्रु वाणी रोधक आदि कार्यों की बाधा दूर करने और बाधा पैदा करने दोनों में की जाती है। साधक अपनी इच्छानुसार माता को प्रसन्न करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। माता श्रद्धा और विश्वास से आराधना (साधना) करने पर अवश्य प्रसन्न होंगी
लंंगोट के कच्‍चे दूर रहे-

दान क्या है? मनुष्य और अन्य प्राणियों को खुशी देना। जब आप दूसरों को खुशी देते हैं, तो बदले में आपको खुशी मिलती है। खुदकी चीज़ देने के बावजूद आपको खुशी होती है, क्योंकि आपने कुछ अच्छा किया है।
किसीको शाश्वत सुख का अनुभव कब होता है? जब आप दुनिया में अपनी सबसे अधिक प्यारी चीज़ दूसरों के लिए छोड़ देंगे, तब। सांसार की वह ऐसी कौन सी चीज़ है? पैसा। लोगों को पैसों से अत्यधिक लगाव है। अतः धन को जाने दीजिए, बहा दीजिए। उसके बाद ही आपको पता चलेगा कि जितना आप जाने देंगे, उतना ही अधिक आपके पास आएगा।

धर्म के चार पांव कहे गए हैं- सत, तप, दया और दान.
इनमें से सतयुग में सत चला गया. त्रेता में तप चला गया. फिर द्वापर युग में महाभारत में भाइयों द्वारा भाइयों के वध से दया भी चली गई. कलियुग चल रहा है जिसमें धर्म का एकमात्र पांव दान बचा है इसलिए मनुष्य को भवसागर पार करने के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करना चाहिए.
सनातन नियम रहा है- प्रत्येक धर्मनिष्ठ को अपनी आय का दशांश एवं भोजन का चतुर्थांश प्रत्येक दान कर देना चाहिए. दानशीलता उनके लिए कई प्रकार से रक्षा कवच तैयार करती है। शास्त्र कहता है कि उसके लिए ‘प्रत्येक व्यक्ति अपनी वार्षिक आय का १/१० (एक दशांश) व्यय करे’ । यथाशक्ति भी व्यय किया जा सकता है ।

चन्‍द्रशेखर जोशी ने नंदादेवी एनक्‍लेव, बंजारावाला देहरादून में मॉ बगुलामुखी- श्रीपीताम्‍बरी माई का मंदिर निर्माण हेतु पहल की है-

 

प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में। भारत में माँ बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। मां बगलामुखी को सामान्यतः सभी लोग शत्रुओं का नाश करने वाली, उनकी गति, मति, बुद्धि का स्तम्भन करने वाली, मुकदमे एवं चुनाव आदि में विजय दिलाने वाली शक्ति के रूप में जानते हैं। लेकिन यह बात केवल कुछ ही लोग जानते हैं कि वे जगत का वशीकरण भी करने वाली हैं। यदि उनकी कृपा प्राप्त हो जाये तो साधक की ओर सभी आकर्षित होने लगते हैं, वह जंहा बोलता है, वंही उसे सुनने को जन समूह उमड़ पड़ता है। उसका दायरा बहुत व्यापक हो जाता है। कोई भी स्त्री, पुरूष, बच्चा उसके आकर्षण में ऐसा बंध जाता है कि अपनी सुध-बुध खो बैठता है और वही करने के लिए विवश हो जाता है, जो साधक चाहता है। भगवती बगलामुखी की उपासना कलियुग में सभी कष्टों एवं दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाली है। संसार में कोई कष्ट अथवा दुख ऐसा नही है जो भगवती पीताम्बरा की सेवा एवं उपासना से दूर ना हो सकता हो, बस साधकों को चाहिए कि धैर्य पूर्वक प्रतिक्षण भगवती की सेवा करते रहें।

भगवती बगलामुखी का यह भक्त मंदार मंत्र साधकों की हर मनोकामनां पूर्णं करने वाला है। इस मंत्र का विशेष प्रभाव यह है कि इसे करने वाले साधक को कभी भी धन का अभाव नही होता। भगवती की कृपा से वह सभी प्रकार की धन सम्पत्ति का स्वामी बन जाता है। आज के युग में धन के अभाव में व्यक्ति का कोई भी कार्य पूर्ण नही होता। धन का अभाव होने पर ना ही उसका कोई मित्र होता है और ना ही समाज में उसे सम्मान प्राप्त होता है। इस मंत्र के प्रभाव से धीरे-धीरे साधक को अपने सभी कार्यो में सफलता मिलनी प्रारम्भ हो जाती है एवं धन का आगमन होना प्रारम्भ हो जाता है।

भारतीय ऋषियों की मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति आदि के रहस्य का पूर्ण ज्ञान आगम-विद्या के माध्यम से ही सम्भव है। सम्पूर्ण विश्व-विद्या होने के कारण इसे महाविद्या की संज्ञा प्राप्त है। महाविद्याएं संख्या में दस हैं और इनका ‘मुंडमाला तन्त्र’ तथा ‘चामुंडा तन्त्र’ में विस्तृत उल्लेख है। आठवीं महाविद्या बगलामुखी एकवक्त्र महारुद्र की महाशक्ति है। यह शक्ति माया-मोह भ्रम पर प्राणी की विजय की प्रतीक है। बगलामुखी को अग्नि पुराण में सिद्ध-विद्या कहा गया है :
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा॥
बगला सिद्ध विद्याच मातंगी कमलाऽऽत्मिका।
एतादश महाविद्या: सिद्ध विद्या: प्रकीर्तिता:॥

देवी के बगलामुखी नाम से यह धारणा प्रचलित है कि मां का मुख बगुला पक्षी के समान है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं। वैदिक शब्द ‘बग्ला’ है, जिसका अपभ्रंश बगला बन गया है और इसी नाम से देवी की लोकप्रियता है। मां का दूसरा नाम पीतांबरा भी है- पीले हैं वस्त्र जिसके। समूचे विश्व में देवी की तांत्रिक सिद्ध-पीठ दतिया में है। झांसी (उत्तर प्रदेश) के समीप मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा जनपद है – दतिया। ‘जन-जन के गले का हार’ दतिया की आज समूचे विश्व में पहचान स्तंभन-सम्मोहन की मातृशक्ति मां पीतांबरा की शक्ति-पीठ के कारण है।

दतिया की पीतांबरा-पीठ जिस स्थान पर स्थित है,  जनश्रुति के अनुसार इस मंदिर की स्थापना अश्वत्थामा द्वारा हुई थी। स्वामी जी ने यहां निर्जन स्थान में मां पीतांबरा की आराधना की, मां ने जिस कुटिया में ध्यान लीन स्वामी जी को दर्शन दिए, वहीं ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् 1934-35 में मां के मंदिर की स्थापना हुई। यहां पर श्रीगणेश, श्री बटुक भैरव, श्री काल भैरव, श्री परशुराम, श्री हनुमान, षड़ाम्राया शिव ‘तत्पुरुष’, अघोर, ईशान, वामदेव, नीलकंठ तथा सद्यो जाता मां प्राण-प्रतिष्ठित हैं। स्वामी जी ने यहां ‘धूमावती’ की भी स्थापना की। देवी का सम्पूर्ण विश्व में यही एकमात्र मंदिर है। भक्तजनों का दावा है कि स्वामी जी के जीवनकाल में इस पीठ में मां पीतांबरा की आरती के बाद ‘धूमावती’ प्रत्यक्ष रूप में भक्तों के साथ पंक्ति में खड़ी होकर पीतांबरा का प्रसाद ग्रहण करती थी।

तांत्रिक साधना के लिए मध्यप्रदेश में उज्जैन और दतिया के बाद तीसरा प्रमुख स्थान है – नलखेड़ा (शाजापुर जिला)। कस्बे के बाहर लक्ष्मी नदी के किनारे उत्तर-पश्चिम में बगलामुखी का प्राचीन मंदिर है। पूर्व दिशा में श्री बडलावदा हनुमान मंदिर, मध्य में पंचमुखी हनुमान मंदिर और बाहर श्री गणेश जी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान में मां बगलामुखी विराजती हैं, वह नगर प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त रहता है। नलखेड़ा मंदिर विषयक मान्यता यह है कि यहां मां बगलामुखी की प्रतिमा महाभारतकालीन है। जनश्रुति के अनुसार विजय की कामना से यहां युधिष्ठिर ने देवी की आराधना की थी। द्वापर कालीन बगलामुखी माता के तीन सिद्ध पीठ ही स्वीकार किए जाते हैं — नलखेड़ा, नेपाल तथा बिहार।

सर्वशक्ति सम्पन्न बगलामुखी साधना—-

यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। सामनेवाले विरोधियों को शांत करने में इस विद्या का अनेक राजनेता अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो हित होगा। हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली भगवती बगलामुखी की आराधना साधना दे रहे हैं।

त्वरित फलदायी साधना में बगलामुखी का मंत्र 36 अक्षरों का है : –

ऊं ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभ्य।
जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ऊ स्वाहा॥

भगवती को पीत वस्त्र प्रिय हैं और 36 की संख्या। इसी कारण 3600, 36,000-इसी क्रम में मंत्र जाप के अनुष्ठान विशेष फलदायक माने जाते हैं। यह आराधना वीरवार रात्रि (मकर राशि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, मंगलवार) को विशेष सिद्धिदायक मानी गई है।

धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र गीता की उद्गम-स्थली के रूप में विश्व विख्यात है। इस क्षेत्र को ‘ब्रह्मावर्त’ की भी संज्ञा प्राप्त है। इसका विस्तार पांच योजन कहा गया है और इसी विस्तार के अन्तर्गत है पृथूदक (पिहोवा)। तीर्थ के नामकरण का आधार महाराजा पृथु द्वारा अपने पिता की यहां अन्त्येष्टि कार्य को माना जाता है। पिहोवा नगर के उत्तर में प्राचीन एवं पावन तीर्थ प्राची है, जिसका उल्लेख ‘वामन पुराण’ में हुआ है। पिहोवा में अनेक प्राचीन मंदिर हैं – श्री पृथ्वीश्वर महादेव मंदिर, पशुपतिनाथ महादेव, कृष्ण-युधिष्ठिर मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर इत्यादि। प्रत्येक साधक भक्त की निजी पूजा-अर्चना विधि हो सकती है, परन्तु लक्ष्य एक ही है — परमतत्व की प्राप्ति। इस क्षेत्र के जाने-माने समाज सेवी तथा धार्मिक विद्वान महंत वंशीपुरी द्वारा कालीपीठ परिसर में अनेक मंदिरों की स्थापना की गई है । समीप ही धनीपुरा गांव में महंत वंशीपुरी जी तथा महंत भीमपुरी जी के संयुक्त प्रयास से भगवती पीतांबरा के भव्य धाम की स्थापना हुई है। इसी परिसर में 15 से 18 फरवरी, 2011 तक भगवती पीतांबरा का त्रि-दिवसीय यज्ञ-अनुष्ठान जन-कल्याण तथा राष्ट्र समुन्नित हेतु किया जा रहा है, जिसमें सहस्त्रों साधक देश के कोने-कोने से शामिल होकर विधि-विधानपूर्वक देवी की पूजा-अर्चना करेंगे।

जो लोग देवी बगलामुखी की उपासना करना चाहते हैं उन्हें सबसे पहले मंत्र दीक्षा अवश्य लेनी चाहिए।
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हिमालयायूके – CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR

Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्डl www.himalayauk.org
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CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR
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