26 MAY; मोदी सरकार के 4 साल ; दिल के टुकडे टुकडे करकेे मुस्‍करा के चल दिये

दिल के टुकडे टुकडे करकेे मुस्‍करा के चल दिये; क्‍या यह गाना याद है आपको- हाल बेहाल है और यह मुस्‍करा कर कह रहे हैं कि कैसे रहे 4 साल ?

HIGH LIGHTS; चार साल पूरे होने पर सरकार ‘साफ नीयत, सही विकास’ का नया नारा #’विश्वासघात: चार सालों में सिर्फ बात ही बात- कांग्रेस ने कहा- सरकार से कोई खुश नहीं है: भारत का वह बाजार जिसमें माल बेचने के लिये दुनिया का हर विकसित देश बैचेन है और मोदी सरकार ने भारतीय बाजार के लिये हर बंदिशें खत्म करते हुये नये रास्ते बना दिये है #8 नवंबर 2016 को शाम 8 बजे देश के नाम संदेश देते हुये जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का एलान किया तो फिर समूची दुनिया की ही नजर भारत के इस फैसले पर आ टिकी. इस एतिहासिक एलान के बाद जो हालात बैंको के सामने कतार में खड़े लोगों की तस्वीर ने उभारी और दुनिया के लिये जगमगाता भारतीय बाजार झटके में जैसे अंधेरे में समाया उसमें पीएम को ही सामने आकर इंतजार के 50 दिन मांगने पड़े.पर 50 दिन बीते और उसके बाद 405 दिन और बीत गये पर नोटबंदी के बाद के हालात ने जिस तरह रिजर्व बैक की साख से लेकर 45 करोड़ से ज्यादा कामगार मजदूरों की जिन्दगी को प्रभावित कर दिया उसने इस नये सवाल को जन्म दे दिया कि क्या नोटबंदी सिर्फ एक सियासी प्रयोग था. जिसका लाभ पैसे वाले उठा ले गये और विपक्ष के निशाने पर नोटबंदी आ गई# नोटबंदी के दौर में नौकरी चली गई और उनमें से कइयों को आजतक नौकरी मिल नहीं पाई # जीएसटी का जिन्न जब अलग अलग टैक्स स्लैब तले निकला तो किसी को समझ नहीं आया कि 5 फीसदी से लेकर 28 फीसदी तक के स्लैब में वह कहां फिट है. जीएसटी को लेकर सूरत में कपड़ा व्यापारियो की जो रैली निकली उसने सरकार के भी होश फाख्ता कर दिये. जीएसटी एक अनसुलझा सवाल सा बन गया. क्योंकि जब एक देश एक टैक्स है तो फिर जीएसटी में पेट्रोल-डीजल क्यों नहीं है ये सवाल हर किसी ने पूछा# मोदी जी ने भरोसा यही जगाया था कि देश में किसानों और गरीबों के अच्छे दिन आने वाले हैं. पहली बार लगा कि गरीबी हटाओ का नारा एक जुमले से आगे निकलने वाला है. पीएम मोदी ने किसानों-मजदूरों और गरीबों के लिए योजनाओं का एलान भी खूब किया. # हेल्थ सॉयल कार्ड का उदहरण लें जिसका जोरशोर से मोदी सरकार प्रचार करती है. पर बीजेपी शासित राजस्थान के श्रीगंगानगर के किसान, यूपी के मेरठ के किसान, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे धुसेरा गांव के किसान यानी ऐसे किसान हैं जिन्होंने आजतक हेल्थ सॉयल कार्ड का नाम ही नहीं सुना # फसल बीमा योजना का डंका सरकार खूब पीट रही है लेकिन सच ये है कि मुआवजे के चंद रुपयों पर आकर ये योजना टिक गई. दावा किसानों की आय दोगुनी करने का हुआ पर किसानों को उनकी फसल की लागत तक नहीं मिल पा रही है. मध्य प्रदेश में जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदे जाने का हल्ला है वहां किसान पांच पांच दिन लाइन में लगा रहता है. वहीं की कृषि उपज मंडी में ऐसे हालात बन गए कि किसानों ने जमकर नारेबाजी की तो किसानों की आय दोगुनी होने का वादा कहां सच हुआ ये बड़ा सवाल है # किसानों की खुदकुशी मोदी राज में रुकी नहीं अलबत्ता बढ़ ही गई है. कृषि विकास दर के आंकड़े देखकर ऐसा कुछ नहीं लगता जिसे क्रांतिकारी माना जा सके. साल 2014-15 में जहां 0.2 फीसदी कृषि दर है वहीं 2015-16 में 1.2 फीसदी कृषि दर हो गई. साल 2016-17 में 4.9 फीसदी कृषि दर रही और साल 2017-18 में 2.1 फीसदी की संभावित कृषि दर आ सकती है.#क्या चार साल पहले प्रधानमंत्री मोदी का दिया भाषण रिजल्ट दे नहीं पाया यही कहा जाए या 2019 का इंतजार किया जाए और देखा जाए कि किसानों और मजदूरों की हालत में कितना बदलाव आया है. #
आने वाले चुनावों में इन कदमों का मोदी सरकार को फायदा मिलेगा या नहीं ये तो वक्त के गर्भ में ही छुपा हुआ है परन्‍तु इतना तय है कि 2014 केे मोदी में और 2019 के मोदी में फर्क जरूर आयेगा
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26 MAY; चार साल पहले जब भाजपा सत्ता में आई थी, तो सरकार ने ‘पड़ोसी प्रथम’ का नारा दिया था. सरकार की मंशा पड़ोसियों को अधिक तवज्जो देकर रिश्ते बेहतर करने की थी, लेकिन अब जब सरकार अपने कार्यकाल के चार साल पूरे करने जा रही है तो पलटकर देखने की जरूरत है कि हमारे पड़ोसियों ने हमसे दूरी क्यों बना ली?
2019 लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती भी शुरू हो चुकी है और 26 मई को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चार साल पूरे कर रही है. ऐसे में इस मौके पर मोदी सरकार ने जनता तक अपनी उपलब्धियां पहुंचाने के लिए बेहद खास प्लान बानाया है. मोदी सरकार के 10 कद्दावर मंत्री 26 मई से 30 मई तक देश के 40 शहरों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे और सरकार की उपलब्धियां गिनाएंगे. इन शहरों में सभी प्रदेश की राजधानियां भी शामिल हैं. गृहमंत्री राजनाथ सिंह राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, रेल मंत्री पीयूष गोयल, नरेंद्र सिंह तोमर, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित 10 बड़े मंत्री देश भर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगे. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दिल्ली में 28 मई शाम 3 बजे प्रेस कांफ्रेंस करेंगी. चार साल पूरे होने पर सरकार ‘साफ नीयत, सही विकास’ का नया नारा भी देगी. नारे से साफ़ है कि मोदी सरकार अपनी साफ छवि को जनता के सामने बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करना चाहती है. देश के हर क्षेत्र और तबके के विकास को मोदी सरकार चार साल की सबसे बड़ी उपलब्धि मानती है और इसी को केंद्र में रखा जा रहा है.

 

मोदी ने 2014 की शुरुआत में भारतीयों से ‘अच्छे दिन’ और लाने और ‘सबका साथ, सबका विकास’ करने का वादा किया. तब से चार साल गुजर चुके हैं. क्या मोदी ने उन वादों को पूरा किया है?  ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें मोदी सरकार कोई अहम सुधार करने में नाकाम रही है. इसकी एक मिसाल है-/ जमीन और लेबर सुधार. ये उन लोगों के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं, जो भारत में कारखाने लगाना चाहते हैं.  8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 के नोटों को अगले कुछ घंटों में गैरकानूनी ठहराने के ऐलान के साथ ही मोदी ने अर्थव्यवस्था की डूबती-उतराती नैया में छेद कर दिया था. इस तरह मोदी ने एक झटके में देश में चलने वाली 86 फीसद करेंसी को गैरकानूनी बना दिया. मोदी के विरोधी कहते हैं कि ये आधुनिक भारत के आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक तबाही थी.

 

कांग्रेस ने 26 मई को विश्वासघात दिवस मनाने का एलान किया है. इस मौके पर कांग्रेस सभी राज्यों की राजधानी में प्रेस कॉन्फ्रेंस और जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन करेगी. कांग्रेस विश्वासघात थीम पर एक पोस्टर भी जारी कर चुकी है, जिसपर लिखा है ‘विश्वासघात: चार सालों में सिर्फ बात ही बात’. यानि 26 मई को जहां मोदी सरकार जनता के बीच अपनी उपलब्धियां गिनाएगी, वहीं केंद्र सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस मैदान में होगी. कांग्रेस के संगठन महासचिव अशोक ने एलान कर चुके हैं कि 26 मई को कांग्रेस सभी राज्यों की राजधानी में प्रेस कॉन्फ्रेंस और जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन करेगी. एक तरफ जहां कांग्रेस केंद्र सरकार का पर्दाफाश करेगी, वहीं जनता को ये संदेश देगी कि पार्टी उनके साथ खड़ी है. गहलोत ने कहा कि मोदी सरकार ने देश के हर वर्ग के साथ विश्वासघात किया है. जहां एक तरफ किसानों को फसल का डेढ़ गुना दाम नहीं मिला, वहीं युवाओं को हर साल दो करोड़ रोजगार नहीं मिले. कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार से कोई खुश नहीं है. पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम पर गहलोत ने कहा कि सरकार आम जनता के जेब पर डाका डाल रही है. गहलोत ने कहा कि सभी दलों को मिलकर ये कोशिश करनी होगी कि 2019 में मोदी सरकार से देश को छुटकारा मिले.

पड़ोसी मुल्कों के साथ भारत के संबंधों में तल्खी
साल पहले 26 मई 2014 को मोदी सरकार ने प्रचंड बहुमत के साथ जब देश की बागडोर संभाली थी तो इस बड़े वादे के साथ आई थी कि भारत के संबंध अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर सभी देशों के साथ बेहतर होंगे 26 मई 2014 यानि चार बरस पहले देश के इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि कोई पीएम शपथ लेने जा रहा है और सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्ष उसमें पहुंचे. शपथग्रहण का उस समय का दृश्य देखकर यही लगा था कि मोदी काल में सार्क देशों की धुरी ना सिर्फ भारत बनेगा बल्कि सार्क देशों को एक छतरी तले लाकर भारत दुनिया में नया संदेश देगा. वो संदेश ये होगा कि आंतकवाद से लेकर व्यापार और हथियारों की होड़ खत्म करने से लेकर आपसी सदभाव के नये हालात पैदा होगें.
ते चार साल के दौर में भारत के पाकिस्तान से सबसे खट्टे रिश्ते बन गये. श्रीलंका की समुद्री सीमा में चीन का दखल बढ गया. नेपाल वामपंथी होकर चीन के करीब जा पहुंचा. मालदीव में चीनी पूंजी का दखल साफ दिखायी देने लगा. अफगानिस्तान में भारत की भूमिका के सामने पाकिस्तान ही बार बार खड़ा हो गया. डोकलाम ने भूटान से भारत की निकटता तो दिखा दी पर दूसरी तरफ नेपाल ने खामोशी बरती. वहीं जो सकारात्मक चेहरा मोदी मंत्रिमंडल के शपथग्रहण में देखा गया वो इन्ही चार साल में इतना नकारात्मक हो गया कि सार्क देशों के सम्मेलन ठप हो गये और चीन का वर्चस्व सार्क देशों में बढ गया. पाकिस्तानी आंतक के साथ चीन खड़ा हुआ तो यूएन में भारत कुछ ना कर सका.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को न्योता दिया था, जिसमें बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को छोड़कर बाकी देशों के प्रमुखों ने शिरकत भी की थी. मोदी की ‘नेबर डिप्लोमेसी’ शुरुआती साल में चर्चा का विषय भी रही, लेकिन आज की तारीख में पाकिस्तान के साथ नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, बांग्लादेश और भूटान के साथ भी भारत के संबंधों में तल्खी आ गई है.
चीन के ज्यादा नजदीक पहुंचा श्रीलंका
हमारा पड़ोसी श्रीलंका पाला बदलकर अब चीन के ज्यादा नजदीक हो गया है. चीन और श्रीलंका के बीच हम्बनटोटा को लेकर हुए समझौते ने भारत को श्रीलंका से दूर कर दिया. चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना ‘वन बेल्ट, वन रोड’ के जरिए भारत को उसके पड़ोसी देशों से दूर करने की कूटनीतिक चाल चली, जिससे बेपरवाह मोदी ब्रिटेन और अमेरिका सहित यूरोपीय देशों का दौरा करने में मशगूल रहे.
राजनीतिक मामलों के जानकार पुष्पेश पंत कहते हैं, “चीन एक सोची-समझी राजनीति के जरिए भारत के पड़ोसी देशों में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के दौरे अपनी छवि चमकाने के मकसद से अधिक हो रहे हैं. किसी देश का दौरा करने मात्र से संबंध नहीं सुधरते. आप पड़ोसी देशों की किस तरह से मदद करते हैं, यह अधिक मायने रखता है.” हालांकि, श्रीलंका में चीन की चाल को नाकाम करने के लिए सेना प्रमुख ने कोलंबो का दौरा किया था, लेकिन श्रीलंका में चीन के लगातार निवेश के कारण यह दूरी कम नहीं हो पाई.
मोदी ने हमेशा से अपनी ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति में नेपाल को प्राथमिकता देने की बात कही. नेपाल में 2015 में भीषण भूकंप के बाद भारत ने बढ़-चढ़कर मदद भी की थी, जिससे नेपाल में मोदी की छवि को जबरदस्त लाभ पहुंचा, लेकिन नेपाल में नए संविधान निर्माण के बाद मधेशियों की उपेक्षा से दोनों देशों के संबंधों में तल्खी बढ़ा दी.
इस दौरान नेपाल ने भारत पर आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाया. इस आर्थिक नाकेबंदी के बीच नेपाल ने चीन से उम्मीदें लगाईं. इस आर्थिक नाकेबंदी के बाद ही नेपाल ने विचार किया कि यदि भविष्य में इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो भारत का विकल्प तो होना ही चाहिए और वह विकल्प नेपाल को चीन में नजर आया. भारत और नेपाल के बीच 2016 में संबंध उस समय निचले स्तरों तक पहुंच गए थे, जब नेपाली की राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने भारत दौरा रद्द कर अपने राजदूत को वापस बुला लिया था.
अब एक अन्य पड़ोसी म्यांमार की बात करें, तो म्यांमार में लगभग चार लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. हाल के दिनों में म्यांमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर विवाद रहा, लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने इस विवाद को धार्मिक चोला पहनाकर खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली और चीन तीन सूत्रीय सुलह का फॉर्मूला सुझाकर म्यांमार के करीब पहुंच गया.

बांग्लादेश और भारत के बीच संबंध 2014 में हुए कुछ समझौतों के साथ सही दिशा में आगे चल रहे थे, लेकिन तीस्ता जल समझौते को लेकर दोनों देशों के बीच कुछ खटास देखने को मिली. बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर भी भारत और पड़ोसी देश बांग्लादेश के बीच संबंधों में तल्खी बढ़ी.
मालदीव की संसद में आधीरात के समय चीन का विवादित ‘फ्री ट्रेड समझौता’ पारित होने से मालदीव चीन के करीब पहुंच गया. मालदीव ने भारत के राजदूत से मिलने वाले अपने तीन स्थानीय काउंसिलर को बर्खास्त करने से मामला और पेचीदा हो गया. यह भी सोचने की बात है कि नेपाल का चार बार दौरा कर चुके मोदी ने पद संभालने के बाद से एक बार भी मालदीव का दौरा नहीं किया है.
पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध किसी से छिपे नहीं है तो ऐसे में सरकार अपने पड़ोसियों को लेकर कहां चूक कर रहा है? चीन और पाकिस्तान की दोस्ती भारत के लिए सिरदर्द से कम नहीं है. इन चार वर्षों में सरकार पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति को कम नहीं कर सकी. सर्जिकल स्ट्राइक से जरूर सरकार ने दुश्मन के घर में घुसकर उसे सबक सिखाने का ढोल पीटा हो, लेकिन उसके बाद सीमा पर किस तरह का माहौल रहा, वह किसी से छिपा नहीं है.
चीन के साथ रिश्ते खट्टे हुए, उसी का नतीजा रहा कि चीन ने एनएसजी में भारत की स्थायी सदस्यता में रोड़े अटकाए तो मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित होने से बचाने के लिए अपने वीटो का इस्तेमाल किया. डोकलाम विवाद इसका ज्वलंत उदाहरण है. डोकलाम विवाद के समय भारत-चीन युद्ध का अंदेशा तक जताए जाने लगा था.

एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने मोदी के राज में कैसा प्रदर्शन किया है. 

पिछले चार सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत जीडीपी 7.3 फीसद की दर से बढ़ी है. ये यूपीए-2 के पहले चार सालों की जीडीपी विकास दर 7.2 फीसद के मुकाबले में एकदम बराबर ही है. वहीं यूपीए-1 के पहले चार सालों से तुलना करें, तो ये उनकी 8.9 फीसद की विकास दर के मुकाबले काफई कम रही है. यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि मौजूदा सरकार ने जीडीपी का हिसाब लगाने का तरीका जनवरी 2015 से बदल दिया था. उन्होंने जीडीपी विकास दर तय करने के लिए आधार वित्त वर्ष 2004-05 से बदल कर 2011-12 कर दिया था. इसके अलावा अगर हम अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें, तो कृषि की विकास दर मोदी सरकार के दौर में घटकर 2.4 फीसद ही रह गई. इसकी वजह लगातार दो साल पड़ा सूखा बताया जाता है. यूपीए-1 और यूपीए-2 के पहले चार सालों में कृषि क्षेत्र की विकास दर औसतन 4 फीसद रही थी. मोदी सरकार के चार सालों में औद्योगिक विकास की दर 7.1 प्रतिशत रही. जो यूपीए-2 के 6.4 फीसद के मुकाबले मामूली रूप से ज्यादा है. वहीं यूपीए-1 के 10.3 फीसद से काफी पीछे है.  इसी तरह मोदी सरकार के राज में सर्विस सेक्टर का विकास 8.8 फीसद की सालाना दर से हुआ. यूपीए-2 में ये दर 8.3 प्रतिशत और यूपीए-1 में ये 9.9 प्रतिशत रही थी.

मोदी सरकार के शुरुआती कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफी कम थे. इसकी वजह से थोक महंगाई दर का चार सालों का औसत 0.59 प्रतिशत बैठता है. वहीं यूपीए-2 के राज के पहले चार सालों में थोक महंगाई दर 7.4 प्रतिशत रही थी. यहां ये बात भी गौर करने लायक है कि थोक महंगाई दर तय करने का आधार वर्ष मोदी सरकार ने 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया था. 

उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर

ये वो दर है जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करता है. मोदी सरकार ने इसके मापने की दर में भी थोक मूल्य सूचकांक की तरह ही बदलाव किया था. एनडीए सरकार के राज में उपभोक्ता महंगाई दर का औसत वित्त वर्ष 2018 में 3.58 फीसद और वित्त वर्ष 2015 में 5.97 फीसद था. मोदी सरकार ने इसे मापने का आधार वर्ष 2010 से बदलकर 2012 कर दिया था. इस दौरान औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वित्त वर्ष 2014 में 9.49 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2013 में 10.21 फीसद रही थी.

सेंसेक्स और निफ्टी से मिला मुनाफा

ये बात साफ है कि शेयर बाजार में निवेश करने वालों ने यूपीए सरकार के दौरान ज्यादा पैसा कमाया. सेंसेक्स ने मोदी सरकार के पहले चार सालों में औसतन 10.9 फीसद की दर से रिटर्न दिया है. वहीं निफ्टी ने 11.6 प्रतिशत के औसत से निवेशकों को मुनाफा दिया है. जबकि यूपीए-2 के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 22.3 और निफ्टी ने 20.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया था. यूपीए-1 के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 31.4 और निफ्टी ने 29.6 प्रतिशत की दर से रिटर्न दिया था. मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में वित्त वर्ष 2015 में सेंसेक्स ने 24.9 प्रतिशत और निफ्टी ने 26.7 फीसद की दर से रिटर्न दिया. वहीं यूपीए-2 में सेंसेक्स ने 80.5 फीसद और निफ्टी ने 73.8 प्रतिशत की दर से रिटर्न दिया. इसी तरह यूपीए-1 के राज में वित्त वर्ष 2006 में सेंसेक्स ने 73.7 फीसद तरक्की की, तो निफ्टी ने 67.1 फीसद की दर से विकास किया.

खराब कर्ज की सफाई

रिजर्व बैंक ने जनवरी 2014 में बैंकों के बंद लोन खातों की पहचान शुरू की थी. इससे बैंकों को अपने खातों में जमा वो रकम बतानी पड़ी जो डूब चुकी है. बैंकों का एनपीए मार्च 2014 में 2.52 लाख करोड़ था. मार्च 2018 में ये रकम 9.62 लाख करोड़ आंकी गई. इसमें से करीब 90 फीसद पैसा सरकारी बैंकों का है. पहले से ही बेहाल बैंकिंग उद्योग को हाल में सामने आए कई घोटालों ने और भी तगड़ा झटका दिया है. मोदी सरकार बैंकों के मौजूदा हालात के लिए बार-बार यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराती रही है.

पेट्रोल-डीजल की कीमतें

मोदी सरकार के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती पेट्रोल-डीजल के दाम में लगी आग है. अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा हो रहा है, तो, तेल कंपनियां घरेलू बाजार में ईंधन के दाम बढ़ाने को मजबूर हो गई हैं. पिछले नौ दिनों में मुंबई में पेट्रोल की कीमत 2.51 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गई है. वहीं डीजल के दाम 2.58 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ गए हैं. असल में पेट्रोल के दाम कोलकाता को छोड़कर सभी बड़े शहरों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं. इसी तरह डीजल की कीमत पूरे देश में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है.

एनडीए सरकार के चार साल के राज में पेट्रोल का औसत मूल्य मार्च महीने तक मुंबई में 73.20 रुपए प्रति लीटर था. वहीं यूपीए-2 के राज में पेट्रोल का दाम औसतन 65.14 रुपए प्रति लीटर रहा था. यूपीए-1 में ये औसत 47.83 रुपए प्रति लीटर रही थी.

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