पंडित दीनदयाल उपाध्याय के परिजनों ने अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से व्यक्त की
* पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चंद्रशेखर पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध, क्या उत्तराखण्ड बीजेपी से कर सकते है किनारा; अटकले- क्यो मुलाकात हुई कांग्रेस नेताओ से- बडा सवाल – हिमालयायूके नई दिल्ली ब्यूरो रिपोर्ट
नई दिल्ली ब्यूरो रिपोर्ट। उत्तराखंड में सरकार के कार्यो से संघ और भाजपा बहुत ज्यादा खुश नही है, आरoएसo एसo का मानमनौब्बल भी शायद काम न आ पाये, केंद्रीय नेतृत्व कुछ बडा निर्णय लेगा, यह तय है। शासकीय कार्यों में गति लाने एवं लंबित पत्रावलियों के त्वरित निस्तारण की घोषणा को संघ ने तवज्जो नहीं दी है, जब चुनाव को एक-डेढ़ वर्ष ही रह गया है तब इस प्रकार की बयानबाजी इस बात का संकेत है कि किस स्तर तक नौकरशाही पर आश्रित हैं।
वही दूसरी ओर पंडित दीनदयाल बके प्रपौत्र न्यायविद् चंद्रशेखर उपाध्याय ने वर्षो से लंबित दो पत्रावलियों को अकारण रोके जाने पर सवाल उठाया है। यह पहली बार है जब भारतीय जनसंघ के श्लाका- पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के परिजनों ने अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से व्यक्त की है।
सूत्रों की मानें तो चंद्रशेखर 24 अगस्त को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता कर सकते हैं, ज्ञात हो कि 24 अगस्त 2004 को ही चंद्रशेखर उपाध्याय ने उत्तराखंड के एडीशनल एडवोकेट जनरल का पद ग्रहण किया था। नाना देशमुख के कहने पर ही कांग्रेसी मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी ने चंद्रशेखर को इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति दी थी।
सूत्रों के मुताबिक संघ के केंद्रीय नेतृत्व ने चंद्रशेखर को स्वतंत्रता दिवस के बाद दिल्ली आने एवम् बीजेपी हाईकमान के साथ मुलाकात कराने का भरोसा दिलाया है। संघ केे केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखण्ड शासन में लम्बित दो पत्रावलियों को निस्तारित करने के लिए संकेत दे चुका है परंतु हमेशा नतीजा सिफर ही रहा है।
संघ का केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय संघ नेतृत्व से भी नाखुश है कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर उसने त्रिवेंद्र, उनके सलाहकारों एवम् चंद्रशेखर को एक साथ क्यों नहीं बैठाया? संघ राज्यपाल की भूमिका पर भी क्षुब्ध है दो साल बीत जाने के बाद भी राज्यपाल ने कभी चंद्रशेखर को बुलाकर वार्ता नहीं की जबकि उनके शपथ ग्रहण करने के पांच दिन बाद 31 अगस्त को ही उन्हें संपूर्ण विषयों की जानकारी दे दी गई थी।
ज्ञात हो कि चंद्रशेखर उपाध्याय के परिवार एवं राज्यपाल के परिवार के बेहद आत्मीय ताल्लुकात रहे हैं। आगरा में चंद्रशेखर एवम् राज्यपाल का मायका आसपास ही है, राज्यपाल चंद्रशेखर की भाभी डॉक्टर कमला उपाध्याय की विद्यार्थी रही हैं।
सूत्रों के अनुसार अभी पिछले तीन चार नवंबर को ही संघ के केंद्रीय नेतृत्व ने भाजपा के प्रदेश प्रभारी श्री श्याम जाजू एवं सह महामंत्री (संगठन) श्री शिव प्रकाश को निर्देश दिया था कि तत्काल दोनों विषयों पर त्रिवेंद्र के साथ चंद्रशेखर को बैठाया जाए, वार्ता में दोनों को मौजूद रहने के लिए कहा गया था, परंतु नौ महीने बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हुआ।
चंद्रशेखर देश में हिंदी को रोजी-रोटी से जोड़ने के अभियान के अगुवाओं में शुमार हैं। उनके कई अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय कीर्तिमान हैं। वे लगातार नैनीताल हाईकोर्ट में हिंदी भाषा में संपूर्ण वाद कार्यवाही प्रारंभ किए जाने हेतु संघर्षरत हैं, उनकी कई कोशिशें मिसाल रही हैं परन्तु वर्तमान में वे अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध है। यह दिलचस्प है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों पंडित नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा एवम् हरीश रावत तीनों ने उन्हें सहयोग तथा तवज्जो दी है। भारतीय जनसंघ के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की यह नाराजगी किस-किस को राज-काज से वंचित करेगी यह देखना दिलचस्प होगा, फिलवक्त हम उस नजारे का अभी इंतजार ही करें।