उत्तराखंड : पूर्णा गिरी सिद्ध धाम से राज्य का मुख्य सेवक निर्वाचित होगे; यहां मुराद जरूर पूरी होती है पर सावधान झुठा वादा न कर बैठना, रोटी पलटाई कर देती है भगवती, यहां ‘झूठा मंदिर’ की भी होती है पूजा

चंपावत विधानसभा में मां पूर्णागिरी का सिद्व धाम है, जहा के प्रमुख पुजारी तिवारी लोग होते है, स्व0 शंकर दत्त तिवारी मां पूर्णागिरी के प्रमुख और मुख्य पुजारी दशकों तक रहे, जिन पर मां पूर्णागिरी की अखंड कृपा थी, मां पूर्णागिरी पर आस्था रखने वाले भक्त, राजनेता स्व० श्री तिवारी का आशीर्वाद लेने को लालायित रहते थे, ज्ञात हो कि मां पूर्णागिरी मंदिर के मुख्य पुजारी स्व0 श्री तिवारीजी एडवोकेट उमेश जोशी तथा हिमालयायुके मीडिया संस्थान के मुख्य संपादक चंद्रशेखर जोशी, (निवास बंजारावाला, कुंडेश्वरी, डीडीहाट) के सगे मौसा थे, चंद्रशेखर जोशी ने लिखा कि जब हम बाल्यावस्था में थे, मौसी जी तथा तिवारी जी मौसा जी हर वर्ष पूर्णागिरी मंदिर जरूर बुलाते थे, तिवारी गार्डन में उनका कटहल का विशाल बगीचा भी था, जहांं पहुच कर हम सभी भाई बंन्ध आनंदित होते थे, मंदिर में श्री तिवारी जी जो मंदिर के मुख्य पुजारी थे, वही वीवीआईपी पूजन कराते थे, पूरे देश से आस्थावान यहां भगवती का आशीर्वाद लेने श्री तिवारी जी के पास आते थे,

1632 में कुमाऊँ के राजा ज्ञान चंद के दरवार में गुजरात से श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण आये

पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह १०८ सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं।

संवत 1621 में गुजरात के श्री चंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चम्पावत के चंद राजा ज्ञान चंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने में मां पूर्णागिरि ने नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश दिया और 1632 में धाम की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू हुई।

पौराणिक कथा के अनुसार , महाभारत काल मे प्राचीन ब्रह्मकुंड के पास पांडवों द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया। और इस यज्ञ में प्रयोग किये गए अथाह सोने से ,से यहाँ एक सोने का पर्वत बन गया । 1632 में कुमाऊँ के राजा ज्ञान चंद के दरवार में गुजरात से श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण आये ,उन्होंने बताया कि माता ने स्वप्न में इस पर्वत की महिमा के बारे में बताया है।तब राजा ज्ञान चंद ने यहाँ मूर्ति स्थापित करके इसे मंदिर का रूप दिया।

1632 में कुमाऊँ के राजा ज्ञान चंद के दरवार में गुजरात से श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण आये ,उन्होंने बताया कि माता ने स्वप्न में इस पर्वत की महिमा के बारे में बताया है।तब राजा ज्ञान चंद ने यहाँ मूर्ति स्थापित करके इसे मंदिर का रूप दिया।

चंपावत विधानसभा सीट ग्रामीण श्रेणी में आती है. इस सीट के बारे में यह कहा जाता रहा है कि यहां का मतदाता हर बार अपना विधायक बदल देता है. यह भी कहा जा सकता है कि जिसकी सरकार बनने वाली होती है, विधायक भी उसी पार्टी का होता है.

चंपावत विधानसभा में उपचुनाव 31 मई को होंगे और नतीजे 3 जून को घोषित किए जाएंगे. चंपावत विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के नेता और सीएम पुष्कर सिंह धामी उम्मीदवार है,

चंपावत विधानसभा क्षेत्र उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से ही अनारक्षित है. टनकपुर तहसील भी इसी विधानसभा का हिस्सा है, जहां मां पूर्णागिरि का सिद्ध धाम है. यह विधानसभा सीट कुमाऊं की एक मात्र ऐसी सीट है जिसमें मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्र आते हैं. पांडवों ने जहां अपना अज्ञातवास बिताया था वह ब्यानधुरा भी चंपावत विधानसभा क्षेत्र के तहत ही आता है. चंपावत का श्यामलाताल प्रमुख पर्यटन स्थल है.

यहा के सिद्ध बाबा मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि एक साधु ने घमंड से वशीभूत होकर, जिद में माँ पूर्णागिरि पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की, तब माता पूर्णागिरि ने क्रोधित होकर साधु को नदी पार फेक दिया। (जो हिस्सा वर्तमान में नेपाल में है।) बाद में साधु द्वारा माफी मांगने के बाद ,माता ने दया में आकर साधु को सिद्ध बाबा के नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। और कहाँ कि बिना तुम्हारे दर्शन के ,मेरे दर्शन अधूरे होंगे। अर्थात जो भी भक्त पूर्णागिरि मंदिर जाएगा, उसकी यात्रा और दर्शन तब तक पूरे नही माने जाएंगे, जब तक वह सिद्ध बाबा के दर्शन नही करेगा। यहाँ सिद्ध बाबा के लिए मोटी मोटी रोटिया ले जाने का रिवाज भी प्रचलित है।

पूर्णागिरि धाम के झूठे का मंदिर की कथापौराणिक कथाओं के अनुसार एक सेठ संतान विहीन थे। एक दिन माँ पूर्णागिरि ने स्वप्न में कहा कि ,मेरे दर्शन के बाद तुम्हे पुत्र प्राप्ति होगी। सेठ में माता के दर्शन किये ,ओर मन्नत मांगी यदि उसका पुत्र हुआ तो वह माँ पूर्णागिरि के लिए सोने का मंदिर बनायेगा। सेठ का पुत्र हो गया,उनकी मन्नत पूरी हो गई, लेकिन जब सेठ की बारी आई तो ,सेठ का मन लालच से भर गया। सेठ ने सोने की मंदिर की स्थान पर ताँबे के मंदिर में सोने की पॉलिश चढ़ाकर माँ पूर्णागिरि को चढ़ाने चला गया। कहते है, टुन्याश नामक स्थान पर पहुचने के बाद वह मंदिर आगे नही ले जा सका, वह मंदिर वही जम गया। तब सेठ को वह मंदिर वही छोड़ना पड़ा। वही मंदिर अब झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में बच्चों के मुंडन संस्कार किये जाते हैं। इसके बारे में मान्यता है,कि इसमें मुंडन कराने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।

श्रीमद् देवी भागवत पुराण में मां पूर्णागिरि की आराधना ‘सिंदुराभां त्रिनेत्राम मृतशशिकलां खेचरीं रक्तवस्त्रां, पीनोन्तुङ्ग स्तनाढ्यामभिनव विलसद्यौवनारंभ रम्याम। नाना लंकारयुक्तां सरसिजनयना मिंदु संक्रांतमूर्ति, देवीं पाशांकुशाख्याम भयवर कराम अन्नपूर्णां नमामि।।’ श्लोक से की गई है।

चम्पावत जनपद के टनकपुर कस्बे से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी पर मां का धाम बसा है। मां के 52 शक्तिपीठों में एक पीठ यह भी है। माता सती की यहां पर नाभि गिरी थी। 1632 में श्रीचंद तिवारी ने यहां पर मंदिर की स्थापना की और माता की विधिवत पूजा अर्चना शुरू की। मान्यता है कि सच्चे मन से धाम में जो भी अपनी मन्नत मांगता है उसकी मुराद पूरी होती है।

‘झूठा मंदिर’ की भी होती है पूजा

मां पूर्णागिरि धाम में झूठा मंदिर की भी पूजा की जाती है। कहावत है कि किसी सेठ ने पुत्र रत्न प्राप्त होने पर मां के दरबार में सोने का मंदिर चढ़ाने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन मन्नत पूरी होने के बाद लोभवश उस सेठ ने तांबे में सोने का पानी चढ़ाकर मंदिर बनवाया। जब मजदूर उस मंदिर को धाम की ओर ले जा रहे थे तो विश्राम के बाद वह मंदिर वहां से नहीं उठ सका। तब से इसे झूठे मंदिर के रूप में जाना जाता है और मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद श्रद्धालु इस मंदिर में भी पूजा करते हैं।

सावधान

पूर्णागिरि मंदिर से ऊंची चोटी पर एक सिद्ध बाबा ने अपना आश्रम जमा लिया था। जो उन्मत्त होकर देवी को श्रृंगार को देखता था। क्रोध में देवी ने सिद्ध को शारदा नदी के पार नेपाल में फेंक दिया। लेकिन जब वह अपने कृत्य के लिए गिड़गिड़ाया और माफी मांगी तो मां ने कहा कि उनकी यात्रा तभी पूरी होगी जब श्रद्धालु सिद्ध बाबा के भी दर्शन करेंगे। तब से ही नेपाल में सिद्धबाबा का मंदिर स्थापित है और मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद भक्त सिद्धबाबा मंदिर में शीश नवाते हैं।

हिमालयायुके वेब & प्रिंट मीडिया के लिए चंद्रशेखर जोशी Mob 9412932030 की रिपोर्ट

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