संकटमोचक राज्यसभा उपसभापति हरिवंश सिंह ;पत्रकार से अब राष्ट्रपति पद के रास्ते पर

22 Sep 20: पत्रकारिता से शुरू हुआ हरिवंश सफर- संपादक से सांसद बने, राज्यसभा में उप सभापति बने और अब राष्ट्रपति पद के रास्ते पर चल पड़े हैं : संपादक रहते हुए भी नीतीश कुमार का भरसक बचाव करते थे #वह संपादक थे। सरकार का पक्ष लेते थे। सरकार ने भी उन्हें ध्यान में रखा। वह राज्य सभा के सदस्य बनाए गए।# प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू की बिहार पर जारी वह रपट जिसपर मीडिया की भूमिका पर बहस छिड़ी थी। तब प्रभात ख़बर के संपादक के रूप में हरिवंश ने ही तो नीतीश सरकार के बचाव में मोर्चा लिया था।  #अब बिहार चुनाव की पटकथा लिखी जा रही है # बिहार विधानसभा चुनाव के समीकरण को साधने की कवायद # हालिया प्रसंग : इस समय जब समूची सरकार फँसी हुई थी # विपक्ष के आठ सांसदों को सभापति ने निलंबित किया # संसद भवन में निलंबित सांसद धरने पर बैठ गए और पूरी रात संसद परिसर में गुजार दी # धरने पर बैठे सांसदों के लिए मंगलवार को सुबह हरिवंश सिंह अपने घर से चाय लेकर पहुंचे. हरिवंश ने सभी सांसदों के लिए चाय परोसी, लेकिन धरने पर बैठे राज्यसभा सदस्यों ने चाय पीने से इनकार कर दिया : निलंबित सांसदों ने हरिवंश सिंह की चाय नहीं पी जबकि वो कहते रहे कि हम सदन में उपसभापति हैं, यहां दोस्त है. # हरिवंश सिंह एक तरफ चाय लेकर गए थे और दूसरी तरफ उन्होंने संसदों के व्यवहार से दुखी होकर सभापति को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा भी बयां करते हुए एक दिन का उपवास करेंगे # हरिवंश ने राज्यसभा के सभापति को चिट्ठी लिखकर अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा कि वो एक दिन का उपवास करेंगे # हरिवंश के चाय लेकर पहुंचने पर पीएम मोदी ने उनके इस व्यवहार की ट्वीट करके तारीफ की: बीजेपी के तमाम नेता हरिवंश के प्रकरण को बिहार अस्मिता का मुद्दा बना रहे हैं # पीएम मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि जिन्होंने कुछ दिन पहले उनका अपमान किया, अब हरिवंश जी उनके लिए ही चाय लेकर पहुंचे हैं. # Today Top Story ; www.himalayauk.org (Leading Newsportal) Bureau

25 जुलाई2020 से पूर्व भारत के 15वे राष्‍टपति का चुनाव होना है-

इस समय जब समूची सरकार फँसी हुई थी ऐसे में हरिवंश उसके संकटमोचक बन कर उभरे हैं। वर्ना क्या उन्हें राज्यसभा का गणित नहीं पता था। बिलकुल पता था। अकाली दल का भी रुख पता था और बीजू जनता दल का भी। राज्यसभा में विपक्ष इस कृषि बिल पर तय रूप से भारी पड़ता। पर सत्तारूढ़ दल ने समाजवादी हरिवंश के ज़रिए शतरंज की बाज़ी ही पलट दी। बाज़ी तो छोड़िए शतरंज का बोर्ड ही पलट दिया। ताकि हार जीत का फ़ैसला ही न हो सके।

संसद में कृषि संबंधी विधेयकों पर चर्चा के दौरान हंगामा करने वाले राज्यसभा से निलंबित किए गए विपक्ष के सभी आठ सांसदों ने मंगलवार को धरना खत्म कर दिया. लेकिन साथ ही पूरे विपक्ष ने मॉनसून सत्र के बहिष्कार का ऐलान भी साथ में ही कर दिया.राज्यसभा उपसभापति हरिवंश सिंह धरने पर बैठे सांसदों के लिए सुबह-सुबह चाय लेकर पहुंचे, जिसे निलंबित सांसदों ने पीने से मना कर दिया. इसी के कुछ देर बाद हरिवंश ने राज्यसभा के सभापति को चिट्ठी लिखकर अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा कि वो एक दिन का उपवास करेंगे. वहीं, हरिवंश सिंह के पीछे एनडीए मजबूती से खड़ा हुआ है. यह बताने की कोशिश कर रहा है कि विपक्ष ने उन्हें अपमानित करने का काम किया है. ऐसे में हरिवंश सिंह के चाय, चिट्ठी और उपवास के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. 

कृषि संबंधी विधेयकों को लेकर राज्यसभा में रविवार को जोरदार हंगामा हुआ था. सदन में विधेयक पर विपक्ष चर्चा के लिए अगले दिन तक कार्यवाही बढ़ाने की मांग कर रहा था, लेकिन सत्तापक्ष हर हाल में इसे उसी दिन पास कराना चाहता था. इसे लेकर विपक्ष के कई सदस्यों ने सदन में जमकर हंगामा किया. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सदन में उपसभापति हरिवंश सिंह के चेयर के सामने आकर रूल बुक फाड़ दी थी. इसी के बाद उपसभापति ने बिल को ध्वनिमत से पारित कर दिया था. 

राज्यसभा में विपक्ष इस कृषि बिल पर तय रूप से भारी पड़ता। पर सत्तारूढ़ दल ने समाजवादी हरिवंश के ज़रिए शतरंज की बाज़ी ही पलट दी। बाज़ी तो छोड़िए शतरंज का बोर्ड ही पलट दिया। ताकि हार जीत का फ़ैसला ही न हो सके। यहीं से हरिवंश की राजनीतिक अवसरवादिता पर बात शुरू हुई। वह संपादक से सांसद बने, राज्यसभा में उप सभापति बने और अब राष्ट्रपति पद के रास्ते पर चल पड़े हैं। वह तो संपादक रहते हुए भी नीतीश कुमार के साथ खड़े रहते थे। याद है प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू की बिहार पर जारी वह रपट जिसपर मीडिया की भूमिका पर बहस छिड़ी थी। तब प्रभात ख़बर के संपादक के रूप में हरिवंश ने ही तो नीतीश सरकार के बचाव में मोर्चा लिया था। हरिवंश ने इस मुद्दे पर कलम तोड़ दी थी। प्रभात खबर की तब हेडिंग थी -’प्रेस काउंसिल की बिहार रिपोर्ट झूठी, एकतरफ़ा और मनगढ़ंत!’ अपने यहाँ लोगों की याददाश्त कुछ कमज़ोर होती है जिससे वे पुराना लिखा पढ़ा जल्दी भूल जाते हैं। इसलिए यह संदर्भ दिया।वह संपादक थे। सरकार का पक्ष लेते थे। सरकार ने भी उन्हें ध्यान में रखा। वह राज्य सभा के सदस्य बनाए गए। उसी सरकार ने बनाया जिसका वह पक्ष लेते थे। फिर उनका पुराना अख़बार भी पलट गया और फिर उनके साथ खड़ा हो गया। भविष्य सिर्फ़ संपादक ही थोड़े न देखता है मालिक भी देखता है। और फिर सांसद बन जाने पर कोई भी और आगे की तरफ़ ही तो देखेगा। वे फिर राज्य सभा के उप सभापति बनाए गए। भाजपा की मदद से। भाजपा सरकार ने इतना सब किया तो कुछ फर्ज उनका भी तो बनता था।

सोमवार को संसद में हंगामा करने के चलते विपक्ष के आठ सांसदों को सभापति ने निलंबित कर दिया, जिसके बाद संसद भवन में निलंबित सांसद धरने पर बैठ गए और पूरी रात संसद परिसर में गुजार दी. ऐसे में धरने पर बैठे सांसदों के लिए मंगलवार को सुबह हरिवंश सिंह अपने घर से चाय लेकर पहुंचे. हरिवंश ने सभी सांसदों के लिए चाय परोसी, लेकिन धरने पर बैठे राज्यसभा सदस्यों ने चाय पीने से इनकार कर दिया. हरिवंश के चाय लेकर पहुंचने पर पीएम मोदी ने उनके इस व्यवहार की ट्वीट करके तारीफ की. 

निलंबित सांसदों ने हरिवंश सिंह की चाय नहीं पी जबकि वो कहते रहे कि हम सदन में उपसभापति हैं, यहां दोस्त है. इस पर टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, ‘उस दिन रूल्स फॉलो नहीं किए गए. बीजेपी इसे बिहार चुनाव के लिए मुद्दा बना रही है.’ वहीं, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा, ‘हम यहां रिश्ते बनाने के लिए नहीं बैठे हैं. उस दिन उप सभापति ने संविधान को ताक पर रखकर बिल पास कराया. आज यहां आने का क्या मतलब है. हम यहां किसानो के लिए बैठे हैं.’

केंद्र सरकार के नए कृषि विधेयकों का समर्थन कर रहे लोगों का कहना है कि इससे राज्य सरकारों को नुकसान होगा, इसलिए राज्य विरोध कर रहे हैं। वहीं, हकीकत यह है कि इतने करों के बावजूद देश में तुलनात्मक रूप से सबसे ज्यादा सुखी किसान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हैं।

पीएम मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि जिन्होंने कुछ दिन पहले उनका अपमान किया, अब हरिवंश जी उनके लिए ही चाय लेकर पहुंचे हैं. बिहार सदियों से देश को लोकतंत्र की ताकत का एहसास कराते आया है. आज सुबह राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश जी ने जिस तरह का व्यवहार किया है, वह लोकतंत्र के चाहने वालों को गर्व महसूस कराएगा. पीएम ने कहा कि जिन सांसदों ने उनपर हमला किया और अपमान किया और अब धरने पर बैठ गए हैं, उनको ही हरिवंश जी चाय देने के लिए पहुंच गए. ये उनके बड़े दिल को दर्शाता है. पीएम मोदी बोले कि ये उनकी महानता को दिखाता है, पूरे देश के साथ मैं भी उन्हें बधाई देता हूं. 

हरिवंश सिंह एक तरफ चाय लेकर गए थे और दूसरी तरफ उन्होंने संसदों के व्यवहार से दुखी होकर सभापति को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा भी बयां करते हुए एक दिन का उपवास करेंगे. उन्‍होंने पत्र में कहा कि 20 सितंबर को राज्‍यसभा में जो कुछ भी हुआ, उससे मैं पिछले दो दिनों से आत्‍मपीड़ा, आत्म तनाव और मानसिक वेदना में हूं. मैं पूरी रात सो नहीं पाया. भगवान बुद्ध मेरे जीवन के प्रेरणास्रोत रहे हैं. उच्‍च सदन के मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्‍यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए. शायद मेरे इस उपवास से सदन में इस तरह का आचरण करने वाले सदस्‍यों के अंदर आत्‍मशुद्धि का भाव जागृत हो जाए. बिहार की धरती पर पैदा हुए राष्‍ट्रकवि दिनकर दो बार राज्‍यसभा के सदस्‍य रहे.

कृषि विधेयकों को लेकर संसद के दोनों सदनों के अलावा सड़क पर भी जोरदार विरोध हो रहा है। किसानों का कहना है कि वे इन विधेयकों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे।

हरिवंश सिंह के पीछे एनडीए पूरी मजबूती के साथ खड़ा है. हरिवंश सिंह ने अपने पत्र में बिहार का जिक्र किया. बीजेपी के तमाम नेता हरिवंश के प्रकरण को बिहार अस्मिता का मुद्दा बना रहे हैं. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव के समीकरण को साधने की कवायद हो रही है. वहीं, हरिवंश ने चिट्ठी लिखकर अपनी पीड़ा भी बयां कर दी है, जिससे एनडीए को और भी आधार मिल गया है. साथ ही उपवास कर अपनी छवि को और भी मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है, जिसके जरिए विपक्ष के आरोपो पर अपने उपवास को भारी करना चाहते हैं. 

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को कांग्रेस और आरजेडी सदस्यों का उपसभापित के साथ व्यवहार का जिक्र किया, लेकिन टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और वामपंथी सदस्यों की चर्चा नहीं की. जबकि उच्चसदन में हंगामे में डेरेक ओ ब्राउन और संजय सिंह ही सबसे आगे-आगे नजर आ रहे थे. इसके बाद इन दोनों पार्टियों का नाम नहीं लिया, क्योंकि बिहार चुनाव में एनडीए का मुकाबला कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन से है. इसीलिए एनडीए हरिवंश के बहाने बिहार की राजनीतिक समीकरण को साधने की कोशिश की. 

राजनीति के पुराने खिलाड़ी ने सियासी दांव चला राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने मंगलवार को महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें कुछ सांसदों के व्यवहार से पीड़ा हुई है और इसके ख़िलाफ़ वह एक दिन का उपवास रखेंगे। लेकिन राजनीति के पुराने खिलाड़ी और एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने इसे लेकर सियासी दांव चला है और कहा है कि वह निलंबित 8 सांसदों के समर्थन में उपवास रखेंगे। शरद पवार ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा, ‘मैं प्रदर्शन कर रहे सांसदों के समर्थन में आज दिन भर कुछ नहीं खाऊंगा।’

पत्रकार से राज्यसभा के उप सभापति बने हरिवंश ने सदस्यों के व्यवहार से ‘दुखी’ होकर एक दिन के व्रत का एलान कर दिया और वेंकैया नायडू को चिट्ठी लिख दी।कुल मिला कर सवाल यह उठता है कि जब बीजेपी विपक्ष में थी, उसने संसद में शोरगुल, हंगामा किया है या नहीं, उसने संसद की कार्यवाही रोकी है या नहीं?

इसी तरह पाकिस्तान के मुद्दे पर, नियंत्रण रेखा पर होने वाली गोलीबारी रोकने में सरकार की नाकामी के मुद्दे पर, सीमा पर एक भारतीय जवान के सिर काट कर पाकिस्तानी सेना द्वारा ले जाने के मुद्दे पर और दूसरे कई मुद्दों पर बीजेपी ने बहुत ही ज़बरदस्त विरोध किया था।कृषि विधेयक के विरोध पर जिस तरह उप सभापति ने मत विभाजन नहीं कराया और उसके बाद जिस तरह बीजेपी ने विपक्षी सदस्यों के काम को शर्मनाक और लोकतंत्र की मर्यादा के ख़िलाफ़ बताया, वह मुद्दा अहम है। वे भी ऐसा कर चुके हैं, बल्कि उन्होंने इन दलों की तुलना में अधिक ज़ोरदार विरोध किया था। पर आज वे सत्ता में है और बहुसंख्यकवाद के आधार पर विपक्ष को कुचल रहे हैं।पुराने अख़बारों पर एक नज़र डालने से लगता है कि बीजेपी ने एक बार नहीं, कई बार संसद में कामकाज नहीं चलने दी है। उसने 2 जी, कोयला घोटाला, मल्टी ब्रांड रीटेल में विदेशी पूंजी निवेश और किसानों के मामलों में भी संसद में ज़ोरदार हंगामा किया है, तोड़फोड़ की है, नारेबाजी की है, संसद नहीं चलने दी है। एक बार तो राज्यसभा का पूरा सत्र ही बेकार चला गया और बीजेपी ने कोई काम नहीं होने दिया।बीजेपी के सदस्यों ने संसद के दोनों सदनों को 30 अगस्त 2012 को पूरी तरह ठप कर दिया। वे कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे।उस दिन बीजेपी के सदस्यों ने पहले लोकसभा और बाद में राज्यसभा में इतना ज़ोरदार हंगामा किया था कि कार्यवाही रोक देनी पड़ी। बाद में जब कार्यवाही शुरू हुई तो उन्होंने सीएजी रिपोर्ट को मुद्दा बनाया और इस पर सिंह से इस्तीफे की मांग करते हुए फिर इतना हंगामा किया कि कार्यवाही एक बार फिर स्थगित कर देनी पड़ी थी। ऐसा दोनों सदनों में हुआ था।उन्होंने कहा था कि मनमोहन सिंह देश पर बोझ बन चुके हैं, उन्हें हटना ही होगा। उस दिन भी कोई कामकाज नहीं हुआ था। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि जब तक प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा नहीं देते, इसी तरह विरोध प्रदर्शन चलता रहेगा।11 सितंबर, 2011इसके पहले बीजेपी ने 11 सितंबर, 2011 को तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम के इस्तीफ़े की मांग करते हुए संसद के दोनों ही सदनों में हंगामा किया था, कई बार सदन की कार्यवाही रोकी गई थी और कामकाज नहीं हुआ था। बीजेपी सदस्य दिल्ली में पुलिस लाठीचार्ज के ख़िलाफ़ गृह मंत्री का इस्तीफ़ा मांग रहे थे।ख़ुद लाल कृष्ण आडवाणी ने यह मुद्दा लोकसभा में उठाया था और तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से अलग से मुलाक़ात कर शिकायत की थी। सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने राज्यसभा में कमान संभाली थी और कोई काम नहीं होने दिया था। उन्होंने इसे उचित भी ठहराया था।मल्टी ब्रांड रिटेलमल्टी ब्रांड रीटेल में 51 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश ऐसा मुद्दा था, जिसका बीजेपी ने ज़बरदस्त विरोध किया था और कई दिनों तक सदन नहीं चलने दी थी। सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और स्मृति ईरानी इस विधेयक का सबसे अधिक विरोध करने वालों में थीं। ईरानी राज्यसभा में थीं। राज्यसभा में इस पर इतना विरोध हुआ था कि कई दिनों तक उसकी कार्रवाई रोकी जाती रही। रवि शंकर प्रसाद ने खुले आम आरोप लगाया था कि अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट ने 2.50 करोड़ डॉलर खर्च कर इसके लिए लॉबीइंग की है। बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने इस मुद्दे के शुरू होने के पहले सितंबर में ही इसका विरोध करने का एलान कर दिया था। शीतकालीन सत्र का बड़ा हिस्सा इसमें ख़त्म हो गया, राज्यसभा का कामकाज नहीं चलने दिया गया था। अंत में दिसंबर के पहले सप्ताह में यह विधेयक पारित हो सका।बीजेपी ने 2013 के बजट सत्र के शुरू मे ही सदन में संकट खड़ा कर दिया और कह दिया कि वह हर कीमत पर विरोध करेगी। उसने 21 अप्रैल 2013 को ज़ोरदार विरोध किया। कई दिनों तक विरोध की वजह से यह संकट खड़ा हो गया कि रेल बजट और आम बजट कैसे पास हो। काफी मान मनौव्वल के बाद बीजेपी के सदस्य इस पर राजी हुए थे कि वे ये दोनों ही बजट रखने देंगे और उसके बाद फिर विरोध करेंगे।

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