सावन में भगवान शिव जाग्रत ; कौन सी शिव प्रतिमा का पूजन करे

माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। भगवान शिव की पूजा का सर्वश्रेष्ठ काल-प्रदोष समय माना गया है। किसी भी दिन सूर्यास्त से एक घन्टा पूर्व तथा एक घन्टा बाद केसमय को प्रदोषकाल कहते है। श्रावण मास में त्रयोदशी, सोमवार व शिव चौदस प्रमुख है। आमतौर पर भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है लेकिन भगवान शिव की मूर्ति पूजन का भी अपना ही एक महत्व है। 
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श्रावण के महीने को भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है। इस महीने में महादेव की पूजा, आराधना का विशेष महत्व होता है। भगवान शि‍व को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, अभि‍षेक आदि करते हैं। इस माह में की गई उपासना का विशेष फल भक्तों को प्राप्त होता है। लेकिन आखि‍र शि‍व की आराधना के लिए यह मास ही उत्तम क्यों माना जाता है?

भगवान शंकर को भष्म, लाल चन्दन, रूद्राक्ष, आक के फूल, धतूरे का फल विल्व पत्र, भंग विशेष प्रिय है। भगवान शिव की पूजा वैदिक, पौराणिक या नाम मंत्रों से की जाती है। सामान्य व्यक्ति ऊं नमः शिवाया या ऊं नमो भगवते रूद्राय मंत्र से शिव पूजन तथा अभिषेक कर सकते हैं। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करें।
सावन का माह भगवान शंकर का प्रिय माह माना जाता है इस बारे में तो सभी जानते ही होंगे। इस महीने में शिव की पूजा का विशेष महत्व रहता है। भोले बाबा के भक्त पूरी श्रद्धा-भक्ति से इनकी पूजा-अर्चना करते हैं, ताकि भगवान प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करें। लेकिन इस महीने को शिव जी का इतना प्रिय माना क्यों माना जाता है इसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा, कि आखिर क्यों इस ही माह में शिव की आराधना सबसे उत्तम मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के शुरू से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश इसकी रक्षा करते आ रहे हैं। ऐसे में जब सावन के शुरु होने से ठीक पहले विष्णु जी देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के पालन की सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर पाताललोक में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। तब उनका सारा महादेव भोले शंकर संभाल लेते हैं। सावन का प्रारंभ होते ही भगवान शिव जाग्रत हो जाते हैं और माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का सारा कार्यभार संभाल लेते हैं। इसलिए सावन का महीना शिव के लिए बेहद खास होता है। माना जाता है कि श्रावण माह में एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। इससे सभी प्रकार के कष्‍ट दूर होते हैं तथा मनुष्य अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकता है। ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किए जाने से शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। इसलिए श्रद्धालुगण कांवड़िये के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। माना जाता है कि पहला ‘कांवड़िया’ रावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को कांवड़ चढ़ाई थी।

श्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना होता है जोकि ईस्वीं कैलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें ‘हरियाली तीज’, ‘रक्षा बन्धन’, ‘नाग पंचमी’ आदि प्रमुख हैं। इस मास में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार “सावन के सोमवार” कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियां तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं।

श्रद्धालु इस पूरे मास शिवजी के निमित्त व्रत और प्रतिदिन उनकी विशेष पूजा आराधना करते हैं। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात् शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए। शिवजी के स्नान के लिए गंगाजल का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग भांग घोंटकर भी चढ़ाते हैं। शिवजी की पूजा में लगने वाली सामग्री में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, फल, विजिया, आक, धूतूरा, कमल−गट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप का इस्तेमाल किया जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश उसकी रक्षा करते आ रहे हैं। ऐसे में जब सावन के शुरु होने से ठीक पहले विष्णु जी देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में चले जाते हैं, और सृष्टि के पालन की सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर पाताललोक में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। तब उनका सारा कार्यभार महादेव भोले शंकर संभाल लेते हैं। सावन का प्रारंभ होते ही भगवान शिव जाग्रत हो जाते हैं और माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का सारा कार्यभार संभाल लेते हैं। इसलिए सावन का महीना शिव के लिए बेहद खास होता है। सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है। इसी के चलते ही सावन का महीना शिव जी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। जैसे इस महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होती है और अधिक वर्षा होने से विष से तप्त हुर्इ शिवजी की देह को ठंडक प्राप्त होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हिन्दू वर्ष में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गये हैं। जैसे पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र से संबंधित है। इसी तरह सावन महीना श्रवण नक्षत्र से संबंधित है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है और चन्द्रमा शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। गर्म सूर्य पर चन्द्रमा की ठण्डक होती है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से वर्षा होती है। जिससे विष को ग्रहण करने वाले महादेव को ठण्डक मिलती है ये प्रमुख कारण है कि शिवजी को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है।

कुछ मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है। इसी के चलते ही सावन का महीना शिव जी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। जैसे इस महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होती है और अधिक वर्षा होने से विष से तप्त हुर्इ शिवजी की देह को ठंडक प्राप्त होती है।
इस पौराणिक कथा के अनुसार सनत कुमारों द्वारा भगवान शिव से सावन माह के प्रिय होने का कारण पूछा, तो भगवान शिव ने इसका उत्तर दिया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति द्वारा अपने देह का त्याग किया था, उससे पहल देवी सती ने महादेव को प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने राजा हिमाचल और रानी मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया था। पार्वती के रूप में देवी ने अपनी युवावस्था में, सावन के महीने में अन्न, जल त्याग कर, निराहार रह कर कठोर व्रत किया था। मां पार्वती के इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया। तभी से सावन का महीना महादेव का अतिप्रिय है। यही कारण है कि अन्यी पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावन से प्रारंभ कर सोलह सोमवार के व्रत करने से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं।

इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हिन्दू वर्ष में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं। जैसे पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र से संबंधित है। इसी तरह सावन महीना श्रवण नक्षत्र से संबंधित है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है और चन्द्रमा शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। गर्म सूर्य पर चन्द्रमा की ठण्डक होती है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से वर्षा होती है। जिससे विष को ग्रहण करने वाले महादेव को ठण्डक मिलती है ये प्रमुख कारण है कि शिवजी को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है। 

श्रीलिंग महापुराण में भगवान शिव की विभिन्न मूर्तियों के पूजन के बारे में बताया गया है।

1. कार्तिकेय के साथ भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। मनुष्य को सुख-सुविधा की सभी वस्तुएं प्राप्त होती हैं, सुख मिलता है।

2. जिस मूर्ति में भगवान शिव एक पैर, चार हाथ और तीन नेत्रों वाले और हाथ में त्रिशूल लिए हुए हों। जिनके उत्तर दिशा की ओर भगवान विष्णु और दक्षिण दिशा की ओर भगवान ब्रह्मा की मूर्ति हो। ऐसी प्रतिमा की पूजा करने से मनुष्य सभी बीमारियों से मुक्त रहता है और उसे अच्छी सेहत मिलती है।

3. भगवान शिव की तीन पैरों, सात हाथों और दो सिरों वाली मूर्ति जिसमें भगवान शिव अग्निस्वरूप में हों, ऐसी मूर्ति की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को अन्न की प्राप्ति होती है।

4. जो मनुष्य माता पार्वती और भगवान शिव की बैल पर बैठी हुई मूर्ति की पूजा करता है, उसकी संतान पाने की इच्छा पूरी होती है।

5. भगवान शिव की अर्द्धनारीश्वर मूर्ति की पूजा करने से अच्छी पत्नी और सुखी वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है।

6. जो मनुष्य भगवान शिव की उपदेश देने वाली स्थिति में बैठे भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करता है, उसे विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

7. नन्दी और माता पार्वती के साथ सभी गणों से घिरे हुए भगवान शिव की ऐसी मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

8. माता पार्वती सहित नृत्य करते हुए, हजारों भुजाओं वाली भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य जीवन के सभी सुखों का लाभ लेता है।

9. चार हाथों और तीन नेत्रों वाली, गले में सांप और हाथ में कपाल धारण किए हुए, भगवान शिव की सफेद रंग की मूर्ति की पूजा करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

10. काले रंग की, लाल रंग के तीन नेत्रों वाली, चंद्रमा को गले में आभूषण की तरह धारण किए हुए, हाथ में गदा और कपाल लिए हुए शिव मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य की सभी परेशानियों खत्म हो जाती है। रुके हुए काम पूरे हो जाते है।

11. ध्यान की स्थिति में बैठे हुए, शरीर पर भस्म लगाए हुए भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य के सभी दोषों का नाश होता है।

12. दैत्य जलंधर का विनाश करते हुए, सुदर्शन चक्र धारण किए भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करने से शत्रुओं का भय खत्म होता है।

13. जटा में गंगा और सिर पर चंद्रमा को धारण किए हुए, बाएं ओर गोद में माता पार्वती को बैठाए हुए और पुत्र कार्तिकेय और गणेश के साथ स्थित भगवान शिव की ऐसी मूर्ति की पूजा करने से घर-परिवार के झगड़े खत्म होते है और घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है।

14. हाथ में धनुष-बाण लिए हुए, रथ पर बैठे हुए भगवान शिव की पूजा करने से मनुष्य को जाने-अनजाने किए गए पापों से मुक्ति मिलती है।

15. जिस मूर्ति में भगवान शिव दैत्य निकुंभ की पीठ पर बैठे हुए, दाएं पैर को उसकी पीठ पर रखे और जिनके बाईं ओर पार्वती हों। ऐसी मूर्ति की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है।

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