उपवास की राजनीति के माहिर शिवराज का दांव इस बार चलेगा?
# हर तरफ से घिरने के बाद शिवराज सिंह ने उपवास का गांधीवादी तरीका चुना #किसान आंदोलन का शनिवार को दसवां दिन है. पिछले नौ दिनों की राजनीतिक स्थिति पर नजर डाली जाए तो इससे साफ होता है कि भारतीय जनता पार्टी के मंत्री, विधायक, सांसद और अन्य पदाधिकारी किसानों से बात करने के लिए घर से ही नहीं निकले # वही शिवराज के उपवास से विजयवर्गीय की दूरी # इन सबका साफ मतव्य है- कि शिवराज की विदाई- की रणनीति तो नही है # भाजपा हाईकमान भी चिंतित है # शिवराज के हाथ से बाजी निकल चुकी है- किसान आंदोलन से उपजे हालात के बाद बीजेपी के चंद नेता ही मुख्यमंत्री के समर्थन में सामने आए;# शिवराज के हाथ से बाजी निकल चुकी है # शिवराज पर हो रहे बाणों की वर्षा के पीछे अपने ही खास- तो नही- बडा सवाल www.himalayauk.org (Leading NewsPortal) Execlusive Report:
भोपाल/मंदसौर: किसानों के गुस्से को शांत करने के लिए मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान आज भोपाल के दशहरा ग्राउंड में उपवास पर बैठे गए हैं. शिवराज के साथ उनकी सरकार के कई मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी मौजूद हैं. इस दौरान सीएम शिवराज की पत्नी साधना सिंह भी मंच पर उनके साथ बैठी. हालांकि शिवराज के इस उपवास में बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय मौजूद नहीं थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय इंदौर में हैं. आज वह किसानों के लिए एक कार्यक्रम कर रहे हैं. इस दौरान उनके कार्यक्रम की एक तस्वीर भी सामने आई है. दिलचस्प बात यह है कि विजयवर्गीय का कार्यक्रम भी शिवराज के उपवास के समय पर ही रखा गया है.मध्य प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा ‘’किसानों के सुख दुख में शिवराज साथ रहे हैं. किसान परेशान है इसलिए उपवास करेंगे. बातचीत का न्योता दिया है.’’
शिवराज सिंह चौहान ने 14 दिसम्बर 2013 को भोपाल के जम्बूरी मैदान में लगातार तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी- 2018 में म0प्र0 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है- क्या किसान आंदोलन की आड में शिवराज को निपटाने की रणनीति कामयाब हो पायेगी- वही अडाणी के प्रियपात्र कमलनाथ को म0प्र0 की गददी में बैठाने की आत्मघाती रणनीति की भी जनचर्चा हैं- एक बडा सवाल- ऐसा क्यों – हिमालयायूके की एक्सक्लूसिव- रिपोर्ट- वही शिवराज के इस उपवास में बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय मौजूद नहीं थे.
हर तरफ से घिरने के बाद शिवराज सिंह ने उपवास का गांधीवादी तरीका चुना हर तरफ से घिरने के बाद शिवराज सिंह ने उपवास का गांधीवादी तरीका चुना है. किसानों के आंदोलन का आज दसवां दिन हैं. पिछले चार दिन तो मध्य प्रदेश के कई जिलों में सड़कों पर, गाडियों पर किसानों का गुस्सा फूटा है. पुलिस की फायरिंग में किसानों की मौत के बाद शिवराज पर उगुंलियां उठ रही थीं. ऐसे में शिवराज ने उपवास का दांव खेला है. किसान नेता शिव कुमार शर्मा का कहना है कि ये सब अपनी नाकामी छुपाने की नौटंकी है. किसानों का आंदोलन जारी रहेगा. राज्य में विपक्षी कांग्रेस ने सीएम के फैसले की तीखी निंदा करते हुए उपवास के फैसले का मजाक उड़ाया है. पर इस विरोध के बाद भी शिवराज ने उपवास के फैसले पर आगे बढ़ने का फैसला लिया है.
मध्य प्रदेश में दो जून से किसान आंदोलन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के किसानों की मांग है कि उन्हें उनकी फसलों की सही कीमत मिले और कर्जमाफी हो. तीन जून को शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से मिलकर मामला सुलझने का दावा किया था. जिसके बाद एक धड़े ने आंदोलन वापस भी ले लिया था. लेकिन बाकी किसान विरोध प्रदर्शन पर अड़े रहे. प्रदर्शनकारी और सुरक्षाबल आमने-सामने आए. इसके बाद दोनों ओर से पथराव हुआ और फिर गोलियां चली, जिसमें पांच किसानों की मौत हो गई.
दशहरा ग्राउंड में बोल रहे हैं एमपी सीएम शिवराज सिंह चौहान, किसानों के बिना मध्य प्रदेश की तरक्की नहीं हो सकती. मैंने हर विपदा में किसान के खेतों में जाकर देखा और किसान को राहत दी. -10 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देने का काम केवल मध्य प्रदेश में हुआः वह एक कृषि उत्पाद और विपणन आयोग का गठन करेंगे जो कि लागत से जुड़े मामलों पर काम करेगा. समस्याएं जितनी भी है, उनके समाधान में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी.
##मोदी सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं
देश के अलग-अलग हिस्सों में जारी किसान आंदोलन को लेकर अब किसान संगठनों की ओर से एक साझा रणनीति बनाने की तैयारी हो रही है. इसी सिलसिले में 50 किसान संगठनों के प्रतिनिधि आज दिल्ली में बड़ी बैठक करने जा रहे हैं. बैठक में किसान आंदोलन को और तेज करने के लिए आगे की योजना पर विचार किया जाएगा. ऐसे में मोदी सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. आज 50 किसान संगठनों की दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में सुबह दस बजे बैठक होने जा रही है. बैठक का मुद्दा किसान आंदोलन को तेज करना है. किसान संगठन पहले ही 9 अगस्त को देशभर के हाईवों को जाम करने और जनवरी में दिल्ली में एक बड़ा किसान आंदोलन करने की योजना बना चुके हैं. जिन राज्यों में किसान आंदोलन की आग फैली हुई है उनमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल हैं. गुजरात में कांग्रेस ने धमकी दी है कि अगर यहां भी किसानों की मांगें जल्द पूरी नहीं होती तो वो राज्यव्यापी प्रदर्शन शुरू कर देगी. इसी साल चुनावों से पहले किसानों के मुद्दे को लेकर राज्य में कांग्रेस पहले ही आक्रामक है. महाराष्ट्र में किसानों की तरफ से फणडवीस सरकार को दिए गये दो दिन के अल्टीमेटम का आज आखिरी दिन है. अगर यहां किसानों की मांगें पूरी नहीं होतीं तो महाराष्ट्र में 12 जून से किसानों का आंदोलन फिर शुरू होगा. इस बीच सीएम देवेंद्र फडणवीस ने 6 सदस्य मंत्रिमंडल समूह का गठन किया है जो किसानों से बातचीत के बाद सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा. किसानों की मांगों को लेकर आज आम आदमी पार्टी भी देशभर में विरोध प्रदर्शन करेगी. शुक्रवार को आप नेताओं ने किसानों से मिलने के लिए मंदसौर जाने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिस ने उन्हें पहले ही रोक लिया था. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का हाल देखकर केंद्र भी चौकन्ना है. यूपी में तो योगी सरकार ने पहले ही किसानों से बात करने की तैयारी शुरू कर दी है. बीजेपी जानती है आंदोलन आगे बढ़ा तो उसे इसका सीधा नुकसान होगा.
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस उपवास के जरिए एक तरफ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के हाथ से किसानों को निकालना चाहते हैं तो दूसरी और प्रदेश में जगह-जगह चल रहे किसान आंदोलन से लोगों का ध्यान हटाकर अपने पर केंद्रित करना चाहते हैं. मंदसौर में पुलिस की गोली से छह किसानों के मारे जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान की किसान हितैषी मुख्यमंत्री की छवि को जबरदस्त धक्का लगा है.
राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है. मुख्यमंत्री चौहान की लोकप्रियता महिलाओं के साथ-साथ किसानों के बीच भी काफी है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पिछले 13 साल में उनकी इस छवि का तोड़ नहीं ढूंढ पाई है. गोलीकांड में किसानों के मारे जाने के बाद कांग्रेस को एक बड़ा मुद्दा हाथ लगा है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह से मंदसौर पहुंच कर मामले को राजनीतिक रंग दिया है, उससे पूरी भारतीय जनता पार्टी में अगले चुनाव लेकर बेचैनी साफ दिखाई दी.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस उपवास के जरिए किसानों में विश्वास की वापसी की कोशिश में लगे हैं. किसान संगठनों से खुले में बातचीत का जो आमंत्रण उन्होंने दिया है, उसे मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. भोपाल के जिस दशहरा मैदान पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार चलाने बैठे हैं, वह उनके लिए भाग्यशाली मैदान माना जाता है. पिछले 13 साल में मुख्यमंत्री ने दर्जन भर से अधिक कार्यक्रम इस मैदान में किए हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी इस मैदान पर आ चुके हैं. मौका वर्ष 2013 में शिवराज सिंह चौहान का तीसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण समारोह का था. भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेता भी इस मैदान में मेहमान के तौर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं.
यह मैदान पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के निर्वाचन क्षेत्र में आता है. गौर को उम्रदराज होने के कारण मुख्यमंत्री चौहान ने अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था. गौर सरकार से असंतुष्ट चल रहे हैं. उन्होंने किसान आंदोलन को लेकर सरकार को भी घेरा है. मुख्यमंत्री के लिए लकी माने जाने वाले इस मैदान में भेल की भोपाल इकाई सोलर प्लांट लगाना चाहती थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे रुकवा दिया.मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले 13 साल से लगातार खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात कह रहे हैं. पिछले कुछ माह से उन्होंने किसानों की आय दोगुनी करने के बयान देना शुरू कर दिए हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में 3 करोड़ 15 लाख से अधिक श्रमिक हैं. इनकी कार्य सहभागिता की दर 43.5 प्रतिशत है. मध्यप्रदेश के कृषि आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार इनमें से 72 प्रतिशत मुख्य श्रमिक हैं. कुल श्रमिकों में से 31 प्रतिशत किसान हैं. 39 प्रतिशत कृषि श्रमिक हैं. जबकि 70 प्रतिशत श्रमिक प्राथमिक रूप से सीधे कृषि से जुड़े हुए हैं. राष्ट्रीय औसत 55 प्रतिशत का है. प्रदेश की राजनीति की दिशा ग्रामीण क्षेत्रों से ही तय होती है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने भाषणों में किसानों की बात ज्यादा करते हैं. किसानों से जुड़े मुद्दों पर राजनीति करना उन्हें अच्छी तरह आता है.
वर्ष 2011 में जब प्रदेश में ओला, पाला पड़ा तो शिवराज सिंह चौहान अतिरिक्त वित्तीय पैकेज की मांग को लेकर केन्द्र की तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ दशहरा मैदान में धरने पर बैठ गए. वर्ष 2012 में उर्वरकों की कीमतें बढ़ी तो मुख्यमंत्री चौहान स्थानीय विट्ठन मार्केट दशहरा मैदान में धरना देकर बैठ गए थे. तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के चार माह बाद बाद ही मार्च 2014 में वे एक बार फिर रोशनपुरा चौराहे पर धरने बैठे. इस बार मांग ओला वृष्टि को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की थी. गोली कांड के बाद किसानों का आंदोलन पूरे प्रदेश में उग्र है. सरकार बैकफुट पर है. मुख्यमंत्री चौहान फिर सड़क पर आ गए हैं. इस बार के धरने को उन्होंने उपवास का नाम दिया है. कारण केन्द्र और राज्य दोनों में ही भाजपा की सरकार होना है.
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