श्रीनगर बांधपरियोजना: पावर चैनल में रिसाव

श्रीनगर बांध परियोजना: पावर चैनल में रिसाव 

    गांव के लोग भय में जीने के लिए मजबूर 

पिछले 4 दिन से उत्तराखंड के  टिहरी व पौड़ी जिले में बनी श्रीनगर बांध परियोजना का पावर चैनल यानी लगभग 4 किलोमीटर लंबी खुली नहर में जगह-जगह से तेजी से रिसाव हो रहा है। रिसाव के कारण  मंगसू और सुरासू आदि गांवों के लोग भय में हैं। उनके घरों के आसपास पानी है, खेतों में पानी है जो की फसलों को खराब भी कर रहा है, यह पानी सर्दी के मौसम में और ठंडक बढ़ा रहा है।

ज्ञातव्य है कि 2015 में इन गांवों मेंनहर के रिसाव के कारण भारी मात्रा में पानी भर गया था । जिसके बाद तत्कालीनउत्तराखंड सरकार ने  2 मंत्रियों की एक कैबिनेट समिति बनाई। जिसमे ऊर्जा सचिव को भी रखागया था। जिसकी संस्तुति पर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ने अपनी  रिपोर्ट दी । इसरिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि पावर चैनल की जगह और निर्माण में खामियां हैं।अपनी सिफारिशों में वाडिया इंस्टीट्यूट ने बताया था कि कई अन्य संस्थानों के साथमिलकर इसके गहन अध्ययन की आवश्यकता है। इसके बाद जीवीके कंपनी ने बिना किसी अध्ययनकिए, नहर पर जगह-जगह कुछ लीपापोती जैसे काम की किए। मगर वह पूरी तरह कभीभी न सफल हुए हैं । बल्कि नए से कचरा सफाई करके जो मलबा नीचे की तरफ डाला गया उससे लोगों के खेत और खराब हुए। जिस पर कोई मुआवजा नहीं।

हम मानते हैं कि बांध निर्माता जीवीके कंपनी ने लोगों की सुरक्षा को नजरअंदाज किया है। मात्र पानी बेकार न जाए इस बात को ध्यान में रखा। रिसाव क्यों हो रहा है उस गंभीर प्रश्न पर काम नहीं किया। पिछले 3 सालों में उत्तराखंड सरकार में सत्ता बदली है। मगर पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार दोनों ने ही इस ओर ध्यान नहीं दिया। जिसका नतीजा है कि आज स्थिति गंभीर है।

श्रीनगर बांध परियोजना के निर्माण किस समय से ही लगातार प्रश्न उठते रहे हैं । बांध कंपनी ने पर्यावरणीय शर्तों की अनदेखी करते हुए बांध को आगे बढ़ाया । अन्य मुद्दों पर भी आज स्थिति यह है कि शहर में गंदा पीने का पानी, लोगों के मुआवजे लटके हुए हैं, लीज पर ली गई जमीनों के पैसे अभी तक नहीं दिए गए, शहर में मरीन ड्राइव बनाने का वादा गायब, गर्मियों में चौरास में उड़ती धूल। पूरे बांध क्षेत्र के पर्यावरण की तबाही और इन सब के साथ मंगसू से धारी देवी तक के गांवों में छोटी-छोटी समस्याएं जैसे पानी, गांव के रास्ते आदि-आदि भी लटके हुए हैं।

माटू जन संगठन मांग करता है कि :-

1-सरकार वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट पर तुरंत कार्यवाही हो।

 2- पावर चैनल के रिसाव से हो रहे नुकसान की भरपाई बांध कंपनी करें ।

3- लंबित मामलों पर सरकार कंपनी के साथ मिलकर तुरंत निदान कराएं।

विमल भाई,    विनोद चमोली, मनीष रावत

———————प्रसंगवश———-साभार

राजीव थपलियाल ;साल भर पहले तक श्रीनगर (गढ़वाल) के बाशिंदों के दिलो-दिमाग में गंगा(अलकनंदा नदी) किनारे सुंदर हरे-भरे मैरीन ड्राइव की कल्पना गोते लगा रही थी। सुंदर, गहरी, नीली जलराशि और उससे छूटते झरने के साथ सुबह-शाम की सैर के लिए हरियाली के बीच से निकलता पैदल पथ। लेकिन बांध परियोजना का काम पूरा होने के साथ ही इन सपनों के स्थान पर मिली मृतप्राय गंगा। प्रदूषित पानी और रेतीले-पथरीले किनारे। गंगा की इस बदहाली की कीमत के बदले मिलने वाली बिजली भी पूरी नहीं बन पा रही। देश के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा श्रीनगर को फ्रांस की राजधानी पेरिस जैसे यूरोपीय शहर की तरह खूबसूरत कहते थे। कारण, राइन नदी की भांति कीर्तिनगर-चैरास और श्रीनगर के बीचोंबीच शांतभाव से पहाड़ी स्वभाव के विपरीत बहती गंगा। लेकिन, श्रीनगर की इस खूबसूरती को जीवीके बांध परियोजना की कंसर्न कंपनी अलकनंदा हाइड्रोप्रोजेक्ट पावर प्राइवेट लिमिटेड का बांध निगल चुका है। वैज्ञानिकों की मानें तो 25-30 किलोमीटर हिस्से का पर्यावरणीय सिस्टम बांध के कारण प्रभावित हुआ है। मत्स्य विज्ञानी प्रो. एसएन बहुगुणा ने अपने शोध में पाया  कि बांध के कारण अलकनंदा में मछलियों की 43 प्रजातियां लुप्त होने को हैं, जिनमें से 20-22 प्रजातियां बड़ी कॉमर्शियल किस्म की हैं। प्रो. बहुगुणा के अनुसार मछलियां अंडे देने कम पानी वाले पहाड़ी छिछले इलाकों की ओर हरिद्वार से कर्णप्रयाग तक प्रवास करती थीं। बांध के कारण उनके प्राकृतिक मार्ग में अवरोध पैदा हो चुका है, परिणामस्वरूप न तो वे नीचे से ऊपर जा पा रही हैं और न ही ऊपर पैदा हुई मछलियां अपने मूल आवास को लौट पा रही हैं। नदी की विशेष बनावट के कारण श्रीनगर क्षेत्र मछलियों के अंडे-बच्चे देने के लिए नेचुरल ब्रीडिंग ग्राउंड था जोकि बांध प्रबंधन द्वारा नदी का पानी पर्याप्त न छोडेÞ जाने के कारण समाप्त हो गया है। 
नदी में पर्याप्त पानी न छोड़े जाने से निकटवर्ती गांव श्रीकोट गंगानाली के प्रेम सिंह नेगी, कमल किशोर थपलियाल, वीरेन्द्र सिंह गुंसाई, विजय प्रसाद भट्ट, बुद्धि बल्लभ बहुगुणा समेत अधिकांश लोग  गुस्से में हैं। ये लोग स्थानीय शिवालय के समीप नदी तट पर रोज शाम में गंगा आरती करते आ रहे थे, पर उनकी धार्मिक आस्था के सामने विकट समस्या है कि आखिर गंगा मैया का पूजन करने जाएं तो जाएं कहां? 
बांध के बैराज गेट पर मनुष्यों और जानवरों के सड़े-गले शव आए दिन अटक जाते हैं जो भयानक बदबू का बायस बनते हैं। जाहिर सी बात है कि इसका असर पानी पर पड़ रहा है। दिक्कत यह है कि श्रीकोट, श्रीनगर और पौड़ी क्षेत्र की जनता बैराज का ही पानी पीती है। एक लाख से ऊपर की आबादी इस पानी को पी रही है। जल संस्थान ने फिल्ट्रेशन प्लांट तो लगाए हैं, लेकिन इन प्लांट से हानिकारक विषाणु या जीवाणु खत्म नहीं हो सकते हैं। ऐसे में लोगों को चिंता सता रही है कि वह कहीं जहरीला पानी तो नहीं पी रहे हैं। इस चिंता पर मुहर लगाते हुए केन्द्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष प्रो0 आरसी शर्मा कहते हैं कि श्रीनगर घाटी के लोगों के सामने जलीय और वायु प्रदूषण की समस्या पैदा हो रही है। जलधाराओं के अभाव में पानी के प्राकृतिक स्रोत भी सूखने लगे हैं। साथ ही आॅक्सीजन घुलने की प्रक्रिया प्रभावित होने से गंगाजल के प्राकृतिक गुण पर भी बुरा असर पड़ना तय है।
श्रीनगर में बांध परियोजना का कार्य करने के दौरान खूब आंदोलन हुए और खूब सियासी रोटियां सेकी गई। सामाजिक कार्यकर्ता मोहन प्रसाद काला सवाल करते हैं कि तत्कालीन कैबीनेट मंत्री दिवाकर भट्ट, तत्कालीन कैबीनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी, पूर्व मंत्री शूरवीर सजवाण, मौजूदा कैबीनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता बीसी खंडूडी, डा. रमेश पोखरियाल निशंक और यहां तक कि उमा भारती आज कहां हैं, जबकि बांधनिर्माण के दौरान यही लोग अपने-अपने हिसाब से समर्थन-विरोध को हवा दे रहे थे। धारी देवी मंदिर को लेकर आंदोलन करने वाली उमा भारती आज जबकि केन्द्रीय मंत्री हैं, को आज आमजन की दिक्कत से कोई सरोकार नहीं है। श्रीकोट गंगानाली के पूर्व प्रधान हयात सिंह झिक्वाण भी बडे़ नेताओं के गायब होने पर खफा नजर आए। हयात सिंह ने कहा बांध कंपनी से स्वार्थपूर्ति करने की नीयत से समर्थन-विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वालों को पर्यावरण सहित आमजन की जरा सी भी परवाह होती तो वे जनता के बीच उसके हक के लिए संघर्ष करते मिलते। वे कहते हैं कि बांध के कारण जो भी नुकसान हो रहा है उसके लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के हस्तक्षेप से ही कुछ उम्मीद है।

नगर क्षेत्र में जल जनित रोगों के पीड़ितों में इजाफा देखने को मिल रहा है, जिनमें टायफाइड के सबसे अधिक रोगी आ रहे हैं। दरअसल, इसी वर्ष फरवरी-मार्च माह से जल विद्युत परियोजना के बांध की झील में पानी का रुकना शुरू हुआ था। कोटेश्वर से नौर तक अलकनंदा नहर से गुजर रही है जबकि अलकनंदा के मूल प्रवाह क्षेत्र में बैराज के बाद से पावर हाउस तक बहुत कम पानी बह रहा है। इसके अलावा राजकीय मेडिकल कालेज समेत अन्य स्थानों में छह गंदे नाले भी इसी पानी में मिल रहे हैं। इसी क्षेत्र में श्रीकोट, पौड़ी और श्रीनगर की पंपिग पेयजल योजनाएं हैं।

समस्या यह है कि अलकनंदा और उसकी सहायक नदियों में बहकर आने वाले मनुष्यों और जानवरों के मृत शरीर बैराज गेट में फंस रहे हैं। मनुष्यों के शव तो कई दिन पानी में रहने के बाद निकाल दिए जा रहे हैं। लेकिन जानवरों के शवों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है। बैराज में भारी मात्रा में गंदगी भी है। कीर्तिनगर के कोतवाल सीएस बिष्ट ने भी माना कि बैराज क्षेत्र में शवों के कारण दुर्गंध है। उन्होंने बताया कि बांध कंपनी को मनुष्यों के शव मिलने पर तत्काल सूचना देने के लिए कहा गया है। साथ ही जानवरों के मृत शरीरों के निस्तारण का भी आदेश किया गया है।

यह भी कम शर्मनाक नहीं है कि लोगों को साफ पानी देने की व्यवस्था सरकार के पास नहीं है। स्वच्छ पानी के लिए जिम्मेदार विभाग जल संस्थान के एक्जिक्यूटिव इंजीनियर प्रवीण सैनी खुद मानते हैं कि उनके फिल्टर प्लांट से सिर्फ मिट्टी व रेत ही छनती है। जो रसायन या हानिकारक मिश्रण पानी में घुल जाते हैं, वह फिल्टर नहीं हो पाते हैं। ब्लीचिंग पाउडर से कीट ही मर पाते हैं। यानी लोगों के पास प्रदूषित पानी पीने के सिवा कोई चारा नहीं है।

श्रीकोट गंगानाली के पूर्व प्रधान सारी समस्याओं की वजह बांध प्रबंधन की पानी कम छोड़ने का लालच करार देते हैं। बिजली बनाने के चक्कर में नदी की मूलधारा की चिंता बांध कंपनी को नहीं है। हालांकि बांध कंपनी के पीआरओ वाईआर शर्मा पानी की मूलधारा में पानी की कमी से साफ इनकार करते हैं। उनके अनुसार वे तो सरकार से हुई एग्रीमेंट से भी कई गुना ज्यादा पानी नदी की मूलधारा में छोड़ रहे हैं।  सवाल यह है कि बांध कंपनी के दावे पर भरोसा करें या जो दिख रहा है उस पर।

खैर बांध प्रशासन के इसी रवैये पर युवा नेता विकास कुकरेती नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि  जिम्मेदार लोग नदारद हैं। वे बांध कंपनी की ढीढ़ता का वाकया सुनाते हैं कि भाजपा के वरिष्ठ नेता धनसिंह रावत ने जनता से जुड़े एक मुद्दे पर बांध कंपनी के कर्ताधर्ता संजीव रेड्डी से बात करनी चाही तो उनके पीआरओ ने कुछ देर बाद बात कराने बात कहते हुए फोन स्वीच आफ कर दिया। साथ ही प्रबंधन के तमाम लोगों के फोन बंद हो गए।

बांध प्रबंधन की इसी बेरूखी का शिकार बने हैं मयंक पांडे। गंडासू गांव के मयंक पांडे की जमीन बांध की जद में डूब चुकी है। मुआवजा नहीं मिला तो मामला कोर्ट में चला गया। मयंक बताते हैं कि पहले जमीन गई और अब मुकदमे का झंझट अलग। मयंक जैसे कई और लोग भी हैं जो अपनी किस्मत को कोसते हुए मुआवजे के लिए कंपनी से लड़ रहे हैं।

किस्मत को कोसकर कुछ नहीं हासिल होने वाला। श्रीनगर के विधायक गणेश गोदियाल साफ शब्दों में कहते हैं कि जब बांध की योजना बन रही थी, तभी सारी बातों का ख्याल रखा जाना चाहिए था। अब जो हो चुका है उसका कुछ नहीं किया जा सकता है। उन्होंने आवश्वस्त किया कि जो काम बांध की शर्तों में थे उसके लिए प्रबंधन को डांटा जा चुका है। जिस पर मैरीन ड्राइव और पेयजल सुविधा के लिए बांध पैसा रिलीज कर चुका है। नदी सूखने से नाव चलाने वाले और मछली बेचने वाला केवट और धुनार समुदाय बेरोजगारी का दंश झेलने को विवश हो चुका है।

वाकई श्रीनगर के लोगों से मिलकर लगा कि कोई कंपनी अपना काम पूरा होने के बाद किस तरह मुंह मोड़ लेती है। नहर का पानी रिसने से चैरास इलाके के घरों में दरारें आ रही हैं। श्रीनगर-चैरास के लिए लोगों के लिए परेशानी का सबब बने बांध के साथ एक चिंताजनक पहलू यह भी जुड़ा है कि परियोजना पूरी क्षमता से बिजली नहीं बना पा रही है। 330 मेगावाट क्षमता की इस परियोजना में चार टरबाईन में से बमुश्किल एक या दो ही टरबाइन चल पा रही हैं। बांध से हुए नुकसान और देश को मिल रहे फायदे को देखकर एक कहावत याद आ रही है ‘दारू पी चार आने की, गिलास फोड़ डाला बारह आने का।’


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