सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार अधिक प्रभावपूर्ण
सोशल मीडिया- वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना को सम्पूर्णता #हर आयु वर्ग के लोग सोशल मीडिया से जुड़ रहें #सूचना के आदान -प्रदान में एक अभूतपूर्व तेजी #विश्वबन्धुत्व ,मैत्री व् भाईचारा स्थापित करने में सोशल मीडिया #सोशल मीडिया ने लेखकों व् कलाकारों की नई पौंध को पुष्पित व् पल्लवित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई #सोशल मीडिया पर प्रचार -प्रसार अन्य माध्यमों की तुलना में अधिक प्रभावपूर्ण सिद्ध
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सामाजिक ,सांस्कृतिक व् राजनितिक क्षेत्र में सोशल मिडिया ने नई क्रांति की शुरुवाद की है। इन माध्यमों ने यथार्थ के समानांतर एक खूबसूरत आभासी दुनिया गढ़ कर न केवल मैत्री के तरीकों को बदला है बल्कि मैत्री को नए सिरे से परिभाषित भी किया है। सोशल मिडिया केवल टीन फ्रेंडशिप मंच हैं ये मुगालता पालना अब ठीक नहीं।आज हर आयु वर्ग के लोग सोशल मीडिया से जुड़ रहें हैं जिसमे पचास से ऊपर आयु वर्ग के लोगों की संख्या भी अच्छी खासी है। इन माध्यमों की मुक्त प्रकृति ने सूचना – सामग्रियों के आदान-प्रदान का एक हल्का -फुल्का व् त्वरित मंच तैयार किया है। जैसे -जैसे हम नियमित रूप से आभासी मित्रों की जिंदगी से जुडी छोटी-छोटी जानकारियां सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त करते रहते हैं तो एक तरह की घनिष्टता बढ़ जाती है। ऑनलाइन चेटिंग ,फोटो -विडियो अपलोडिंग जैसे ऑप्शनों ने इस आभासी भूमि को और अधिक पुष्ट कर दिया है। वर्तमान में सूचना के आदान -प्रदान में एक अभूतपूर्व तेजी आयी है ।सूचनाएं बिलकुल सही समय पर एक बहुत बड़े समुदाय तक पहुँच रहीं हैं तो इसका बड़ा श्रेय सोशल मीडिया को जाता है।
विश्वबन्धुत्व ,मैत्री व् भाईचारा स्थापित करने में सोशल मीडिया कितना प्रभावी -अप्रभावी ये आंकलन करने से पूर्व ये समझ लेना आवश्यक होगा की लोग सूचना का आदान -प्रदान क्यों करते हैं ? एक शोध के अनुसार लोग अपने मित्रों व् परिवार वालों से संपर्क बनाये रखने ,सामाजिक मुद्दों को सहयोग करने , जरुरी सूचनाओं को आगे बढ़ाने ,व्यक्तिगत आदर्शों – विचारों को सामने रखने , संगठन व् प्रतिष्ठान के प्रचार-प्रसार के लिए करते हैं। सोशल मीडिया ने वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना को सम्पूर्णता दी है। बात यदि राजनितिक क्षेत्र की कि जाय तो पिछले एक दशक में सोशल मिडिया ने अपनी एक बड़ी भूमिका तय कर ली है। सोशल मीडिया पर प्रचार -प्रसार अन्य माध्यमों की तुलना में अधिक प्रभावपूर्ण सिद्ध हुआ है। एक मंच पर भिन्न -भिन्न विचारधारा वाले लोगों तक न केवल पहुंच जा सकता है अपितु उन्हें एक विशेष पक्ष में मोड़ा भी जा सकता है।सोशल मीडिया ने राजनीति को अधिक पारदर्शी व् जिम्मेदारपूर्ण बनाने में भी मदद की है। सामाजिक , राजनैतिक या आर्थिक कमियों को देख पाना अब एक निश्चित वर्ग तक सीमित नहीं है। आज एक बड़ा समुदाय न केवल इन कमियों को देख पता है वरन उसके लिए स्टैण्ड भी ले पता है। सीखने का एक आवश्यक अंग बनकर सोशल मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।ऑनलाइन लर्निंग व् डिस्टेंस लर्निंग इत्यादि को इसी की एक कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। वर्त्तमान में दुनिया का कोई ऐसा संगठन या प्रतिष्ठान नहीं है जो सोशल मीडिया का उपयोग अपने टारगेट ऑडिएंस तक पहुँचने व् बिज़नेस को बढ़ाने के लिए न कर रहा हो ।
जहाँ तक साहित्य या कला विधाओं की बात है सोशल मीडिया ने लेखकों व् कलाकारों की नई पौंध को पुष्पित व् पल्लवित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक छोटे से गाँव में बैठा व्यक्ति अपने सुझाव या रचनात्मकता एक बहुत बड़े समुदाय तक पहुंचा पा रहा है तो इसका पूरा श्रेय सोशल मीडिया को जाता है। इन साइट्स पर दुनियाभर के लेखकों ,साहित्यकारों के अप्डेट्स परिचय व् उनकी कृतियों अदि की जानकारी उपलब्ध रहती है। विश्वभर के उभरते लेखक अपने पसंदीदा लेखक को न केवल फोलो तो करते ही है साथ ही दुनिया के किसी भी भाग में नई प्रकाशित कृतियों की जानकारी परिचय सहित उन्हें प्राप्त हो जाती है।एक तरह का व्यक्तिगत संपर्क भी स्थापित कर पाने में वे समर्थ होता है। यही स्थिति अन्य कलाओं के लिए भी उतनी ही सही है ।
सोशल मीडिया की सबसे बड़ी विशेषता पाठक /दर्शकों के साथ परस्पर सम्बन्ध है। अन्य प्रिंट या एल्कट्रोनिक्स माध्यमों की तरह सोशल मीडिया में रिश्ता एकतरफा नहीं होता, इसमें अपनी राय या प्रतिक्रिया तुरंत जाहिर करना आसान हो जाता है। सोशल मीडिया के बढ़ते हुए प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता मगर इसका नकारात्मक पहलू भी कम विकसित नहीं है
। सोशल मीडिया ने आभासी मित्रों की सूचि में तो इजाफा किया है मगर वास्तविक मानव संपर्क के आनंद को कम कर दिया है। आज हम इस ऑनलाइन मैत्री के इतने आदि हो चुके हैं कि आमने -सामने मिलकर मैत्री प्रगाढ़ रखने में सर्वथा असफल दिखाई दे रहें हैं। दूसरे ,सूचनाएं त्वरित तो मिल रही हैं मगर जानकारी की अपेक्षा गलत व् अनर्गल सूचनाएं ही अधिक मिल रहीं हैं। उसपर भी सूचनाएं इतनी तेजी से मिल रहीं हैं की चीजों को समझने व् उसका विश्लेषण करने की स्वाभाविक स्थिति नष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त ये मंच नई प्रतिभावों को रातों रात सेलेब्रेटी स्टेटस देकर संघर्ष व् साधना के मार्ग को भी अवरुद्ध कर रहें हैं।
अंत में यही कहा जा सकता है की सोशल मीडिया एक शक्ति है तकनीक है जिसके अपने फायदे व् नुकसान हैं ।इन दोनों पहलुओं के मध्य संतुलन स्थापित कर सोशल मीडिया का रचनात्मक उपयोग संभव है।
मीना पाण्डेय
संपादक -सृजन से (त्रेमासिक )
एम -3 ,सी -61 वैष्णव अपार्टमेंट,
शालीमार गार्डन एक्स -2
साहिबाबाद ,गाज़ियाबाद -201005