प्रेस को आजादी देनी चाहिए ; सुप्रीम कोर्ट
by; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) Bureau
मीडिया के खिलाफ हुए मानहानि के मुकदमों पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि प्रेस की बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी ‘पूर्ण’ होनी चाहिए और ‘कुछ गलत रिपोर्टिंग’ होने पर मीडिया को मानहानि के लिये नहीं पकड़ा जाना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एक पत्रकार और मीडिया हाउस के खिलाफ मानहानि की शिकायत निरस्त करने के पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुये कीं.
पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र में, आपको (याचिकाकर्ता) सहनशीलता सीखनी चाहिए. किसी कथित घोटाले की रिपोर्टिंग करते समय उत्साह में कुछ गलती हो सकती है. परंतु हमें प्रेस को पूरी तरह से बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए. कुछ गलत रिपोर्टिंग हो सकती है. इसके लिये उसे मानहानि के शिकंजे में नहीं घेरना चाहिए.’
न्यायालय ने मानहानि के बारे में दंण्डात्मक कानून को सही ठहराने संबंधी अपने पहले के फैसले का जिक्र करते हुये कहा कि यह प्रावधान भले ही सांविधानिक हो परंतु किसी घोटाने के बारे में कथित गलत रिपोर्टिंग मानहानि का अपराध नहीं बनती है.
इस मामले में एक महिला ने एक खबर की गलत रिपोर्टिंग प्रसारित करने के लिये एक पत्रकार के खिलाफ निजी मानहानि की शिकायत निरस्त करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी. महिला का कहना था कि गलत रिपोर्टिग से उसका और उसके परिवार के सदस्यों की बदनामी हुयी है.
यह मामला बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा बिहिया औद्योगिक क्षेत्र में इस महिला को खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिये भूमि आबंटन में कथित अनियमित्ताओं के बारे में अप्रैल 2010 में प्रसारित खबर को लेकर था.
हाल ही में आधार डेटा में कथित सेंध की खबर प्रकाशित करने पर सरकार ने मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है. हालांकि इस मामले में सरकार की ओर से पेश की गई सफाई में कहा गया है कि यह प्राथमिकी ‘अज्ञात’ आरोपियों के खिलाफ की गई है. इसके साथ ही सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
दिल्ली पुलिस ने ही पुष्टि की कि उसने यूआईडीएआई की शिकायत पर इस मामले में पांच जनवरी को प्राथमिकी दर्ज की. विधि व आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर सरकार का रुख स्पष्ट करने के लिए सोशल मीडिया वेबसाइट ट्वीटर का सहारा लिया.
प्रसाद ने ट्वीटर पर लिखा है, ‘सरकार भारत के विकास के लिए प्रेस की स्वतंत्रता व आधार की संरक्षा व सुरक्षा बनाए रखने को प्रतिबद्ध है . प्राथमिकी एफआईआर अज्ञात (लोगों) के खिलाफ है.’
उल्लेखनीय है कि आधार जारी करने वाले भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के एक उपनिदेशक की शिकायत पर इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है. प्राथमिकी में चार लोगों के नाम है जिनमें ट्रिब्यून अखबार की उस पत्रकार का नाम भी शामिल है जिसने अपने समाचार में आधार डेटा में कथित सेंध का खुलासा किया था. हालांकि प्रसाद के अनुसार प्राथमिकी ‘अज्ञात’ के खिलाफ है.
प्रसाद के अनुसार, ‘मैंने यूआईडीएआई को सुझाव दिया है कि वह ट्रिब्यून व इसकी पत्रकार से पुलिस को हर संभव मदद का आग्रह करे ताकि वास्तविक दोषियों का पता लगाया जा सके.’ उधर यूआईडीएआई ने फिर कहा कि वह प्रेस की आजादी को प्रतिबद्ध है और वह इस मामले में जांच में सहयोग के लिए उक्त समाचार पत्र व उसकी पत्रकार से संपर्क करेगा. प्राधिकरण ने ट्वीटर पर लिखा है कि वह इस बारे में ट्रिब्यून अखबार व पत्रकार रचना खैरा से जांच में हरसंभव मदद का आग्रह करेगा.
इस बीच सम्बद्ध द ट्रिब्यून अखबार के प्रधान संपादक हरीश खरे ने एक बयान में कहा कि अखबार खोजी पत्रकारिता के अपनी आजादी का बचाव करेगा. उन्होंने कहा कि संस्थान इस बारे में सभी कानूनी विकल्पों पर विचार करेगा.
प्राथमिकी दर्ज कराने को लेकर आलोचकों के निशाने पर आने के बाद प्राधिकरण ने कल कहा था कि वह प्रेस की आजादी समेत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता है. प्राधिकार के अनुसार उसकी पुलिस शिकायत को संवाददाता को रोकने की कोशिश की तरह नहीं देखना चाहिए. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी प्राथमिकी वापस किये जाने को लेकर सरकार से दखल की मांग की और कहा कि मामले की निस्पक्ष जांच की जानी चाहिए.