आडवाणी का नाम राष्ट्रपति पद से काटे जाने की “राजनीति”

केस चलाने की मंजूरी #आज का फैसला विवादित ढांचा तोड़ने की साजिश पर  #आडवाणी का नाम राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से काटे जाने के लिए प्रधानमंत्री की ‘एक सोची समझी राजनीति’; लालू प्रसाद यादव

अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला देते हुए बीजेपी और हिंदूवादी नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का केस चलाने की मंजूरी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की पिटीशन पर यह फैसला सुनाया. यह फैसला जन्मभूमि विवाद पर नहीं है. यह फैसला उस आपराधिक साजिश के केस पर आया है जो 6 दिसंबर 1992 को हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब बीजेपी के बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह समेत कई नेताओं पर साज़िश की धारा में मुकदमा चलेगा. याचिका में जिन नेताओं के नाम हैं उनमें से कई अब इस दुनिया में नहीं हैं.
आसान शब्दों में कहें तो आज का फैसला विवादित ढांचा तोड़ने की साजिश पर है. मतलब यह एक आपराधिक साजिश का केस है. वो साजिश जिसकी वजह से 6 दिसंबर 1992 को घटना घटी. मतलब यह केस 6 दिसंबर 1992 के घटना पर आधारित है. इस मामले में कुल 21 बड़े नेता आरोपी थे, जिनमें से 5 अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसी वजह से 14 नेताओं के खिलाफ आदेश आया है.
पहली FIR- 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद दो एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर संख्या 197 लखनऊ में दर्ज हुई. ये मामला ढांचा गिराने के लिए अनाम कारसेवकों के खिलाफ था. दूसरी FIR- दूसरी एफआईआर यानी एफआईआर नंबर 198 को फैज़ाबाद में दर्ज किया गया. बाद में इसे रायबरेली ट्रांसफर किया गया. इस एफआईआर में आठ बड़े नेताओं के ऊपर मंच से हिंसा भड़काने का आरोप था. ये बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा, गिरिराज किशोर, अशोक सिंहल, विष्णु हरि डालमिया, उमा भारती और विनय कटियार थे.
वहां मंदिर बनेगा या मस्जिद बनेगा..या विवादित जन्मभूमि किसके हिस्से जाएगा यह केस अलग है. इस केस का आज के फैसले से कोई लेना देना नहीं है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि जन्मभूमि विवाद क्या है? कम शब्दों में समझिए कि 1949 में विवादित ढांचे में रामलल्ला की मूर्ति अचानक प्रकट हुई. इस पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच विवाद हुआ. इस मुसलमानों से एफआईआर दर्ज कराई कि यह मूर्तियां बाहर से लाकर रखी गई हैं. निचली अदालत ने वहां ताला लगा दिया. इसके दस साल बाद निर्मोही अखाड़े ने विवादित ढांचे पर अपना मालिकाना हक जताते हुए मुकदमा दर्ज कराया. फिर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना हक जताया. कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने के आदेश दिये. 1986 तक स्थिति बनी रही फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ताला खुलवा दिया. दूसरा मोड़ 1989 में आया जब राजीव गांधी सरकार ने ही शिलान्यास की अनुमति दी. सबसे अहम फैसला, 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाद को सुलझाने के लिए एक बीच का रास्ता निकाला था, लेकिन उस फैसले के बाद भी स्थिति अभी 6 साल पहले वाली ही बनी हुई है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था, राम मूर्ति वाला हिस्सा रामलला विराजमान को, राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया था. मतलब कुल मिलाकर यह केस अलग है.. और आज वाला फैसला जो आया है वह ढांचा गिराने की साजिश मतलब आपराधिक केस है.
आडवाणी सांसद हैं और राष्ट्रपति पद के लिए नाम चल रहा है. मुरली मनोहर जोशी भी सांसद हैं और इनका नाम भी राष्ट्रपति की रेस में है. उमा भारती मोदी सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं, अभी उन्होंने इस्तीफे से इनकार किया है. कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं. संवैधानिक पद पर हैं इसलिए अभी केस नहीं चलेगा. केस चलने से राष्ट्रपति की रेस में आडवाणी, जोशी बाहर हो जाएंगे. उमा भारती पर विपक्ष इस्तीफे का दबाव बनाएगा. राष्ट्रपति चुनाव से हटाने के लिए बाबरी मामले में आडवाणी के खिलाफ केस पीएम मोदी की साजिशः लालू यादव

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राम मंदिर विवाद: आखिर 6 दिसंबर 1992 को हुआ क्या था?
आज से करीब 25 साल पहले अयोध्या में पहुंची हिंदू कार सेवकों की लाखों की भीड़ ने विवादित ढांचे को गिरा दिया था तब सूबे में कल्याण सिंह की सरकार थी जो अभी राजस्थान के राज्यपाल हैं.
उस दिन देश भर से हजारों कार सेवक अयोध्या पहुंच रहे थे. विश्व विंदू परिषद, बजरंग दल सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेता अयोध्या में मौजूद थे. सुबह करीब साढ़े दस बजे का वक्त था जब हजारों कार सेवक हजारों पुलिस वालों की मौजूदी में विवादित ढांचे तक पहुंच गये. हर किसी की जुबां पर उस वक्त जय श्री राम का ही नारा था.
विवादित ढांचे तक पहुंचने के साथ ही भीड़ उन्मादी हो चुकी थी. इस वक्त तक ढांचे की सुरक्षा को खतरा पैदा हो चुका था. ढांचे के आसपास करीब एक लाख कार सेवक पहुंच चुके थे. अयोध्या में स्थिति भयानक हो चुकी थी.
पुलिस के आला अधिकारी मामले की गंभीरता को समझ रहे थे लेकिन गुंबद के आसपास मौजूद कार सेवकों को किसी को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का साफ आदेश था कि कार सेवकों पर गोली नहीं चलेगी.
तत्कालीन एसएसपी अखिलेश मेहरोत्रा बताते हैं कि हर किसी को अनहोनी की आशंका हो चुकी थी. अयोध्या पहुंचने वाले तमाम रास्ते बंद कर दिये गये. बाकी जो कार सेवक रास्ते में थे उन्हें वहीं रोक दिया गया.
इसके बाद जैसे जैसे दिन चढ रहा था भीड़ उन्मादी होकर विवादित ढांचे को तोड़ने की तैयारी कर रही थी. वहां मौजूद हजारों पुलिस वालों में से किसी को रोकने की हिम्मत नहीं थी. अयोध्या में सुरक्षा के लिहाज से उस दिन दस हजार से ज्यादा पुलिस वाले लगाए गए थे.
अयोध्या के तत्कालीन एसएचओ पीएन शुक्ला ने बताया कि भीड़ में हर कोई गुंबद को तोड़ने में नहीं जुटा था लेकिन माहौल ही ऐसा हो गया था कि उन्मादियों को वहां मौजद हर शख्स का मानो समर्थन मिल रहा था.
दोपहर के तीन बजकर चालीस मिनट पर पहला गुंबद भीड़ ने तोड़ दिया और फिर 5 बजने में जब पांच मिनट का वक्त बाकी था तब तक पूरा का पूरा विवादित ढांचा जमींदोज हो चुका था. भीड़ ने उसी जगह पूजा अर्चना की और राम शिला की स्थापना कर दी.
हजारों पुलिस वालों की मौजूदगी में करीब डेढ लाख लोगों की भीड़ इस घटना की गवाह बनी बात में तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने इस घटना को अपने लिए खुशी का दिन बताया. इस घटना ने देश की राजनीति उसी दिन से बदलकर रख दी. 6 दिसंबर को विवादित ढांचा गिरा और इसके बाद केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी थी.

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आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की याचिका मंजूर करने पर पीएम मोदी पर निशाना साधा है. लालू ने कहा बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ आपराधिक षड़यंत्र के आरोप को बहाल किया जाना आडवाणी का नाम राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से काटे जाने के लिए प्रधानमंत्री की ‘एक सोची समझी राजनीति’ का हिस्सा है.
पटना में आज पत्रकारों को संबोधित करते हुए लालू ने आरोप लगाया कि जबसे राष्ट्रपति पद के लिए आडवाणी के नाम की चर्चा शुरू हुई है, सीबीआई ने खुद सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का आडवाणी और अन्य के खिलाफ ट्रायल शुरू कराए जाने का आग्रह किया था.
उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से आडवाणी का नाम काट दिए जाने के लिए यह नरेंद्र मोदी की ‘एक सोची समझी राजनीति’ का हिस्सा है.
अपनी दलील को साबित करने के लिए लालू ने आरोप लगाया कि यह सर्वविदित है कि सीबीआई वही करती है जो केंद्र सरकार चाहती है क्योंकि सीबीआई केंद्र सरकार के अधीन आती है.
लालू ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ खतरनाक राजनीतिक खेल खेलने में बीजेपी अपने पराए के बीच भी कोई फर्क नहीं रखती.
आरजेडी प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की याचिका मंजूर करने और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के खिलाफ आपराधिक षड़यंत्र के आरोप को आज बहाल किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे.
लालू ने चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के अवसर पर पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय मोतिहारी में बीजेपी द्वारा ‘किसान कुंभ’ के आयोजन पर प्रहार करते हुए उसपर एक हाथ से गांधी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने तथा दूसरे हाथ से उनके हत्यारे नाथूराम गोड्से को सलामी देने का आरोप लगाया.

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