मीडियाकर्मियों के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की; सुप्रीम कोर्ट का जवाब तलब

उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और यौन हिंसा से संबंधित ख़बरों के प्रसारण को लेकर क़ानूनी प्रावधानों का कथित रूप से पालन नहीं करने के मामले में समाधान हेतु सहयोग के लिए भारतीय प्रेस परिषद, एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन के किसी भी प्रतिनिधि के उपस्थित नहीं होने पर बीते गुरुवार को कड़ी नाराज़गी व्यक्त की.
शीर्ष अदालत के आदेश का पालन करते हुए उपस्थित होने वाली एकमात्र मीडिया संस्था न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी से यह भी जानना चाहा कि बलात्कार और यौन हिंसा की घटनाओं की रिपोर्टिंग में संबंधित कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले मीडियाकर्मियों के ख़िलाफ़ उन्होंने क्या कार्रवाई की.
जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने इन संगठनों की अनुपस्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उसने इस मामले में इनसे सहयोग मांगा था और उन्हें जारी किए गए नोटिस की उन पर तामील हो चुकी है.
पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि वे इस मामले में हमें सहयोग करने के इच्छुक नहीं हैं और कम से कम उन्होंने अपनी उपस्थिति तो दर्ज कराई होती.
शीर्ष अदालत ने मीडिया द्वारा बलात्कार और यौन शोषण पीड़ितों की पहचान सार्वजनिक करने के बारे में कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं करने के मामले में समाधान हेतु सहयोग के लिए 20 सितंबर को चार मीडिया संगठनों को नोटिस जारी किए थे.
सुनवाई के दौरान न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी के वकील ने कहा कि ऐसे मुद्दों के बारे में पर्याप्त दिशा निर्देश हैं.
इस पर पीठ ने कहा, ‘हो सकता है कि इसके लिए हज़ारों दिशा निर्देश हों. सवाल इन पर अमल का है. ऐसे कितने लोग हैं जिनके ख़िलाफ़ आपने कार्रवाई की है.
इस संगठन के वकील ने जब यह कहा कि उन्होंने अनेक मामलों में कार्रवाई की है तो पीठ ने कहा, ‘हमें दिखाए.’ वकील ने जब यह दलील दी कि अनेक मामलों में जुर्माना लगाया गया है और वह ऐसे मामलों में दिए गए आदेशों को पेश करेगा.
पीठ ने कहा कि हमें बताएं कि क्या इन आदेशों पर अमल किया गया है. इस बारे में एक हलफ़नामा दाख़िल करें.
न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी के वकील ने कहा कि वह तीन दिन के भीतर सारे विवरण के साथ हलफ़नामा दाख़िल करेंगे.
पीठ ने इसके बाद सुनवाई 22 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी. बलात्कार और यौन शोषण पीड़ितों की पहचान उजागर करने का मुद्दा मुज़फ़्फ़रपुर आश्रय गृह की जांच के बारे में रिपोर्टिंग पर पटना उच्च न्यायालय के प्रतिबंध के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत में उठा था.

शीर्ष अदालत ने मीडिया की रिपोर्टिंग पर उच्च न्यायालय के 23 अगस्त के तहत लगाई गई रोक हटा दी थी.

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