8 नव0 को उत्‍तराखण्‍ड का यह प्रमुख लोकपर्व धूमधाम से मनाया जायेगा

देहरादून 07 नवम्बर, 2019 (सू.ब्यूरो) & Himalayauk Bureau उत्‍तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद तो कहीं एक माह बाद यह त्‍योहार मनाया जाता है। इस पर्व पर स्थानीय फसलों के व्यंजन भी बनाए जाते है। जौनसार बावर में  नई दीपावली और कुमायूं में बूढ़ी दीपावली तो गढवाल  में इगास त्‍योहार मनाया जाता है।  महालक्ष्मी पूजन के 11वें दिन एकादशी को कुमाऊं में बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है। हिमालयायूूूूके न्‍यूज पोर्टल केे लिए चन्‍‍‍‍द्रशेेेेेखर जोशी की रिपोर्ट–

 
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश वासियों को इगास पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पर्व हम सबको जीवन में सुख, समृद्धि एवं उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रदेश वासियों की सुख-शांति एवं समृद्धि की कामना की है। वही कूर्माचल परिषद देहरादून ने कुमायूं के प्रमुख लोकपर्व बुढी दीपावली पर बधाई एवं शुभकामनाये दी है,

कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने कहा कि बुढी दीपावली, इगास, नई दिपावली के नाम से मनाये जाने वाले उत्‍तराखण्‍ड के इस प्रमुख लोकपर्व पर हार्दिक शुभकामनाये अर्पित करते हैं,

गढ़वाल में इगास पर्व दीपावली के 11 दिन मनाया जाता है,जिसे इगास बग्वाल यानी दीपावली भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि गढ़वाल में 11 दिन बाद मिली प्रभु राम के अयोध्या लौटने की सूचना के उपलक्ष्य में लोगों ने इसी दिन भैलो खेला था, जिसे इगास के रुप में आज भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

उत्तराखंड में आज लोक पर्व इगास धूम-धाम से मनाया जा रहा है। गौ पूजा की जाती है। उन्हें पींडू खिलाया जाता है। उत्तराखंड में बग्वाल (दीपावली) के ठीक 11 दिन बाद इगास मनाने की परंपरा है। दरअसल ज्योति पर्व दीपावली का उत्सव इसी दिन पराकाष्ठा को पहुंचता है। इसलिए पर्वों की इस शृंखला को इगास-बग्वाल नाम दिया गया। मान्यता है कि अमावस्या के दिन लक्ष्मी जागृत होती हैं। इसलिए बग्वाल को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। जबकि, हरिबोधनी एकादशी यानी इगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। इस दिन विष्णु की पूजा का विधान है।देखा जाए तो उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीप पर्व शुरू हो जाता है। जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है। इसे ही इगास-बग्वाल कहा जाता है। इन दोनों दिनों में सुबह से लेकर दोपहर तक गोवंश की पूजा की जाती है। 

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने इगास मनाने के लिए प्रदेश के ऐसे परिवारों से अपील की जोकि गांव छोड़कर शहरों में जाकर बस गए हैं। उन्होंने लोगों से अपने गांवों में आकर इगास पर्व मनाने को कहा। राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी का संदेश लेकर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा उनके पैतृक गांव कंडवालस्युं पहुंच गए हैं। वे यहां शुक्रवार को इगास (पहाड़ की छोटी दीपावली) पर्व में शामिल होंगे। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल भी इस उत्सव में शिरकत करेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने पिछले दिनों एक वीडियो संदेश के माध्यम से इगास पर्व मनाने के लिए बलूनी के पैतृक गांव आने की जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि वे भी उत्तराखंड के अन्य प्रवासियों की तरह इगास मनाने आएंगे और पलायन के कारण तेजी से विलुप्त होती लोक परंपराओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे अभियान के भागीदार बनेंगे।

 मवेशियों के लिए भात, झंगोरा, बाड़ी (मंडुवे के आटे का हलुवा) और जौ का पींडू (आहार) तैयार किया जाता है। भात, झंगोरा, बाड़ी और जौ के बड़े लड्डू तैयार कर उन्हें परात में कई तरह के फूलों से सजाया जाता है। सबसे पहले मवेशियों के पांव धोए जाते हैं और फिर दीप-धूप जलाकर उनकी पूजा की जाती है। माथे पर हल्दी का टीका और सींगों पर सरसों का तेल लगाकर उन्हें परात में सजा अन्न ग्रास दिया जाता है। इसे गोग्रास कहते हैं,बग्वाल और इगास को घरों में पूड़ी, स्वाली, पकोड़ी, भूड़ा आदि पकवान बनाकर उन सभी परिवारों में बांटे जाते हैं, जिनकी बग्वाल नहीं होती,इस पर्व पर भी रात में पूजन के बाद गांव के सभी लोग भैलो खेलते हैं। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली। इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया। मान्यता यह भी है कि गढ़वाल राज्य के सेनापति वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जब दीपावली पर्व पर लड़ाई से वापस नहीं लौटे तो जनता इससे काफी दुखी हुई और उसने उत्सव नहीं मनाया। इसके ठीक ग्यारह दिन बाद एकादशी को वह लड़ाई से लौटे,तब उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई। जिसे इगास पर्व नाम दिया गया।

टीहरी के गांव पांगरखाल, सौंदकोटी, नवागर, कोटी, पांगरखाल, सौंड, रानीचौरी, गुनोगी के अलावा थौलधार प्रखंड व नरेंद्रनगर प्रखंड के कई गांवों में इगास दिवाली आज मनाई जा रही है। इस अवसर पर स्थानीय अनाजों के व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं। इस पर्व को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह है। इगास की तैयारी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पहले से ही शुरू की जाती है। इस अवसर पर कई जगहों पर सामूहिक भैलो के साथ ही मंडाण का भी आयोजन किया जाता है।

नई टिहरी में कार्तिक की दीपावली के ठीक एक महीने बाद जिले में कई जगहों पर मंगशीर की दीपावली भी धूमधाम से मनाई जाती है, जबिक कई जगहों व कार्तिक दीपावली के 11 दिन बाद इगाश दीपावली भी मनाई जाती है। मंगशीर की दीपावली को स्थानीय बोली में बड़ी बग्वाल भी कहा जाता है। इस पर्व पर  स्थानीय फसलों के व्यंजन भी बनाए जाते है। टिहरी जनपद के भिलंगना प्रखंड के बूढ़ाकेदार, जौनपुर व कीर्तिनगर के कई गांवों में मंगशीर मंगसीर की दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इस दीपावली पर बूढ़ाकेदार क्षेत्र में  गांव से बाहर रहने वाले लोग भी इस दीपावली को मनाने गांव पहुंचते हैं। 

जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर की 39 खतों से जुड़े करीब 400 से गांवों में से डेढ़ सौ से अधिक गांवों में नई दीपावली मनाई जा रही है, जबकि अन्य गांवों में देशवासियों के दीपावली मनाने के ठीक एक महिने बाद पहाड़ी बूढ़ी दीपावली मनाई जाएगी। इसके अलावा पछवादून के बिंहार क्षेत्र में भी बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है। जौनसार के कोटी-कनासर में 32 साल के लंबे इंतजार बाद हिमाचल प्रदेश प्रवास पर आए चालदा महासू महाराज के आगमन की खुशी में क्षेत्रवासी पहली बार नई दीपावली का जश्न मना रहे हैं। 

जनपद उत्तरकाशी में कार्तिक अमावस्या से ठीक एक माह बाद दीपावली यानी मंगशीर की बग्वाल का उत्सव होता है। कार्तिक माह की दीपावली को उत्तरकाशी क्षेत्र में शहरी चकाचौंध के चलते समान्य रूप से मनाया जाता है।  भटवाड़ी ब्लॉक के बगोरी गांव और डुंडा ब्लॉक के वीरपुर में जाड़ भोटिया समुदाय लोसर के अवसर पर होली, दीपावली और दशहरा एक साथ मनाते हैं। प्रत्येक वर्ष माघ माह की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। जिसमें चीड़ के छिलकों को लाकर मशाल जलाया जाता है। क्षेत्र के खुशहाली के साथ ही सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है।

बूढ़ाकेदार में इस दीपावली को गुरू कैलापीर देवता के नाम पर मनाया जाता है। बताया जाता है कि कैलापीर देवता हिमांचल से भ्रमण पर निकले और बूढ़ाकेदार में एक स्थान पर रूक गए। देवता को यह जगह पसंद आ गई। इसके  बाद देवता ने यहीं पर रूकने का निर्णय लिया। इस पर ग्रामीणों ने खुशी  जताते हुए लकड़ी जलाकर रोशनी से देवता का स्वागत किया। तब से ग्रामीण इस दीपावली को मनाते हैं। मंगशीर की दीपावली पर ग्रामीण देवता के साथ खेतों में दौड़ भी लगाते हैं। क्षेत्र की खुशहाली व अच्छी फसल के लिए ग्रामीण देवता के साथ दौड़ लगाते हैं। कीर्तिनगर के मलेथा व जौनपुर के कुछ गांवों में भी यह दीपावली मनाई जाती है। इसके पीछे कारण यह है कि कार्तिक के महीने वीर भड़ माधो सिंह भंडारी गोरखाओं के साथ युद्ध करने तिब्बत बार्डर  पर गया था और एक माह याने मंगशीर में युद्ध लड़कर वापास आया था, जिसके बाद  ग्रामीण इस दीपावली को मनाते हैं। इस अवसर पर स्थानीय फसलों के पकवान  तैयार किए जाते हैं। वहीं जिला मुख्यालय के नजदीकी गांवों में कार्तिक  दीपावली के 11 दिन बाद इगाश दीपावली मनाई जाती है। बताया जाता है कि  क्षेत्र का एक व्यक्ति जो काफी प्रसिद्ध था वह जंगल में लकड़ी लेने गया और वह रास्ता भटक गया 11 दिन बाद जब वह वापस आया तो लोगों ने दीपावली मनाई। चमोली के जोशीमठ ब्‍लॉक के सीमावर्ती सुरक्षा चौकियों में भी दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। फर्क इतना कि यहां पर दीये जलाए जाते हैं। आतिशबाजी भी प्रतीक स्वरूप होती है। चौकियों में बड़ा खाना भी आयोजित होता है। दीपावली से पहले जो भी जवान छुट्टी से वापस लौटता है वह दीये वो आतिशबाजी का सामान पोस्ट पर ले जाता है। दूसरी ओर, सीमावर्ती गांवों में हालांकि, लोग निचले स्थानों में लौटने लगे हैं, लेकिन नीति मलारी सहित अन्य गांवों में दीपावली का पर्व धूमधाम से परंपरागत मनाया जाता है। जनजाति के लोग परंपरागत परिधानों में सज-धज कर पंचायती चौक में भोटिया जनजाति नृत्य का आयोजन करते हैं। इस दौरान मवेशियों को भी पकवान के साथ पूजा जाता है। घरों में स्थानीय पकवान बनते हैं। जिसे एक दूसरे को खिलाया जाता है।

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