24 जून शनि अमावस्या और गुप्त नवरात्रि का संयोग

राशियों पर असर #24 जून को शनि अमावस्या और गुप्त नवरात्रि के शुभ योग  शनि की अशुभ दृष्टि से बचकर दुर्भाग्य भी खत्म #शनिवार को हनुमान मंदिर में चमेली के तेल और सिंदूर से चोला चढ़ाएं। हनुमान जी को शुद्ध में बने बेसन के लड्डू का भोग लगाएं# शनिवार 24 जून शनैश्चरी अमावस्या के मौके पर दान करें# www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Digital Newsportal & Daily Newspapers; CS JOSHI- EDITOR 

24 जून को शनि अमावस्या की रात शनि अमावस्या के दिन करने के लिए कुछ ऐसे उपाय है, जिन्हे अपनाकर आप शनि की अशुभ दृष्टि से बचकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं. राशियों के व्यक्तियों को शनि के अशुभ फल
शनिवार 24 जून को अमावस्या तिथि है। शनिवार के दिन जब अमावस्या तिथि आती है तो इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। यह संयोग इस वर्ष दो बार हो रहा है पहला 24 जून को और दूसरा 18 नवंबर को है। एक माह में दो पक्ष होते है, एक कृष्ण पक्ष दूसरा शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष में अंधेरी राते होती है और शुक्ल पक्ष में उजाली राते होती है। कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि को अमावस्या मनाई जाती है। शनिवार के दिन पड़ने वाली अमवस्या को शनि अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
24 जून के दिन शनिवार को शनि अमावस्या पड़ रही है। इस विशेष अवसर पर ह कुछ ऐसे उपाय बता रहें है, जिन्हे अपनाकर आप शनि की अशुभ दृष्टि से बचकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इन उपायों को करने से सालों पुराना दुर्भाग्य भी खत्म हो जाता है
शनिवार 24 जून को अमावस्या तिथि है। शनिवार के दिन जब अमावस्या तिथि आती है तो इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। यह संयोग इस वर्ष दो बार हो रहा है पहला 24 जून को और दूसरा 18 नवंबर को है।
साल की पहली शनिश्चरी अमावस्या का महत्व इसलिए खास है क्योंकि प्रतिपदा तिथि के क्षय हो जाने के कारण इसी दिन गुप्त नवरात्र भी आरंभ हो रहा है। शास्त्रों में बताया गया है कि गुप्तनवरात्र में किया गया जप तप बहुत अधिक फलदायी होता है। ऐसे में कई राशियों के लिए यह शनिश्चरी अमावस्या बेहद खास है।
21 जून को शनि महाराज वक्री चाल से वृश्चिक राशि में आए हैं जहां अगले चार महीने यानी 25 अक्तूबर तक शनि मौजूद रहेंगे। शनि की इस बदली स्थिति से धनु और वृश्चिक राशि वाले व्यक्ति साढ़ेसाती के पहले और दूसरे चरण के प्रभाव का फल भोगेंगे और तुला राशि वाले शनि के अंतिम चरण के प्रभाव में रहेंगे। मेष और सिंह राशि वाले एक बार फिर से ढैय्या के फल को प्राप्त करेंगे। ऐसे में इन 5 राशियों के व्यक्तियों को शनि के अशुभ फल को दूर करने के लिए शनिश्चरी अमावस्या का लाभ उठाना चाहिए।

साल की पहली शनैश्चरी अमावस्या का महत्व इसलिए खास है क्योंकि प्रतिपदा तिथि के क्षय हो जाने के कारण इसी दिन गुप्त नवरात्र भी आरंभ हो रहा है। शास्त्रों में बताया गया हैं गुप्तनवरात्र में किया गया जप तप बहुत अधिक फलदायी होता है। ऐसे में कई राशियों के लिए यह शनैश्चरी अमावस्या बेहद खास है।21 जून को शनि महाराज वक्री चाल से वृश्चिक राशि में आए हैं जहां अगले चार महीने यानी 25 अक्तूबर तक शनि मौजूद रहेंगे। शनि की इस बदली स्थिति से धनु और वृश्चिक राशि वाले व्यक्ति साढ़ेसाती के पहले और दूसरे चरण के प्रभाव का फल भोगेंगे और तुला राशि वाले शनि के अंतिम चरण के प्रभाव में रहेंगे। शनैश्चरी अमावस्या के दिन गुप्तनवरात्र भी है इसलिए शनि मंत्रों का जप करना बहुत ही लाभदायी रहेगा।

मेष और सिंह राशि वाले एक बार फिर से ढैय्या के फल को प्राप्त करेंगे। ऐसे में इन 5 राशियों के व्यक्तियों को शनि के अशुभ फल को दूर करने के लिए शनैश्चरी अमावस्या का लाभ उठाना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि शनैश्चरी अमावस्या के दिन शनि मंदिर में सरसों तेल का दीप दान करना चाहिए इससे शनि के प्रकोप से बचाव होता है। पितृगणों को ध्यान करते हुए पीपल को जल देना चाहिए। जल में गुड़ मिलाकर अर्पित करना विशेष फलदायी होता है।
शनिश्चरी (शनिवार) की अमावस, प्रात: 8 बजकर एक मिनट के बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रारम्भ एवं आषाढ़ महीने के माता के गुप्त नवरात्र प्रारम्भ हो जाएंगे, जो दो जुलाई तक रहेंगे। इसके साथ-साथ मां ज्वाला के परम प्रिय भक्त श्री ध्यानूं भगत जी की जयंती भी है। विद्वानों का कहना है, प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान है। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं (मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुन्दरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्न महता, त्रिपुरी भैरवीं, मां धूमावती, माता बगुला मुखी, मातंगी व कमला देवी) की साधना से अभिष्ट सिद्धियां पाई जा सकती हैं। सतयुग में चैत्र नवरात्रि, द्वापर में माघ नवरात्रि, कलयुग में अश्विनी नवरात्रि और त्रेता युग में आषाढ़ नवरात्रि की प्राथमिकता रहती है। शनि अमावस्या और गुप्त नवरात्रि का अद्भुत योग निसंतान दंपत्तियों को संतान देगा, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। 24 जून को किया गया व्रत-उपवास लाभ प्रदान करेगा। वर्तमान समय में वृश्चिक, धनु और मकर पर साढ़ेसाती वृषभ और कन्या राशि पर ढैय्या का प्रभाव चल रहा है। शनि पीड़ा से राहत के लिए किए गए उपाय बहुत लाभ देंगे।

 

प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि पितृकर्म के लिए श्रेष्ठ मानी गई है, किंतु हिंदू कैलेंडर का चौथा माह यानी आषाढ़ की अमावस्या का अलग महत्व है। यह वर्षाकाल के प्रारंभ का समय होता है और कहा जाता है पितृ इस अमावस्या के दिन अपने परिजनों से अन्न-जल ग्रहण करने आते हैं। इसलिए आषाढ़ी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों के तट पर बड़ी संख्या में पितृकर्म संपन्न किए जाते हैं। इसी कारण आषाढ़ अमावस्या को पितृकर्म अमावस्या भी कहते हैं।  इस साल आषाढ़ अमावस्या दो दिन 23 और 24 जून को है। जो जातक अमावस्या के दिन पितृकर्म, तर्पण आदि करना चाहते हैं उन्हें 23 जून शुक्रवार को पितृकर्म संपन्न करवाना चाहिए। इसका कारण यह है कि पितृकर्म दोपहर 12 बजे किए जाते हैं। 24 जून को सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि तो रहेगी, लेकिन यह तिथि प्रातः 8 बजे ही समाप्त हो जाएगी और उसके बाद आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगी इसलिए 24 जून को पितृकर्म नहीं किए जा सकते। हां, 24 जून को शनि अमावस्या जरूर मनाई जाएगी। पितृकर्म 23 जून को ही संपन्न किए जाना शास्त्र सम्मत रहेगा क्योंकि 23 जून को प्रातः 11.49 बजे से अमावस्या तिथि प्रारंभ हो जाएगी और दोपहर 12 बजे अमावस्या रहेगी। इसमें पितृकर्म आदि किए जा सकते हैं।  24 जून को शनिवार होने से अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि के लिए शनैश्चरी अमावस्या का दिन उत्तम है। जो लोग शनि की साढ़ेसाती या शनि के बुरे प्रभाव से पीडि़त हैं उनके लिए इस अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन शनिदोष निवारण पूजा, शनि अर्चन, शनि हवन आदि करने से शनि के कुप्रभाव कम होते हैं। वक्री शनि 21 जून से वृश्चिक राशि में भी पहुंचे हैं। शनि के इस परिवर्तन से प्रभावित जातकों के लिए भी शनैश्चरी अमावस्या विशेष है। 

 

हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड- देहरादून तथा हरिद्वार से प्रकाशित मोबा0 9412932030 मेल-* himalayauk@gmail.com

 

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